अमेज़ॉन के मज़दूरों का यूनियन बनाने की माँग को लेकर जुझारू संघर्ष

– सार्थक

अमरीका के अलबामा राज्य के बेसिमर शहर में स्थि‍त अमेज़ॉन के भण्डारगृह में 5800 मज़दूर कार्यरत हैं। यहाँ के मज़दूर काम की भीषण परिस्थितियों के ख़िलाफ़ एक संगठित संघर्ष के लिए यूनियन बनाने की माँग पिछले साल से कर रहे हैं। इतने लम्बे समय से माँग करने के बाद अभी एक महीने से यानी मार्च के आरम्भ से चुनाव प्रक्रिया चल रही है। यह चुनाव गुप्त मतदान के आधार पर डाक से भेजी चिट्ठी के ज़रिए कराया जा रहा है। 31 मार्च से मतगणना की शुरुआत हो गयी है और अभी यह मतगणना लगभग 5-6 दिनों तक चलेगी, उसके बाद ही परिणाम आयेगा। बिगुल के अगले अंक में हम इस परिणाम की सूचना पाठकों को ज़रूर देंगे।
वॉलमार्ट के बाद अमेज़ॉन मज़दूरों और कर्मचारियों की संख्या के मामले में अमरीका की दूसरी सबसे बड़ी निजी कम्पनी है। इसके मातहत बस अमरीका-अमरीका में ही 8 लाख से अधिक मज़दूर और कर्मचारी कार्यरत हैं। पूरे विश्व की बात की जाये तो यह संख्या 13 लाख से अधिक की होगी। अमेज़ॉन इस बात के लिए कुख्यात है कि किसी भी देश या शहर के भण्डार गृह तथा कार्यालय में सारे क़ानूनी, ग़ैर-क़ानूनी और पुलिसिया दाँव-पेंच लगाकर यह यूनियन बनाने की किसी भी माँग को ज़बरन दबाता है। इज़ारेदार पूँजी किस क़दर विश्व के हर हिस्से में जड़ें जमायी हुई है, वह अमेज़ॉन के उदाहरण से पता चलता है। यह सभी देशों के प्रशासन के साथ साँठ-गाँठ में मज़दूर वर्ग के अधिकारों का हनन करती है। अमेज़ॉन मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक धमकी देकर, उनकी जासूसी कर हर हालात में साम-दाम-दण्ड–भेद के आधार पर इस आन्दोलन को दबाने की कोशिश कर रहा है। भण्डार गृह के प्रबन्धन ने जगह-जगह पर यूनियन बनाने के ख़िलाफ़ पोस्टर चिपकाये हैं, मज़दूरों को हर रोज़ धमकी भरे मैसेज मोबाइल पर भेजे जाते हैं, उन्हें काम की जगह पर अधिकारी सत्संग करने की तरह रोज़ यूनियन कितनी बुरी बला है, इसका पाठ पढ़ाते हैं। इस संघर्ष में मुखर मज़दूरों के साथ हाथापाई भी की जाती है और कइयों को काम से भी निकाला गया है। लेकिन काम की परिस्थितियों और शोषण का स्तर देखते हुए मज़दूरों का ग़ुस्सा इतना अधिक है कि अमेज़ॉन के सारे उपाय नाकाम हो रहे हैं। यहाँ पर बेहद छोटे में हम काम की परिस्थितियों की चर्चा करेंगे।
भण्डार में मुख्यतौर पर पैकेजिंग का काम है। हर पल काम का दबाव इतना अधिक रहता है कि सुपरवाइज़र उन्हें पेशाब करने के लिए जाने तक की अनुमति नहीं देते और बात यहाँ तक सामने आयी है कि उन्हें बोतल में पेशाब करने को कहा गया। जैसा कि भारत या किसी भी “तीसरी दुनिया” के स्त्री–पुरुष श्रमिकों के साथ होता है वहाँ भी पेशाब के लिए तय से एक भी अधिक बार जाने पर फ़ाइन लगता है। मज़दूरों को बिना कारण बताये एक मोबाइल ऐप के माध्यम से काम से निकाले जाने की सूचना दे दी जाती है और उन्हें कारण नहीं दिया जाता। यह परिस्थितियाँ जानने या सफ़ाई देने तक का मौक़ा कोरोना महामारी फैलने के बाद बद से बदतर होता चला गया। जैसा कि हम सभी जानते हैं कोविड के दौरान लगभग सारी ख़रीददारी ऑनलाइन हो गयी थी। ऐसे में इन मज़दूरों के ऊपर काम का भयंकर दबाव था। उन्हें बिना किसी सुरक्षा इन्तज़ाम के कठिन परिस्थितियों में लगातार काम करना पड़ा और नतीजा यह हुआ कि अमरीका में अमेज़ॉन के 20,000 मज़दूर कोविड पॉज़िटिव पाये गये। इसके अलावा काम करने के दौरान मज़दूरों से उनके फ़ोन छीन लिये जाते थे। एक तो कोविड पॉज़िटिव की संख्या बढ़ रही थी दूसरे इन मज़दूरों से फ़ोन छीन लिया गया, घर परिवार से ऐसी परिस्थितियों में कट जाने की हालत में इन मज़दूरों पर कितना मानसिक दबाव पड़ता होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। कोविड पॉ‍ज़िटिव की बढ़ती संख्या को देख कर अमेज़ॉन ने ‘हज़ार्ड पे’ (जोखिम से लड़ने के लिए भुगतान) शुरू किया लेकिन मई महीने में इसे समाप्त कर दिया। अक्टूबर में जब कोविड की दूसरी लहर अपने चरम पर थी तब इन मज़दूरों के पास कोई सुरक्षा इन्तज़ामात तो थे नहीं, साथ ही जो कुछ पैसा मिल रहा था वह भी बन्द कर दिया गया। मज़दूर बेहद असुरक्षा की स्थि‍ति में काम करने को मजबूर थे। ग़ौरतलब है कि इस दौरान अमेज़ॉन और उसके मालिक जेफ़ बेजोस ने अरबों का मुनाफ़ा पीटा।
ऐसे हालात में समझा जा सकता है कि मज़दूरी बढ़ाने के अलावा इन मज़दूरों की मुख्य माँग काम की परिस्थितियों को सुधारना है। इन्हें सुधारने के लिए मज़दूरों को सबसे कारगर तरीक़ा यूनियन बनाना लगता है जो कि बिल्कुल वाजिब है। यूनियन के मंच से माँगों को रखना और उनके लिए संघर्ष करना उन्हें मैनेजमेण्ट की ज़्यादतियों और मज़दूर-विरोधी नियमों के आगे ज़्यादा सुरक्षित बनायेगा।
यह आन्दोलन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूँजी और श्रम के अन्तर्विरोध के मद्देनज़र एक बेहद महत्वपूर्ण संघर्ष है। आज जब इज़ारेदार बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेशन सस्ते श्रम और कच्चे माल की खोज में वैश्विक असेम्बली लाइन का निर्माण कर रही हैं तो ढाका के कोने खदरों, ओखला की छोटी-छोटी इकाइयों, कराची की नारकीय वर्कशॉप, मनिला के अमानवीय कॉलसेण्टरों और बीजिंग के निर्दयी कारख़ानों में काम कर रहे मज़दूर एक सूत्र में बँध गये हैं। बेसिमर के भण्डार गृह में लगी संघर्ष की यह चिंगारी कहीं आग की तरह अमेज़ॉन की विश्व भर में फैली अन्य इकाइयों तक न फैल जाये, इस बात से डरा हुआ है मालिक जेफ़ बेजोस और इसलिए इस संघर्ष को कुचलने की हर कोशिश कर रहा है। लेकिन यह संघर्ष अमेरिका के मज़दूरों और पूरे विश्व के मज़दूरों के लिए एक मिसाल बनने जा रहा है। चाहे पाँच, दस, पचास, सौ या उससे कुछ ज़्यादा की संख्या में काम कर रहे दिल्ली, बीजिंग, मनिला, ढाका या कराची का मज़दूर संख्या-बल में अपने आप को उस कारख़ाना या इकाई वि‍शेष में कम पा सकता है लेकिन जब वह इस वैश्विक असेम्बली लाइन को पहचान जायेगा तो उसे अपने संख्या-बल का अहसास होगा जैसे पूरे विश्व के 13 लाख से अधिक अमेज़ॉन के मज़दूरों को आज हो रहा है। पिछले अक्टूबर अन्त में भारत समेत 15 देशों के अमेज़ॉन के मज़दूर अपनी साझी माँगों को लेकर ‘ब्लैक फ़्राइडे’ के सेल शुरू होने पर एक साथ हड़ताल पर चले गये थे। इस हड़ताल की मुख्य माँगे थीं – मज़दूरी बढ़ाना और जब ऑनलाइन डिमाण्ड सबसे अधिक होती है तो उन घण्टों के लिए अतिरिक्त मज़दूरी देना क्योंकि इस समय काम का दबाव सामान्य से कई गुना अधिक होता है। ‘हज़ार्ड पे’ फिर से लागू करना और यूनियन को मान्यता देना। इन्हीं माँगों को लेकर लम्बे समय से लड़ रहे बेसिमर के मज़दूर भी ‘ब्लैक फ़्राइडे’ हड़ताल में शामिल हुए थे।
अमेज़ॉन में कार्यरत यूरोप के 6 देशों और अमेरिका के मज़दूरों ने 2015 में साथ आकर ‘अमेज़ॉन वर्कर्स इण्टरनेशनल’ का गठन किया। ‘ब्लैक फ़्राइडे’ की हड़ताल के दौरान भी यह अलग-अलग देशों के साथ तालमेल बिठा रही थी। अभी हाल ही में 24 मार्च को भारत के अमेज़ॉन डिलीवरी ड्राइवरों ने स्ट्राइक की घोषणा की है, लेकिन कोई तय तारीख़ नहीं बतायी है। इस घोषणा का भी ‘अमेज़ॉन वर्कर्स इण्टरनेशल’ ने समर्थन किया है साथ ही यह बेसिमर के संघर्ष को भी अपना समर्थन दे रही है। ‘अमेज़ॉन वर्कर्स इण्टरनेशनल’ जैसे संगठन भविष्य के अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन बनने के संकेत हैं लेकिन बेहद शुरुआती स्तर के। हालाँकि हर देश के मज़दूर वर्ग को अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी अपने देश के पूँजीवादी हुक्मरानों और व्यवस्था से लड़कर ही पूरी करनी होगी जिस लड़ाई में उसे अन्तरराष्ट्रीय पूँजी से भी टकराना होगा। ऐसे में मज़दूर वर्ग के अन्तरराष्ट्रीय संगठन विभिन्न देश के मज़दूर संघर्ष को मज़बूत बनाने के लिए अपना समर्थन देने का काम करेंगे। य‍ह मज़दूरों के बीच अन्तरराष्ट्रीयता की भावना भी जगायेगा और उनके संघर्षों को मज़बूत बनायेगा। उनकी पूँजी के समक्ष मोल-भाव की क्षमता भी बढ़ायेगा।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2021


 

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