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पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम‘ के कुछ हिस्सों की इस श्रृंखला में दसवीं कड़ी प्रस्तुत है।…

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम के कुछ हिस्सों की इस श्रृंखला में आठवीं कड़ी प्रस्तुत है।

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-8)

युद्ध की घोषणा के तुरन्त बाद, दूसरे इण्टरनेशनल के नेताओं ने इतिहास की सबसे बड़ी ग़द्दारियों में से एक को अंजाम दिया और अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के झण्डे को धूल-धूसरित कर दिया। राष्ट्रवाद की लहर में बहते हुए, समाजवादी पार्टियों के नेता अपने देशों की सरकारों के पीछे चल पड़े और अपने-अपने पूँजीपति वर्ग के हाथों का खिलौना बन गये। क्रान्ति से ग़द्दारी करके इन नेताओं ने यह सिद्धान्त पेश किया युद्ध छिड़ जाने के बाद अपने शासक वर्ग का साथ देना ज़रूरी है और पूँजीवादी अख़बारों के सुर में सुर मिलाते हुए ‘’दुश्मन’’ के विरुद्ध लड़ने के लिए अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में जुट गये।

मज़दूर आन्दोलन में मज़दूर अख़बार की भूमिका की एक शानदार मिसाल (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-7)

प्राव्दा ने युद्ध से पहले क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और, इसकी स्थापना के साथ ही, यह हमारे पार्टी कार्य के संचालन का प्रमुख माध्यम था। छपाई तथा वितरण से सम्बन्धित सम्पादक व कार्यकर्ता जनता को संगठित करने के काम में सीधे तौर पर जुड़ चुके थे। चाहे जितनी भी मुश्किलें आ जायें, प्रत्येक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता उनका बोल्शेविक अख़बार हर रोज़ पाना और पढ़ना अपनी जि़म्मेदारी समझता था। प्रत्येक कॉपी हाथो-हाथ बाँटी जाती और तमाम मज़दूरों द्वारा पढ़ी जाती थी। इस अख़बार ने उनकी वर्ग-चेतना को अभिव्यक्ति प्रदान की, उन्हें शिक्षित और संगठित किया।

पुतीलोव कारख़ाने के मज़दूरों पर गोलीबारी और उसके विरुद्ध संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-6)

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में छठी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़ें सीखी जा सकती हैं।

टेक्सटाइल और तेल मज़दूरों का शानदार संघर्ष और बोल्शेविकों का काम (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-5)

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में पाँचवी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं।

ज़हर का शिकार बनती स्त्री मज़दूरों के सवाल पर संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-4)

मज़दूरों का गुस्सा बढ़ गया और अगले दिन लगभग 120,000 मज़दूरों ने हड़ताल आन्दोलन में भाग लिया। पार्टी प्रकोष्ठ ने सभी फ़ैक्टरियों में शुरुआती आन्दोलन जारी रखे और पुलिस ने किसी भी तरह की कार्रवाई को रोकने के प्रयास किये। मज़दूरों के इलाक़ों में सघन तलाशियाँ ली गयीं और बहुत सारे मज़दूर गिरफ़्तार किये गये। गुप्त पुलिस ने मज़दूर संगठनों और बीमा समितियों के नेताओं पर विशेष ध्यान दिया, जिनमें से अधिकांश पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे। सभी नेताओं को ढूँढ़ निकालने की इस कोशिश के बावजूद आन्दोलन ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि पुलिस उसका मुक़ाबला करने में सक्षम नहीं रह गयी।