Category Archives: अंधराष्‍ट्रवाद

कश्मीर में 7 महीने से जारी पाबन्दियों‍ से जनजीवन तबाह

कश्मीर घाटी में पूर्ण नाकेबन्दी के सात महीने पूरे हो गये हैं। 70 लाख की आबादी वाली कश्मीर घाटी में पिछले 7 महीनों में जो तबाही हुई है उसका अन्दाज़ा दूर से लगाना बहुत मुश्किल है। अभी भी वहाँ इण्‍टरनेट और मोबाइल सेवाएँ पूरी तरह बहाल नहीं हुई हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत अब दुनिया में सबसे ज्‍़यादा लम्बे समय तक इण्‍टरनेट पर पाबन्दी लगाने वाला लोकतंत्र बन चुका है।

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-8)

युद्ध की घोषणा के तुरन्त बाद, दूसरे इण्टरनेशनल के नेताओं ने इतिहास की सबसे बड़ी ग़द्दारियों में से एक को अंजाम दिया और अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के झण्डे को धूल-धूसरित कर दिया। राष्ट्रवाद की लहर में बहते हुए, समाजवादी पार्टियों के नेता अपने देशों की सरकारों के पीछे चल पड़े और अपने-अपने पूँजीपति वर्ग के हाथों का खिलौना बन गये। क्रान्ति से ग़द्दारी करके इन नेताओं ने यह सिद्धान्त पेश किया युद्ध छिड़ जाने के बाद अपने शासक वर्ग का साथ देना ज़रूरी है और पूँजीवादी अख़बारों के सुर में सुर मिलाते हुए ‘’दुश्मन’’ के विरुद्ध लड़ने के लिए अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में जुट गये।

कश्मीर के मुद्दे पर सोचने के लिए कुछ बेहद ज़रूरी सवाल – क्‍या किसी क़ौम को ग़ुुलाम बनाने की हिमायत करके हम आज़ाद रह सकते हैं?

सच्चे मज़दूर क्रान्तिकारियों को हर कीमत पर हर प्रकार के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना चाहिए और दमित राष्ट्रों के संघर्षों का बिना शर्त समर्थन करना चाहिए। यदि मज़दूर वर्ग की ताक़तें ऐसा करने में असफल होती हैं और जाने या अनजाने अपने देश के पूँजीपति वर्ग के मुखर या मौन समर्थन की राष्ट्रीय व सामाजिक कट्टरपंथी अवस्थिति अपनाती हैं, तो वह अपने देश के पूँजीपति वर्ग को स्वयं अपना दमन करने का भी लाईसेंस और वैधीकरण प्रदान करती हैं। ऐसी कुछ ताक़तें भारत में भी हैं जिन्होंने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद ज़ुबान पर ताला लगा लिया है और कश्मीर के मसले पर कुछ भी बोलने से घबरा गयी हैं। ऐसे ग्रुपों व संगठनों को कल इतिहास के कठघरे में खड़ा होकर एक असम्भव सफाई देने का प्रयास करना पड़ेगा। आज हमें धारा के विरुद्ध तैरते हुए कश्मीरी जनता के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना होगा और उनके जनवादी हक़ों के संघर्ष का समर्थन करना होगा। केवल तभी हम फासीवादी मोदी सरकार और पूँजीवादी राज्यसत्ता को अन्धराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की आँधी चलाकर हर प्रकार के प्रतिरोध व आन्दोलन को कुचलने को सही ठहराने से रोक सकते हैं, उसके सामने एक क्रान्तिकारी चुनौती पेश कर सकते हैं।

देशभक्ति के नाम पर युद्धपिपासु अन्‍धराष्‍ट्रवाद किसके हित में है? अन्धराष्ट्रवाद और नफ़रत की आँधी में बुनियादी  सवालों  को  खोने  नहीं  देना  है!

पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और देशभक्ति उसके लिए महज़ बाज़ार में बिकने वाला एक माल है। आक्रामक राष्ट्रवाद पूँजीपति वर्ग की राजनीति का एक लक्षण होता है और सभी देशों के पूँजीपति अपनी औकात के हिसाब से विस्तारवादी मंसूबे रखते हैं। अगर इस सरकार को सच्ची देशभक्ति दिखानी ही है तो उसे सभी लुटेरे साम्राज्यवादी देशों की पूँजी ज़ब्त कर लेनी चाहिए और सभी विदेशी क़र्ज़ों को मंसूख कर देना चाहिए जिसके बदले में कई-कई गुना ब्याज ये हमसे वसूल चुके हैं। लेकिन कोई भी पूँजीवादी सरकार भला ऐसा कैसे करेगी!

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट और झूठे मुद्दों का बढ़ता शोर

भविष्य के ‘‘अनिष्ट संकेतों’’ को भाँपकर मोदी सरकार अभी से पुलिस तंत्र, अर्द्धसैनिक बलों और गुप्तचर तंत्र को चाक-चौबन्द बनाने पर सबसे अधिक बल दे रही है। मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जा रहा है, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल जोर पकड़ता जा रहा है ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्‍धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा जोर है। पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है क्योंकि जनाक्रोश से आतंकित दोनों ही देशों के संकटग्रस्त शासक वर्गों को इससे राहत मिलेगी।

लुटेरों के झूठे मुद्दे बनाम जनता के वास्‍तविक मुद्दे – सोचो, तुम्हें किन सवालों पर लड़ना है

इन झगड़ों का परिणाम केवल आम जनता की तबाही होती है। जबकि दोनों धर्मों के धनिको को कोई नुकसान नहीं होता। युवाओं को टी.वी चैनलों, धर्म के ठेकेदारों, नेताओं-मन्त्रियों के भ्रमजाल से बाहर आना होगा। शिक्षा, रोजगार, जैसे वास्तविक मुद्दों पर संघर्ष संगठित करना होगा। नेताओं को घेरना होगा कि जो वायदे वो चुनाव में करते हैं उसे पूरा करें। जातिवाद-भेदभाव की दीवारें गिरानी होंगी। धार्मिक कट्टरपंथियों, चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम, सिख या ईसाई, के खिलाफ हल्ला बोलना होगा। अन्धविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध वैचानिक चेतना का प्रचार-प्रसार करना होगा। हमें मेहनतकश जनता के वास्तविक मुद्दों पर संघर्षों से इस लड़ाई को जोड़ना होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियाँ और जनता का प्रतिरोध

इन नीतियों की घोषणा दर्शाती है कि अमेरिकी जनता के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होने जा रहे हैं। यह बात ट्रम्प पर भी लागू होती है। 45 प्रतिशत अमेरिकी जनता जिसका मोहभंग इस व्यवस्था से है और बाक़ी बची जनता इन नीतियों का समर्थन पूर्ण रूप से करेगी, ऐसा लगता नहीं है। इतनी घोर ग़ैरजनवादी, मुसलमान विरोधी, नस्लविरोधी और आप्रवासन विरोधी नीतियों को समर्थन मिलने की जो उम्मीद ट्रम्प को है, वैसा होने नहीं जा रहा है और यह अमेरिका की सड़कों पर दिख भी रहा है।

बलोचिस्तान के साथ हमदर्दी के पीछे छुपे अन्ध राष्ट्रवाद के इरादे

भारत और पाकिस्तान दोनों देश अन्ध राष्ट्रवाद और दूसरे के विरुद्ध नफ़रत को भड़काकर दो कामों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पहला, दोनों की ओर से अपने देश में आज़ादी के लिए लड़ रहे राष्ट्रों पर किये जा रहे जुल्म पर पर्दा डालने के लिए। दूसरा, एक-दूसरे के अन्दर हालात तनावपूर्ण बनाने और ख़ूनी लड़ाइयाँ और युद्ध भड़काने के लिए। इस सब का भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के आम मेहनतकश लोगों को ही नुक़सान हो रहा है, दोनों देशों के हुक्मरान वर्गों को फ़ायदा हो रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश के स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान की असलियत

विभिन्न पूँजीवादी प्रसार माध्यमों के द्वारा किये जा रहे लुभावने प्रचार के पीछे छुपे ज़हरीले सत्य को पहचानने के लिए, जनता को ग़रीबी की ओर ढकेलने वाली व जनता के बीच फूट डालने वाली संघी राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए संघ का इतिहास जनता के सामने आना बहुत ज़रूरी है। आज संघ देशप्रेम की कितनी ही बातें कर ले पर उनका सच्चा काला इतिहास संघ के ही साहित्य में सुरक्षित रखा हुआ है। हाफ़ पैण्ट छोड़कर फुल पैण्ट पहनने पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नंगापन छुपेगा नहीं।