उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के सिर पर लटकती छँटनी की तलवार

बिगुल संवाददाता

सरकारें रोज़गार पैदा तो नहीं कर पा रही हैं, लेकिन तरह-तरह से रोज़गारशुदा लोगों को भी काम से बाहर करने की तिकड़मों में लगी हुई हैं। अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार 50 वर्ष से ऊपर कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने  की तैयारी कर रही है। हाल में अतिरिक्त मुख्य सचिव मुकुल सिंह की ओर से जारी सरकारी आदेश में कहा गया है, ”सभी विभागाध्यक्षों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के लिए 50 वर्ष और उससे ऊपर के कर्मचारियों की जाँच 31 जुलाई तक पूरी कर लेनी चाहिए। लागू करने की कट-ऑफ़ तारीख़ 31 मार्च 2018 है।” यह आदेश सरकार के सभी प्रमुख सचिवों और सचिवों को भेजा गया है।

कहा जा रहा है कि काम न करने वाले और भ्रष्ट कर्मचारियों को बाहर करने के लिए यह आदेश लाया जा रहा है। लेकिन पिछले वर्षों के दौरान ऐसे आदेशों की गाज किन कर्मचारियों पर गिरी है इसे जानने वाले अच्छी तरह समझते हैं कि वास्तव में भ्रष्ट और निकम्मे कर्मचारियों पर इससे कोई विशेष आँच नहीं आयेगी, लेकिन किसी न किसी रूप में कमज़ोर, अरक्षित कर्मचारियों को जबरन रिटायर करके छँटनी की योजना पर अमल किया जायेगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि 50 वर्ष से अधिक का कोई भी कर्मचारी ख़ुद भी रिटायरमेण्ट के लिए आवेदन दे सकता है।

पीडब्ल्यूडी विभाग के प्रमुख वी.के. सिंह के मुताबिक़ बाहर किये जाने वाले कर्मचारियों की सूची तैयार की जा रही है और काम न करने वाले कर्मचारियों को रिटायरमेण्ट के लिए तीन महीने का समय दिया जायेगा। स्वाभाविक तौर पर, भाजपा ने इस फ़ैसले का ज़ोर-शोर से स्वागत और समर्थन किया है।

इनसे पूछा जाना चाहिए कि अगर कर्मचारी काम नहीं करते और भ्रष्ट हैं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए, और गम्भीर मामलों में नौकरी से बर्खास्त करने के लिए भी तमाम नियम पहले से बने हुए हैं। फिर उनके तहत कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? ऐसे तमाम नियमों-प्रावधानों के होते हुए भी निकम्मे और भ्रष्ट कर्मचारी और अफ़सर तमाम सरकारी विभागों में बरसों-बरस न केवल जमे ही नहीं रहते बल्कि तरक़्क़ी पाने में भी आगे रहते हैं। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या सबसे पहले इन भ्रष्ट और निकम्मे कर्मचारियों और अफ़सरों के विरुद्ध कार्रवाई न करने और उन्हें संरक्षण देने वाली सरकार के विरुद्ध कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? जिनके राज में ऑक्सीजन के अभाव में सैकड़ों बच्चे मौत के मुँह में समा जाते हैं, आये दिन सड़क पर गुण्डों की भीड़ हत्याएँ करते घूमती है, बेरोज़गारों की तादाद दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती जा रही है और स्कूलों व अस्पतालों में लाखों पद ख़ाली पड़े हैं, क्या उनके निकम्मेपन और आपराधिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध सबसे पहले कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2018


 

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