सरकारी दावों की पोल खोलती शिक्षा बजट में भारी कटौती

– अनुपम

संसद में पेश किये गये हालिया बजट में शिक्षा बजट में की गयी कटौती ने नयी शिक्षा नीति के वादों-दावों की पोल खोलकर रख दी है। कहाँ तो कहा गया था कि आनेवाले दस साल में शिक्षा पर ख़र्च दोगुना हो जायेगा, लेकिन उसके पहले ही साल में यहाँ बजट में हज़ार-हज़ार करोड़ रुपये तक की कटौती होनी शुरू हो गयी है। पिछले साल 2020-21 के बजट में 38,751 करोड़ रुपये समग्र शिक्षा अभियान को आवण्टित हुए थे,लेकिन इस साल उसे घटाकर 31,050 करोड़ कर दिया गया है। वहीं मिड-डे-मील का ख़र्च भी घटाकर 12,900 रुपये से 11,500 रुपये कर दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के पूरे बजट में भी लगभग 7000 करोड़ रुपये की कटौती, यानी कि 38860.50 करोड़ से 31300.16 करोड़। शिक्षा बजट में जो आभासी बढ़ोत्तरी हुई भी है, वह भी शिक्षा के सुधार के लिए उतनी नहीं, जितना दिखाने के लिए हुई है। अपनी दिखावानीति के तहत सरकार ने ऐसे ही दो फ़ैसले लिये हैं – अन्य विद्यालयों के मुक़ाबले कुछ ठीक-ठाक हालत में चल रहे केन्द्रीय और नवोदय विद्यालयों का ख़र्च बढ़ाया जाना और 150 सैनिक स्कूलों के निर्माण की घोषणा करना। पहला फ़ैसला, बजट में किये गये उस दावे का अमलीरूप है जिसमें दावा किया गया है कि प्रदेश के 1500 स्कूलों को चिह्नित करके उनके शैक्षिक स्तर में सुधार किया जायेगा। सवाल उठता है कि 1500 स्कूलों में ही क्यों? और फिर वे स्कूल क्यों नहीं है, जहाँ सरकारी बजट न के बराबर आता है, बल्कि वे स्कूल क्यों हैं, जहाँ पहले से ही बजट का अच्छा-ख़ासा हिस्सा पहुँचता है। केन्द्रीय स्कूलों और नवोदय विद्यालयों में प्रति छात्र किया जाने वाला व्यय गाँव के सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र किये जाने व्यय का सौ गुना होता है। लेकिन, फिर भी सरकार की प्राथमिकता गाँव और क़स्बों के स्कूल न होकर वे विद्यालय हैं, जहाँ की समस्या बजट की कमी नहीं बल्कि उसका सही उपयोग नहीं होना है। दूसरा फ़ैसला, कि सैनिक स्कूल खोले जायेंगे। सैनिक स्कूलों की ज़रूरत इस समय किस देश को होगी जबकि कोरोना महामारी के चलते सामान्य स्कूल ही ठीक से खुल नहीं पा रहे। ख़ैर, यह भी एक बात है कि सरकार इन स्कूलों का केवल समर्थन करेगी, उसे खोलने और चलाने का ज़िम्मा प्राइवेट कम्पनियों और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं का होगा। जिन समस्याओं पर सोचा जाना चाहिए था, उनका कोई ज़िक्र नहीं। बहुत सारे बच्चे कोरोना के दौरान शुरू की गयी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के तहत पढ़ने-लिखने के साधन न होने के चलते पढ़ाई में पिछड़ गये। बहुतेरों के स्कूल बन्द हो गये। उनके लिए क्या? कुछ नहीं। मिशन शक्ति के तहत स्कूलों में प्रोग्राम करवाने वाली सरकार के लिए यह कोई चिन्ता की बात नहीं कि देश के 50 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय तक नहीं है। यह भी चिन्ता की बात नहीं कि देश में तमाम ऐसे बेरोज़गार बैठे हुए हैं जो स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की योग्यता भी रखते हैं और पढ़ाना भी चाहते हैं, लेकिन उनके लिए नयी भर्तियाँ निकाली जायेंगी या नहीं, इसका भी कोई सन्तोषजनक उत्तर इस बजट में नहीं है। हाँ, लेकिन आत्मनिर्भर भारत की बकबक को समझने में यह बजट काफ़ी उपयोगी और मददगार है। इसका सार, कि हम कुछ नहीं करेंगे, जो करेंगे आप करेंगे, हम केवल बैठकर ताली बजायेंगे, और इनाम वगैरह देकर चले जायेंगे। और, यही आत्मनिर्भर भारत का भी सार है कि सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर केवल उतना काम करेगी जिससे पूँजीपतियों को यह गारण्टी मिल सके कि देश में उस हद तक शिक्षित आबादी मौजूद है जो उनके लिए मुनाफ़ा पैदा कर सकती है।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज सरकारी शिक्षा पर संकट के बादल पहले से कहीं और गहरे हो गये हैं। जिनको हटाना अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए बेहद ज़रूरी है। ताकि हम आने वाले समय में अपने बच्चों को शिक्षा हासिल करवा के एक अच्छा नागरिक बनता देख सकें। हमें इस बात का पता होना चाहिए कि जनता की एकजुटता वह ताक़त होती है जो सत्ता में बैठी किसी भी सरकार को झुकाने का दम रखती है। ऐसे में जो शिक्षा व्यवस्था एक इन्सान को असल में इन्सान बनाने का काम करती है, उसे बचाने के लिए देश की मेहनतकश अवाम को आगे आने की ज़रूरत है। अगर आज हम सरकारी स्कूलों को बचाने का प्रयास नहीं करेंगे तो आने वाला भविष्य हमारे और हमारे बच्चों के लिए बेहद ख़तरनाक होगा। क्योंकि जब तक हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा ही नहीं मिल पायेगी तब तक हम कैसे कह सकते हैं कि वह अपने भविष्य को सुनिश्चित कर पायेंगे। आज जब देश मे हमारे शहीदों के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की ज़रूरत है और उनका सपना पूरा करने के लिए आगे आने की ज़रूरत है तो ऐसे में बिना शिक्षा हासिल किये वह इस काम को कैसे अंजाम दे पायेंगे। यानी वह समाज बदलाव की लड़ाई सही तरीक़े से कैसे आगे बढ़ा पायेंगे। आज हमें शिक्षा के पहलू को हर दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है। इसलिए पूरे देश मे एक समान शिक्षा व्यवस्था लागू करवाने के लिए जन एकजुटता के साथ सत्ता में बैठी किसी भी सरकार पर दबाव बनाने की ज़रूरत है।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2021


 

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