ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एक रिपोर्ट

शाम

पिछले कुछ दिनों से गुड़गाँव पट्टी के ऑटो सेक्टर में एक हलचल पैदा हो गयी है। लगातार कम्पनियों में छँटनी, पैसे न दिये जाने, मज़दूरो की माँगें न माने जाने आदि के मामले सामने आ रहे हैं, जिसके विरोध में कई प्रदर्शन और हड़ताल भी हो रहे हैं। पिछले 3 महीने में धारूहेड़ा में हुण्डई मोबीस के मज़दूरों का धरना, जेएनएस के मज़दूरों की हड़ताल तथा पिछले महीने नपीनों के मज़दूरों की हड़ताल इसके उदाहरण हैं। अभी-अभी बेलसोनिका के मज़दूरों के साथ भी कई सारी घटनाएँ सामने आ रही हैं।
इस बीच गुड़गाँव क्षेत्र में काम कर रही ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन और गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति मज़दूरों के बीच लगातार सक्रिय रही है। तमाम धरनों व हड़तालों में शामिल होने के साथ-साथ मज़दूरों के बीच लगातार साप्ताहिक बैठक व मज़दूरों के अख़बार का वितरण किया जा रहा है। इतना ही नहीं मज़दूर इलाक़ों व मध्यवर्गीय इलाक़ों में कई क्रान्तिकारी पुस्तक प्रदर्शनियाँ भी लगायी गयी हैं। साथ ही समसामयिक व ज्वलन्त सामाजिक मुद्दों पर लगातार प्रदर्शनों में भी भागीदारी की गयी है। इनमें हाल ही में राजस्थान के जालौर में दलित बच्चे के उत्पीड़न, फ़रीदाबाद में बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या तथा बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा करने के विरोध में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया गया। पिछले महीने से मज़दूर दीवार पत्रिका ‘मेहनतकश की आवाज़’ की भी शुरुआत की गयी है।
इन कामों के साथ-साथ नपीनो की हड़ताल में ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की सक्रिय भागीदारी रही। वहाँ मज़दूरों के साथ लगातार सम्पर्क बनाये गये तथा उन्हें लगातार आन्दोलनों के दौरान आनी वाली समस्याओं से अवगत कराया गया। उनसे पुरानी ग़लतियों से सीखने की बात भी की गयी। उन्हें यह भी बताया गया कि आज हमें ऐसी सभी मौक़ापरस्त व संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों से बचने की ज़रूरत है, जो आन्दोलन को बर्बाद करने का काम करती हैं। अपने आन्दोलन को आम मज़दूरों के बीच ले जाने की ज़रूरत है, क्योंकि अगर हम सिर्फ़ क़ानूनी लड़ाई तक सीमित रहे तो किसी न किसी तरीक़े से प्रबन्धन और सरकार हमारी एकता को तोड़ने और आन्दोलन को ख़त्म करने की जुगत भिड़ा ही लेगी।
नपीनो की हड़ताल में भी यही देखने को मिला जब प्रबन्धन ने पुलिस बुलाकर मज़दूरों को फ़ैक्टरी से निकलने और हड़ताल ख़त्म करने पर मजबूर कर दिया। ज्ञापन देने से लेकर श्रम विभाग की मौजूदगी में कई बैठकें बुलायी गयीं, किन्तु कोई भी नतीजा नहीं निकला। अन्त में झूठा दिलासा देकर मज़दूरों को काम से निकाल दिया गया और अभी तक उन्हें वापस नहीं बुलाया गया है।
हाल के दिनों में ही बेलसोनिका के मज़दूरों के बीच भी हलचल शुरू हो गयी है। प्रबन्धन ने ऐसे शरारती तत्वों की भर्ती शुरू कर दी है जो जानबूझकर वैसे मज़दूरों से लड़ते हैं जो किसी भी तरह के हक़ की या यूनियन की बात करते हैं। बाद में शिकायत करने पर उल्टा मज़दूरों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की जाती है। एक तरफ़ सरकार चार लेबर कोड के ज़रिए मज़दूरों पर नकेल कसने की तैयारी में है, वहीं दूसरी तरफ़ प्रबन्धन पहले ही अलग-अलग तिकड़म भिड़ाकर मज़दूरों का शोषण तेज़ कर रहा है।
यह हाल सिर्फ़ बेलसोनिका का नहीं बल्कि गुड़गाँव-धारूहेड़ा-मानेसर में ज़्यादातर फ़ैक्टरियों व कम्पनियों का है। चाहे गुण्डों को बुलाकर धमकियाँ देना हो या पुलिसिया दमन की कार्रवाई हो, ऐसे तमाम काम पिछले कुछ दिनों में बढ़ गये हैं। यह तो होना ही है जैसे-जैसे मुनाफ़े की औसत दर गिरेगी, महँगाई बढ़ेगी और छँटनियाँ शुरू होंगी, मज़दूरों के काम के घण्टे बढ़ाये जायेंगे, उनसे कम तनख़्वाह पर काम लिये जायेंगे। ऐसी परिस्थिति में मज़दूरों को संगठित करना और भी आवश्यक हो गया है।
यह सर्वविदित है कि ऑटो क्षेत्र सबसे उन्नत क्षेत्रों में से एक है, जिसके मज़दूर सबसे ज़्यादा उन्नत तकनोलॉजी पर काम करते हैं। नयी व उन्नत तकनोलॉजी पर काम करने के कारण उनकी चेतना भी एक स्तर तक विकसित होती है। वैसे भी इस पट्टी में ऑटो सेक्टर के आन्दोलनों का एक पुराना इतिहास भी रहा है। यही कारण है कि इन मज़दूरों में जूझने और लड़ने का माद्दा सापेक्षिक रूप से ज़्यादा है। आज हमें ज़रूरत है कि इन मज़दूरों के बीच लगातार काम किया जाये, उन्हें इस व्यवस्था की असलियत से अवगत कराया जाये। उनके बीच अध्ययन चक्र का जाल बिछा दिया जाये। फ़ैक्टरी की दीवारों के बाहर भी संघर्ष पहुँचाया जाये तथा पूरे ऑटो सेक्टर के मज़दूरों को एकजुट किया जाये।

मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2022


 

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