Category Archives: संघर्षरत जनता

चीन में मज़दूरों का बढ़ता असन्तोष

चीन में मज़दूर अपने इन हालातों के खि़लाफ़ निरंतर संघर्षरत है और अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं। यहाँ यह भी जानना दिलचस्‍प होगा कि चीन में केवल सरकारी नियंत्रण के तहत काम करने वाली ‘ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स’ को ही सरकार द्वारा कानूनी मान्यता हासिल है। पूँजीपतियों की खि़दमत में लगी यह ट्रेड यूनियन किसी भी रूप में मज़दूरों के हितों का प्रतिनिधत्व नहीं करती और यही कारण है कि मज़दूरों को इस ट्रेड यूनियन पर राई-रत्ती भी भरोसा नहीं है। चीन की सरकार ने मज़दूरों के स्वतंत्र यूनियन बनाने के किसी भी प्रयास पर रोक लगा रखी है। मज़दूरों को अपनी पहलकदमी पर संगठित करने वाले मज़दूर कार्यकर्ताओं के प्रति सरकार का रुख़ इसी बात से समझा जा सकता उन्‍हें पुलिस द्वारा प्रताडि़त किया जाता है, गि़रफ्तार किया जाता है, उनके खि़लाफ़ व्यक्तिगत कुत्सा प्रचार भी किया जाता है जिसमें चीन की मीडिया बढ़-चढ़कर भूमिका निभाती है। कुछ मामलों में तो कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय मीडिया पर मज़दूरों को संगठित करने के अपने प्रयासों के लिए माफी तक माँगने को बाध्य किया जाता है।

रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन

असल में विश्वविद्यालय प्रशासन और मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी, श्रम मंत्री बण्डारू दत्तात्रेय ही रोहित की मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं। इन्हीं की प्रताड़ना का शिकार होकर एक नौजवान ने फाँसी लगा ली। उसका दोष क्या था? यही कि उसने धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों के खिलाफ़ आवाज उठायी थी। रोहित की मौत की ज़िम्मेदार वे ताकतें हैं जो लोगों के आवाज़ उठाने और सवाल उठाने पर रोक लगाना चाहती हैं और आज़ाद ख़याल रखने वाले लोगों को गुलाम बनाना चाहती हैं।

‘दिल्ली मास्टर प्लान 2021’ की भेंट चढ़ी ग़रीबों-मेहनतकशों की एक और बस्ती – शकूर बस्ती

झुग्गियों के उजड़ने के बाद जैसे चुनावबाज पार्टियों के नेता अपने वोट बैंक को बचाने के लिए मीडिया के सामने सफाई देना शुरू कर देते हैं उसी तरह दल्लों, छुटभैये नेताओं और गुण्डों की बहार आ जाती है। राहत सामग्रियों को बाजार में बेचने का धन्धा चलता है। अफवाहों का बाज़ार गर्म किया जाता है और लोगों को डराकर पैसे ऐंठे जाते हैं। इन तमाम दल्लों का धन्धा ग़रीबों, मेहनतकशों की गाढ़ी कमाई को लूटकर ही चलता है। अपनी झूठी बातों और सरकारी दफ्तरों के जंजाल का भय लोगों में बिठाकर आधार कार्ड, पहचान पत्र बनवाने से लेकर स्कूल में बच्चे का दाखिला करवाने तक में ये दल्ले पाँच सौ से हजार रुपये तक वसूलते हैं। लेकिन, इतने पर भी सही काम की कोई गारण्टी नहीं होती। चुनावों के समय तमाम पार्टियों से पैसे लेकर वोट खरीदने का काम भी खूब करते हैं और खुद को बस्ती का प्रधान भी घोषित कर लेते हैं और अपने फेंके टुकड़ों पर पलने वाले गुर्गे भी तैयार कर लेते हैं। इन तमाम दल्लों और गुण्डों को पुलिस से लेकर क्षेत्रीय विधयक तक की शह रहती है। ऊपर से तुर्रा यह कि खुद को मज़दूरों का हितैषी बतानेवाली और रेलवे में बड़ी यूनियनें चलानेवाली एक सेण्ट्रल ट्रेड यूनियन भी सीमेण्ट मज़दूरों के बीच में सक्रिय है। और इनकी नाक के नीचे तमाम स्थानीय गुण्डे और दलाल अपनी मनमर्जी चला रहे थे। दरअसल मज़दूरों की अपनी क्रान्तिकारी यूनियन ही जुझारू तरीके से मज़दूरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की दिक्कतों समस्याओं के ख़िला़फ़ लड़ सकती है। सेण्ट्रल ट्रेड यूनियनें बस वेतन भत्ते की लड़ाई तक ही सीमित रहती हैं।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

पंजाब की जनता का काला क़ानून विरोधी संघर्ष जारी

इस क़ानून के मुताबिक़ किसी भी प्रकार के आन्दोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, हड़ताल, जुलूस, आदि के दौरान अगर सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है (इसमें घाटा में शामिल किया गया है, यानी हड़ताल-टूल डाऊन आदि करने पर भी जेल जाना होगा) तो संघर्ष में किसी भी प्रकार से शामिल, मार्गदर्शन करने वालों, सलाह देने वालों, किसी भी प्रकार की मदद करने वालों आदि को दोषी माना जायेगा। हवलदार तुरन्त गिरफ़्तारी कर सकता है। इस क़ानून के तहत किया गया ‘अपराध’ ग़ैरजमानती है। नुक़सान भरपाई के लिए ज़मीन जब्त की जायेगी। जुर्माने अलग से लगेंगे। एक से पाँच वर्ष तक की क़ैद की सज़ा होगी। वीडियो को पक्के सबूत के तौर पर माना जायेगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस क़ानून का इस्तेमाल हक़, सच, इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वालों के ख़िलाफ़ ही होगा। हुक़्मरानों की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता में बढ़ते आक्रोश के माहौल में पहले से मौजूद दमनकारी काले क़ानूनों और राजकीय ढाँचे से अब इनका काम नहीं चलने वाला। जनआवाज़ को दबाने के लिए जुल्मी हुक़्मरानों को दमनतन्त्र के दाँत तीखे करने की ज़रूरत पड़ रही है। इसी का नतीजा है पंजाब का यह नया काला क़ानून। लेकिन जनता हुक़्मरानों के काले क़ानूनों से डरकर चुप नहीं बैठती। पंजाब की जनता का संघर्ष इसका गवाह है।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता शहनाज़ की पहली बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

शहनाज़ को 4 दिसम्बर को एक गुण्डा गिरोह ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगाकर जला दिया था। इससे पहले शहनाज़ को 25 अक्टूबर को अगवा करके दो दिन तक सामूहिक बलात्कार किया गया। राजनीतिक सरपरस्ती में पलने वाले इस गुण्डा गिरोह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में पुलिस ने बेहद ढिलाई बरती, पीड़ितों की ढंग से सुनवाई नहीं की गयी, रिपोर्ट लिखने और मेडिकल करवाने में देरी की गयी। बलात्कार व अगवा करने के दोषी 18 दिन बाद जमानत करवाने में कामयाब हो गये। गुण्डा गिरोह ने शहनाज़ और उसके परिवार को केस वापिस लेने के लिए डराया, जान से मारने की धमकियाँ दीं। 4 दिसम्बर को दिन-दिहाड़े सात गुण्डों ने उसे मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। 9 दिसम्बर को उसकी मौत हो गयी। गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ियों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की गयी है और उसे भी जेल पहुँचाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है।

नीमराना के ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की लड़ाई जारी है…

आपको यह जानकर हैरत होगी कि मज़दूरों के धरने पर बैठने के फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा आपत्ति श्रम विभाग या कम्पनी प्रबन्धन को नहीं बल्कि एटक को है। श्रम विभाग में अधिकारियों से हर रोज़ घण्टों बैठक करके एटक का नेतृत्व धरने पर बैठे मज़दूरों के पास यह निष्कर्ष लेकर पहुँचता है कि यहाँ पर धरने पर बैठने से कुछ नहीं होगा घर जाओ…

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने किया विधायक का घेराव

वज़ीरपुर में लगभग एक महीने से पानी की किल्लत झेल रहे वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने 30 सितम्बर की सुबह वज़ीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। वज़ीरपुर के अम्बेडकर भवन के आस पास की झुग्गियों में खुदाई के चलते 12 दिनों से पानी नहीं पहुँच रहा है, इस समस्या को लेकर मज़दूर पहले भी विधायक के दफ्तर गए थे जहाँ उन्हें 2 दिन के भीतर हालात बेहतर करने का वादा करते हुए लौटा दिया गया था मगर इसके बावजूद आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायक ने कुछ नहीं किया । 30 सितम्बर की सुबह दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में झुग्गीवासीयों और मज़दूरों ने इकट्ठा होकर राजेश गुप्ता का घेराव किया। चुनाव से पहले 700 लीटर पानी का वादा करने वाली इस सरकार के नुमाइंदे से जब यह पूछा गया कि पिछले 12 दिनों से कनेक्शन कट जाने के बाद पानी की सुविधा के लिए पानी के टैंकर क्यों नहीं मंगवाये गए तो उसपर विधायक जी ने मौन धारण कर लिया।

हरियाणा में बिजली के बढ़े हुए दामों के विरोध में प्रदर्शन!

नौजवान भारत सभा के बैनर तले आज बिजली के बढ़े हुए दामों के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया. शहर भर से आम आबादी बड़ी संख्या में उक्त प्रदर्शन में शामिल हुई. नौभास के संयोजक रमेश खटकड़ ने बताया कि हरियाणा में पिछले एक साल के अन्दर बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। अलग-अलग मदों में की गयी दामों की बढ़ोत्तरी 30 से 100 प्रतिशत तक की है। ध्यान रहे यह वही भाजपा है जो दिल्ली में चुनाव से पहले 30 प्रतिशत बिजली के दाम कम करने की बात कर रही थी। मोदी-खट्टर चुनाव में शोर मचा रहे थे ‘‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’। लेकिन सत्ता में आने बाद भाजपा सरकार ने महँगाई के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं। मोदी सरकार ने 1.5 साल में ही रेल किराये में 14 प्रतिशत बढ़ोत्तरी कर दी, सभी वस्तुओं व सेवाओं पर सर्विस टैक्स को 14.6 प्रतिशत कर दिया। साथ ही दालों से लेकर प्याज के रेट आज आसमान छू रहे हैं। आज महँगाई की मार ने मध्यमवर्ग आबादी की भी कमर तोड़ दी है। अब जले पर नमक छिड़कते हुए बिजली के दामों को बढ़ाकर जनता की जेब पर सरेआम डाकेजनी है। ऐसे में पहले से ही महँगाई की मार झेल रही जनता के लिए यह ‘जले पर नमक छिड़कने’ के समान है

आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के आगे झुकी केजरीवाल सरकार!

अपनी दीर्घकालिक मांगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. व पी.एफ­. आदि के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारे करती हैं वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया। 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। इसके बाद 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की गयी। साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है। मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यिूनयन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी मिली इस जीत आंगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर है।