महामारी के दौर में भी चन्द अरबपतियों की दौलत में भारी उछाल!
या इलाही ये माज़रा क्या है?

– आनन्द सिंह

इस साल कोरोना महामारी के बाद भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में लम्बे समय तक आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया जिसकी वजह से दुनिया भर में उत्पादन की मशीनरी ठप हो गयी और विश्व पूँजीवाद का संकट और गहरा गया। लेकिन हाल ही में कुछ संस्थाओं की ओर से जारी किये गये आँकड़े यह दिखा रहे हैं कि महामारी के दौर में भारत और दुनिया के कई अरबपतियों की सम्पत्ति में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है। ये आँकड़े यह साबित करते हैं कि इन अरबपतियों ने गिद्ध की भाँति आपदा में भी अवसर खोज लिया है जिसकी इजाज़त मौजूदा व्यवस्था ही देती है। इन विडम्बनापूर्ण आँकड़ों की सतही व्याख्या करते हुए बहुत-से लोग इस हास्यास्पद षड्यंत्र सिद्धान्त को सही मानने लगे हैं कि दरअसल पूँजीपति वर्ग ने मुनाफ़ा कमाने के लिए साज़िश के तहत लॉकडाउन लगाया था। कुछ लोग तो कोरोना को ही साज़िश करार दे रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिक नज़रिये से इस परिस्थिति को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स ने दिखाया था कि पूँजीवादी व्यवस्था की नैसर्गिक गति के फलस्वरूप समाज दो ध्रुवों में बँट जाता है। एक ध्रुव पर धन-दौलत और ऐश्वर्य का अम्बार इकट्ठा होता जाता है और दूसरे ध्रुव पर ग़रीबी, कंगाली और दु:खों तथा तकलीफ़ों का महासागर बनता जाता है। इसी वजह से दुनिया में हर साल एक ओर अरबपतियों-खरबपतियों की सम्पदा में लगातार इज़ाफ़ा होता जाता है और दूसरी ओर ग़रीबों की तकलीफ़ें बढ़ती जाती हैं। इस प्रक्रिया में मज़दूर तो तबाह होते ही हैं, साथ ही बड़ी संख्या में छोटे उत्पादक व पूँजीपति भी बर्बाद होते जाते हैं और उनकी क़ीमत पर चन्द बड़े पूँजीपतियों की समृद्धि की मीनारें ऊँची होती जाती हैं। लेकिन इस व्यवस्था के सुचारु रूप से चलने के लिए यह ज़रूरी होता है कि समाज में उत्पादन की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे। फिर ऐसा कैसे हुआ कि उत्पादन की प्रक्रिया बाधित होने पर भी कुछ पूँजीपतियों की दौलत इस क़दर बढ़ गयी?
हाल ही में प्रकाशित हुई ‘बिलिनेयर्स इनसाइट रिपोर्ट 2020’ यह दिखाती है कि इस साल अप्रैल व जुलाई के बीच भारत के अरबपतियों की कुल सम्पदा में 35 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। इससे पहले फ़ोर्ब्स की ‘इण्डिया रिच लिस्ट 2020’ में यह तथ्य सामने आया था कि भारत के सबसे बड़े धनपशु मुकेश अम्बानी की कुल सम्पदा में इस साल पिछले साल के मुक़ाबले 73 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। मोदी के दूसरे सरपरस्त, गौतम अडाणी की पूँजी तो इस साल और तेज़ी से बढ़ी। ब्लूमबर्ग बिलिनेयर इण्डेक्स के अनुसार, इस साल के पहले साढ़े दस महीनों में ही अडाणी की पूँजी में 19.1 बिलियन डॉलर, यानी क़रीब 1.40 लाख करोड़ रुपये की छलाँग लगी है जो कि अम्बानी की इस साल अब तक की कमाई 16.4 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा है।
इसी तरह एचसीएल के संस्थापक शिव नादर और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया के साइरस पूनावाला, बायोकॉम की चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर किरन मज़ूमदार शॉ जैसे अरबपतियों की सम्पत्ति में भी कोरोना काल में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली। ऐसे रुझान दुनिया के कई अन्य देशों में भी देखने को आ रहे हैं। विश्व पूँजीवाद के सिरमौर अमेरिका में भी एमेज़ॉन के प्रमुख ज़ेफ़ बेजोस, फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग, गूगल के संस्थापकों सर्गेई ब्रिन और लैरी पेज, माइक्रोसॉफ़्ट के पूर्व सीईओ स्टीव बालमर और टेस्ला के एलन मस्क की सम्पत्ति में कोरोना काल के दौरान हुए भारी इज़ाफ़े के तथ्य प्रकाशित हुए हैं।
सवाल यह उठता है कि जब कोरोना काल में उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और दुनिया के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाएँ भयंकर मन्दी के दौर से गुज़र रही हैं, ऐसे में इन धनपशुओं की सम्पदा में हो रही बढ़ोतरी का राज़ क्या है। इस राज़ को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि वित्तीय पूँजी के जिस युग में हम रह रहे हैं उसमें कम्पनियों और व्यक्तियों की कुल सम्पदा काफ़ी हद तक सट्टा बाज़ार में उनके शेयर की क़ीमतों से तय होती है। ऐसे में उत्पादन में कमी होने के बावजूद अगर शेयर बाज़ार गर्म है और कम्पनियों के शेयर उछाल पर हैं तो कम्पनियों व शेयरहोल्डरों की सम्पदा में वृद्धि दिखायी देगी जो निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था की अच्छी सेहत का परिचायक नहीं है। ग़ौरतलब है कि उत्पादन के ठप होने व अर्थव्यवस्था में भारी मन्दी के बावजूद सट्टा बाज़ार में उछाल आ सकता है बल्कि अक्सर ऐसा होता भी है क्योंकि वास्तविक अर्थव्यवस्था में मन्दी की वजह से लाभप्रद निवेश के अवसर न होने की सूरत में सट्टा बाज़ार में निवेश करना सुगम होता है।
इसके अतिरिक्त सरकार व केन्द्रीय बैंक की नीतियाँ भी सट्टा बाज़ार में उछाल पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं। मिसाल के लिए अमेरिका में कोरोना काल में आर्थिक संकट से निपटने के लिए अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों में कटौती करके शून्य तक कर दिया और बॉण्डों की असीमित मात्रा को ख़रीदने का आश्वासन दे दिया था जिसकी वजह से स्टॉक जैसे एसेट की माँग बढ़ गयी और शेयर बाज़ार के सूचकांक नैस्डैक में रिकॉर्ड छलाँग देखने में आयी। इस वजह से निवेशकों ने हाई टेक, हेल्थकेयर (फ़ार्मा व अस्पतालों), ऑनलाइन रिटेल व ई-बिज़नेस जैसे सेक्टरों की कम्पनियों की ईक्विटी ख़रीदने में ख़ूब पैसे झोंके क्योंकि महामारी के दौर में इन कम्पनियों द्वारा प्रदान किये जाने वाले उत्पाद व सेवाओं की माँग काफ़ी बढ़ने की सम्भावना थी। नतीजतन इन सेक्टरों की अग्रणी कम्पनियों व उनके शेयरहोल्डरों की सम्पदा में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ।
यहाँ ग़ौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के चन्द धन्नासेठों की सम्पत्ति में इज़ाफ़ा समूची पूँजीवादी व्यवस्था की सेहत का पैमाना नहीं है क्योंकि किसी अर्थव्यवस्था की सेहत केवल कुछ सेक्टरों की चुनिन्दा कम्पनियों से ही नहीं बल्कि तमाम सेक्टरों में उत्पादन के हालात व मुनाफ़े की औसत दर से तय होती है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पूँजीपति वर्ग में औद्योगिक पूँजीपतियों के अलावा वित्तीय क्षेत्र के पूँजीपति व तमाम व्यापारी, एवं सट्टाख़ोर शामिल होते हैं। ऐसे में इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि जब पूरी अर्थव्यस्था संकट के भँवर में फँसी है ऐसे में चन्द अरबपतियों की सम्पदा बढ़ रही है। अगर समग्रता में बात की जाये तो जहाँ एक ओर यह बात सच है कि कोरोना काल में मुट्ठीभर अरबपतियों की सम्पदा में इज़ाफ़ा हुआ है वहीं यह भी सच है कि अधिकांश अरबपतियों की कुल सम्पदा में गिरावट आयी है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ इस साल दुनिया के अरबपतियों की कुल सम्पदा 8 ट्रिलियन डॉलर थी जबकि पिछले साल वह 8.7 ट्रिलियन डॉलर थी। इस साल एक हज़ार से ज़्यादा अरबपतियों की कुल सम्पदा में गिरावट आयी जो अभूतपूर्व है।
भारत की बात करें तो यहाँ के सबसे बड़े धनपशु मुकेश अम्बानी की कुल सम्पदा में कोरोना काल में भी ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ। परन्तु उसकी मुख्य वजह यह थी कि उसकी टेलीकॉम कम्पनी जियो में इस साल फ़ेसबुक सहित कई वैश्विक निवेशकों ने भारी निवेश किया जिसकी वजह से उसकी कम्पनी के शेयर और उसके निजी शेयर के मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी हुई। इसी प्रकार वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट के साइरस पूनावाला की सम्पत्ति में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा देखने में आया है जिसकी वजह यह है कि कोरोना काल में इस कम्पनी के बिज़नेस की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए उसके शेयर मूल्य में ज़बर्दस्त छलाँग लगी। ग़ौरतलब है कि यह वही कम्पनी है जिसमें हाल ही में प्रधान सेवक ने कोरोना की वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया का जायज़ा लेते हुए फ़ोटो सेशन करवाया था।
इन बातों से यह स्पष्ट है कि कोरोना काल में चन्द अरबपतियों की सम्पदा में इज़ाफ़ा और मेहनतकश आबादी की तबाही व बर्बादी में कोई ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि यह पूँजीवाद के आम नियम के अनुरूप ही है। साथ ही यह भी सच है कि ऐसे आँकड़े पूँजीवाद की अच्छी सेहत को नहीं बल्कि उसकी मरणासन्न अवस्था को ही दिखाते हैं।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2020


 

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