जालन्धर में होज़री कारख़ाने की इमारत गिरने से कम से कम 24 मज़दूरों की मौत
यह लापरवाही नहीं एक और सामूहिक हत्याकाण्ड है

लखविन्दर

पिछले 15-16 अप्रैल की रात पंजाब के जालन्धर शहर के फोकल प्वाइण्ट इलाक़े में स्थित शीतल फ़ैब्रिक नाम के कम्बल बनाने वाले एक कारख़ाने की चार मंज़िला इमारत गिरने से कम से कम 24 मज़दूरों की मौत हो गयी और  अनेक मज़दूर गम्भीर रूप से जख्मी हो गये। कई तो ज़िन्दगी भर के लिए अपाहिज हो गये। यह टिप्पणी लिखे जाने तक मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ 24 मज़दूरों की लाशें मलबे में से निकाली जा चुकी हैं। लेकिन इस मामले में मीडिया की ख़बरों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसलिए मृतकों, अपाहिजों, घायलों की सही-सही संख्या के बारे में कुछ भी पुख्ता ढंग से नहीं कहा जा सकता।

इस भयानक हादसे के बाद भी मालिक और सरकारी तन्त्र ने घिनौनी तिकड़मबाज़ियाँ शुरू कर दीं। कारख़ानों में अक्सर होने वाले जानलेवा हादसों की तरह इस हादसे के बाद भी कारख़ाने में काम कर रहे मज़दूरों की असल संख्या के बारे में लगातार झूठ बोला गया। हादसे के तुरन्त बाद कारख़ाना मालिक शीतल विज का बयान था कि कारख़ाने में 70 मज़दूर थे। जालन्धर के डिप्टी कमिश्नर ने मालिक की ही बात दोहरायी। लेकिन बाद में राहत कार्यों के दौरान ही जब मृतकों और जख्मियों की संख्या इससे ऊपर चली गयी तो इस झूठ की पोल खुल गयी। तब मालिक को कहना पड़ा कि कारख़ाने में 100 मज़दूर थे। हादसे के दौरान जो मज़दूर ज़िन्दा बचे हैं उनका कहना है कि कारख़ाने में उस वक्त क़म से कम 250 मज़दूर काम कर रहे थे। इस सम्बन्ध में हाज़िरी रजिस्टर या किसी अन्य दस्तावेज़ के ज़रिये कोई भी पुख्ता जानकारी अभी तक पेश नहीं की गयी है।

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इमारत गिरने के बाद का सारा  घटनाक्रम मालिक, पुलिस, प्रशासन और सरकार की कारगुज़ारी के बारे में गम्भीर सवाल खड़े करता है। आधी रात को इमारत गिरी। सुबह साढ़े छह बजे राहत कार्यों की शुरुआत होती है। राहत कार्य शुरू करने में इतनी देरी क्यों? भूलना नहीं चाहिये कि कारख़ाने का मालिक शीतल विज पंजाब के बड़े उद्योगपतियों में से एक है। इसने कुछ ही दिन पहले हिन्दी दैनिक अखबार नया सवेरा भी शुरू किया है। अच्छे असर-रसूख वाला यह उद्योगपति भारतीय जनता पार्टी का नेता भी है। वह श्री देवीतालाब मन्दिर की प्रबन्ध कमेटी का प्रधान भी है। लाशों को ग़ायब करना, ज़ख्मियों को यहाँ-वहाँ भेज देना आदि अनेक कारण इसकी वजह हो सकते हैं। औद्योगिक हादसों के समय कारख़ानों के मालिक पुलिस-प्रशासन को मोटा पैसा चढ़ाकर सबसे पहले यही काम करने की कोशिश करते हैं। यह तो हादसा इतना बड़ा था कि परदा डालने का काम एक हद तक ही हो सकता था।

ज़ख्मियों को कारखाने के मालिक शीतल विज की अध्यक्षता में चल रहे देवी तालाब चैरिटेबल अस्पताल में भेजा गया। सरकारी डॉक्टर जब इस अस्पताल में ज़ख्मी मज़दूरों से मुलाक़ात करने पहुँचे तो अस्पताल के अधिकारियों ने इससे मना कर दिया। बाद में सिविल सर्जन ने अस्पताल के दौरा किया। पता चला कि वहाँ तो सिर्फ 5-6 ज़ख्मी मज़दूर ही हैं। बाक़ियों को मामूली मरहम-पट्टी करके आनन-फानन में वहाँ से भगा दिया गया था।

इमारत के गिरने का असल कारण अभी भी पहेली बना हुआ है। मालिक कह रहा है कि पड़ोस में बन रही नयी इमारत के कारण उसके कारख़ाने की इमारत गिर पड़ी। मज़दूर बता रहे हैं कि भारी मशीनें और तैयार माल दूसरी मंज़िल पर पड़ा था। मशीनों के चलने पर इमारत हिलती थी। मज़दूरों के मुताबिक़ इसी वजह से इमारत ताश के पत्तों की तरह ढह गयी। कई लोग बताते हैं कि एक धमाके की आवाज़ के बाद इमारत गिरी। यह भी शक़ ज़ाहिर किया जा रहा है कि यह चार मंज़िला इमारत सही पैमानों के मुताबिक़ नहीं बनायी गयी थी और काफ़ी कमज़ोर थी। पंजाब सरकार ने हादसे की जाँच के लिए तीन कमेटियाँ बनायी हैं। सरकारी जाँच पूँजीपतियों के अपराधों को कितना सामने लाती हैं इसके बारे में किसी को कोई भ्रम नहीं रखना चाहिए।

लेकिन कई बातें तो अभी ही सामने आ चुकी हैं। पंजाब स्टेट इण्डस्ट्री एण्ड एक्सपोर्ट कारपोरेशन के नियमों के अनुसार किसी औद्योगिक इकाई की ऊँचाई 38 फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। लेकिन गिरने वाली इमारत ही नहीं, शीतल विज की सभी फैक्ट्रियों की ऊँचाई इससे कहीं ज्यादा है। किसी भी फैक्ट्री में प्लॉट के 65 प्रतिशत से ज्यादा पर निर्माण नहीं होना चाहिए, लेकिन विज की सभी फ़ैक्ट्रियों में इसका धड़ल्ले से उल्लंघन होता था और पंजाब सरकार के अफ़सर आँख बन्द किये रहते थे। सरकार कितनी चौकस थी इसका अन्दाज़ा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि हादसे के बाद पुलिस ने कहा कि गिरने वाला कारख़ाना सरकारी कागज़ों में मौजूद ही नहीं था। यानी किसी भी विभाग में इसका कोई पंजीकरण नहीं था। इतनी बड़ा मौत का कारख़ाना कई साल से वहाँ चल रहा था और अन्धी सरकार को वह नज़र ही नहीं आ रहा था।

सरकार की ओर से घोषित मुआवज़ा हादसे में मरने वालों, अपाहिजों और गम्भीर रूप से ज़ख्मी हुए मज़दूरों के साथ घटिया मज़ाक ही कहा जा सकता है। उद्योगपतियों के आदरणीय मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल ने मृतकों के लिए दो-दो लाख, गम्भीर रूप से ज़ख्मी हुए हर मज़दूर को 65 हज़ार और मामूली रूप से जख्मी हुए हर मज़दूर को 45 हज़ार रुपए बतौर मुआवज़ा देने की बात कही है। उन्होंने मीडिया को दिये बयान में फ़रमाया कि वे हादसे के बाद इतना परेशान थे कि हर दस मिनट बाद अधिकारियों से राहत कार्यों के बारे में पूछते थे। लेकिन उनकी यह चिन्ता मुआवज़ा देते समय नज़र नहीं आयी! फ़िज़ूल के सरकारी समागमों पर करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाने वाली और पूँजीपतियों को दिल खोलकर आर्थिक फ़ायदे पहुँचाने वाली सरकारों के पास मज़दूरों के लिए सिर्फ़ घड़ियाली आँसू हैं।

कारख़ाने का मालिक शीतल विज इस भयानक हादसे का स्पष्ट दोषी है। पुलिस को मजबूरन उसे गिरफ्तार करना ही पड़ा। लेकिन उसे हिरासत में पलकों पर बिठाया जा रहा है। पूँजीपतियों के संगठन, शिवसेना जैसे चुनावी धन्‍धेबाज़ और कई धार्मिक संगठन उसे रिहा करवाने के लिए चिल्ल-पों मचा रहे हैं। इन कारोबारियों, चुनावी धन्‍धेबाज़ों, धार्मिक कट्टरपन्थियों के लिए मालिक ही सब कुछ है। मज़दूर तो इनके लिए कीड़े-मकोड़े हैं जिनकी इन्हें कोई परवाह नहीं है।

यह हादसा और इसके बाद का सारा घटनाक्रम पूँजीवादी व्यवस्था के भ्रष्टाचार, अमानवीयता, पशुता, मुनाफ़ाख़ोर चरित्र की ही गवाही देता है। इस घटना ने देश के कोने-कोने में कारख़ाना मज़दूरों के साथ हो रही भयंकर बेइंसाफ़ी को एक बार फिर उजागर किया है। यहाँ भी वही कहानी दोहरायी गयी है जो पंजाब सहित पूरे भारत के औद्योगिक इलाक़ों में अक्सर सुनायी पड़ती है। मज़दूरों की मेहनत से बेहिसाब मुनाफ़ा कमाने वाले सभी बड़े-छोटे कारख़ानों के मालिक मज़दूरों की ज़िन्दगी की कोई परवाह नहीं करते हैं। वे मुनाफ़े की हवस में इतने अन्धे हो चुके हैं कि मज़दूरों की सुरक्षा के इन्तज़ामों को भयंकर रूप से अनदेखी कर रहे हैं। कभी मज़दूर कारख़ानों की कमज़ोर इमारतें गिरने से मरते हैं, कभी इमारतें ब्वॉयलर फटने से गिर जाती हैं, कभी इमारतों को इतना ओवरलोड कर दिया जाता है कि वे बोझ झेल नहीं पाती हैं। मज़दूर असुरक्षित मशीनों पर काम करते हुए अपनी जान या अपने अंग गँवा बैठते हैं। लेकिन मालिकों को इस बात की कोई परवाह नहीं है। उनके लिए तो मज़दूर बस मशीनों के फर्जे हैं जिनके टूट-फूट जाने पर या घिस जाने पर उनकी जगह नये पुर्जों को फिट कर दिया जाता है।

कारख़ानों में मालिकों का गुण्डा राज है। श्रम विभाग के अधिकारियों, इंस्पेक्टरों और अन्य कर्मचारियों की संख्या लगातार घटायी जा रही है। दूसरी तरफ़ कारख़ानों की संख्या लगातार बढ़ती गयी है। श्रम विभागों को लगभग निष्क्रिय कर दिया गया है। शीतल फ़ैब्रिक कारख़ाने की इमारत गिरने के बाद मुख्यमन्त्री ने बयान दिया कि पंजाब की सभी औद्योगिक और व्यापारिक इकाइयों की इमारतों का तुरन्त सर्वेक्षण करवाया जायेगा। पहली बात तो यह कि इस लुभावने ऐलान को कभी लागू नहीं किया जायेगा। दूसरी बात, मुख्यमन्त्री इमारतों के सर्वेक्षण के ऐलान के बहाने कारख़ानों में मज़दूरों की सुरक्षा के समूचे इन्तज़ामों की बात ही रफ़ा-दफ़ा कर गये। कारख़ाने की इमारत के डिज़ाइन से लेकर मशीनों की संख्या, सुरक्षा इन्तजामों, आग लगने से रोकथाम और बचाव के इन्तजामों आदि सभी मामलों में भयंकर अनदेखी की जाती है। औद्योगिक क्षेत्रों में यह आम बात है कि मज़दूर रातों को कारख़ानों में काम कर रहे होते हैं और कारख़ाना गेटों पर बाहर से ताला लगा दिया जाता है। इन सभी कारणों से औद्योगिक क्षेत्रों में बड़े-छोटे हादसे होते रहते हैं। इनमें से बहुत कम मामले ही लोगों के सामने आ पाते हैं। अधिकतर मामलों को मालिक पुलिस, प्रशासन, सरकार और मीडिया से मिलीभगत के सहारे दबा जाते हैं। जो मामले सामने आते भी हैं उनमें कुछ दिखावटी हो-हल्ले के बाद मामले रफ़ा-दफ़ा कर दिये जाते हैं। अगर मज़दूर सुरक्षा इन्तजामों के लिए, हादसों के बाद मुआवज़े के लिए आवाज़ उठाते हैं तो पूँजीपतियों, सरकारों, पुलिस, प्रशासन, गुण्डों और धन्धेबाज़ मीडिया आदि सभी मज़दूर विरोधी ताक़तों का गठबन्‍धन मज़दूर संघर्ष को कुचलने के लिए पूरा ज़ोर लगा देता है।

इसलिए औद्योगिक हादसों के लिए सम्बन्धित मालिकों, कुछ सरकारी अधिकारियों, कुछ मन्त्रियों या किसी एक सरकार की लापरवाही कहकर बात ख़त्म नहीं की जा सकती। ऐसे तमाम हादसे पूँजीवादी व्यवस्था के घिनौने अपराध हैं।

 

मज़दूर बिगुलमई 2012

 


 

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