Category Archives: मज़दूर यूनियन

अमेज़ॉन के मज़दूरों का यूनियन बनाने की माँग को लेकर जुझारू संघर्ष

अमरीका के अलबामा राज्य के बेसिमर शहर में स्थि‍त अमेज़ॉन के भण्डारगृह में 5800 मज़दूर कार्यरत हैं। यहाँ के मज़दूर काम की भीषण परिस्थितियों के ख़िलाफ़ एक संगठित संघर्ष के लिए यूनियन बनाने की माँग पिछले साल से कर रहे हैं। इतने लम्बे समय से माँग करने के बाद अभी एक महीने से यानी मार्च के आरम्भ से चुनाव प्रक्रिया चल रही है।

गूगल के कर्मचारियों ने बनायी अपनी यूनियन

इसी साल 4 जनवरी को अमेरिकी बहुराष्ट्रीय आई.टी. (सूचना प्रौद्योगिकी) कम्पनी, गूगल और इसकी मूल कम्पनी, अल्फ़ाबेट के 400 से अधिक स्थायी कर्मचारियों ने अपनी पहली यूनियन, अल्फ़ाबेट वर्कर्स यूनियन (AWU) की घोषणा की, जिसकी सदस्यता अब लगभग 800 हो गयी है। गूगल के दुनिया भर में स्थित केन्द्रों में 2,00,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, जिनमें अलग-अलग तरह के काम करने वाले स्थायी, अस्थायी और ठेका कर्मचारी शामिल हैं। इस संख्या को देखते हुए 800 कर्मचारियों की यह यूनियन बेहद छोटी बात लग सकती है, लेकिन ऐसा है नहीं।

होण्डा, शिवम व अन्य कारख़ानों के संघर्ष को पूरी ऑटो पट्टी के साझा संघर्ष में तब्दील करना होगा

मन्दी के नाम पर छँटनी का कहर केवल होण्डा के मज़दूरों पर ही नहीं बल्कि गुड़गाँव और उसके आसपास ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंसाई नैरोलक, शिरोकी टेक्निको, मुंजाल शोवा, डेन्सो, मारुति समेत दर्जनों कम्पनियों में लगातार जारी है। दिहाड़ी, पीस रेट, व ठेका मज़दूर तो दूर स्थायी मज़दूर तक अपनी नौकरी नहीं बचा पा रहे हैं। होण्डा, शिवम, कंसाई नैरोलेक आदि कई कम्पनियों के स्थाई श्रमिक निलम्बन, निष्कासन, तबादले से लेकर झूठे केस तक झेल रहे हैं। होण्डा समेत कई कारख़ानों में चल रहे संघर्षों में कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में उतरे जुझारू मज़दूरों को निलम्बित किया गया है।

होण्डा मानेसर के ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी

आईएमटी मानेसर स्थित होण्डा मोटरसाइकिल ऐण्‍ड स्कूटर्स इण्डिया के ठेका मज़दूरों का संघर्ष पिछले 5 नवम्बर से जारी है। मन्दी का हवाला देकर बिना किसी पूर्वसूचना के मज़दूरों की छँटनी किये जाने के विरोध में मज़दूर संघर्ष की राह पर हैं।

होण्डा से 3,000 ठेका मज़दूरों को निकालने के विरोध में संघर्ष तेज़

होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर्स के मानेसर प्लाण्ट से मन्दी की आड़ में पिछले तीन महीनों से ठेका श्रमिकों को 50 से 100 के समूह में निकाला जा रहा है। धीरे-धीरे कम्पनी ने लगभग तीन हज़ार मज़दूरों की छँटनी कर दी है। अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में भी मज़दूरों ने इसके विरोध में सांकेतिक भूख हड़ताल की थी। मगर कम्पनी प्रबन्धन अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है।

गाँव की ग़रीब आबादी के बीच मनरेगा मज़दूर यूनियन की ज़रूरत और ‘क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के अनुभव

पिछले लगभग 6-7 महीनों से हरियाणा के कलायत ब्लॉक के आसपास के गाँवों में रहने वाले मनरेगा मज़दूर संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष की शुरुआत इस बात को लेकर हुई कि मनरेगा विभाग उनके गाँव में रहने वाले सभी मज़दूरों का मनरेगा कार्ड बनाये और मनरेगा के तहत मिलने वाला काम जितना जल्द हो सके शुरू करवाये। क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले ये मज़दूर अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। मनरेगा मज़दूर अपने इस संघर्ष के दौरान कलायत के तीन-चार गाँव में मनरेगा का काम शुरू करवाने में कामयाब भी हुए हैं। मनरेगा मज़दूरों को अपना यह संघर्ष जारी रखने में बहुत सारी दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी दिक्क़तों का ज़िक्र हम आगे करेंगे।

गुड़गॉंव ऑटोमोबाइल पट्टी में जगह-जगह मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

कंसाई नैरोलेक पेंट्स लिमिटेड के बावल (ज़ि‍ला रेवाड़ी, हरियाणा) प्लाण्ट के करीब 250 ठेका मज़दूरों को श्रम विभाग के समक्ष लिखि‍त समझौते के बावजूद कम्पनी में अभी तक काम पर वापस नहीं लिया जा रहा है। कम्पनी बदले की भावना से एक के बाद एक नया बहाना गढ़ के हड़ताल में शामिल अधिकांश ठेका मज़दूरों समेत अन्य ठेका मज़दूरों को काम पर वापस नहीं ले रही है।

लुधियाना में औद्योगिक मज़दूरों की फ़ौरी माँग के मसलों पर मज़दूर संगठनों की गतिविधि और इसका महत्व

लुधियाना उत्तर भारत के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में से एक है। यहाँ के कारख़ानों और अन्य संस्थानों में लाखों मज़दूर काम करते हैं। ये मज़दूर भयानक लूट-दमन का शिकार हैं। यह लूट-दमन मालिकों की भी है और पुलिस-प्रशासन की भी। कारख़ाना मज़दूर यूनियन व टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन पिछले लम्बे समय से लुधियाना के मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने, लामबन्द व संगठित करने में लगे हुए हैं। पिछले एक दशक से भी अधिक समय में इन यूनियनों के नेतृत्व में कई छोटे-बड़े मज़दूर संघर्ष लड़े गये हैं। ये ज़्यादातर संघर्ष कारख़ानों के एक क्षेत्र या एक कारख़ाने से सम्बन्धित रहे हैं। इन संघर्षों का अपना महत्व है। लेकिन इस समय कुल लुधियाना के विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों को संघर्ष की राह पर लाने की ज़रूरत है। क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की जीवन परिस्थितियाँ लगभग एक जैसी हैं। ऐसी लामबन्दी मज़दूरों को संकीर्ण विभागवाद की मानसिकता से भी मुक्त करती है।

आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा : प्रधानमन्त्री का एक और वायदा निकला जुमला!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 सितम्बर 2018 को आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गयी थी। ‘आँगनवाड़ी’ और ‘आशा’ महिलाकर्मियों को मानदेय बढ़ोत्तरी का यह वायदा दिवाली के तोहफ़े के तौर पर किया गया था किन्तु अभी तक भी इस मानदेय बढ़ोत्तरी की एक फूटी कौड़ी भी किसी के खाते में नहीं आयी है! दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन को जिस बात की पहले ही आशंका थी, वही हुआ। यूनियन के द्वारा अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आशंका भी जतायी गयी थी। प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये वायदे के अनुसार अक्टूबर माह से कार्यकर्त्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और सहायिकाओं के वेतन में 750 रुपये की वृद्धि होनी थी लेकिन अक्टूबर के महीने से बढ़ी हुई यह राशि अब तक किसी महिलाकर्मी को प्राप्त नहीं हुई है।

महिला एवं बाल विकास विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार का आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने दिल्ली में किया पर्दाफ़ाश!

केन्द्र सरकार ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में क्रमशः 1500 व 750 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी! वैसे तो इस देश में शिवाजी की मूर्ति पर 3600 करोड़ व पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ ख़र्च कर दिये जा रहे हैं, जिसका सीधा मक़सद जातीय वोट बैंक को भुनाना है, उलजुलूल के कामों में अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, किन्तु आँगनवाड़ियों में ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पक्का रोज़गार देने की बजाय या तब तक न्यूनतम वेतन के समान मेहनताना देने की बजाय भुलावे में रखने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार 28 लाख महिलाकर्मियों के वोटों का आने वाले चुनाव के लिए 1500 और 750 रुपये में मोल-भाव कर रही है!?