‘फ़्रण्ट लाइन वर्करों’ के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी की नयी जुमलेबाज़ी!

वृषाली

15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से प्रधान “सेवक” महोदय उर्फ़ नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी के दौरान कार्यरत ‘फ़्रण्ट लाइन वर्कर्स’ की जमकर “सराहना” की। इस दफ़े लाल क़िले पर आँगनवाड़ीकर्मियों, आशाकर्मियों व एनएचएम कर्मचारियों को बतौर विशेष “अतिथि” आमंत्रित भी किया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री महोदय जी भूल गये कि कौड़ियों के दाम ठेके पर दे दिये गये लाल क़िले पर चढ़कर की गयी ऐसी हवबाज़ी से फ़्रण्टलाइन वर्करों का गुज़ारा नहीं चलता! और न ही थालियों-तालियों, धूप-अगरबत्ती की नौटंकी से ही हम लाखों कामगारों को कुछ हासिल हुआ था।
फ़्रण्टलाइन वर्करों की तारीफ़ों के पुल बाँधने वाली इस निहायत झूठी सरकार ने आज तक कोविड के कारण मौत का शिकार होने वाले कर्मियों की असल संख्या तक जारी नहीं की है! 22 जुलाई 2022 को स्मृति ईरानी ने एक लिखित जवाब में यह कहा कि कोविड से मरने वाली आँगनवाड़ीकर्मियों की संख्या केन्द्र सरकार के पास नहीं है! केन्द्र सरकार ने कोविड से मृत्यु की स्थिति में प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत फ़्रण्टलाइन वर्करों को 50 लाख बीमा राशि देने की घोषणा की थी। लेकिन 50 लाख की इस मुआवज़ा राशि के साथ लगे हुए ‘किन्तु’ और ‘परन्तु’ का कोई अन्त नहीं था। सरकार के अनुसार अब तक 1,616 परिवारों को बीमा की यह राशि दी गयी है।
पहला सवाल, कोविड काल में क्या केवल 1,616 फ़्रण्टलाइन वर्करों ने ही अपनी जान गँवायी है?! यह बात हज़म नहीं होती है। कोविड से जुड़े आँकड़े छुपाने में तो केन्द्र सरकार ने महारत ही हासिल की हुई है! असल में तो हर क़िस्म के आँकड़ों को ही छिपाने, उनमें फेरबदल करने में, तोड़ने-मरोड़ने में यह सरकार बेहद पारंगत है! दूसरा सवाल, क्या कोविड से संक्रमण और मौत की स्थिति में हर फ़्रण्टलाइन वर्कर को यह बीमा राशि अदा की गयी? नहीं! बीमे की राशि के लिए वही योग्य हुए जो कोविड मरीज़ों के सीधे सम्पर्क में थे व जिनके कोविड से ख़तरा होने की आशंका थी! ज़्यादातर मसलों में मुआवज़े की अर्ज़ी ही ख़ारिज कर दी गयी और कुछ मसलों में यह प्रक्रिया अब तक अटकी हुई है। मुम्बई में नवी मुम्बई म्युनिसिपल काउंसिल के आदेश पर प्राइवेट क्लिनिक खोलने के बाद कोरोना से ग्रस्त होकर मरने वाले डॉक्टर की पत्नी के मुआवज़े की माँग को यह कहकर सरकार ने ख़ारिज कर दिया कि डॉक्टर को एनएमएमसी ने क्लिनिक चालू करने का आदेश दिया था, कोरोना के मरीज़ों की देखभाल का नहीं! देशभर में ऐसे हज़ारों मसले होंगे जिनमें आर.टी.पी.सी.आर. टेस्ट का नतीजा अनुपलब्ध होने या कोविड की प्रत्यक्ष ड्यूटी अदा न करने का हवाला देकर  मुआवज़े की राशि का भुगतान नहीं किया गया। सरकार ने इस बीमा योजना को मार्च 2021 में समाप्त कर दिया था जिसे कई विरोधों के बाद पुनः शुरू किया गया था। आज के समय में फिर यह बीमा योजना ही समाप्त कर दी गयी है। जैसे फ़्रण्टलाइन वर्करों को अब कोविड से बचाने के लिए साक्षात कर्ण ने अपने कवच और कुण्डल दे दिये हैं! अतार्किकता, अन्धविश्वास और ढकोसले परोसने वाली इस सरकार से इससे अलहदा कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती है।
‘फ़्रण्टलाइन वर्करों’ को जान हथेली पर रखने के लिए “सम्मान”, ताली-थाली, फूल-पत्तियों के अलावा कुछ नहीं मिला। मुआवज़ा मिलना तो दूर की कौड़ी है, कई राज्यों में तो फ़्रण्टलाइन वर्करों को समय पर वेतन न मिलने की वजह से प्रदर्शन करने पड़े। कोविड के दौरान ख़ास तौर पर ठेके पर भर्ती किये गये स्वास्थ्यकर्मियों को आज बाहर निकाल दिया गया है। वहीं देश के दूरस्थ इलाक़ों में भी सरकारी योजनाओं, कोविड टीकाकरण की पहुँच बनाने वाली स्कीम वर्करों की बात करें तो प्रधानमंत्री महोदय ने 2018 में ही उनके लिए एक मामूली-सी मानदेय बढ़ोत्तरी की घोषणा की थी। संसद में इसी घोषणा के कई बार ढोल पीटे गये लेकिन 4 साल गुज़र जाने के बावजूद इस राशि का कहीं कोई भुगतान नहीं किया गया है। महिला स्कीम वर्करों का ‘स्वयंसेविकाओं’ के नाम पर वर्षों से शोषण होता आया है, उनसे बेगारी करवाकर उन पर ज़िम्मेदारियों का बोझ बढ़ाकर भाजपा सरकार ने ताली और थालियाँ बजवाकर उन्हें पुरस्कृत करने की नयी तरकीब इज़ाद की है! कौन नहीं जानता कि देशभर में स्कीम वर्कर कर्मचारी के दर्जे की माँग को लेकर संघर्षरत हैं। दिल्ली का उदाहरण ही देखिए। ‘दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में 38 दिनों तक चली आँगनवाड़ीकर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल का ज़िक्र कई बार हुआ है। इस हड़ताल को तोड़ने के लिए भाजपा ने राज्यपाल के माध्यम से केजरीवाल के साथ गलबहियाँ कर हेस्मा लगाने की साज़िश को अंजाम दिया था। स्कीम वर्करों से “हमदर्दी” रखने वाली यह सरकार सिर्फ़ कोरे जुमले फेंक सकती है, उन्हें नियमित नहीं कर सकती!
“प्रधान सेवक” महोदय और केन्द्र पर सत्तासीन भाजपा के लिए जुमले फेंकना बड़ी आम-सी बात है। लेकिन “सम्मान” देने का ढोंग करते हुए हक़ मार लेना और बेशर्मी के साथ इसका ढिंढोरा पीटने का काम भाजपा सरकार से बेहतर कोई और सरकार नहीं कर सकती है। केन्द्र सरकार पहले इसके आँकड़े जारी करे कि अब तक कितने फ़्रण्टलाइन वर्करों की कोविड की वजह से मृत्यु हुई है। फ़्रण्टलाइन पर काम कर रही अधिकांश आँगनवाड़ी और आशाकर्मियों व सफ़ाईकर्मियों को तो सरकार की ओर से कोई सुरक्षा सामग्री तक मुहैय्या नहीं करवायी गयी। 2020 की ऑक्सफ़ैम की 4 राज्यों में सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 25% कर्मियों को मास्क नहीं दिये गये, केवल 23 प्रतिशत कर्मियों को बॉडी सूट दिये गये व केवल 62 प्रतिशत को ग्लव्स उपलब्ध करवाये गये। यही हाल आँगनवाड़ीकर्मियों का भी था। वॉटर ऐड नामक एक संस्था द्वारा किये सर्वे के अनुसार भारत में 40 प्रतिशत सफ़ाईकर्मियों के लिए हाथ धोने के साबुन तक के इन्तज़ाम नहीं थे। इण्डिया डेवलपमेण्ट रिव्यु के असम, मध्यप्रदेश, दिल्ली और मुम्बई में किये सर्वे के अनुसार 90 प्रतिशत सफ़ाईकर्मियों के पास ज़रूरी साधन और कोविड-19 टेस्ट की सुविधा तक नहीं थी। कोविड से बचाव के सभी इन्तज़ाम न होने के कारण डॉक्टरों व नर्सों को भी पीपीई किट के अभाव में काम करना पड़ा था।
आज़ादी के (अ)मृत महोत्सव पर फ़्रण्टलाइन कर्मियों की पीठ थपथपाने वाली सरकार ने हक़ीक़त में उन्हें रक्षात्मक उपकरणों के अभाव में काम करने को मजबूर किया और कोविड से संक्रमित होने की स्थिति में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। जिस देश में स्वास्थ्य सेवा पर सरकार जीडीपी का महज़ 1.8 प्रतिशत ख़र्च करती हो वहाँ फ़्रण्टलाइन कर्मियों को समय पर व बेहतर और भत्ते के बदले ताली और थाली का झुनझुना ही थमाया जा सकता है। कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले ख़र्च का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र में किया गया। सरकारी स्वास्थ्य सेवा के पहले से ही लचर ढाँचे को कोविड माहमारी ने बड़ा धक्का पहुँचाया। फ़्रण्टलाइन वर्करों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण सुनने की “ख़ुशनसीबी” के बदले समय पर रक्षात्मक उपकरण मिले होते तो स्थिति कुछ और होती। प्रधानमंत्री महोदय के निरे भाषणों से न ही फ़्रण्टलाइन वर्करों की गृहस्थी चल सकती है न उनके काम का बोझ कम हो सकता है। फ़्रण्टलाइन वर्करों को “सम्मान” के नाम पर पाखण्ड नहीं चाहिए बल्कि बेहतर कार्यस्थिति व स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार तथा स्टाफ़ की भर्ती चाहिए। ज़मीनी स्तर पर कार्यरत आँगनवाड़ी व आशा स्कीम वर्करों को कर्मचारी का पक्का दर्जा और सम्मानजनक वेतन का हक़ चाहिए। जुमलों और ख़ैरात की नौटंकी को हम भली प्रकार से समझते हैं!

मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2022


 

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