पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम के कुछ हिस्सों की इस श्रृंखला में नवीं कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं। बोल्शेविकों ने अपनी बात लोगों तक पहुँचाने और पूँजीवादी लोकतन्त्र की असलियत का भण्डाफोड़ करने के लिए संसद के मंच का किस तरह से इस्तेमाल किया इसे लेखक ने अपने अनुभवों के ज़रिए बख़ूबी दिखाया है। इस बार हम जो अंश प्रस्तुत कर रहे हैं उसमें हम देख सकते हैं क‍ि प्रथम विश्व युद्ध के पहले जब तमाम देशों के पूँजीपति दुनिया की लूट में हिस्‍से की बन्दरबाँट के लिए युद्ध करने पर उतावले हो रहे थे और पूँजीवादी सरकारें अपने देशों में राष्‍ट्रवादी जुनून और युद्धोन्‍माद भड़का रही थीं ताकि अलग-अलग देशों के मज़दूरों को एक-दूसरे की जान का दुश्‍मन बनाया जा सके, तब बोल्‍शेविक पार्टी ने दृढ़ता से युद्ध-विरोधी रुख अख़्तियार किया था और निरंकुश ज़ारशाही सरकार के दमन का सामना करते हुए क्रान्ति की तैयारियों को आगे बढ़ाया था। इस प्रसंग को पढ़ते हुए आज हमारे देश पर ध्यान चले जाना स्वाभाविक है जब सत्ता में बैठे फ़ासिस्‍ट युद्ध का पागलपन पूरे देश में फैला देना चाहते हैं ताकि मेहनकतश लोगांे की असली समस्‍याओं से ध्यान हटाया जा सके। यह पूरी पुस्तक आज भी मज़दूर आन्दोलन में काम कर रहे लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसे पढ़ते हुए पाठकों को लगेगा मानो इसमें जिन स्थितियों का वर्णन किया गया है वे हज़ारों मील दूर रूस में नहीं बल्कि हमारे आसपास की ही हैं। ‘मज़दूर बिगुल’ के लिए इस श्रृंखला को सत्यम ने तैयार किया है।

(नवीं किश्त)

दूमा धड़े की गिरफ़्तारी

धड़े ने पेत्रोवस्की और मुझे रोज़्यांको के साथ समझौता वार्ता करने की ज़िम्मेदारी दी। हमने अपनी ग़ैर-क़ानूनी नज़रबन्दी और तलाशी से सम्बन्धित सभी तथ्यों को उसके सामने रखा और उससे दोषी व्यक्तियों पर मुक़दमा चलाने के लिए उचित क़दम उठाने की माँग की।

हमने उसे हम पाँचों के दस्तख़त वाला लिखित विरोध-पत्र सौंपा। उसने वादा किया कि उससे जो कुछ भी बन पड़ेगा वह करेगा, मगर उसने असल में जो किया और उसके जो नतीजे सामने आये, उन्हें आप आगे की चर्चा में देखेंगे।
जब हम दूमा से बाहर आये तो हमने पाया कि जासूस सुबह की तुलना में ज़्यादा संख्या में थे और खुल्लमखुल्ला घूम रहे थे – वे हर मोड़ और नुक्कड़ पर दिख रहे थे और उन्होंने हमें एक बंद घेरे में चारों तरफ़ से घेर लिया। हम पर बहुत क़रीब से नज़र रखने के बावजूद, इससे पहले कभी भी पुलिस-एजेण्टों का बर्ताव इतना गुस्ताख़ीभरा नहीं था। वे ख़ून का स्वाद चख चुके जंगली जानवरों की तरह उस पल के इन्तज़ार में हमारे चारों ओरघेरा बनाते रहे, जब उन्हें अपने शिकार पर झपटने को कहा जायेगा। गुप्त पुलिस दो सालों से उस पल का इन्तज़ार कर रही थी और वे अब अपनी जीत की ख़ुशियाँ मना रहे थे। जीत की यह ख़ुशी हर जासूस, हर पुलिस एजेण्ट के चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।

गिरफ़्तारी

हमारे चारों ओर पुलिस का घेरा धीरे-धीरे और तंग होता जा रहा था और जल्द ही हमें निगल जाने वाला था।
पुलिस इस तरह हम पर निगरानी रख रही थी, जैसेकि उन्हें डर हो कि आख़िरी घड़ी में हम कहीं भाग न जायें। हालाँकि निगरानी की वजह से हम मज़दूर संगठनों से सम्पर्क या विरोध प्रदर्शन संगठित नहीं कर पा रहे थे। हम बस हमारे दस्तावेज़ों और काग़ज़ातों की जाँच और पुनःजाँच ही कर सकते थे, ताकि पुलिस के चंगुल में फँसाने वाला कोई भी दस्तावेज़ उनके हाथ न लग जाये।
कई दिनों की चिंता और परेशानी के बाद मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था और बस आँख लगी ही थी कि क़रीब आधी रात में घंटी बजी और पुलिस मेरे दरवाज़े पर प्रकट हो गयी। मेरे बिस्तर के पास खड़े एक पुलिस अफ़सर ने कहा “मिस्टर बादायेव, मेरे पास आपकी गिरफ़्तारी का वारण्ट है।”
लम्बे समय से जिस घड़ी की उम्मीद थी, वह आ गयी। मैंने कपड़े पहने, कुछ ज़रूरी चीज़ें लीं और अपने परिवार को अलविदा कह दिया। पूरा घर पुलिस के लोगों से भरा हुआ था। मैं नीचे गया और पुलिस के साथ बाहर अँधेरे रास्ते पर चल पड़ा, जो मुझे श्पालेरनाया स्ट्रीट पर स्थित नज़रबन्दी वाली जेल में ले गयी। मेरी तलाशी ग़ौर से ली गयी और मुझे एकान्त कारावास में रखा गया। वहाँ मुझे पता चला कि धड़े के दूसरे सभी सदस्यों को भी उसी रात, 5-6 नवम्बर को गिरफ़्तार कर लिया गया था।

आख़िरकार ज़ार की सरकार ने हमारे बोल्शेविक धड़े को कुचल दिया। क़ानूनी कार्रवाई से बोल्शेविक नुमाइन्दों की संसदीय सुरक्षा का सवाल, मज़दूर वर्ग पर होने वाले दूसरे हमलों की तरह ही, शक्ति संतुलन से तय हुआ था, जिसका पलड़ा उस समय सरकार की तरफ़ झुका हुआ लग रहा था।

मकलाकोव निकोलस द्वितीय को रिपोर्ट करता है

आंतरिक मामलों का मंत्री, मकलाकोव ज़ार के निरंकुश शासन के सबसे अधिक प्रतिक्रियावादी समर्थकों में से एक था। उसने ओज़ियोर्की में पुलिस की करतूतों के नतीजों के बारे में फ़ौरन निकोलस द्वितीय को रिपोर्ट कर डाला। 5 नवम्बर को “सबसे नम्र” रिपोर्ट हमारी गिरफ़्तारी के पहले लिखी गयी और ज़ाहिरा तौर पर आवश्यक अधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से लिखी गयी थी। इस रिपोर्ट में मकलाकोव ने लिखा :

रूस की सामाजिक-जनवादी मज़दूर पार्टी रूसी साम्राज्य में मौजूदा शासन को उखाड़ फेंकने और एक गणराज्य की स्थापना करने के मक़सद से मौजूद है। युद्ध की शुरूआत से ही यह इसकी जल्द से जल्द समाप्ति के लिए प्रचार कर रही है। और, इसकी ज़रूरत के तौर पर ये कारण बता रही है कि जीत होने पर निरंकुश शासन के मज़बूत होने का ख़तरा होगा और इसके परिणामस्वरूप पार्टी के कार्यभारों को व्यवहार में उतारने का काम टल जायेगा।

चौथी स्टेट दूमा के सदस्य, जो सामाजिक-जनवादी धड़े से सम्बन्ध रखते हैं, इन विचारों के प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और यह धड़ा पार्टी की आपराधिक गतिविधियों का निर्देशन और मार्गदर्शन करता है। इन सामाजिक-जनवादी नुमाइन्दों के विध्वंसक प्रभाव का सबसे स्पष्ट उदाहरण वह विशाल हड़ताल और सड़कों पर छायी अव्यवस्था थी, जिसे उन्होंने पिछले साल अन्जाम दिया था। दुर्भाग्यवश उनके काम का सबूत पेश करना नामुमकिन रहा है जिससे कि उन पर मुक़दमा चलाया जा सके।

आख़िरकार, क्रान्तिकारी संगठनों पर लगातार नज़र रखने वाली जासूसी सेवा ने किसी तरह से जानकारी प्राप्त की है कि सामाजिक-जनवादी नुमाइन्दों ने युद्ध विरोधी गतिविधि और रूस में राजशाही शासन के तख़्तापलट का कार्यक्रम तैयार करने के मक़सद से एक सम्मेलन करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें प्रमुख सामाजिक-जनवादियों भाग लेंगे।

4 नवम्बर को, राजधानी से बारह वर्स्ट (1 वर्स्ट = 1.0668 किलोमीटर) की दूरी पर सेण्ट पीटर्सबर्ग ज़िले में एक निजी मकान में बैठक करते हुए चौथी स्टेट दूमा के सामाजिक-जनवादी धड़े के निम्नलिखित सदस्यों – पेत्रोवस्की, बादायेव, मुरानोव, शागोव, सामोयलोव – और साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों से आये हुए पार्टी के छह अन्य प्रतिनिधियों को रंगे हाथों पकड़ लिया। जब पुलिस ने उनसे बैठक के मक़सद के बारे में पूछताछ की, तो उन्होंने जवाब दिया कि वे यह उनके मेज़बानों की शादी की आठवीं सालगिरह का जश्न मनाने के लिए कर रहे थे। मगर महिला मेज़बान के पति के वहाँ पहुँचने में कुछ समय देर हो जाने के कारण यह बात ग़लत साबित हो गयी।

भागीदारों की तलाशी से निम्नलिखित सामग्री मिली : एक विदेशी क्रान्तिकारी अख़बार, सोशल-डेमोक्रेट की कई प्रतियां, युद्ध के सवालों से सम्बन्धित बैठक का एजेण्डा, बत्तीस क्रान्तिकारी पर्चे, पार्टी के नोट और पत्राचार; और इसके अलावा, स्टेट दूमा के एक सदस्य, बादायेव के पास से बरामद हुई छात्रों को क्रान्तिकारी आन्दोलन में भाग लेने का आह्वान करती हुई आपराधिक अपील की पाण्डुलिपि, और एक अलग नाम से पासपोर्ट।

पूरे विवरण की रिपोर्ट तुरन्त न्यायिक अधिकारियों को कर दी गयी, जिन्होंने स्टेट दूमा के सदस्यों समेत इस आपराधिक बैठक में भाग लेने वाले सभी लोगों पर अभियोग चलाने के लिए प्रारम्भिक जाँच गठित कर दी है।
मैं अपने राजशाही महामहिम के समक्ष यह रिपोर्ट प्रस्तुत करना अपना विनम्र कर्तव्य मानता हूँ।
– आंतरिक मामलों का मंत्री, मकलाकोव।

यह स्वीकार करना ही होगा कि मकलाकोव ने अपनी बहुत कुशल गुप्त पुलिस की सहायता से बोल्शेविक धड़े की गतिविधि का काफ़ी हद तक सही वर्णन किया। उसने झुँझलाते हुए रिपोर्ट किया है कि धड़े ने एक लम्बे समय तक सख़्त गोपनीयता बनाये रखी और किसी भी ऐसे तथ्य का पता नहीं चलने दिया जिसके आधार पर पुलिस कार्रवाई कर सकती, और फिर वह उल्लास के साथ बताता है कि कैसे आख़िरकार नुमाइन्दे पकड़े गये थे।

ज़ारशाही सरकार ने झूठा मुक़दमा चलाया

ज़ार निकोलस के आशीर्वाद से सरकार ने मुक़दमे की शुरुआत कर दी, जो कम से कम “कठिन परिश्रम” की सज़ा सुनाने वाला था। युद्ध के शुरुआती महीनों के दौरान देश में फैले और लगातार बढ़ते हुए अंधराष्ट्रीयतावादी उन्माद ने जनमत की तैयारी को और अधिक आसान बना दिया। Pravitelstvenny Viestnik (सरकारी संदेशवाहक) अख़बार में छपी पहली सार्वजनिक घोषणा में इस तरह की बातें कही गयी जिससे लोगों के बीच यह धारणा बनायी जा सके कि “रूस की सैन्य शक्ति” के ख़िलाफ़ एक ज़बर्दस्त साज़िश का पता लगाया जा चुका है। घोषणा में कहा गया था कि :

युद्ध की शुरुआत से ही पितृभूमि की अखण्डता को बनाये रखने की आवश्यकता के प्रति जागरूक रूसी लोगों ने युद्धकाल की गतिविधियों में सरकार का उत्साह के साथ समर्थन किया है। हालाँकि, सामाजिक-जनवादी संगठनों के सदस्यों ने एक बिल्कुल अलग रवैया अपनाया और भूमिगत गतिविधि और प्रचार द्वारा रूस की सैन्य शक्ति को कमज़ोर करने के प्रयास किये। अक्टूबर में सरकार को पता चला कि वर्तमान शासन के ख़िलाफ़ निर्देशित उपायों और अपने राष्ट्रद्रोही समाजवादी कार्यों को अन्जाम देने के बारे में चर्चा करने के लिए सामाजिक-जनवादी संगठनों के प्रतिनिधियों का एक गुप्त सम्मेलन आयोजित किया जाना था।

इसके बाद ओज़ियोर्की में तलाशी का विवरण दिया गया था : “चूंकि बैठक का मक़सद राष्ट्रद्रोही होने के बारे में कोई संदेह नहीं था, इसलिए वहाँ पकड़े गये लोगों को हिरासत में ले लिया गया, मगर स्टेट दूमा के सदस्यों को रिहा कर दिया गया।”
इस तथ्य के बावजूद कि हमारे “पाँच” पहले ही एकान्त कारावास में क़ैद कर दिये गये थे, सरकारी संदेशवाहक ने सावधानी से अपने पाठकों को सूचित किया कि जाँच से जुड़े मजिस्ट्रेटों ने फ़ैसला किया है कि सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी लोगों को “हिरासत में लिया जाये”।
सँभलकर की गयी यह घोषणा यह टटोलने के लिए थी कि जनता की प्रतिक्रिया क्या होगी। इशारा कर दिया गया था।
प्रतिक्रियावादी प्रेस ने इसका निर्देश पाकर तुरन्त हमारे धड़े पर उग्र हमला शुरू कर दिया। रसकोय ज़नामया की भाषा नमूना थी : “हमें अपने शत्रुओं के साथ औपचारिकता से पेश नहीं आना चाहिए; देश के भीतर शान्ति बहाल करने के लिए फाँसी ही एकमात्र साधन है।” इस अपील को दूसरी सभी रक्त-पिपासु प्रतिक्रियावादी प्रेसों का समर्थन प्राप्त था; उदारवादी अख़बार चतुराई के साथ बिल्कुल चुप्पी साधे रहे, और जहाँ तक मज़दूरों के अख़बारों की बात है तो उस समय उनका कोई अस्तित्व ही नहीं था।

ज़मीन पूरी तरह तैयार कर लिए जाने के बाद, सरकार ने 15 नवम्बर को धड़े की गिरफ़्तारी की घोषणा कर दी। दूसरी सरकारी घोषणा में कहा गया :

पेत्रोग्राद के पास आयोजित सम्मेलन से सम्बन्धित प्रारम्भिक जाँच के दौरान, जिसमें दूमा के कुछ सदस्यों और रूस के विभिन्न भागों से आये लोगों ने भाग लिया था, यह पाया गया कि सम्मेलन में एक प्रस्ताव पर चर्चा की जा रही थी, जिसमें कहा गया था कि “ज़ार की निरंकुशता और उसकी सेना की हार सबसे कम बुरी बात होगी” और जिसमें यह नारा दिया गया “सैनिकों के बीच जितना व्यापक रूप से सम्भव हो सके, समाजवादी क्रान्ति के लिए प्रचार जारी रखना है” और “सेना में ग़ैर-क़ानूनी गुट संगठित करने हैं”। सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।

प्रतिनिधियों की गिरफ़्तारी पर दूमा का रवैया

इसने ख़ुद दूमा पर क्या प्रभाव डाला? जैसाकि मैंने उल्लेख किया है, हमारी घोषणा प्राप्त करने के बाद रोज़्यांको ने वादा किया कि “उससे जो बन पड़ेगा, वह करेगा”। अन्य ग्रुपों से जुड़े कई नुमाइन्दों ने विरोध करने की ज़रूरत को सही समझा, मगर उनका विरोध पूरी तरह से कपटपूर्ण था। असल में, दूमा का बहुमत पूरी तरह से सरकार से सहमत था। उनके विरोध करने के निर्णय के पीछे उनका यह डर काम कर रहा था कि कहीं इस नये सरकारी उकसावे का जवाब मज़दूर एक और क्रान्तिकारी विस्फोट के रूप में न दे दें।

चूंकि इस समय दूमा नहीं चल रही थी, इसलिए विरोध सरकार से दरियाफ़्त का आम रूप नहीं ले सका। इसलिए, च्खीड्ज़े की पहल पर, जिसका साथ बाद में ट्रूदोविक्स के केरेंस्की, प्रोग्रेसिव्स के ईफ्रेमोव और कैडेट्स के मिल्यूंकोव ने भी दिया, बीमार और घायलों की सहायता के लिए दूमा समिति की नियमित बैठक में सवाल उठाया गया, जो रोज़ाना राष्ट्रपति के कमरे में होती थी।

6 नवम्बर की सुबह की बात है, दूमा को अभी तक धड़े की गिरफ़्तारी की जानकारी नहीं थी, और इसलिए समिति ने केवल ओज़ियोर्की में हमारी तलाशी और नज़रबन्दी के सवाल पर चर्चा की। समिति में भाग लेने वाले नुमाइन्दों ने देश में क्रान्तिकारी विस्फोट के स्पष्ट भय का ख़ुलासा किया। अक्टूबरवादियों का रवैया वैसा ही था, जैसीकि उम्मीद थी। गोदनियेव, ओपोचिनीन और लूत्ज़ ने पुलिस की कार्रवाई के ख़िलाफ़ विरोध की आवश्यकता की वकालत की और घोषणा की कि मज़दूरों के धड़े पर हमले से जनता के बीच अशान्ति फैलेगी और सेना की पिछली क़तारों में अव्यवस्था पैदा होगी। उन्होंने इन विशुद्ध देशभक्तिपूर्ण कारणों से सरकार की उकसावे वाली कार्रवाई की निंदा की।

चर्चा का परिणाम यह हुआ कि रोज़्यांको ने मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष गोरमीकिन को विरोध पत्र भेजा। पत्र में इस्तेमाल किये गये शब्दों से दूमा में बहुमत की अवस्थिति के झूठ की बू आ रही थी। हालाँकि उसने हमें गिरफ़्तार किये जाने के लगभग एक महीने बाद 30 नवम्बर को पत्र भेजा, रोज़्यांको ने हमारी गिरफ़्तारी के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा, और ख़ुद को ओज़ियोर्की की घटनाओं के विषय में हमारी घोषणा को ही उस तक पहुँचाने तक सीमित रखा।

गोरमीकिन को सम्बोधित पत्र में, रोज़्यांको ने दूमा के संविधान के अनुच्छेद 15 के उल्लंघन का उल्लेख करते हुए कहा : “अधिकारियों द्वारा इस तरह की कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है, इसलिए भी क्योंकि क़ानून की यह उपेक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से बरती गयी लापरवाही तथा ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार शान्तिपूर्ण आबादी के बीच असन्तोष के बीज बो रहा है। और, ऐसे समय में उत्तेजित कर रहा है, जब हम एक कठिन दौर से गुज़र रहे हैं, जबकि जनता पहले से ही विश्वयुद्ध की कठिन परिस्थितियों से आन्दोलित है।” लेकिन रोज़्यांको के निष्कर्ष क्या थे? क्या उसने माँग की थी कि हमारे धड़े पर अत्याचार करना बंद किया जाये? बिल्कुल नहीं। उसने निम्नलिखित शब्दों के साथ अपने पत्र का अंत किया : “मैं ख़ुद को उम्मीद दिलाता हूँ कि हमारे महामहिम भविष्य में पुलिस की ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों से स्टेट दूमा के सदस्यों की रक्षा करने के लिए आवश्यक क़दम उठायेंगे।” इस तरह पूरा विरोध हमारे बोल्शेविक धड़े की किसी भी सुरक्षा के बारे में एक शब्द भी कहे बिना, सिर्फ़ एक औपचारिक घोषणा था और एक अनुरोध था कि यह अपराध दोहराया नहीं जायेगा।*

* यह पत्र आंतरिक मामलों के मंत्री, मकलाकोव को उसके विचारार्थ भेजा गया था। पुलिस विभाग के काग़ज़ात के बीच संरक्षित किये गये इस पत्र पर मकलाकोव की टिप्पणियाँ हैं जिससे ज़ार के इस प्रथम पुलिसकर्मी का चरित्र सामने आ जाता है। रोज़्यांको के पत्र ने मकलाकोव को नाराज़ कर दिया; एक नोट “फ़ाइल” के बाद उसने लिखा : “मैं इस सुझाव को स्वीकार नहीं कर सकता कि स्टेट दूमा के पाँच सदस्यों को अपराधी क़रार देने के पीछे पुलिस की कार्रवाई ‘लापरवाही’ या ‘ग़ैर-ज़िम्मेदारी’ वाली है। यह दूमा के सभापति के लिए अप्रिय साबित हो सकता है, मगर तथ्य यही बतलाते हैं। यह ऐसी कार्रवाई नहीं है, जिसे ‘असहिष्णु’ कहा जाये, बल्कि यह तथ्य है कि राष्ट्र के ख़िलाफ़ गम्भीर अपराधों को ‘संसदीय प्रतिरक्षा’ की आड़ में अन्जाम दिया जा सकता है। रूसी राज्य की अखण्डता किसी भी संसदीय प्रतिरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है और पुलिस हमेशा उन दूमा सदस्यों की जाँच करेगी, जो क़ानून तोड़ने की कोशिश करते हैं। क्रान्ति के ख़िलाफ़ लड़ने वाले प्रशासनिक अधिकारी लोगों के बीच असन्तोष के बीज नहीं बो रहे हैं, बल्कि ऐसा वे लोग कर रहे हैं, जिनके पास इस तरह के नृशंस व्यवहार के सम्बन्ध में अधिकारियों की लापरवाही को लेकर चिल्लाने के अलावा कोई ढंग का काम नहीं है। अब समय आ गया है कि इन आदतों को त्याग दिया जाये। क्रोध के झूठे मनोभाव बहुत ज़्यादा सनकी और इस सन्दर्भ में अनुचित हैं। मैं फिर से पुलिस बल के उन सदस्यों को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने पता लगाया और दूमा के सदस्यों को गिरफ़्तार कर लिया।”

जब दूमा एक लम्बे अन्तराल के बाद जनवरी 1915 में फिर से शुरू हुई तो बहुमत ने हमारी गिरफ़्तारी के बारे में दरियाफ़्त करने की इजाज़त नहीं दी। चूँकि कैडेट्स ने इन्कार कर दिया, आवश्यक संख्या में दस्तख़त जुटाना असम्भव था। जब च्ख़ीद्ज़े और केरेंस्की ने बजट पर बहस के दौरान अपने भाषणों का बड़ा हिस्सा बोल्शेविक धड़े की नियति को समर्पित किया, दूमा के सभापति ने प्रेस को उन्हें छापने की अनुमति नहीं दी।

स्वाभाविक रूप से, ब्लैक हण्ड्रेड दूमा ने पूरी तरह से रोमानोव सरकार की कार्रवाई का समर्थन किया। हमारे धड़े की गिरफ़्तारी ने सभी क्रान्तिकारी संगठनों की पराजय को मुकम्मल किया और यह स्थिति स्टेट दूमा में प्रतिनिधित्व किये जाने वाले हितों की इच्छाओं से पूरी तरह मेल खाती थी। जब सरकार पुलिस और गुप्त सेवा कर्मियों को ईनाम बाँट रही थी, तो घरेलू मोर्चे के नायक, रूसी उदारवाद के फूल, ज़ार की सरकार के पैरों में नाक रगड़ रहे थे।

सेण्ट पीटर्सबर्ग कमेटी की घोषणा

लेकिन विरोधी ख़ेमे में क्या हुआ? कारख़ानों, कार्यस्थलों और खदानों में? बोल्शेविक नुमाइन्दों की गिरफ़्तारी की ख़बरों से जनता में उत्तेजना फैल गयी। हम देख चुके हैं कि अक्टूबरवादियों, सरकार के उन तुच्छ सहारों, तक ने इस तथ्य को समझ लिया था कि बोल्शेविक धड़े के विनाश से रूसी सर्वहारा पर निश्चित रूप से एक शक्तिशाली प्रभाव पड़ेगा। वे ग़लत नहीं थे; फ़रवरी क्रान्ति के समय तक क्रान्तिकारी आन्दोलन की मूल माँगों के साथ-साथ बोल्शेविक नुमाइन्दों की रिहाई की माँग भी आगे बढ़ायी जाने लगी। मगर गिरफ़्तारी के समय मज़दूर वर्ग के पास कोई व्यापक आन्दोलन खड़ा करने के लिए पर्याप्त शक्ति नहीं थी; युद्ध के आतंक ने देश की गर्दन दबोच रखी थी और सभी क्रान्तिकारी गतिविधियों का नतीजा कोर्ट-मार्शल द्वारा मृत्यु दण्ड या लम्बी अवधि क़ैद बामश्क्कत के रूप में सामने आ रहा था। धड़े की गिरफ़्तारी का मतलब था कि रूस में मुख्य पार्टी केन्द्र नष्ट कर दिया गया था। पार्टी कार्य के सभी धागे दूमा के “पाँच” प्रतिनिधियों पर आकर मिलते थे, जो अब टूट चुके थे।

गुप्त पुलिस ने जब नुमाइन्दों की गिरफ़्तारी के लिए तैयारी की तो उसने मज़दूरों द्वारा धड़े की रक्षा के लिए उठाये जाने वाले किसी भी कदम के खिलाफ बचाव के कई सारे उपाय कर रखे थे। जासूसी के काम को मज़दूर वर्ग के क्षेत्रों में दोगुना कर दिया गया और पार्टी के कई सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भी, इन सब कुछ के बावजूद, सेण्ट पीटर्सबर्ग समिति गिरफ़्तारी पर एक घोषणा जारी करने में कामयाब रही। 11 नवम्बर को हेक्टोग्राफ से छापकर वितरित की गयी घोषणा के द्वारा मज़दूरों से हड़ताल करने और विरोध सभाएँ करने का आह्वान किया गया :

साथियो! 5 नवम्बर की रात को, ज़ार की नीच सरकार ने रूसी सामाजिक-जनवादी मज़दूर धड़े के सदस्यों को जेल में डाल दिया। यह वही जल्लादों की सरकार थी जो पहले ही लोकतंत्र के सेनानियों के खून से हाथ लाल कर चुकी थी और, जिसने दूसरी दूमा के मज़दूरों के निर्वासित प्रतिनिधियों को यातनाएँ दीं और सर्वहारा के हज़ारों सपूतों को कै़द किया था।

निरंकुश सरकार ने 3 करोड़ मज़दूरों के दूमा प्रतिनिधियों के साथ शर्मनाक सनक भरा व्यवहार किया है। ज़ार और उसके लोगों की एकता के बारे में की जाने वाली बातों का झूठ और पाखण्ड अब उजागर हो चुका है। जनता के साथ किये जा रहे छल और भ्रष्टाचार अब और नहीं चल सकते…. ज़ार की सरकार अपने चरम पर पहुँच चुकी है…. मज़दूर वर्ग और लोकतंत्र की सभी ताक़तों के सामने अब संविधान सभा बुलाने के लिए, लोगों के वास्तविक प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष करने की ज़रूरत बिल्कुल सामने आ खड़ी हुई है।

युद्ध और मार्शल लॉ की स्थिति ने सरकार को सर्वहारा के हितों की बहादुरी से रक्षा करने वाले मज़दूरों के नुमाइन्दों पर हमले जारी रखने में सक्षम बना दिया है। सरकार बंदूकों और राइफ़लों की आवाज़ से क्रान्तिकारी आन्दोलन को ख़ून की नदियों में डुबा देने की कोशिश कर रही है, और मज़दूरों और किसानों को मरने के लिए युद्ध में धकेलते हुए यह उनके सपनों का भी क़त्ल कर देने के सपने देख रही है।
सभी स्लाव लोगों की मुक्ति के बारे में खोखली घोषणाएँ करते हुए ज़ार की सरकार मज़दूर वर्ग के सभी संगठनों को तोड़ रही है, मज़दूरों की प्रेस को नष्ट कर रही है और बेहतरीन सर्वहारा सेनानियों को कै़द कर रही है।

लेकिन यह मज़दूर वर्ग के दुश्मन के लिए काफी नहीं है। मज़दूरों के नुमाइन्दों के ख़िलाफ़ हमला करने का फै़सला इसलिए लिया गया क्योंकि वे सरकार की उत्पीड़न, हिंसा और लोहे की बेड़ियों वाली नीति के ख़िलाफ़ बहादुरी से लड़ रहे थे। ज़ारशाही लुटेरों ने मज़दूर वर्ग के चुने हुए प्रतिनिधियों से कहा: “तुम लोगों की जगह जेल में ही है”।

पूरे मज़दूर वर्ग को जेल में डाल दिया गया है। लुटेरों और शोषकों के एक गिरोह ने, तबाही लाने वालों के एक गिरोह ने रूस के पूरे मज़दूर वर्ग को तबाही की ओर धकेलने की जुर्रत की है। मज़दूर वर्ग के जीने और मरने की चुनौती है। मगर मार्शल लॉ के कठोर दमन से भी मज़दूरों को अपनी विरोध की आवाज़ बुलन्द करने से नहीं रोका जा सकेगा। “जल्लाद और हत्यारे मुर्दाबाद” का नारा रूस के लाखों मज़दूरों द्वारा लगाया जायेगा, जो अपने नुमाइन्दों की रक्षा के लिए तैयार हैं।

साथियो! रूस की सामाजिक-जनवादी मज़दूर पार्टी की सेण्ट पीटर्सबर्ग समिति सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूरों से ज़ार-ज़मीन्दार गिरोह की करतूतों के ख़िलाफ़ सभाएँ और एक दिन की हड़तालें करने का आह्वान करती है।
ज़ारशाही मुर्दाबाद! लोकतांत्रिक गणतंत्र ज़िन्दाबाद! रूस की सामाजिक-जनवादी मज़दूर पार्टी ज़िन्दाबाद! समाजवाद ज़िन्दाबाद!
11 नवम्बर, रूस की सामाजिक-जनवादी मज़दूर पार्टी की सेण्ट पीटर्सबर्ग समिति।
उसी समय, सेण्ट पीटर्सबर्ग के सामाजिक-जनवादी छात्र संगठन ने निम्नलिखित घोषणा जारी की :
रूसी निरंकुशता अपनी असलियत के मुताबिक राष्ट्र के ख़िलाफ़ अपना काम जारी रखे हुए है। इसका नया कारनामा, सामाजिक-जनवादी दूमा धड़े की गिरफ़्तारी, तख्तापलट से कम नहीं है। जनप्रतिनिधियों के नाम पर जारी मज़ाक का अन्त हो चुका है। स्वेच्छाचारियों ने अपना काम कर दिया है और वास्तविक नंगे तथ्य अपने बदसूरत, सनक भरे रूप में लोकतंत्र के सामने आ खड़े हुए हैं।

मज़दूरों की कार्रवाई

अपनी घोषणा जारी करने हुए, सेण्ट पीटर्सबर्ग समिति ने मज़दूरों द्वारा किसी भी व्यापक कार्रवाई की सम्भावना पर भरोसा नहीं किया था। इसका उद्देश्य मज़दूरों को इस नये सरकारी अपराध की जानकारी देना और घटनाओं को इस तरह से समझाना था जिससे कि सरकार और पूँजीवादी प्रेस द्वारा देशभक्ति के नाम पर जारी प्रचार का मुकाबला किया जा सके। यह बताते हुए कि धड़े की गिरफ़्तारी पूरे रूसी मज़दूर वर्ग को कैद में रख देने के बराबर थी, हमारी पार्टी ने ज़ारशाही सरकार की चुनौती का सामना करने के लिए जनता को तैयार किया।
लेकिन अपील का तत्काल प्रभाव हुआ। कई कारखानों में मज़दूरों ने विरोध में एक दिन के हड़ताल का आह्वान किया और दूसरे कारखानों में उनके हड़ताल को पूरी तरह तैयार पुलिस बलों के हस्तक्षेप द्वारा रोक दिया गया।

इसलिए जब “न्यू लेस्नर” कारख़ानों में मज़दूर हड़ताल की कार्रवाई के सवाल पर चर्चा करने के लिए सुबह इकट्ठा हुए, तो एक बड़ी पुलिस टुकड़ी जो कारख़ाने में पहले ही ले आयी गयी थी, मज़दूरों पर झपट पड़ी और कई गिरफ़्तारियाँ की। दूसरे कारखानों में भी हड़तालों को इसी तरीके से रोका गया।

जिन जगहों पर हड़तालें हुईं, वहाँ कठोर सज़ाएँ दी गयीं। जिन मज़दूरों को सबसे ख़तरनाक माना गया, उन्हें धर दबोचा गया और सेण्ट पीटर्सबर्ग के बाहर भेज दिया गया, जबकि दूसरों के लिए एक नयी सज़ा का ईजाद किया गया। जो मज़दूर रिजर्व में रखे गये थे, या जिनकी लामबन्दी सैन्य अधिकारियों के साथ समझौते के कारण देर से की जानी थी, उन्हें तुरन्त मोर्चे के सबसे आगे के स्थानों पर भेज दिया गया। पारवियेनेन कारख़ाने में हड़ताल पर गये 1,500 मज़दूरों में से दस को निर्वासित कर दिया गया और बीस से अधिक रिज़र्व में रखे मज़दूरों को युद्ध की खन्दकों में भेज दिया गया।

इन परिस्थितियों में हड़ताल अन्दोलन ज़्यादा आगे नहीं बढ़ सकता था, लेकिन इन हड़तालों ने भी यह दिखा दिया कि मज़दूर वर्ग के आन्दोलन को पूरी तरह से दबाया नहीं जा सका था और देर-सबेर यह अपनी पूरी ताक़त के साथ फिर उभर आयेगा।

दूमा धड़े की गिरफ़्तारी पर लेनिन

हमारी पार्टी के काम के लिए ज़मीन तैयार थी लेकिन पार्टी के लिए काम कर पाना बहुत ही मुश्किल था। दूमा धड़े की गिरफ़्तारी ने हमारे संगठन के विनाश का काम पूरा कर दिया था। रूस से अलग-थलग और कटी हुई केंद्रीय समिति के सामने पूरे पार्टी संगठन को नये सिरे से खड़ा करने का काम आ गया। काफी चिन्तित होकर लेनिन ने स्टॉकहोम में शल्याप्निकोव को लिखा : “अगर यह सच है तो यह बड़े दुर्भाग्य की बात है”, और उनसे पता लगाने के लिए अनुरोध किया कि दूमा धड़े की गिरफ़्तारी की पहली रिपोर्टें सही थीं या नहीं।

तीन दिन बाद, जब ख़बर की पुष्टि हो गई, लेनिन ने शल्याप्निकोव को लिखा : “यह भयानक है। ज़ाहिर है कि सरकार ने रूस के सामाजिक-जनवादी मज़दूरों के धड़े से प्रतिशोध लेने का ठान लिया है और कोई कसर नहीं उठा रखी। हमें सबसे बुरी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए; जाली दस्तावेज़, बनावटी प्रमाण, झूठे सबूत, गुप्त मुक़दमे इत्यादि।” आगे लेनिन ने पार्टी के काम में आने वाली भारी कठिनाइयों की ओर इशारा किया, जो अब सौ गुना बढ़ गयी थीं : “हम अब भी अपना काम जारी रखेंगे। ‘प्राव्दा’ ने हज़ारों वर्ग-सचेत मज़दूरों को शिक्षित किया है, जिनके बीच से, सभी कठिनाइयों के बावजूद, नेताओं का एक नया समूह, एक नयी रूसी केन्द्रीय समिति, उभर कर सामने आयेगी….”

हमेशा की तरह लेनिन के शब्द मज़दूर वर्ग की ताक़त और क्रान्ति की जीत में गहरे विश्वास से प्रेरित थे। उन्होंने पार्टी के काम में बाधा डालने वाली कठिनाइयों को स्पष्ट रूप में देख लिया था, मगर इससे उनका वह असाधारण बल और ऊर्जा एक पल के लिए भी डिगा नहीं, जिसने क्रान्तिकारी संघर्ष की कठिन और सबसे मुश्किल घड़ी में भी उनका साथ नहीं छोड़ा।

 

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर 2019


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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