Category Archives: संघी ढोल की पोल

राम मन्दिर के ज़रिये साम्प्रदायिक लहर पर सवार हो फिर सत्ता पाने की फ़िराक़ में मोदी सरकार

यह कोई धार्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक कार्यक्रम है। महँगाई को क़ाबू करने, बेरोज़गारी पर लगाम कसने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, मज़दूरों-मेहनतकशों को रोज़गार-सुरक्षा, बेहतर काम और जीवन के हालात, बेहतर मज़दूरी, व अन्य श्रम अधिकार मुहैया कराने में बुरी तरह से नाकाम मोदी सरकार वही रणनीति अपना रही है, जो जनता की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर उसे बेवकूफ़ बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और उसका आका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से अपनाते रहे हैं। चूँकि मोदी सरकार के पास पिछले 10 वर्षों में जनता के सामने पेश करने को कुछ भी नहीं है, इसलिए वह रामभरोसे सत्ता में पहुँचने का जुगाड़ करने में लगी हुई है। इसके लिए मोदी-शाह की जोड़ी के पास तीन प्रमुख हथियार हैं : पहला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशव्यापी सांगठनिक काडर ढाँचा; दूसरा, भारत के पूँजीपति वर्ग की तरफ़ से अकूत धन-दौलत का समर्थन; और तीसरा, कोठे के दलालों जितनी नैतिकता से भी वंचित हो चुका भारत का गोदी मीडिया, जो खुलेआम साम्प्रदायिक दंगाई का काम कर रहा है और भाजपा व संघ परिवार की गोद में बैठा हुआ है।

“महँगाई-बेरोज़गारी भूल जाओ! पाकिस्तान को सबक सिखाओ!” गोदी मीडिया की गलाफाड़ू चीख-पुकार, यानी चुनाव नज़दीक आ गये हैं!

हमारा ध्यान अपनी जिन्दगी की असल समस्याओं की ओर न जाए इसलिए देश में अन्ध-राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीति हो रही है। संघ परिवार और भाजपा की इस राजनीति को बहुत लोग समझने भी लगे हैं। लेकिन भाजपा अलग-अलग स्वांग रच कर इन्हीं पत्तों को खेलेगी। नूह में दंगों के समय यह साफ़ हो गया है की 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले भाजपा और संघ परिवार देश को दंगों की आग में झोंकने की योजना बना रही है। इन्हें हमेशा इस बात की उम्मीद रहती है कि अन्‍धराष्ट्रवाद का कार्ड हमेशा काम आता है। पाकिस्तान के खिलाफ़, चीन के खिलाफ़, सेना के नाम पर जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश की जाती है। लेकिन इस बार जनता को सावधान रहना होगा। 

जनता के जनवादी अधिकारों पर आक्रामक होता फ़ासीवादी मोदी सरकार का हमला और इक्कीसवीं सदी में फ़ासीवाद के बारे में कुछ बातें

जब फ़ासीवादी शक्तियाँ सत्ता से बाहर भी होती हैं, तो उनका पूर्ण ध्वंस नहीं होता बल्कि बुर्जुआजी तब भी उनके अस्तित्व बनाये रखना चाहती है और उन्हें अपना समर्थन देती रहती है। वह उन पर किसी प्रकार के पूर्ण प्रतिबन्ध का आम तौर पर विरोध करती है। वह उन्हें अपनी असंस्थानिक व अनौपचारिक राजनीतिक शक्ति के रूप में समाज और राजनीति में बनाये रखती है ताकि उसका सर्वहारा वर्ग और आम मेहनतकश जनता के विरुद्ध प्रतिभार के रूप में इस्तेमाल कर सके।

नूंह में हुई हिंसा की सच्चाई : एक जाँच रिपोर्ट

नूंह में मोनू मानेसर, बंटी आदि जैसे अपराधी बजरंग दलियों और विहिप द्वारा योजनाबद्ध तरीके से दंगे भड़काये गये और उसके ज़रिये हरियाणा समेत पूरे देश में हिन्दू-मुसलमान दंगे फैलाने के प्रयास किये गये। इसका कारण है कि अगले साल हरियाणा और देश में चुनाव हैं और हमेशा की तरह संघ चुनाव से पहले दंगों की बारिश कराने में लग गया है ताकि अगले साल वोट की अच्छी फ़सल काटी जा सके और जनता का ध्यान महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार से भटकाया जा सके।

भाजपा शासन में चुनाव पास आते ही सरहद पर घुसपैठ क्यों बढ़ जाती है?

ज़रा सोचिए, क्यों ऐसा होता है कि जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आता जाता है और विशेषकर भाजपा सरकार को हार का ख़तरा सताने लगता है, वैसे ही देश भर में दंगों का माहौल बनना क्यों शुरू हो जाता है? क्यों चुनाव के समय ही मन्दिर और मस्जिद के नाम पर लड़ाइयाँ शुरू हो जाती हैं? क्यों ख़बरों में ऐसा आना शुरू हो जाता है कि पाकिस्तान या चीन ने देश पर हमले शुरू कर दिये हैं? और आख़िर क्यों चुनाव आते ही देश की सीमाओं पर अचानक घुसपैठ तेज हो जाते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक की ख़बरें आनी शुरू हो जाती हैं, जिनकी कभी कोई पुष्टि नहीं की जाती और सबूत माँगना ही देशद्रोह घोषित कर दिया जाता है?

दंगे करने का अधिकार, माँग रहा है संघ परिवार! शामिल है मोदी सरकार!

नूंह में दंगे भड़काने की संघी फ़ासिस्टों की चाल को जनता की ओर से उस प्रकार का समर्थन नहीं मिला जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे। नूंह और हरियाणा की हिन्दू मेहनतकश जनता की बहुसंख्या ने संघियों की दंगाई कोशिशों को बड़े पैमाने पर नकार दिया है। समाज का एक छोटा हिस्सा है जो केवल और केवल मुसलमानों से नफ़रत की वजह से मोदी-शाह सरकार और संघ परिवार की ऐसी चालों का समर्थन कर रहा है। यह कुल हिन्दू आबादी का भी एक बेहद छोटा हिस्सा है। स्वयं यह भी बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी से तंग है। लेकिन मुसलमानों से अतार्किक घृणा और राजनीतिक चेतना की कमी के कारण वह संघी फ़ासिस्ट प्रचार के प्रभाव में है। अभी हो रही सभी दंगाई पंचायतों में इस छोटी-सी अल्पसंख्या से आने वाले लोग ही शामिल हैं। व्यापक मेहनतकश आबादी ने ऐसी दंगाई साज़िशों को ख़ारिज किया है। इस आबादी में जो मुखर हैं और बोलते हैं, उन्होंने स्पष्ट तौर पर बोलकर हार के डर से बौखलायी मोदी-शाह सरकार की साम्प्रदायिक फ़ासिस्ट चालों को नकारा है। लेकिन जो बहुसंख्यक आबादी मुखर नहीं भी है, वह मोदी सरकार और संघ परिवार की दंगाई चालों से बुरी तरह से चिढ़ी हुई और नाराज़ है।

समान नागरिक संहिता के पीछे मोदी सरकार की असली मंशा है साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण जिसकी फसल 2024 के लोकसभा चुनावों में काटी जा सके!

यदि मुसलमान औरतों के प्रति भाजपा का कोई सरोकार होता तो उसके नेता मुसलमान स्त्रियों को कब्र से निकालकर उनके बलात्कार का आह्वान मंचों से न करते, गुजरात के दंगों में मुसलमान औरतों का सामूहिक बलात्कार, गर्भ चीरकर भ्रूण निकालने जैसी वीभत्स और बर्बर घटनाएँ आर.एस.एस. व भाजपा के गुण्डों द्वारा न अंजाम दी जातीं। अगर उन्हें मुसलमान औरतों के प्रति न्याय को लेकर इतना दर्द उमड़ रहा होता तो बिलकिस बानो के बलात्कारियों और उसके बच्चे और परिवार के हत्यारों को भाजपा सरकार बरी न करती, न ही माया कोडनानी और बाबू बजरंगी जैसे लोग बरी होते या उन्हें पैरोल मिलती। साफ़ है कि मुसलमान औरतों के प्रति चिन्ता का हवाला देकर भाजपा तथाकथित समान नागरिक संहिता को मुसलमान आबादी पर थोपना चाहती है और असल में वह समान नागरिक संहिता के नाम पर हिन्दू पर्सनल लॉ को ही विशेष तौर पर मुसलमान आबादी पर थोपना चाहती है, जो कि उनकी धार्मिक व निजी आज़ादी का हनन होगा और इस प्रकार साम्प्रदायिक तनाव और ध्रुवीकरण को बढ़ाने का उपकरण मात्र होगा। मुसलमान औरतों के प्रति भाजपाइयों और संघियों के पेट में कितना दर्द है, यह सभी जानते हैं।

आरएसएस से जुड़ा डीआरडीओ का वैज्ञानिक गोपनीय सूचनाएँ बेचने के आरोप में गिरफ़्तार

यह कोई पहला मामला नहीं है जब आरएसएस या भाजपा से जुड़े किसी व्यक्ति का नाम देश की रक्षा से सम्बन्धित सूचनाओं को दूसरे देश की ख़ुफ़िया एजेंसी को लीक करने में आया है। इसके पहले आरएसएस से जुड़े ध्रुव सक्सेना को भी एटीएस ने आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। जब यह बात सामने आयी कि ध्रुव सक्सेना भाजपा के आईटी सेल का जिला कॉर्डिनेटर है, तो फिर भाजपा ने यह रोना रोया कि विदेशी ताकतें भाजपा में घुसपैठ कर रही है तथा ध्रुव सक्सेना से उसका कोई लेना देना नहीं है। पी. एम. कुरुलकर के मामले में भी आरएसएस व भाजपा ने चुप्पी साध रखी है।

‘द केरला स्टोरी’: संघी प्रचार तन्त्र की झूठ-फ़ैक्ट्री से निकली एक और फ़िल्म

जिस तरीक़े से जर्मनी में यहूदियों को बदनाम करने के लिए किताबों, अख़बारों और फ़िल्मों के ज़रिए तमाम अफ़वाहें फ़ैलायी जाती थीं, आज उससे भी दोगुनी रफ़्तार से हिन्दुत्व फ़ासीवाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहा है। ‘द केरला स्टोरी’ भारत के हिन्दुत्व फ़ासीवाद के प्रचार तन्त्र में से ही एक है।

पुरोला की घटना और भाजपा के “लव जिहाद” की सच्चाई!

जहाँ तक “लव जिहाद” जैसे शब्द और अवधारणा की बात है तो ये हिन्दुत्ववादी दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलाया गया एक मिथ्या प्रचार है। इसकी पूरी अवधारणा ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली, घोर स्त्री-विरोधी और हिन्दुत्व की जाति व्यवस्था की पोषक अवधारणा है। इसके अनुसार मुस्लिम युवक अपना नाम और पहचान बदलकर हिन्दू लड़की को बरगलाकर, बहला-फुसलाकर अपने जाल में फँसाता है और उसके बाद जबरन हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन करवाता है। यानी इस अवधारणा के अनुसार स्त्री का कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व और विचार ही नहीं होता! स्त्रियों को कोई भी बहला-फुसलाकर अपने जाल में फँसा सकता है! “लव जिहाद” के अनुसार मुस्लिम युवक जानबूझकर अपना “नाम” बदलते हैं ताकि “हिन्दू लड़कियों को फँसा सकें”। यानी प्यार “नाम” पर टिका है। जैसे दो व्यक्तियों का कोई व्यक्तित्व ही न हो! उनकी अपनी पसन्दगी-नापसन्दगी ही न हो! “नाम” अगर मुस्लिम होगा तो प्यार नहीं होगा! हिन्दू होगा तो हो जायेगा!