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कहानी – सुकून की तलाश में एक दिन / अन्वेषक

आख़िर सूरज डूब गया, तेज़ हवाओं ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया। अँधेरा हर तरफ़ फैल चुका था। पूरे पार्क में सन्नाटा पसर गया, कहीं कोई नहीं दिखाई दे रहा था। लाउडस्पीकर का शोर अभी ख़त्म नहीं हुआ, बस अभी उसकी आवाज़ धीमी थी। सब लौट गये फिर अपने ठिकानों में जहाँ अगले दिन उन्हें सुबह से रात तक, अपने हाड मांस को गलाना था ताकि अपना व परिवार का पेट का गड्ढा भर सके। यही पहिया घूम रहा है दिन, रात, महीनों, सालों से। इसी में एक दिन निकाल कर आते हैं सभी सुकून की तलाश करते हुए, पर अन्त में रह जाता है तो सिर्फ़ अँधेरा जो सब कुछ अपने अन्दर समा लेना चाहता है।

कहानी – स्याह और सुर्ख़ (भाग एक)

हल्का पीला पड़ चुका चेहरा, जो लम्बी थकान के बाद लटका हुआ है। उसके हाथ एक दिशा में लगातार चल रहे हैं। पीलापन उसके चेहरे पर जड़ जमा चुका है, पर साफ़ नज़र नहीं आ रहा क्योंकि कारख़ाने में बन रहे वाइपर के पाइपों और उसमें लगा काले रंग का केमिकल उसके चेहरे को ढँक चुका है। इसी कारण थकान भी धूमिल लग रही है। दिन पर दिन उसका पतला-दुबला शरीर ढल रहा है। नीचे आसमानी रंग की हाफ़शर्ट, जो काले-नीले मिश्रण का रूप धारण कर चुकी है, कभी उसे फ़िट आती थी।