बेलसोनिका में मज़दूरों की छँटनी व ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी है!

शाम

पिछली 3 अगस्त को आई.एम.टी. मानेसर (गुड़गाँव) में स्थित बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेण्ट इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के मज़दूरों द्वारा प्रबन्धन की मज़दूर विरोधी नीतियों के चलते दो बार दो घण्टे का टूल डाउन करने पर प्रबन्धन ने मज़दूरों को आठ दिन की वेतन कटौती का नोटिस जारी कर दिया था। बेलसोनिका मारुति के लिए कलपुर्ज़े बनाती है।
मज़दूरों ने टूलडाउन इसलिए किया था क्योंकि 28 जुलाई को यूनियन कार्यकारिणी के सदस्य दिनेश कुमार पर बसों को बाहर जाने से रोकने का सिक्योरटी गार्डों से झूठा आरोप लगवाया गया। दूसरे, जिस सिक्योरिटी गार्ड ने यूनियन पदाधिकारी पर झूठा आरोप लगाने से मना कर दिया था उसे और उसके बेटे को भी काम से निकाल दिया गया था। इससे पहले 23 जुलाई को छोटी-सी बात पर 5 मज़दूरों का पंच कार्ड बन्द कर दिया गया था और मज़दूरों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था।
इससे पहले 20 मई को मज़दूरों के खाने-पीने में कटौती, एयर वॉशर (पंखों) को ठीक से व समय पर न चलाने और एक मज़दूर साथी विजेन्द्र को निलम्बित किये जाने के विरोध में क़रीब 36 घण्टे की भूख हड़ताल करनी पड़ी थी जिसके बाद सहायक श्रम आयुक्त की मध्यस्था में प्रबन्धन को समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। विजेन्द्र को 20 से 23 मई तक इसलिए निलम्बित किया गया था कि ग़लती से डाई में दो पार्ट्स लग गये थे। यूनियन का कहना है कि प्रबन्धन हर छोटी-छोटी बात पर यूनियन के मज़दूरों को निशाना बना रहा है। साथ ही मज़दूरों को यूनियन के ख़िलाफ़ भड़काकर दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा है। वेतन कटौती, पंच कार्ड बन्द करने, यूनियन पदाधिकारियों पर झूठे इल्ज़ाम लगवाने, मज़दूरों को निलम्बित करने, हवा, पानी और खाने की गुणवत्ता में कटौती, परिवहन सुविधा में दिक़्क़त करने जैसी उकसावे की कार्रवाइयों का कोई मौक़ा कम्पनी नहीं चूक रही है।
मैनेजमेण्ट की असली मंशा है स्थायी मज़दूरों की छँटनी करना जिसमें पुराने कैज़ुअल मज़दूर भी शामिल हैं। इसकी जगह पर नये 6 महीने या इससे भी कम अवधि के लिए ठेका मज़दूरों, निर्धारित अवधि रोज़गार (फ़िक्स टर्म इम्प्लायमेण्ट) और नीम ट्रेनी और डी.ई.टी. आदि श्रेणी के मज़दूरों की भरती करने का इरादा है। इनको न तो पी.एफ़., ई.एस.आई., न किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा और न ही कोई यूनियन अधिकार देने की ज़रूरत होगी। यानी ऐसे अरक्षित मज़दूरों की भरती करना जो हमेशा असुरक्षा व अनिश्चितता की वजह से प्रबन्धन की मनमानी शर्तों पर काम करेंगे।
बेलसोनिका एक जापानी कम्पनी है जिसकी स्थापना 2006 में हुई थी। इसमें 1.18 बिलियन रुपये की पूँजी लगी हुई है जिसमें बेलसोनिका का 70 प्रतिशत और मारुति-सुज़ुकी का 30 प्रतिशत हिस्सा है। यह छोटी पैसेंजर गाड़ियों के कई कलपुर्जे़ बनाती है। इसमें लगभग 1100-1200 मज़दूर काम करते हैं जिनमें 680 स्थायी, 10 प्रोबेशन, लगभग 138 ठेका श्रमिक जिनको 6-7 वर्ष कार्य करते हो चुके हैं, लगभग 75 अप्रेण्टिस श्रमिक, लगभग 28 ट्रेनिंग श्रमिक व लगभग 250-300 श्रमिक ऐसे हैं जिनको 6 माह के लिए भर्ती किया गया है। लगभग 600 के आसपास ठेका, नीम ट्रेनिंग, प्रोबेशन व अप्रेण्टिस श्रमिक कार्यरत हैं। ये सभी श्रमिक मशीनों पर उत्पादन का काम करते हैं।

सस्ते मज़दूरों की भरती के पीछे कम्पनी प्रबन्धनों का क्या मक़सद है?

पूँजीपति वर्ग की आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते मुनाफ़े की गिरती औसत दर का संकट गहरा हो रहा है। इसीलिए कोरोना काल में मौक़े का फ़ायदा उठाकर बेलसोनिका समेत तमाम कम्पनी प्रबन्धनों द्वारा स्थायी मज़दूरों और पुराने कैज़ुअल मज़दूरों को निकालने की प्रक्रिया में तेज़ी देखी जा सकती है, ताकि नये असुरक्षित मज़दूरों को और भा ज़्यादा लूटा जा सके।
आज देश के स्तर पर महज़ 2-3 प्रतिशत मज़दूर हैं जो मुश्किल से श्रम क़ानूनों के दायरे में आते हैं। अब पूँजीपति अपनी चहेती मोदी सरकार के ज़रिए बचे-खुचे श्रम क़ानूनों को भी क़ानूनी तौर पर ख़त्म करा रहे हैं। यूनियनों में एकजुट मज़दूरों की संख्या घटती जा रही है। जब भी मज़दूर उत्पीड़न, शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ अपनी जायज़ व क़ानूनी माँगों के लिए संघर्ष के मैदान में उतरते हैं तो श्रम विभाग से लेकर शासन-प्रशासन-न्यायालय भी प्रबन्धन की बोली बोलते हैं और उसी के अनुसार फ़ैसले देते हैं।

ऐसे में आगे के संघर्ष का रास्ता क्या हो?

गुड़गाँव में मारूति-सुज़ुकी के मदर प्लाण्ट और उसकी वेण्डर कम्पनियों के मज़दूरों का साझा मंच बनाने की बातें भी आ रही हैं जिसे राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की बात उठी है। ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री काण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन का यह भी मानना है कि इसका राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तरराष्ट्रीय महत्व है। लेकिन दिक़्क़त वही पुरानी है। कुछेक यूनियनों को छोड़कर बाक़ी में ठेका मज़दूरों को साथ न लेने की समस्या है। न ही इस मंच की कोई साझा नीति और कार्यक्रम, अभी तय हुआ है।
पहले के आन्दोलनों जैसे रिको के कारख़ाने में आन्दोलन के वक़्त अमेरिका तक की सप्लाई प्रभावित हुई थी और हज़ारों की संख्या में कई कम्पनियों के मज़दूर सड़कों पर आ गये थे। होण्डा के मज़दूरों के संघर्षों के भी उदाहरण हैं। लेकिन होण्डा जैसे आन्दोलनों की पुनरावृत्ति उसी रूप में सम्भव नहीं है। एक वक़्त था जब संघर्ष के समर्थन में 30 यूनियनों ने हड़ताल की घोषणा कर दी थी। पूँजीपति वर्ग ने भी इन अनुभवों से सीखा है और इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए वह स्थायी मज़दूरों की संख्‍या कम कर रहा है, बचे हुए स्थायी मज़दूरों को अधिक वेतन और भत्ते दे रहा है जबकि अस्थायी मज़दूरों की संख्‍या को बढ़ा रहा है और उनकी लूट और शोषण की दर को कम मज़दूरी, अधिक काम के घण्‍टों आदि के ज़रिए बढ़ा रहा है। प्रबन्धन ने स्थायी मज़दूरों को सभी तरह के अस्थायी मज़दूरों के मुद्दे न उठाने की शर्त पर बेहतर वेतन, बोनस-भत्ते देकर कमज़ोर कर दिया है। अगर गुड़गाँव, मानेसर,धारूहेड़ा, बावल, नीमराना की औद्योगिक पट्टी पर निगाह डालें तो पता चलता है कि यहाँ अधिकांश कारख़ानों में स्थायी मज़दूरों की यूनियनें ही हैं और अस्थायी मज़दूरों के मसले ये बिरले ही उठाती हैं और यदि उठाती भी हैं तो महज़ औपचारिकता के तौर पर।
मज़दूरों की सेक्टरगत और इलाक़ाई एकता के स्तर पर एकजुटता ही आन्दोलन को आगे ले जा सकती है। आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए फ़ौरी तौर पर ये क़दम उठाने होंगे : पहला, चूँकि बेलसोनिका प्रबन्धन सहित पूरे औद्योगिक क्षेत्र के मालिक संयुक्त रूप से एक जैसी नीतियों को लागू कर रहे हैं, इसलिए हमें संयुक्त कार्रवाइयों पर जनवादी तरीक़े से अमल करना होगा और तुरन्त व्यापक सेक्टरगत और इलाक़ाई एकजुटता के आधार पर संघर्ष की तैयारी करनी होगी। दूसरा, तमाम ठेका मज़दूरों व तमाम अस्थायी मज़दूरों (जैसे नीम ट्रेनी, डी.टी.ए.टी.डब्ल्यू.) के स्थायी रोज़गार, समान वेतन सुविधाएँ-भत्ते, यूनियन अधिकार, श्रम अधिकार के लिए माँगपत्रकों में उनकी माँगें रखना। तीसरा, बहुसंख्यक ठेका वर्कर आबादी को और तमाम तरह के अस्थायी मज़दूरों को संघर्षों में शामिल करना होगा। वे तभी संघर्ष में शामिल होंगे जब कई संघर्षों में उनकी माँगों पर दृढ़ स्टैण्ड लिया जायेगा। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जब तक स्थायी और अस्थायी ठेका मज़दूरों की मुख्य माँगों पर कार्रवाई नहीं होगी तब तक आन्दोलन को वापस नहीं लिया जायेगा।

मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2022


 

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