100 करोड़ ग़रीबों के प्रतिनिधि सारे करोड़पति?

पाँच राज्यों — उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर — में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया ख़त्म हो चुकी है। इन चुनावों के नतीजे अब हमारे सामने हैं। कहने को तो कई पार्टियाँ जीती हैं और कई हारी हैं। लेकिन जो बात सबसे साफ़ तौर पर साबित हुई है वह यह है कि पूँजीवादी चुनावों से आम जनता को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। पाँच विधानसभाओं में कुल 690 विधायक चुने गये हैं। इनमें से 66 प्रतिशत यानि 457 विधायक करोड़पति हैं। ध्यान रहे कि यह आँकड़ा उस ब्योरे के आधार पर है जो सभी चुने गये विधायकों ने चुनाव आयोग को सौंपा था। अब यह तो सभी जानते हैं कि चुनाव आयोग को दी गयी जानकारी और असली सम्पत्ति में कितना फ़र्क़ होता है। नेताओं की असली सम्पत्ति इससे कई गुना अधिक होती है। इन विधानसभा चुनावों में करोड़पतियों को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ है। आम जनता के लिए तो चुनाव लड़ना ही असम्भव हो गया है, चुनावों में जीतना तो बहुत दूर की बात है।

पंजाब में कुल 117 विधायकों में से 101 विधायक यानि 86 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं। 2007 के विधानसभा चुनावों के बाद पंजाब में करोड़पति विधायकों की संख्या 77 (66 प्रतिशत) थी। न सिर्फ़ पंजाब विधानसभा में करोड़पतियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है बल्कि उन विधायकों ने भी दौलत जुटाने के मामले में दिन दुगनी रात चैगुनी कामयाबी हासिल की है जिन्होंने 2007 के चुनाव भी जीते थे और अब दुबारा विधायक बने हैं। इस तरह के विधायकों की गिनती 74 प्रतिशत के आसपास है। जहाँ जनता की हालत दिन-ब-दिन बद से बदतर होती गयी है वहीं जनप्रतिनिधियों की सम्पत्ति में पिछले पाँच वर्षों के दौरान 60 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है।

बाक़ी राज्यों की भी यही कहानी है। उत्तर प्रदेश में 2007 में 124 करोड़पति विधानसभा में पहुँचे थे। नयी विधानसभा में इनकी संख्या 271 यानि 67 प्रतिशत है। उत्तराखण्ड में 46 प्रतिशत नये विधायक हैं। 2007 के चुनावों में इनकी संख्या 12 प्रतिशत थी। मणिपुर में 2007 के चुनावों में एक ही करोड़पति विधानसभा पहुँचा था लेकिन अब 16 करोड़पति विधायक हैं। गोवा में 37 (93 प्रतिशत) नये विधायक करोड़पति हैं जबकि 2007 के बाद बनी विधानसभा में इनकी संख्या 22 थी।

इन विधानसभाओं में न सिर्फ़ करोड़पतियों का प्रवेश हुआ है बल्कि आपराधिक पृष्ठभूमि वालों की भी यहाँ कोई तंगी नहीं है। मणिपुर को छोड़ बाक़ी सभी राज्यों में इस बार भी बड़े स्तर पर न सिर्फ़ आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति विधायक बने हैं बल्कि पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार इन लोगों ने भी अपनी जमात में ठीक-ठाक इज़ाफ़ा किया है। पाँचों विधानसभाओं में कुल नये चुने गये विधायकों में से 34 प्रतिशत (189) के खि़लाफ़ भारतीय क़ानूनों के तहत आपराधिक मामले चल रहे हैं। 2007 के चुनावों में इनकी संख्या 190 यानि 27 प्रतिशत थी। पंजाब में 22 विधायकों के खि़लाफ़ आपराधिक मामले चल रहे हैं।

क्या ये करोड़पति और अपराधी आम जनता की कोई चिन्ता करेंगे। इतिहास इस बात का गवाह है कि पूँजीवादी चुनावों के ज़रिए जरिए सत्ता हासिल करने वाले लोग पूँजीवाद की ही सेवा करते हैं और बदले में अपने लिए मेवा पाते हैं। जनता की ज़िन्दगी में बेहतरी लाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। वास्तव में पूँजीवादी जनवाद में सरकार की असली परिभाषा कुछ इस तरह होती है — अमीरों की, अमीरों के लिए, अमीरों के द्वारा। इसमें आम जनता का ज़िक़्र तो बस ज़ुबानी जमाख़र्च के लिए होता है। आम जनता की तक़लीफ़ों को तो सिर्फ़ मज़दूर वर्ग की एक क्रान्तिकारी सरकार ही दूर कर सकती है।

 

मज़दूर बिगुलअप्रैल 2012

 


 

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