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बुलन्दशहर की हिंसा : किसकी साज़िश?

3 दिसम्बर को बुलन्दशहर के महाव गाँव के खेतों में गाय के मांस के टुकड़े मिले थे। ये टुकड़े बाक़ायदा गन्ने के खेत में इस तरह से लटकाये गये थे जिससे दूर से दिखायी दे जायें। बाद में यह भी पता चल गया कि जानवर को कम से कम 48 घण्टे पहले मारकर वहाँ लाया गया था। ग़ौरतलब है कि इसके 3 दिन बाद यानी 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी आने वाली थी और राम मन्दिर का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ था। इसी दिन घटनास्थल से 50 किलोमीटर दूर ही मुसलमानों का धार्मिक समागम इज़्तिमा हो रहा था जिसमें लाखों मुसलमान शिरक़त कर रहे थे। अफ़वाह यह भी फैलायी गयी थी कि गौहत्या की वारदात को इज़्तिमा में शामिल हुए लोगों ने अंजाम दिया है। सुदर्शन न्यूज़ नामक संघी न्यूज़ चैनल के मालिक सुरेश चह्वाणके ने तो बाक़ायदा इस बात की झूठी ख़बर भी फैलायी थी जिसका खण्डन यूपी पुलिस ने ट्वीट करके किया। यहाँ एक चीज़़ और देखने वाली थी कि महाव गाँव बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाइवे पर पड़ता है और इज़्तिमा के समापन के बाद इस मार्ग से लाखों मुसलमानों को गुज़रना था। ‘दैनिक जागरण’ की ख़बर के अनुसार महाव गाँव में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद संघ परिवार के हिन्दू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने चिरगाँवठी गाँव के पास बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाईवे पर मांस के टुकड़ों को ट्रैक्टर-ट्राली में रख कर जाम लगा दिया था।

भगतसिंह के जन्मदिवस के दिन लखनऊ में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने दी पहली दस्तक

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बिगड़ती हालत पर सरकार का ध्यान खींचने के इरादे से प्रदेशभर के छात्रों-युवाओं और नागरिकों ने शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में सरकार के दरवाज़े पर दस्तक दी। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से चलाये जा रहे शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान के 10 सूत्री माँगपत्रक को प्रदेशभर से जुटाये गये हज़ारों हस्ताक्षरों के साथ उपज़ि‍लाधिकारी के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंपा गया। शिक्षा एवं रोज़गार से जुड़े सवालों पर प्रदेश में आन्दोलनरत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर प्रदर्शन में शामिल हुए और सरकार को चेतावनी दी कि बेरोज़गारी के प्रति सरकारी उपेक्षा एवं दमन का रवैया प्रदेश में एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकता है।

उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के सिर पर लटकती छँटनी की तलवार

कहा जा रहा है कि काम न करने वाले और भ्रष्ट कर्मचारियों को बाहर करने के लिए यह आदेश लाया जा रहा है। लेकिन पिछले वर्षों के दौरान ऐसे आदेशों की गाज किन कर्मचारियों पर गिरी है इसे जानने वाले अच्छी तरह समझते हैं कि वास्तव में भ्रष्ट और निकम्मे कर्मचारियों पर इससे कोई विशेष आँच नहीं आयेगी, लेकिन किसी न किसी रूप में कमज़ोर, अरक्षित कर्मचारियों को जबरन रिटायर करके छँटनी की योजना पर अमल किया जायेगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि 50 वर्ष से अधिक का कोई भी कर्मचारी ख़ुद भी रिटायरमेण्ट के लिए आवेदन दे सकता है।

उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने गति पकड़ी

लाखों नौजवान नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र अपने जीवन के सबसे शानदार दिनों को मुर्गी के दरबे नुमा कमरों में किताबों का रट्टा मारते हुए बिता देने के बाद भी अधिकांश छात्रों को हताशा-निराशा ही हाथ लगती है। बहुत सारे छात्रों के परिजन अपनी बहुत सारी बुनियादी ज़रूरतों तक में कटौती कर के पाई-पाई जोड़ करके किसी तरह अपने बच्चों को एक नौकरी के लिए बेरोज़गारी के रेगिस्तान में उतार देते हैं। लेकिन अधिकांश युवा रोज़गार की इस मृग-मारीचिका में भटकते रहते हैं। रोज़गार की स्थिति यह है कि एक अनार तो सौ बीमार। कुछ सौ पदों के लिए लाखों-लाख छात्र फॉर्म भरते हैं। पद इतने कम हैं कि आने वाले पचास सालों में आज जितने बेरोज़गार युवा हैं उनको रोज़गार नहीं दिया जा सकता।

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बदहाली के विरुद्ध तीन जनसंगठनों का राज्यव्यापी अभियान

प्रदेश में सरकारें आती-जाती रही हैं लेकिन आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर बढ़ने के बजाय कम होते जा रहे हैं। सरकारी नौकरियाँ नाममात्र के लिए निकल रही हैं, नियमित पदों पर ठेके से काम कराये जा रहे हैं और ख़ाली होने वाले पदों को भरा नहीं जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को बन्द करने या निजी हाथों में बेचने का सिलसिला जारी है। भारी दबाव में जो भर्तियाँ घोषित भी होती हैं, उन्हें तरह-तरह से वर्षों तक लटकाये रखा जाता है, भर्ती परीक्षाएँ होने के बाद भी पास होने वाले उम्मीदवारों को नियुक्तियाँ नहीं दी जातीं! करोड़ों युवाओं के जीवन का सबसे अच्छा समय भर्तियों के आवेदन करने, कोचिंग व तैयारी करने, परीक्षाएँ और साक्षात्कार देने में चौपट हो जाता है, इनके आर्थिक बोझ से परिवार की कमर टूट जाती है।