पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-8)

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम के कुछ हिस्सों की इस श्रृंखला में आठवीं कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं। बोल्शेविकों ने अपनी बात लोगों तक पहुँचाने और पूँजीवादी लोकतन्त्र की असलियत का भण्डाफोड़ करने के लिए संसद के मंच का किस तरह से इस्तेमाल किया इसे लेखक ने अपने अनुभवों के ज़रिए बख़ूबी दिखाया है। इस बार हम जो अंश प्रस्तुत कर रहे हैं उसमें हम देख सकते हैं क‍ि प्रथम विश्‍व युद्ध के पहले जब तमाम देशों के पूँजीपति दुनिया की लूट में हिस्‍से की बन्‍दरबाँट के लिए युद्ध करने पर उतावले हो रहे थे और पूँजीवादी सरकारें अपने देशों में राष्‍ट्रवादी जुनून और युद्धोन्‍माद भड़का रही थीं ताकि अलग-अलग देशों के मज़दूरों को एक-दूसरे की जान का दुश्‍मन बनाया जा सके, तब बोल्‍शेविक पार्टी ने दृढ़ता से युद्ध-विरोधी रुख अख़्तियार किया था और निरंकुश ज़ारशाही सरकार के दमन का सामना करते हुए क्रान्ति की तैयारियों को आगे बढ़ाया था। इस प्रसंग को पढ़ते हुए आज हमारे देश पर ध्‍यान चले जाना स्‍वाभाविक है जब सत्ता में बैठे फ़ासिस्‍ट युद्ध का पागलपन पूरे देश में फैला देना चाहते हैं ताकि मेहनकतश लोगांे की असली समस्‍याओं से ध्‍यान हटाया जा सके। यह पूरी पुस्‍तक आज भी मज़दूर आन्दोलन में काम कर रहे लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसे पढ़ते हुए पाठकों को लगेगा मानो इसमें जिन स्थितियों का वर्णन किया गया है वे हज़ारों मील दूर रूस में नहीं बल्कि हमारे आसपास की ही हैं। ‘मज़दूर बिगुल’ के लिए इस श्रृंखला को सत्यम ने तैयार किया है।

(आठवीं किश्त)

बोल्शेविक जन-प्रतिनिधियों की गिरफ़्तारी

यूरोप में युद्ध के बादल मँडरा रहे थे। पूँजीवादी सरकारें अपने शासक वर्गो के हितों के लिए युद्ध पर आमादा थीं। दूसरी ओर बोल्शेविक पार्टी युद्ध-विरोधी प्रचार और आसन्न युद्ध के विरुद्ध मुहिम छेड़कर अन्तरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलनों के फ़ैसलों के मुताबिक़ काम कर रही थी। इन सम्मेलनों ने बार-बार पूँजीवादी सरकारों के बीच युद्ध की भर्त्सना की थी, संसदों में युद्ध के नाम पर भारी ख़र्चों के प्रस्ताव के विरुद्ध वोट देने को सामाजिक-जनवादी प्रतिनिधियों का फ़र्ज़ बताया था और मज़दूरों का आह्वान किया था कि वे युद्ध छिड़ने पर अपने देश में बग़ावत करके उस युद्ध का अन्त कर दें।

प्रथम विश्व युद्ध के पहले होने वाले अन्तिम सम्मेलन, 1912 में हुई बेसल कांग्रेस, ने दुनियाभर के सर्वहारा वर्ग के नाम जारी घोषणापत्र में कहा था : ‘’सरकारों को यह याद रखना चाहिये कि फ्रांस-प्रशिया के युद्ध से (पेरिस) कम्यून का विस्फोट हुआ था, कि रूस-जापान युद्ध के ठीक बाद रूसी साम्राज्य के भीतर सभी राष्ट्रों में क्रान्तिकारी आन्दोलन उठ खड़ा हआ था।… दुनिया के मज़दूर पूँजीपतियों के मुनाफ़े, वंशवादी प्रतिस्पर्द्धाओं या ख़ुफ़िया कूटनीति के लिए एक-दूसरे को गोली मारने को अपराध समझते हैं।’’ दूमा (रूसी संसद) में हमारी पार्टी के धड़े ने इन बयानों के आधार पर ही अपना काम संगठित किया था।

हमारे धड़े ने बेसल कांग्रेस को यह पत्र भेजा था : ‘’युद्ध और ख़ून-ख़राबा शासक वर्गों के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन सभी देशों के मज़दूर हर क़ीमत पर शान्ति चाहते हैं। और हम, रूसी मज़दूर, सभी दूसरे देशों के मज़दूरों की ओर भाईचारे का हाथ बढ़ाते हैं और हमारे समय के कोढ़ – युद्ध – के ख़िलाफ़ प्रतिरोध में उनके साथ खड़े हैं।’’

जैसाकि अब सभी जानते हैं, युद्ध की घोषणा के तुरन्त बाद, दूसरे इण्टरनेशनल के नेताओं ने इतिहास की सबसे बड़ी ग़द्दारियों में से एक को अंजाम दिया और अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के झण्डे को धूल-धूसरित कर दिया। राष्ट्रवाद की लहर में बहते हुए, समाजवादी पार्टियों के नेता अपने देशों की सरकारों के पीछे चल पड़े और अपने-अपने पूँजीपति वर्ग के हाथों का खिलौना बन गये। क्रान्ति से ग़द्दारी करके इन नेताओं ने यह सिद्धान्त पेश किया युद्ध छिड़ जाने के बाद अपने शासक वर्ग का साथ देना ज़रूरी है और पूँजीवादी अख़बारों के सुर में सुर मिलाते हुए ‘’दुश्मन’’ के विरुद्ध लड़ने के लिए अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में जुट गये।

लेनिन की ‘’थीसिस ऑन द वॉर’’ और पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के घोषणापत्र ने युद्ध की शुरुआत से ही हमारे काम के सही होने की पुष्टि की और इस बात को ग़लत साबित किया कि बोल्शेविकों का युद्ध-विरोधी कार्यक्रम ‘’पराजयवाद’’ नहीं था। उस समय लेनिन और अन्य नेता विदेश में निर्वासन में रह रहे थे। जब ये दस्तावेज़ काफ़ी कठिनाइयों से और कई जगहों से घूमते हुए हम तक पहुँचे, तो हमें सभी स्थानीय संगठनों के प्रतिनिधियों को सूचित करना था और इन प्रतिनिधियों के साथ मिलकर तय करना था कि नारों को अमल में कैसे उतारा जाये। इसी मक़सद से दूमा धड़े ने नवम्बर 1914 में पार्टी की कॉन्फ़्रेंस बुलायी थी।

युद्ध डिछ़ने के बाद क्रान्तिकारी आन्दोलन में पस्ती का माहौल छा गया था। कॉन्फ़्रेंस को इस स्थिति से उसे उबारने का तरीक़ा निकालन था। मज़दूर-वर्गीय संगठनों को सरकारी दमन से तबाह कर दिया गया था और प्रतिक्रियावादी युद्धोन्मादी आतंक बढ़ता जा रहा था। इन हालात में पार्टी संगठन को फिर से खड़ा करने के लिए बड़ी मेहनत और लगन से काम करने की ज़रूरत थी। तकनीकी साधनों की भी ज़रूरत थी। पार्टी कार्य के इन महत्वपूर्ण सवालों पर कॉन्फ़्रेंस में चर्चा होनी थी : केन्द्र और स्थानीय संगठनों के बीच सम्पर्क को मज़बूत करना, सेना के बीच पार्टी कार्य का संगठन, ग़ैरक़ानूनी छापेख़ाने स्थापित करना, एक अख़बार का प्रकाशन, विदेशों में संगठनों के साथ सम्पर्क बनाये रखना, वित्तीय साधनों की व्यवस्था आदि।

हमने बेहद सावधानी और गुप्तता का कड़ाई से पालन करते हुए कॉन्फ़्रेंस की तैयारी की। दूमा धड़े के सदस्यों (सांसदों) ने सभी महत्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्रों से प्रतिनिधियों के चुनाव की व्यवस्था करने के लिए तमाम प्रान्तों की यात्राएँ कीं। प्रतिनिधियों को सेण्ट पीटर्सबर्ग में मिलने के गुप्त स्थानों के पते दिये गये जहाँ से वे कॉन्फ़्रेंस के बारे में जानकारी ले सकते थे। पुलिस को शक़ न हो, इसलिए कॉन्फ़्रेंस होने तक चुने गये प्रतिनिधियों ने दूमा में पार्टी सदस्यों से मुलाक़ात नहीं की।

पहले कॉन्फ़्रेंस फ़िनलैण्ड में होने वाली थी, मगर बाद में हमें सेण्ट पीटर्सबर्ग के बाहरी इलाक़े ओज़्योर्की में एक उपयुक्त जगह मिल गयी। सर्दियों में यहाँ ज़्यादातर मकान ख़ाली रहते थे और गाव्रीलोव नाम के एक क्लर्क का यह मकान लगभग अलग-थलग-सा था। उसकी पत्नी ने हमें मकान का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी थी। ओज़्योर्की इसलिए भी सुविधाजनक था क्योंकि वहाँ रेलवे के अलावा ट्राम से भी पहुँचा जा सकता था और स्टेशन गाव्रीलोव के मकान से ज़्यादा दूर नहीं था।

प्रतिनिधियों का एक हिस्सा जब पीटर्सबर्ग पहुँच गया, तब कॉन्फ़्रेंस की तारीख़ पक्की कर दी गयी। हम सब अलग-अलग रास्तों से ओज़्योर्की पहुँचे। मैं अलस्सुबह घर से निकल पड़ा और उल्टी दिशा में रवाना हो गया। पीछा कर रहे जासूसों को चकमा देकर मैं नेवा नदी के तट पर पहुँचा, एक नाव ली और नदी के दूसरी ओर चला गया। पीछा करने वालों से बचने का यह हमारा पसन्दीदा तरीक़ा था क्योंकि किसी के लिए तुरन्त दूसरी नाव ले पाना मुश्किल होता था। दूसरे किनारे पर, कई बार रास्ता और दिशा बदलकर, आख़िरकार मैं कॉन्फ़्रेंस की जगह पर पहुँच गया।

कॉन्फ़्रेंस के दूसरे सदस्यों को भी इसी तरह के पैंतरों से आना पड़ा था। मकान के छोटे-से कमरे में हमारे दूमा धड़े के सदस्य पेत्रोव्स्की, मुरानोव, समोइलोव, शागोव और मेरे अलावा जिलों के प्रतिनिधि : इवानोवेा-वोज़्नेज़ेंस्क से वोरोनिन, खारकोव से याकोवलेव, रीगा से लिन्दे और सेण्ट पीटर्सबर्ग से दो प्रतिनिधि आन्तीपोव और कोज़लोव शामिल थे। अगले दिन फ़िनलैण्ड से आकर कामेनेव शामिल होने वाले थे। अनेक प्रतिनिधि आ ही नहीं सके थे। काकेशस के प्रतिनिधि अलेक्सेइ जपारिद्ज़े को सेण्ट पीटर्सबर्ग में रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही पकड़ लिया गया था और दूसरों को उनकी जगहों से निकलने ही नहीं दिया गया।

पुलिस विभाग के अभिलेख जिन्हें अब जनता के लिए खुला कर दिया गया है, दिखाते हैं कि ख़ुफ़िया  पुलिस किस तरह हमारी कॉन्फ़्रेंस से निपटने की तैयारी कर रही थी। लम्बे समय से इस मौके़ का इन्तज़ार कर रही ज़ार की सरकार ने तय कर लिया था कि यह बोल्शेविक प्रतिनिधियों को रँगे हाथों पकड़ने का सही मौक़ा था। कॉन्फ़्रेंस की जानकारी एजेण्ट “पेलागेया” द्वारा दी गयी। दरअसल यह तोड़फोड़ में माहिर ख़ुफ़िया  एजेण्ट रोमानोव का छद्म नाम था, जो मास्को पार्टी संगठन का सदस्य बना हुआ था। रोमानोव मास्को से प्रतिनिधि के रूप में कॉन्फ़्रेंस में हिस्सा लेने वाला था, मगर जब कॉन्फ़्रेंस पर छापा मारने का फै़सला हुआ, तो ख़ुफ़िया  पुलिस ने उसे दूर रहने का आदेश दिया। पुलिस विभाग ने प्रभाव से मास्को शाखा को यह निर्देश भेजा कि “कॉन्फ़्रेंस में हमारे एजेण्टों को मौजूद नहीं रहना चाहिए, मगर उन्हें प्रतिनिधियों के नज़दीकी सम्पर्क में रहना चाहिए ताकि वे हमें कॉन्फ़्रेंस के समय और जगह की जानकारी दे सकें।” साथ ही साथ मास्को की ख़ुफ़िया  पुलिस ने अपने एजेण्टों से कहा कि वे इन जानकारियों की टोह में लग जायें और कोई ख़बर मिलते ही तुरन्त ख़ुफ़िया  विभाग और फ़िनलैण्ड के सशस्त्र बल को सूचित करें ताकि वे कॉन्फ़्रेंस को कुचलने की व्यवस्था कर सकें।”

ख़ुफ़िया  पुलिस ने छापे के लिए कैसे तैयारी की

यह मानकर कि कॉन्फ़्रेंस फ़िनलैंड के मुस्तम्याकी में होगी, इस पर छापा मारने और इसमें भाग लेने वालों को पकड़ने का काम फ़िनिश सशस्त्र बल को सौंपा गया था। पुलिस विभाग ने तैंतीस शहरों के पुलिस विभागों को स्थानीय संगठनों के प्रतिनिधियों पर कड़ाई से नज़र रखने का निर्देश देते हुए कोड में एक सर्कुलर टेलीग्राम भेजा था : “प्रतिनिधियों को ढूँढ़ने के लिए हर तरह के ज़रूरी कदम उठायें, उन पर नज़र रखें और उनके वहाँ से रवाना होने की ख़बर हेल्सिंगफोर्स में कर्नल येरियोमिन और विभाग को दें।” सेण्ट पीटर्सबर्ग के सभी रेलवे स्टेशनों पर जासूसों की बाढ़ आ गयी और ख़ुफ़िया  पुलिस की एक खास टुकड़ी को फ़िनलैंड भेजा गया। फ़िनलैण्ड की सीमा पर बेलूस्तरोव में, धड़े के सभी सदस्यों को देखकर पहचानने वाले जासूसों की तैनाती की गयी।

पार्टी में घुसे हुए ख़ुफ़िया  एजेण्ट रोमानोव ने पुलिस को कॉन्फ़्रेंस की तारीख़ के बारे में बताया मगर जगह की जानकारी एक दूसरे एजेण्ट शुर्कानोव ने पुलिस को दी। शुर्कानोव उस समय सेण्ट पीटर्सबर्ग कमेटी के लिए काम कर कहा था। वह उस मीटिंग में मौजूद था, जब जगह के बारे में फै़सला लिया जा रहा था और उसने तुरन्त अपने आकाओं को इसकी ख़बर कर दी। परिणामस्वरूप पुलिस को उसकी ज़रूरत की सारी जानकारी मिल गयी।

छापे की कार्रवाई

4 नवम्बर को शाम के 5 बजे, कॉन्फ़्रेंस के तीसरे दिन, गाव्रीलोव के दरवाज़े पर कान फाड़ देने वाली ज़ोरदार टक्कर की आवाज़ सुनायी दी। कुछ ही सेकण्ड में पुलिस और सशस्त्र बलों ने दरवाज़ा तोड़कर हमारे कमरे पर हल्ला बोल दिया। छापे की अगुवाई कर रहे पुलिस अफ़सर ने अपना रिवॉल्वर निकाला और चिल्लाया: “हाथ ऊपर”।

हमारे विरोध करने पर अफ़सर ने कहा कि उसके पास तलाशी लेने का आदेश है, साथ ही एक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया, जो उसे स्टेट मार्शल लॉ की धारा 23 के आधार पर मकान की तलाशी लेने और उसमें मौजूद सभी लोगों को गिरफ़्तार करने का अधिकार देता था। सबसे पहले श्री गाव्रीलोव समेत उन सभी लोगों की तलाशी ली गयी जो सांसद नहीं थे। मगर जब पुलिस ने दूमा धड़े के सदस्यों की तलाशी लेने की कोशिश की, तो हमने ज़ोरदार विरोध जताया और अफ़सर से कहा कि हम आपको तलाशी लेने या हमें गिरफ़्तार करने नहीं देंगे। दूमा के सदस्य के रूप में हमें संसद की सुरक्षा प्राप्त है। दूमा की इजाज़त के बिना किसी को भी हमारी तलाशी लेने या हमें हिरासत में लेने का अधिकार नहीं है। पुलिस गै़रकानूनी तरीके से काम कर रही है और इसके लिए वे ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे।

हमारा विरोध इतना तगड़ा था कि इसका असर देखने को मिला। अफ़सर हिचकिचा गया और आगे के निर्देशों के लिए टेलीफ़ोन करने चला गया। जब हममें से कुछ पुलिस से बहस कर रहे थे, उसी दौरान अन्य लोग हमारे पास मौजूद अनेक दस्तावेज़ों को नष्ट करने में सफल रहे। पहले हमने कॉन्फ़्रेंस से सम्बन्धित छोटे से छोटे सभी दस्तावेज नष्ट किये ताकि पुलिस के हाथों ऐसा एक भी काग़ज़ ना लगे, जिससे गाव्रीलोव के घर पर इकट्ठा होने की असल वजह की पुष्टि होती हो। हम पार्टी के पतों और निर्देशों वाले बहुत से काग़ज़ों को भी हटाने में सफल हुए, मगर हमें सभी काग़ज़ों को नष्ट करने का समय नहीं मिला।

पुलिस अफ़सर हमारे विरोध पर कोई ध्यान ना देने के निर्देशों के साथ वापस आया और उसके साथ एक उच्च अधिकारी भी आया, जिसके आदेश पर पुलिस हम पर झपट पड़ी। हम सभी को कुछ पुलिसवालों ने पकड़ लिया और हमारे ज़ोरदार विरोध के बावजूद हमारी तलाशी ली गयी। हमसे तमाम चीज़ें ले ली गयीं—सभी साहित्य, नोटबुक और यहाँ तक की हमारी घड़ियाँ भी।   

पेत्रोव्स्की के पास से उन्हें वांडेरवेल्ड को जवाब की एक प्रति, थीसिस ऑन वॉर की प्रति, ‘सोत्सियल देमोक्रेत’ पत्रिका का वह अंक जिसमें केन्द्रीय कमेटी का घोषणापत्र छपा था और पार्टी के संविधान और कार्यक्रम सहित विदेशों में छपी कई पुस्तिकाएँ मिलीं। मेरे पास से पुलिस ने साहित्य का एक संग्रह, विद्यार्थियों के नाम घोषणा की एक प्रति और एक दूसरे नाम का पासपोर्ट ज़ब्त किया। यह उन पासपोर्टों में से एक था, जिनका इस्तेमाल हमारे ग़ैरकानूनी कामों में किया जाता था। समोइलोव के पास से उन्होंने अख़बार की एक कॉपी, कुछ पर्चे और वे नोट्स बरामद किये जिन पर उसकी रिपोर्ट आधारित थी। शागोव के पास कोई दस्तावेज़ नहीं मिला।

हमें सबसे अधिक जोख़िम में डालने वाली पुलिस की खोज थी मुरानोव की नोटबुक, जिसे उन्होंने अगले दिन शौचालय से ढूँढ़ निकाला, जहाँ मुरानोव ने इसे नष्ट करने की कोशिश की थी। इसमें मुरानोव ने बहुत ही सावधानीपूर्वक सटीकता के साथ यूराल में किये गये अपने सभी कार्यों, स्थानीय संगठन सम्बन्धी जानकारी, पार्टी सदस्यों के छद्म नाम, मीटिंगों के फ़ैसले, ख़ास पते इत्यादि के विवरण लिखे थे।

तलाशी के बाद, संसद सदस्यों को छोड़कर कॉन्फ़्रेंस के सभी भागीदारों को जेल ले जाया गया। अफ़सर ने फिर से अपने वरिष्ठ को टेलीफ़ोन करके पूछा कि दूमा के सदस्यों के साथ क्या करना चाहिए, और फिर उसने हमसे कहा कि हम आज़ाद हैं। हमारी रिहाई पर उसने दस्तावेज़ों को छोड़कर हमारे सांसद कार्ड सहित हमारी सभी चीज़ें हमें वापस लौटा दीं।

पुलिस को आये बारह घंटे बीत गये और जब हम घर से निकले तो सुबह हो चुकी थी। आस-पास का पूरा क्षेत्र, जो हमेशा वीरान रहता था, कई तरह के पुलिसवालों से भरा हुआ था। जासूस नज़दीकी ट्राम स्टॉप तक हमारे साथ-साथ आये और उसी ट्राम पर सवार हो गये।

तलाशी लेने के तरीक़े और उसके बाद पुलिस के व्यवहार से हम समझ गये कि सरकार मज़दूरों के नुमाइन्दों को संसद द्वारा दी गयी सुरक्षा का बिल्कुल सम्मान नहीं करती है और हम किसी भी समय पुलिस के एक और छापे की उम्मीद कर सकते हैं। इसीलिए हमने मज़दूर-वर्ग के क्षेत्रों में रात की घटना की ख़बर का प्रचार करने का क़दम उठाया और उसके बाद अपनी रिहाइश की जगहों की ‘’सफ़ाई’’ और ‘’छँटाई’’ के काम में लग गये।

गुप्त पार्टी दस्तावेज़ हमारे घरों पर रखे गये थे, जो अब तक तुलनात्मक रूप से सबसे सुरक्षित जगहें मानी जाती थीं। हम वहाँ पार्टी निर्देशों की प्रतियाँ और वे पते रखते थे, जहाँ साहित्य भेजना होता था। पत्र-व्यवहार, रिपोर्टें तथा नामों की सूचियाँ इत्यादि भी। हमने लगभग सभी शहरों में सम्पर्क स्थापित कर रखे थे और अगर ये दस्तावेज़ पुलिस के हाथ लग जाते तो हज़ारों पार्टी सदस्यों को जेल भेज दिया जा सकता था या फिर निर्वासित कर दिया जा सकता था और पूरा का पूरा पार्टी संगठन बर्बाद हो जाता।

ये सभी कागज़ात फ़ौरन इकट्ठा करके जला दिये गये, ताकि पुलिस को ढूँढ़ने पर केवल मुट्ठीभर राख मिले। हमारे पास कुछ हिसाब-किताब की कापियाँ और रजिस्टर भी थे। मैंने बहुत से पन्ने फाड़ दिये और सबसे ज्यादा जोखिम वाले इन्दराजों को नष्ट कर दिया।

छापे के अगले दिन, 5 नवम्बर को इन नये हालात पर चर्चा करने के लिए मेरे मकान में धड़े की मीटिंग हुई। हमने पहला फै़सला यह लिया कि इस ख़बर को जनता के बीच जितना हो सके, फैलाया जाये और दूसरा यह कि जन-प्रतिनिधि होने के नाते पुलिस द्वारा हमारे सुरक्षा अधिकारों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ हम दूमा अध्यक्ष से अपील करें। हालाँकि हमें इस बात का अहसास था कि ब्लैक हण्ड्रेड के प्रभाव वाली दूमा से सुरक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसीलिए हमने तय किया कि संसदीय दायरों के भीतर जितना हो सके शोर मचाया जाये ताकि लोगों का ध्यान हमारे मामले की ओर आकर्षित हो। अंत में रोज़्यांको इस मामले में कुछ करने के लिए बाध्य हुआ। पुलिस द्वारा जन-प्रतिनिधियों की तलाशी और हिरासत हमारे संसदीय विषेशाधिकारों का उल्लंघन था और, गरिमा बचाने के लिए, अध्यक्ष को एक तरह से विरोध जताना ही पड़ा।

उल्लेखनीय था कि भले ही दूमा के बहुसंख्यक सदस्य दूमा में ‘’वाम’’ सदस्यों पर बुरी तरह हमला करते थे, मगर अपने विशेषाधिकारों के उल्लंघन को लेकर वे बहुत चौकन्ना रहते थे। यह अलग बात है कि उनका विरोध सरकार के साथ छोटे-मोटे झगड़े से आगे नहीं जाता था और सरकार की ओर से ज़रा-सी धमकी मिलते ही वे शान्त पड़ जाते थे।

अनुवाद : अभिषेक

 

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2019


 

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