भाजपा के “राष्ट्रवाद” और देशप्रेम की खुलती पोल : अब मज़दूरों-किसानों के बेटे-बेटियों को पूँजीपति वर्ग के “राष्ट्र” की “रक्षा” भी ठेके पर करनी होगी!
‘अग्निपथ’ वास्तव में सैनिक व अर्द्धसैनिक बलों में रोज़गार को ठेका प्रथा के मातहत ला रही है। यह एक प्रकार से ‘फ़िक्स्ड टर्म कॉण्ट्रैक्ट’ जैसी व्यवस्था है, जिससे हम मज़दूर पहले ही परिचित हो चुके हैं और जिसके मातहत एक निश्चित समय के लिए आपको काम पर रखा जाता है, और फिर आपको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। पहले मज़दूरों की बारी आयी थी, अब सैनिकों की बारी आयी है। जैसा कि एक कवि पास्टर निमोलर ने कहा था, फ़ासीवादी देशप्रेम और “राष्ट्रवाद” की ढपली बजाते हुए अन्तत: किसी को नहीं छोड़ते!