जनता की भुखमरी और बेरोज़गारी के बीच प्रधानमंत्री की अय्याशियाँ

– रूपा

आज देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट जारी है, वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत नेपाल, म्यामार और श्रीलंका जैसे देशों से भी पीछे जा चुका है, देश में बेरोज़गारी की हालत पिछले 46 सालों में सबसे बुरी है, लोगों के रहे-सहे रोज़गार भी छिन गये हैं, महँगाई आसमान छू रही है, मेहनत-मज़दूरी करने वाले लोग मुश्किल से गुज़ारा कर रहे हैं। मगर ख़ुद को प्रधानसेवक कहने वाले हमारे प्रधानमंत्री महोदय बड़ी ही बेशर्मी के साथ आये दिन ऐय्याशियों के नये-नये कीर्तिमान रच रहे हैं।
दस लाख का डिज़ाइनर सूट पहनने वाले, डेढ़ लाख के विदेश चश्मे और घड़ी पहनने वाले और ढाई लाख के मशरूम गटक जाने वाले हमारे प्रधानसेवक महोदय की ख्वाहिश पूरी करने करने के लिए हाल ही में ख़ास ऑर्डर पर अमरीका से दो आलीशान सर्वसुविधायुक्त विमान एयर इण्डिया वन (बोइंग 777) तैयार करवाये गये हैं। इनकी एक घण्टे की उड़ान का ख़र्च लगभग सवा करोड़ रुपये है। इनमें वीवीआईपी के लिए विशेष सुइट है और हर वह सुविधा मौजूद है जो अमेरिकी राष्ट्रपति के विमान में मौजूद होती है। एक विमान अक्टूबर में आ भी चुका है, दूसरा विमान जो राष्ट्रपति के लिए होगा, दिसम्बर तक आने की उम्मीद है। इन दोनों विमानों की क़ीमत लगभग 8500 करोड़ रुपये बतायी गयी है। इन विमानों में हवा में ईंधन भरा जा सकता है और हवा में वीडियो और ऑडियो कम्यूनिकेशन की भी सुविधा है। अमेरिका ने इन दोनों विमानों के लिए ख़ास रक्षा प्रणाली दी है जिसकी क़ीमत क़रीब 1300 करोड़ है। ख़ास बात यह है कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए पहले से ही दो बेहतरीन विमान मौजूद हैं।
सोचने वाली बात है कि विलासिता के शिखर छूने वाले ये दोनों विमान ऐसे समय में खरीदे गये है जब देश में कोरोना का कहर जारी है। लोग सही समय पर इलाज न मिलने की वजह से अपनी जान गँवा रहे हैं। ऐसे में कोई भी संवेदनशील प्रधानमंत्री अपनी सुख-सुविधाओं में कटौती करके सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के बारे में सोचता। लेकिन हमारे फ़कीर प्रधानसेवक से संवेदनशीलता की अपेक्षा करना बेमानी है।
यह समझने के लिए अर्थशास्त्री होने की ज़रूरत नहीं है कि देश की आर्थिक स्थिति अभी ऐसी नही है कि इस बेहद ख़र्चीले विमानों का बोझ उठा सके, फिर भी ये मँहगे विमान मँगाए जा रहे हैं। इसपर अन्धभक्त कहेंगे कि इसमे क्या ग़लत बात है? हमारे मोदीजी को अमेरिका के राष्ट्रपति सरीख़ी सुविधा क्यो न दी जाये? आख़िर मोदीजी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री जो ठहरे। वैसे इन्ही अन्धभक्तों को एक बार यह बोल दिया जाये कि भारत में भी अमेरिका की तरह हर परिवार को कोरोना काल में 40 हज़ार रुपये मासिक भत्ता दिया जाये तो उन्हें तुरन्त याद आ जायेगा कि अमेरिका तो विकसित देश है और भारत ठहरा एक ग़रीब देश! वह अपने नागरिकों को इतनी सुविधा कैसे दे सकता है?
भारत में कोरोना काल मे हालत यह है कि सरकार के पास एयर इण्डिया के पास कर्मचारियों के प्रोविडेण्ट फ़ण्ड और टीडीएस तक जमा कराने के लिए भी पैसा नहीं हैं रेलवे में पेंशन फ़ण्ड में डालने के पैसे नही है, रेलवे कर्मचारियों को कोई बोनस नही है, कई राज्यों की सरकारों के पास स्वास्थ्य कर्मियों को तनख़्वाह देने के पैसे नही है, डॉक्टरो को देने के लिए तनख़्वाह नहीं है, कई विभागों में कर्मचारियों के खाते में तनख़्वाह आये छह महीने से अधिक हो गये हैं और कुछ विभाग ऐसे भी हैं जहां लगभग एक साल से कर्मचारियों को कोई तनख़्वाह नहीं मिली। यही हालत देश भर में संविदा शिक्षकों की है। इसके अलावा हर सरकारी एवं अर्द्धसरकारी संस्थान के कर्मचारियों के वेतन भत्तों में या तो कटौती की जा चुकी हैं या जल्द ही किये जाने की योजना है। मोदी सरकार पूरी बेशर्मी के साथ राज्यों को जीएसटी मुआवज़ा देने से इनकार कर चुकी हैं जो कि उनका हक़ है। देश में कोरोना महामारी के नाम पर जो पीएम केयर फ़ण्ड बनाया गया उसका पैसा कहाँ गया यह किसी को नहीं मालूम और ना ही मालूम किया जा सकता है।
अभी हाल ही में सरकार का बयान आया है कि बजट में अनुमोदित किया गया उसका सरकारी ख़र्च इन 6 महीनो में ही ख़त्म हो गया है और अब सरकार को कामकाज़ के लिए बाज़ार से और क़र्ज़ लेना होगा, राज्यों को भी कोरोना काल मे ख़र्च चलाने के लिए क़र्ज़ लेना होगा। ग़म और उदासी भरे इस माहौल में हमारे प्रधानसेवक एयरफोर्स वन जैसे विमान ख़रीदकर अपनी शानोशौकत का नग्न प्रदर्शन कर रहे हैं!
कहने को तो भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ जनता के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुनकर जाते हैं और जनता के सेवक होते हैं। लेकिन हमारे प्रधानसेवक की जीवन शैली पर एक नज़र डालते ही इस लोकतंत्र की पोल खुल जाती है।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments