Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

पंजाब के 60 से अधिक जनवादी-जनसंगठनों ने काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ तालमेल फ़्रण्ट बनाया

पंजाब की कांग्रेस सरकार ने पंजाब सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक़सान रोकथाम क़ानून लागू कर दिया है। एक और काला क़ानून पकोका बनाने की तैयारी है। इन दमनकारी काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ पंजाब के इंसाफ़पसन्द जनवादी-जनसंगठन भी संघर्ष के मैदान में कूद पड़े हैं। मज़दूरों, किसानों, सरकारी मुलाजि़मों, स्त्रियों, छात्रों, नौजवानों, जनवादी अधिकार कार्यकर्तओं आदि के 60 से अधिक जनसंगठनों ने देश भगत यादगार हाॅल, जालन्धर में मीटिंग करके ‘काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ जनवादी जनसंगठनों का तालमेल फ़्रण्ट, पंजाब’ बनाया है।

लुधियाना पुलिस कमिशनरी में धरना-प्रदर्शनों पर पाबन्दी के ख़िलाफ़ व्यापक संघर्ष का ऐलान

अपनी समस्याएँ हल न होने पर लोगों को मज़बूरीवश विभिन्न सरकारी अधिकारियों के दफ़्तरों, संसद-विधानसभा मैम्बर, मेयर, काऊंसलर, थाना, चौकी, सड़कों आदि पर प्रदर्शन करने पड़ते हैं। हक़ों के लिए इकट्ठा होना और आवाज़ बुलन्द करना लोगों का जनवादी ही नहीं बल्कि संवैधानिक हक़ भी है। भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत लोगों को अपने विचारों और हक़ों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है। यह हुक्म लोगों के संवैधानिक व जनवादी अधिकार का हनन है।

हरियाणा में दलित उत्पीड़न के खि़लाफ़ संयुक्त प्रदर्शन!

ज्ञात हो कि 1 मई को बालू गाँव में मौजूदा सरपंच व उसके गुण्डा तत्वों द्वारा दलित नौजवानों पर हमला कर दिया गया। इसके पीछे की वजह यह थी कि उन नौजवानों ने सरपंच के दसवीं के दस्तावेज़ों को लेकर एक आरटीआई डाली थी। इस बात को लेकर गाँव के सरपंच ने उन्हें डराने-धमकाने के लिए जातिगत गोलबन्दी करके उन पर हमला बोल दिया, जिसमें कई नौजवान बुरी तरह घायल हो गये तथा दलित बस्ती में तोड़-फोड़ भी की गयी। इस पूरी घटना पर पुलिस ने बेशर्मी से दबंगों का पक्ष लेते हुए एससी/एसटी एक्ट के तहत कोई कार्रवाई नहीं की है। यहाँ तक एफ़आईआर लिखने में काफ़ी आनाकानी की और एफ़आईआर में कमज़ोर धाराएँ लगाकर आरोपियों को बचाने की पूरी कोशिश की है। इस पूरी घटना में कैथल पुलिस प्रशासन का सवर्णवादी रवैया साफ़ उजागर हो रहा है। संयुक्त प्रदर्शन में डीसी संजय जून को ज्ञापन सौंपा गया।

मुम्बई के ग़रीबों के फेफड़ों में ज़हर घोल रहे बायोवेस्ट ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट को बन्द करवाने के लिए शुरू हुआ संघर्ष

यूँ तो इससे पहले भी इस प्लाण्ट को हटाने के लिए आन्दोलन हुए हैं। पर उन आन्दोलनों की शुरुआत ज़्यादातर चुनावी पार्टियों या फिर एनजीओ ने की थी। इसीलिए वे दिखावेबाज़ी के बाद जल्द ही ख़त्म हो गये। क्योंकि एनजीओं हों या फिर चुनावी पार्टी, उनको फ़ण्डिंग करने का काम बड़े-बड़े उद्योगपति घराने ही करते हैं। जो कम्पनी इस प्लाण्ट को चला रही है, उसका भी हर साल का मुनाफ़़ा लगभग 50 करोड़ है। इसलिए नौजवान भारत सभा व बिगुल मज़दूर दस्ता के नेतृत्व में इलाक़े के नौजवानों ने तय किया है कि किसी चुनावी पार्टी या एनजीओ के पिछलग्गू बने बिना ख़ुद स्थानीय गली कमेटियाँ बनाते हुए एक जुझारू आन्दोलन खड़ा करना होगा। पिछले कुछ दिनों से ये आन्दोलन चलाया जा रहा है व आशा है कि जनता की ताक़त के सामने पूँजी की ताक़त झुकेगी और ग़रीबों-मेहनतकशों को भी स्वच्छ हवा का अधिकार मिलेगा।

स्त्रियों को पहली बार वास्तविक आज़ादी की राह पर आगे बढ़ाने का काम अक्टूबर क्रान्ति के बाद स्थापित सोवियत समाजवाद ने किया

आज तमाम बुर्जुआ नारीवादी, उत्तर आधुनिकतावादी, अस्मितावादी चिन्तक, वर्ग-अपचयनवादी सूत्रीकरण पेश करते हुए स्त्री-प्रश्न पर मार्क्सवादी चिन्तन को गुज़रे ज़माने की चीज़ बताते हैं। अकादमिक हलक़ाें में भी इस तथ्य का उल्लेख हमें नहीं मिलता है कि रूसी क्रान्ति के बाद इतिहास में सोवियत सत्ता ने पहली बार, स्त्रियों को बराबरी का अधिकार दिया, इसे न केवल क़ानूनी धरातल पर बल्कि आर्थिक-राजनीतिक व सामाजिक धरातल पर इसे सम्भव बनाया। ज्ञात इतिहास में पहली बार स्त्रियों को चूल्हे-चौखट की गुलामी से मुक्त किया गया। विवाह, तलाक व सहजीवन जैसे मामलों में राज्य, समाज और धर्म के हस्तक्षेप को ख़त्म किया गया। भारी पैमाने पर स्त्रियों की उत्पादन और समस्त आर्थिक-राजनीतिक कार्यवाहियों में बराबरी की भागीदारी को सम्भव बनाया। यह कहा जा सकता है कि प्रबोधन कालीन मुक्ति और समानता के आदर्शों को पहली बार इतिहास में वास्तविकता के धरातल पर उतारने का काम अक्टूबर क्रान्ति ने किया।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

वक्ताओं ने कहा कि पूरी दुनिया में भूख-प्यास, लूट, दमन, जंग, क़त्लेआम, धर्म-नस्ल-देश-जाति-क्षेत्र के नाम पर नफ़रत आदि के सिवाय इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से और कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हम इस गली-सड़ी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पुरज़ोर ढंग से लोगों को जगाने और संगठित करने की कोशिशों में जुट जायें।

राहुल सांकृत्यायन पर देहरादून में विचार गोष्ठी

राहुल फ़ाउण्डेशन और नौजवान भारत सभा के संयुक्त तत्वाधान में राहुल सांकृत्यायन के स्मृतिदिवस 14 अप्रैल के अवसर पर पंचायती हॉल, दर्शनलाल चौक, देहरादून में विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में तमाम वक्ताओं ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन-दर्शन, कृतित्व, व्यक्तित्व पर विस्तार से बात रखी और आज के दौर में राहुल सांकृत्यायन को याद करने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि आज पूँजीवादी व्यवस्था चौतरफ़ा संकटों से घिर चुकी है। इस संकट से ध्यान भटकाने के लिए और इस सड़ी हुई व्यवस्था को बचाए रखने के लिए तमाम प्रतिक्रियावादी फासिस्ट ताक़तें जनता को धार्मिक अन्धविश्वास, कूपमण्डूकता, रूढि़यों, पाखण्डों की दिमाग़ी गुलामी की ज़जीरों में बाँध देना चाहती हैं। और एक हद तक वे अपने इस काम में सफल भी हुए हैं। ऐसे में प्रगतिशील क्रान्तिकारी ताक़तों को राहुल सांकृत्यायन की तरह ही वैचारिक सांस्कृतिक आन्दोलनों को जनता के बीच में खड़ा करना पड़ेगा।

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस पर मुम्बई व अहमदनगर में चला 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस के अवसर पर नौजवान भारत सभा द्वारा मुम्बई व अहमदनगर में 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान चलाया गया। इस अभियान के अन्तर्गत हिन्दी व मराठी में हज़ारों पर्चे वितरित किये गये, विचार गोष्ठिया़ँ, पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित की गयी व गौहर रज़ा की इंक़लाब डॉक्यूमेण्ट्री की स्क्रीनिंग भी की गयी। अन्तिम दिन यानी 3 अप्रैल को अहमदनगर के रहमत सुल्तान फ़ाउण्डेशन सभागृह में ‘फासीवाद के मौजूदा दौर में भगतसिंह की प्रासंगिकता’ विषय पर परिसंवाद रखा गया व साथ ही दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।

लुधियाना – सैकड़ों लोगों ने दी महान क्रान्तिकारी शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि

बीते 26 मार्च को लुधियाना में मज़दूर पुस्तकालय, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी (ताजपुर रोड) पर शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु की याद में, शहादत की 86वीं वर्षगाँठ को समर्पित क्रान्तिकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, स्त्री मज़दूर संगठन व नौजवान भारत सभा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। संगठनों द्वारा शहादत दिवस के सम्बन्ध में लुधियाना की मज़दूर आबादी में एक सप्ताह तक सघन प्रचार अभियान चलाया गया था। व्यापक पर्चा वितरण, नुक्कड़ नाटकों की पेशकारी और नुक्कड़ सभाओं आदि माध्यमों के ज़रिये लोगों तक क्रान्तिकारी शहीदों का सन्देश पहुँचाया गया।

मारुति-सुजुकी के बेगुनाह मज़दूरों को उम्रक़ैद व अन्य सज़ाओं के खि़लाफ़ लुधियाना में ज़ोरदार प्रदर्शन

एक बहुत बड़ी साजि़श के तहत़ क़त्ल, इरादा क़त्ल जैसे पूरी तरह झूठे केसों में फँसाकर पहले तो 148 मज़दूरों को चार वर्ष से अधिक समय तक, बिना ज़मानत दिये, जेल में बन्द रखा गया और अब गुड़गाँव की अदालत ने नाजायज़ ढंग से 13 मज़दूरों को उम्रक़ैद और चार को 5-5 वर्ष की क़ैद की कठोर सज़ा सुनाई है। 14 अन्य मज़दूरों को चार-चार साल की सज़ा सुनाई गयी है लेकिन चूँकि वे पहले ही लगभग साढे़ चार वर्ष जेल में रह चुके हैं इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया है। 117 मज़दूरों को, जिन्हें बाक़ी मज़दूरों के साथ इतने सालों तक जेलों में ठूँसकर रखा गया, उन्हें बरी करना पड़ा है। सबूत तो बाक़ी मज़दूरों के खि़लाफ़ भी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें जेल में बन्द रखने का बर्बर हुक्म सुनाया गया है।