दिल्ली के करावल नगर में जारी बादाम मज़दूरों का जुझारू संघर्ष : एक रिपोर्ट

प्रियम्वदा

उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर इलाक़े में पिछले 20 दिनों से बादाम मजदूरों की हड़ताल चल रही है। इस हड़ताल को तोड़ने के लिए बादाम मालिकों ने आरएसएस की गुण्डा फ़ौज, स्थानीय भाजपा विधायक, सांसद और पुलिस प्रशासन का साथ लिया है परन्तु बादाम मज़दूर करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मालिक-प्रशासन-संघ-भाजपा गठजोड़ का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपनी हड़ताल को जारी रखे हुए हैं।

इस हड़ताल के शुरु होने का कारण पिछले 12 सालों से मज़दूरों की मज़दूरी का न बढ़ना है, भयंकर कार्यस्थिति और मालिकों की गुण्डागर्दी है जिसके ख़िलाफ़ मज़दूर दिल्ली के एक कोने में अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं। मालूम हो कि साल 2012 में 15 दिनों तक चली ऐतिहासिक हड़ताल के बाद करावल नगर के मालिकों को यूनियन से बातचीत करके कई माँगें माननी पड़ी थी जिसमें एक माँग यह भी थी कि हर साल मज़दूरी में बढ़ोतरी की जायेगी। मगर पिछले 12 सालों में मज़दूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। इसीलिए मजदूरों को हड़ताल करनी पड़ी जिसकी वजह से करावल नगर के 90 फ़ीसदी गोदामों में काम बन्द है।

बादाम मज़दूरों की बदहाली और गोदाम मालिकों की चाँदी

जो बादाम बाज़ार में 700-1000 रुपये प्रतिकिलो की क़ीमत पर बिकता है उस बादाम की  छँटाई और सफ़ाई का काम करने वाले मज़दूरों को प्रतिकिलो बादाम की छंटाई का मात्र 2 रुपये भुगतान किया जाता है। करावल नगर के इलाक़े में चल रहे 80-90 गोदामों में तकरीबन 5000 मज़दूर काम करते हैं जिसमें से अधिकांश महिला मज़दूर हैं। करावलनगर व दिल्ली के कुछ अन्य इलाक़ों में स्थित बादाम का यह उद्योग छोटे-छोटे ठेकेदारों और मालिकों द्वारा चलाया जाता है। रिहायशी इलाक़े में चल रहे ये गोदाम वास्तव में छोटे कारख़ाने के समान हैं। दिल्ली के कुल बादाम गोदामों का 60-70 प्रतिशत करावलनगर क्षेत्र में स्थित है। यहाँ के मालिक और ठेकेदार पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी हैं। इनके पास न तो कोई लाइसेंस है और न ही सरकार द्वारा प्राप्त किसी भी किस्म की मान्यता। दिल्ली के श्रम विभाग की नाक के नीचे कई करोड़ रुपये की कीमत का एक अवैध कारोबार पिछले लगभग तीन दशकों से जारी है। इस उद्योग में काम करने वाले मज़दूरों को बेहद कम मज़दूरी मिलती है और उनकी काम करने की स्थितियाँ अमानवीय हैं। धूल-मिट्टी और बुरादे से बचाव के लिए इन्हें कोई साधन नहीं दिया जाता है जिसकी वजह से आमतौर पर मजदूरों को साँस सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं। 14 से 16 घण्टे इन गोदामों  में बादाम की छँटाई का काम करने के बाद इन्हें बमुश्किल 200-250 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं। यह हाल पिछले 12 से अधिक सालों से जारी है। ख़राब कार्यस्थिति के अलावा यहाँ के गोदाम मालिक अकसर औरतों के साथ छेड़खानी और बदसलूकी करते हैं। 2012 के बाद से स्थानीय दबंग गुर्जर आबादी ने भी बादाम के गोदाम शुरू किये हैं और ये लोग आये दिन मज़दूरों के साथ मारपीट और जानवरों सरीखा व्यवहार करते हैं। इन गोदाम मालिकों का विशेष तौर पर 2014 के बाद से संघीकरण हुआ है और स्थानीय आर.एस.एस. के लोग इन गोदाम मालिकों के समर्थन में खड़े हुए हैं। हालाँकि इनका चरित्र टुटपूँजिया ठेकेदार/मालिक का ही है जो असंसाधित बादाम खारी बावली के बड़े मालिकों से ले आते हैं। खारी बावली के बड़े मालिक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से असंसाधित बादाम आयात करते हैं और उनका संसाधन यहाँ करवाते हैं। वैश्विक असेम्बली लाइन का एक जीता-जागता उदाहरण हमें बादाम संसाधन उद्योग में मिलता है। खारी बावली के कई बड़े मालिकों के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने फार्म हैं जिनपर वे बादाम की खेती करवाते हैं। लेकिन संसाधन के लिए भारत को चुना गया है क्योंकि यहाँ जितना सस्ता श्रम और भ्रष्ट श्रम विभाग पूरी दुनिया में इन मालिकों को कहीं नहीं मिल सकता है।

हड़ताल की शुरुआत

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं। अक्सर होता यह है कि फ़ैक्टरी का मालिक मज़दूरों की आँखों में धूल झोंकने, अपने को उपकारी के रूप में पेश करने, मज़दूरों के आगे रोटी के चन्द छोटेछोटे टुकड़े फेंककर या झूठे वचन देकर उनके शोषण पर पर्दा डालने के लिए कुछ भी नहीं उठा रखता। हड़ताल मज़दूरों को यह दिखाकर कि उनकाउपकारीतो भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िया है, इस धोखाधड़ी को एक ही वार में ख़त्म कर देती है।” – लेनिन

पिछले 12 सालों से जारी लूट और मालिकों की मनमानी के ख़िलाफ़ मज़दूरों का ग़ुस्सा फूट पड़ा और बीते 1 मार्च को अपनी हड़ताल की घोषणा करते हुए मज़दूरों ने एक जुझारू जुलूस निकाला और इलाक़े में सभी गोदाम बन्द करवाये। 3 मार्च को दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा होकर पुलिस की तमाम दमनात्मक कार्रवाई के बावजूद अपनी माँगें उठायीं।

करावल नगर में कामबन्दी के कारण मुनाफ़े में आयी रुकावट से घबराये मालिकों ने पहले मज़दूरों को डराना-धमकाना शुरू किया और मज़दूरी बढ़ाने के बजाय कम करने की धमकी की। मालिकों की इन गीदड़भभकियों से डरे बिना मज़दूरों ने हड़ताल जारी रखी जिससे बौखलाए गोदाम-मालिकों ने मज़दूरों की हड़ताल को तोड़ने के लिए अफ़वाह फैलाने, दलालों को हड़ताल में भेजने और मज़दूरों को क्षेत्र के आधार पर बाँटने के प्रयास किये परन्तु हड़ताल इन सभी चालों को नाकामयाब कर आगे बढ़ रही है। हर दिन मज़दूर मंगल बाज़ार के पास  हड़ताल चौक पर एकजुट होकर इलाक़े में मालिकों को मुँहतोड़ जवाब देते हुए जुलूस निकाल रहे हैं। मालिक मज़दूरों को यह धमकी देते रहे कि वो गोदाम बन्द कर देंगे और मज़दूर भूखे मारे जायेंगे परन्तु यूनियन ने हड़ताल कोष जारी कर हर हड़ताली मज़दूर के लिए सहयोग जुटाने का आह्वान किया जिसे देशभर से समर्थन मिल रहा  है। दिल्ली में दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन, बवाना औद्योगिक क्षेत्र मज़दूर यूनियन, दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन, दिशा छात्र संगठन और भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने भी हड़ताल का समर्थन किया है।

हड़ताल ने इलाक़े में “राष्ट्र निर्माण” का नारा लगाने वाले संघी चड्ढीधारियों को भी बेनक़ाब कर दिया है। स्थानीय विधायक मोहन सिंह बिष्ट से लेकर शाखा जाने वाले संघियों ने हड़ताल में गोदाम मालिकों का साथ दिया है बल्कि असल में तो खुद कई गोदाम मालिक भी संघ और भाजपा से जुड़े हैं। यह बात यहाँ बिल्कुल स्पष्ट होती है कि फ़ासीवादी ताकतों का निशाना हमेशा ही मज़दूर आन्दोलन और प्रगतिशील विचार होते हैं। हड़ताली मजदूरों के ख़िलाफ़ गोदाम मालिकों के गुण्डों और दलालों की मौजूदगी यही दिखाती है। गोदाम मालिकों ने संघियों के साथ मिलकर स्थानीय नागरिक आबादी को भी हड़तालियों के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश की मगर इसके जवाब में यूनियन ने स्थानीय नागरिकों के नाम पर्चा निकालकर गोदाम मालिकों कि इस चाल को भी नाकामयाब किया। हड़ताल में बादाम मज़दूरों को स्थानीय मज़दूर आबादी भी समर्थन दे रही है।

इससे बौखलाकर ही गोदाम मालिकों और संघी गुण्डा फौज ने हड़ताल को ख़त्म करवाने के प्रयास में बादाम मज़दूर महिलाओं पर लोहे की रॉड, डंडों और पत्थरों से हमला किया। हमलावर पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में खुलेआम घूमते रहे और पुलिस उल्टा यूनियन के कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने और मजदूरों को हड़ताल ख़त्म करने की धमकी देती रही। परन्तु मजदूरों ने मालिकों द्वारा किये गये इस कायराना हमले के जवाब में अगले दिन ही पूरे इलाक़े में एक जुझारू जुलूस निकालकर मालिक-संघ-पुलिस प्रशासन की हरकतों को चेतावनी दी। अपनी एकजुटता के दम पर पुलिस प्रशासन को हमलावर मालिकों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज़ करने पर भी मजबूर किया। हालांकि पुलिस किसी भी तरह इस मामले में मालिकों के ख़िलाफ़ कोई भी कदम उठाने से बच रही है और तमाम प्रपंच कर उन्हें बचाने की कोशिश में लगी है।

अपनी हड़ताल के दौरान संघर्षरत बादाम मज़दूरों ने न सिर्फ़ मालिकों के मुनाफ़े के लिए काम कर रही इस व्यवस्था के नियमों को समझा है बल्कि पुलिस से लेकर श्रम विभाग जैसी संस्थाओं के मज़दूर-विरोधी चरित्र को भी करीब से देखा है।

हड़ताल ने बादाम मजदूरों के समक्ष यह साफ़ कर दिया है कि क़ानून केवल अमीरों के हितार्थ बनाये जाते हैं, कि सरकारी अधिकारी उनके हितों की रक्षा करते हैं, कि मेहनतकश जनता की ज़ुबान बन्द कर दी जाती है, उसे इस बात की अनुमति नहीं दी जाती कि वह अपनी माँगें पेश करे, कि मज़दूर वर्ग को हड़ताल करने का अधिकार, मज़दूर समाचारपत्र प्रकाशित करने का अधिकार, क़ानून बनानेवाली और क़ानूनों को लागू करने के कार्य की देखरेख करने वाली राष्ट्रीय सभा में भाग लेने का अधिकार अवश्य हासिल करना होगा। सरकार ख़ुद अच्छी तरह जानती है कि हड़तालें मज़दूरों की आँखें खोलती हैं और इस कारण वह हड़तालों से डरती है तथा उन्हें यथाशीघ्र रोकने का प्रयत्न करती है।“ (लेनिन)

करावल नगर के इलाक़े में बादाम मालिकों का यह शोषण और अत्याचार यूँ ही नहीं चल रहा है। यह पूरा अवैध कारोबार और गुण्डागर्दी खुलेआम भाजपा के नेता-मंत्रियों के संरक्षण में चलाया जा रहा है। पुलिस-प्रशासन भी इस इलाक़े में मूकदर्शक बनी रहती है। भाजपा से जुड़े इन मालिकों के ख़िलाफ़ शिकायत तक दर्ज़ करने में स्थानीय पुलिस थाने के हाथ-पाँव सूज जाते हैं।

बादाम मज़दूरों ने अपने संघर्ष से दिखा दिया है कि वह मालिकों के सामने झुकने वाले नहीं हैं। अपनी एकता के दम पर मज़दूरों ने मालिकों से लेकर उनके गुण्डों, दलालों तक को पहले भी सबक सिखाया है और इस बार भी वो मालिकों के ज़्यादतियों के ख़िलाफ़ मोर्चे पर डटे हैं। इस हड़ताल ने असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए एक मिसाल कायम की है और यह दिखा दिया है कि इलाक़ाई पैमाने पर मज़दूरों के संगठन खड़े करके असंगठित और बिखरे हुए मज़दूरों की लड़ाई को एक संगठित और विशाल रूप दिया जा सकता है।

यह हड़ताल आज भी जारी है। बिगुल मज़दूर दस्ता बादाम मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन करता है और देशभर से मज़दूरों, छात्रों और इंसाफ़पसन्द नागरिकों को हड़ताल के समर्थन में आने की अपील करता है क्योंकि मालिकों की पूँजी की ताकत के बरक्स आज मज़दूरों के पास उनकी एकता और आम मेहनतकश जनता की ताकत है। मज़दूर अपनी एकता के दम पर लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें देश की मज़दूर और आम मेहनतकश आबादी के साथ की ज़रूरत है।

करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले 20 दिनों से चल रही इस हड़ताल की माँगें निम्नलिखित हैं:

  1. 1. बादाम की छंटाई को रेट 2 रूपये प्रति किलो से बढ़ाकर 12 रूपये किया जाये।
  2. काम के घण्टे 8 सख़्ती से लागू हो,ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान किया जाये। सभी श्रम क़ानूनों को लागू किया जाये।
  3. महिला मज़दूरों के लिये कार्यस्थल पर शौचालय की व्यवस्था की जाये। इसके साथ ही बच्चों के देखभाल के लिये पालनाघर भी बनाया जाये।
  4. मशीन से बादाम तुड़ाई का रेट प्रति कट्टा 5 रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये किया जाये।
  5. हर माह की 1 से 5 तारीख तक काम का भुगतान किया जाये।
  6. स्टाफ़ मज़दूर को न्यूनतम वेतन 25,000 रुपये प्रति महीना दिया जाये।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2024


 

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