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सोवियत संघ में सांस्कृतिक प्रगति – एक जायज़ा (दूसरी किश्त) 

1917 की समाजवादी क्रान्ति को अंजाम देने वाली बाेल्शेविक पार्टी कला की अहमियत के प्रति पूरी सचेत थी। वह जानती थी कि कला लोगों के आत्मिक जीवन को ऊँचा उठाने, उनको सुसंकृत बनाने में कितनी सहायक होती है। अभी जब सिनेमा अपने शुरुआती दौर में ही था, तो हमें उसी समय पर ही लेनिन का वह प्रसिद्ध कथन मिलता है, जो उन्होंने लुनाचार्स्की के साथ अपनी मुलाक़ात के दौरान कहा था, “सब कलाओं में से सिनेमा हमारे लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।” क्रान्ति के फ़ौरन बाद ही से सोवियत सरकार की तरफ़ से बाेल्शेविक पार्टी की इस समझ पर अमल का काम भी शुरू हो गया। जल्द ही ये प्रयास किये गये कि पूरे सोवियत संघ में संस्कृति के केन्द्रों का विस्तार किया जाये।

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के जन्मदिवस (14 मार्च) के अवसर पर उनके प्रसिद्ध लेख के अंश समाजवाद ही क्यों?

मैं अब उस बिन्दु पर पहुँच गया हूँ  जहाँ मैं संक्षेप में यह बता सकता हूँ कि मेरी राय में हमारे समय के संकट का सार क्या है। यह व्यक्ति के समाज से सम्बन्ध का सवाल है। व्यक्ति समाज पर अपनी निर्भरता के बारे में पहले से कहीं अधिक सचेत हो गया है। परन्तु वह इस निर्भरता का अनुभव एक सकारात्मक गुण, एक आवयविक सम्बन्ध, एक सुरक्षात्मक बल के रूप में नहीं, बल्कि अपने प्राकृतिक अधिकारों, या यहाग्‍ तक कि अपने आर्थिक अस्तित्व के लिए एक ख़तरे के रूप में करता है।