पेगासस : जनान्दोलनों के दुर्ग में सेंधमारी के लिए पूँजीवादी सत्ताओं का नया हथियार

– लता

दुनिया के सभी आततायी और बर्बर शासक लूट की अँधेरगर्दी और आतंक-राज का अँधेरा गहराते जाने के साथ ही दिन-रात इस भय से आक्रान्त रहते हैं कि एक दिन जनता अन्ततः संगठित होकर उठ खड़ी होगी और फिर उनका अन्तिम क्रिया-कर्म करके ही दम लेगी। फ़ासिस्ट हरदम भयाक्रान्त रहते हैं और उनका भय जितना बढ़ता जाता है उतना ही अधिक उनका अत्याचार बढ़ता जाता है। सभी फ़ासिस्ट इस मनोरोगी हद तक अकेले, शक्की और डरे हुए होते जाते हैं कि अपने आसपास वालों पर भी भरोसा नहीं करते। सभी फ़ासिस्ट अपने प्रचार-तंत्र और सैन्य तंत्र के अतिरिक्त अपने ख़ुफ़िया तंत्र को भी अभेद्य बलशाली बना देना चाहते हैं। मोदी की सत्ता भी वही सबकुछ कर रही है! पेगासस भण्डाफोड़ पानी पर तैरते आइसबर्ग का ऊपर दीखने वाला टिप मात्र है!
– कविता कृष्णपल्लवी की फेसबुक वॉल से

मोदी सरकार भी अपनी सुरक्षा और अपने आसपास से लेकर जनता को संगठित करने वाले सभी के बारे में सब कुछ जान लेना चाहती है। इसलिए पेगासस पर पानी की तरह पैसा बहा कर मोदी सरकार जनाक्रोश के आने वाले सैलाब पर नियंत्रण करना चाहती है ताकि उसकी सुरक्षा दुरुस्त हो जाये और डरी-डरी बेचैन नींद उड़ी रातों से थोड़ी राहत मिले। यहाँ के भारी भरकम ख़र्चीले ख़ुफ़िया तंत्र और गली-गली में बैठे इनके भक्त निश्चित ही पर्याप्त नहीं थे इसलिए अपने सबसे पक्के यार से मदद माँगी गई। बुर्जुआ विश्व में मदद की भी क़ीमत होती है, सो इज़रायल की कम्पनी एनएसओ को स्पाईवेयर पेगासस के लिए मोदी सरकार ने जमकर पैसे दिये हैं। प्रति व्यक्ति जासूसी के सात लाख और साफ्टवेयर इन्स्टॉल करने का लिए 3.7 करोड़ रुपये की लागत पर यह स्पाइवेयर लम्बे समय से देश में काम कर रहा है। वैसे तो पेगासस का इतिहास बहुत काला होगा लेकिन इसका पहला खुलासा साल 2017 में हुआ था जब मेक्सिको के एक जनपक्षधर पत्रकार की हत्या में पेगासस के प्रत्यक्ष लिप्त होने की बात सामने आयी थी।
भारत के सन्दर्भ में 2019 में एक सूची जारी हुई थी जिसमें भारत के कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के नाम शामिल थे। बीच-बीच में इसपर विवाद उठते रहे हैं लेकिन पिछले महीने दुनिया के 17 न्यूज़ एजेंसियों ने मिलकर ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ नाम से एक मीडिया अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में पेगासस स्पाईवेयर के काम करने के तरीक़े, इस पर हुए ख़र्च आदि की जानकारी दी है साथ ही इस स्पाईवेयर को खरीदने वाले देशों की सूची जारी की है। इन्होंने एक और सूची भी जारी की है जिसमें उन लोगों का नाम है जिन पर इस स्पाईवेयर से जासूसी कराई गई है। पेगासस को अबतक का सबसे उन्नत व सबसे ख़तरनाक जासूसी उपकरण माना जा रहा है। इसे इज़रायल की एनएसओ ग्रुप कम्पनी बनाती है। यह कम्पनी इज़रायली ख़ुफ़िया विभाग की सीधी देखरेख में काम करती है। एनएसओ का दावा है कि वह पेगासस मात्र सरकारों को बेचती है न कि निजी संस्थाओं या व्यक्तियों को। ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ के राज़फ़ाश के अनुसार भारत को मिलाकर क़रीब 50 देश पेगासस के ग्राहक हैं। यदि इन देशों पर एक नज़र डालें तो इनमें से ज़्यादातर देशों के निरंकुश शासक हैं, जैसे बहरीन, यूएई, सउदी अरब आदि। इन देशों के तानाशाह इसका इस्तेमाल अपने ही देश के विपक्षी नेता, राजनितिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनपक्षधर पत्रकारों, वकीलों, बुद्धिजीवियों आदि पर कर रहे हैं जिसका मक़सद है जनता के प्रतिरोध का दमन। पेगासस एक ऐसा जासूसी सॉफ्टवेयर है जो किसी के मोबाइल फ़ोन में घुसकर फ़ोन को पूरी तरह से अपने क़ाबू में कर लेता है, फ़ोन में रखी तस्वीरें, वीडियो, मेसेज आदि निकाल लेता है, फ़ोन पर हो रही सारी बातचीत रिकॉर्ड कर लेता है। यहाँ तक कि फ़ोन बन्द होने पर भी कैमरा और माइक चालू रख आसपास की सभी बातों को रिकॉर्ड कर लेता है। पेगासस की जासूसी की क्षमता इस क़दर उन्नत है कि स्वयं इज़रायल भी इसे एक घातक हथियार बताता है। इसलिए बिना सरकारी अनुमति के इसे बेचने की इजाज़त मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी को नहीं देता है। ‘फ़ॉर्बिडेन स्टोरीज़’ फ्रांस के जनपक्षधर पत्रकारों का एक समूह है। इसे एक सूची मिली है जिसमें दुनिया के 50 हज़ार से ज़्यादा फ़ोन नम्बर हैं। पेगासस इन नम्बरों को या तो अपनी घुसपैठ का शिकार बना चुका है या बनाने वाला है। इनमें 150 से ज़्यादा नम्बर भारत के हैं।
भारत में जारी नम्बरों की सूची में सबसे ज़्यादा संख्या यहाँ के राजनीतिक कार्यकर्ताओं की है और उसके बाद पत्रकार आते हैं। मज़े की बात यह है कि इनमें स्वयं मोदी सरकार के कई मंत्री और भाजपा के नेता भी शामिल हैं। तानाशाह न केवल जनाक्रोश से डरता है वह जानता है कि उसके अपने लोग भी उसी की मानसिकता के हैं सो अपनी गद्दी पर उसे हमेशा तलवार लटकती नज़र आती है। भीमा कोरेगाँव केस के राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर लम्बे समय से जासूसी जारी है। इसके अलावा न जाने देश के कितने राजनीतिक कार्यकर्ता लम्बे समय से इस या अन्य स्पाईवेयर के शिकार होंगे।
पूँजीपतियों के तलवे चाटने के अलावा यह सरकार उनके लिए एक और काम बेहद मुस्तैदी से कर रही है वह है इनके लिए डेटा एकत्र करना। भाजपा सरकार ही वह पहली सरकार थी जिसने आधार कार्ड से सभी डेटा जोड़ने को अनिवार्य बनाया था। यानी आधार कार्ड से फोन नम्बर, बैंक अकाउण्ट, राशन कार्ड, बीमा, बिजली आदि सभी कुछ जोड़ना अनिवार्य किया था। काफ़ी प्रतिरोध होने के बाद इसमें ढील दी गई। लेकिन धीरे-धीरे आज सभी कुछ आधार से जुड़ ही गया है। सरकार इस डेटा को जासूसी के लिए इस्तेमाल तो करती ही है साथ ही यह कम्पनियों को भी देती है जो अपने फ़ायदे अनुसार डेटा का उपयोग करते हैं। बड़े स्तर पर डेटा निकालना और डेटा के साथ छेड़-छाड़ के मामले में सरकार का पुराना इतिहास रहा है। यदि गृह मंत्रालय की सुनें तो 2014 में दायर आरटीआई का उत्तर देते हुए मंत्रालय ने कहा था कि हर महीने उसके पास केन्द्र सरकार से 7500 से 9000 के बीच लोगों और संस्थानों की जासूसी की माँग आती है। एक अन्य उदाहरण के तौर पर इस वर्ष जून में ही सरकार ने खुले तौर पर व्हाट्सऐप को एण्ड टू एण्ड इन्क्रिप्शन (यानी मेसेज और कॉल की गोपनीयता) हटाने को कहा। जिसका व्हाट्सऐप ने सरकार पर निजता के अतिक्रमण का केस लगा कर प्रतिरोध किया था। लेकिन सरकार अब डेटा की चोरी पुख़्ता करने के लिये एक नया बिल लाने की योजना बना रही है। इसे सामान्य तौर पर प्राइवेसी बिल (पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल) भी कहा जाता है। इस बिल की अभी कोई स्पष्ट संरचना नहीं है लेकिन सरकार की नीयत स्पष्ट है; डेटा का केन्द्रीयकृत भण्डारण जिसका इस्तेमाल जासूसी के लिए करना। साथ ही बड़ी कम्पनियों को मुनाफा पीटने के लिए डेटा मुहैया कराना।
सवाल उठने पर हमेशा की तरह सरकार का जवाब था कि उसने कुछ भी गैर-क़ानूनी नहीं किया है और यह सभी राष्ट्रीय सुरक्षा को केन्द्र में रख कर किया गया है। क़ानून बनाने वाले आप तो अपनी चोरी, डकैती और गुण्डागर्दी को जायज़ ठहराना कौन सा मुश्किल काम है। और बात रही राष्ट्रीय सुरक्षा की तो यह जासूसी भी उसी तरह राष्ट्रीय हित में है जैसे मोदी जी के विश्व भ्रमण का सपना भारत की अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति के हित में था।
ख़ुफ़िया संस्थानों के माध्यम से जासूसी और क्रान्तिकारी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की जानकारी एकत्र करना कोई नई बात नहीं है। यह हमेशा से होता आया है। अंग्रेज़ों ने किया, आज़ाद भारत में काँग्रेस और अन्य सरकारों ने किया और अब भाजपा सरकार भी वही कर रही है। तकनीक जितनी उन्नत होती जाएगी वैसे-वैसे जासूसी भी उन्नत होती जाएगी। लेकिन क्रान्तिकारी चेतना कहीं सालों पीछे तो रह नहीं जाएगी। निश्चित ही क्रान्तिकारियों को सजग रहने और अपने काम के तौर-तरीक़ों में परिवर्तन लाने के ज़रूरत है। साथ ही अपनी क्रान्तिकारी धरोहर से सीखने की भी आवश्यकता है। भगत सिंह से लेकर चन्द्रशेखर आज़ाद तक अंग्रेज़ों के जासूसों और मुख़बिरों को चकमा देते हुए अपना काम करते रहे। सत्ता के पास हमेशा उन्नततम तकनीक होती है लेकिन वहाँ भी इन्सान ही काम करते हैं इसके अलावा क्रान्तिकारी ताक़तें जनता के बीच पैठी होती हैं। उनकी इसी ताक़त से यह जनविरोधी सरकारें डरी होती हैं।

मज़दूर बिगुल, अगस्त 2021


 

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