Category Archives: सम्‍पादकीय

मेहनतकश जनता के ख़ून-पसीने से खड़ी हुई सार्वजनिक परिसम्पत्तियों को पूँजीपतियों के हवाले करने में जुटी मोदी सरकार

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की फ़ासीवादी सरकार जनता को लूटने और पूँजीपतियों के हाथों लुटवाने के नित नये कार्यक्रम पेश कर रही है। नोटबन्दी हो या सार्वजनिक उपक्रमों की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री हो; बढ़ती महँगाई हो या श्रम क़ानूनों की बर्बादी हो, हर मामले में हम यह देख सकते हैं कि “अच्छे दिनों” का नारा देकर सत्ता में आयी भाजपा ने मज़दूरों, ग़रीब किसानों और आम मेहनतकश जनता के जीवन को नारकीय हालात में धकेल दिया है।

75वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न वे मनायें जिन्हें इस लुटेरी व्यवस्था ने सबकुछ दिया है

आने वाले पन्द्रह अगस्त को 75वें स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की तैयारियाँ जारी हैं। सबसे ज़्यादा शोर वे मचा रहे हैं जिन्होंने ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ लड़ाई में कभी एक ढेला तक नहीं चलाया, क्रान्तिकारियों की मुखबिरी तक की और जंगे-आज़ादी को कमज़ोर करने के लिए उस समय भी हिन्दू-मुस्लिम को बाँटने में लगे रहते थे।

बेहिसाब बढ़ती महँगाई यानी ग़रीबों के ख़िलाफ़ सरकार का लुटेरा युद्ध!

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ के लुभावने नारे से जनता के एक हिस्से को भरमाकर उसके वोट बटोरने के बाद भाजपा की अपनी महँगाई तो दूर हो गयी, मगर आम लोगों पर महँगी क़ीमतों का क़हर टूट पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों से ही खाने-पीने और बुनियादी ज़रूरतों की चीज़ों की महँगाई बेरोकटोक बढ़ रही थी। लेकिन पिछले डेढ़ वर्षों में कोरोना महामारी के दौरान उछाले गये मोदी के नारे “आपदा में अवसर” का लाभ उठाकर उद्योगपतियों-व्यापारियों-जमाख़ोरों ने दाम बढ़ाने के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं।

उन्‍हें भरोसा है क‍ि उनका झूठा प्रचार और नफ़रत की अफ़ीम फिर सर चढ़कर बोलेंगे और लोग सबकुछ भूल जायेंगे!

मौत और बर्बादी का ऐसा ताण्डव मचाने के बाद भी ये फ़ासिस्ट ग़लती मानने के बजाय चोरी और सीनाज़ोरी वाले अन्दाज़ में झूठे दावे किये जा रहे हैं। लेकिन वे भी जानते हैं क‍ि इस बार मौतों का जो सैलाब आया था उसने किसी को भी नहीं छोड़ा है। बड़ी संख्या में मोदीभक्त और भाजपा-संघ के समर्थक व कार्यकर्ता भी महामारी और सरकारी बदइन्तज़ामी का शिकार हुए हैं। ऐसे में उनके पास एकमात्र रास्ता है साम्प्रदायिकता के प्रेत को फिर से काम पर लगाना, जिसके वे पुराने माहि‍र हैं। पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ आने वाले समय में इनके मंसूबों की ओर इशारा कर रही हैं।

इस देशव्यापी जनसंहार के लिए फ़ासिस्ट मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही ज़िम्मेदार है!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश में क़हर बरपा कर रही है। बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन जैसी बुनियादी ज़रूरत के अभाव, अस्पतालों में बेडों की कमी, जीवन रक्षक दवाओं की अनुपलब्धता व अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं। अस्पतालों के बाहर लोग रोते-बिलखते असहायता के साथ अपनों को मरता देख रहे हैं। कोरोना मामलों की प्रतिदिन संख्या इतनी अधिक है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कन्धे भी इसके बोझ तले दब गये हैं।

पहली अप्रैल 2021 – देश के करोड़ों मज़दूरों के लिए एक काला दिन

देश के करोड़ों मज़दूरों के लिए पहली अप्रैल 2021 एक काला दिन है। यह वह तारीख़ है जिस दिन से मोदी सरकार ने मज़दूरों के अधिकारों पर अब तक की सबसे बड़ी चोट करने वाले चार लेबर कोड (श्रम संहिताएँ) लागू कर दिये हैं। मज़दूरों के ‍जुझारू संघर्षों के लम्बे इतिहास की बदौलत हमने जो अधिकार हासिल किये थे, जिन्हें विभिन्न श्रम क़ानूनों के रूप में दर्ज किया गया था, उन्हें एक झट‍के में ख़त्म करके चार लेबर कोड लागू कर दिये गये हैं जिनका एक ही मक़सद है – मज़दूरों को लूटने-खसोटने और जब चाहे रखने, जब चाहे बाहर करने की मालिकों को खुली छूट और मज़दूरों के लिए आवाज़ उठाना और संगठित होना ज़्यादा से ज़्यादा मुश्किल बना देना।

सिकुड़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती असमानता

पिछले साल मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन और उसके बाद के महीनों में देश के करोड़ों लोगों का रोज़गार छिन गया। बहुत बड़ी आबादी दो वक़्त की रोटी के लिए भी मुहताज हो गयी। बेरोज़गारी, भूख और अभाव का यह सिलसिला लगातार जारी है। बेलगाम बढ़ती महँगाई ग़रीबों की थाली को और भी ख़ाली करती जा रही है। दूसरी ओर, देश के सबसे बड़े अमीरों की दौलत में बेहिसाब बढ़ोत्तरी हो रही है।

मज़दूर-विरोधी चार लेबर कोड लागू करने की हड़बड़ी में मोदी सरकार

देश के करोड़ों मेहनतकशों की बदहाल ज़िन्दगी को और भी तबाह करने वाले चार ख़तरनाक क़ानून मोदी सरकार संसद से पारित करवा चुकी है और अब आनन-फ़ानन में उन्हें लागू करने की तैयारी में है। पूँजीपति मनमाने तरीक़े से मज़दूरों की हड्डी-हड्डी निचोड़ सकें और मज़दूर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित भी न हो पायें, इसका पक्का इन्तज़ाम करने वाले इन क़ानूनों को लागू करने के लिए पूँजीपति इतने उतावले हैं कि मोदी सरकार समय से कई महीने पहले ही इन्हें लागू करने जा रही है।

मज़दूर वर्ग को दोहरी आपदा देकर गया वर्ष 2020

वर्ष 2020 की शुरुआत एक उम्मीद के साथ हुई थी क्योंकि दुनिया के तमाम हिस्सों में लोग भिन्न-भिन्न रूपों में पूँजीवादी व फ़ासीवादी सत्ताओं को जुझारू चुनौती दे रहे थे। भारत में भी नागरिकता संशोधन क़ानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ से शुरू हुए जनान्दोलन की आग पूरे देश में फैलती जा रही थी जिससे फ़ासिस्ट सत्ता के माथे पर बल साफ़ दिखायी देने लगे थे। लेकिन मार्च के महीने तक आते-आते दुनिया के अधिकांश हिस्से कोरोना महामारी की चपेट में आ गये।…

एक दिन की हड़ताल जैसे अनुष्ठानों से फ़ासिस्टों का कुछ नहीं बिगड़ेगा

गहरे आर्थिक संकट की चपेट में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पहले से ही थी। मोदी की विनाशकारी आर्थिक नीतियों ने इसे और ख़स्‍ताहाल बना दिया और सरकार चलाने की बुर्जुआ योग्‍यता रखने वाले लोगों के इस सरकार में नितान्‍त अभाव के चलते अर्थतंत्र का कुप्रबन्‍धन चरम पर जा पहुँचा है। अडाणी और अम्‍बानी जैसे कुछ घराने मोदी सरकार से मनमाने फ़ैसले करवाकर इस संकट में भी मुनाफ़ा पीट रहे हैं मगर पूरा पूँजीपति वर्ग मुनाफ़े की गिरती दर के संकट से त्रस्‍त है और किसी भी तरह से मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए हाथ-पाँव मार रहा है।