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भीषण बेरोज़गारी और तबाही झेलती दिल्ली की मज़दूर आबादी

दिल्ली में 29 औद्योगिक क्षेत्र हैं, जिनमें अधिकतर छोटे व मध्यम आकार के कारख़ाने हैं। इन औद्योगिक क्षेत्रों में दिल्ली की कुल 80 लाख मज़दूर आबादी का बड़ा हिस्सा काम करता है। इसके अलावा निर्माण से लेकर लोडिंग, कूड़ा बीनने व अन्य ठेके पर काम हेतु तमाम इलाक़ों में लेबर चौ‍क पर मज़दूर खड़े रहते हैं। परन्तु आज इन सभी इलाक़ों में कामों में सुस्ती छायी हुई है, बल्कि यह मन्दी पिछले तीन सालों से छायी है। देश एक बड़े आर्थिक संकट की आगोश में घिर रहा है और इन इलाक़ों में काम की परिस्थिति और बिगड़ने जा रही है।

हमारी ताक़त हमारी एकजुटता में ही है!

मेरी उम्र 30 साल है और 16 साल की उम्र से ही मैंने दिहाड़ी-मज़दूरी का काम शुरू कर दिया था। घर के आर्थिक हालात अच्छे न होने के कारण स्कूल के दिनों में खेत मज़दूरी जैसे कामों में घरवालों का हाथ बँटाना पड़ता था। खेती का काम तो मौसमी होता था और इसमें मेहनत ज़्यादा थी और पैसा कम, इसलिए स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूर के तौर भी मैंने काफ़ी दिन बेलदारी का काम किया। किन्तु यहाँ भी काम में अनिश्चितता बनी रहती थी। उसके बाद मैंने एक आरा मशीन पर काम पकड़ा, यहाँ मैं लगातार आठ साल तक खटता रहा। मालिक कहा-सुनी व गाली-गलौज करता था, पैसा भी बेहद कम मिलता था। अन्त में एक दिन काम के दौरान आरा मशीन में मेरा हाथ आ गया जिसके कारण मुझे अपनी एक उँगली गँवानी पड़ी। न तो मुझे कोई मुआवज़ा मिला और काम भी मुझे छोड़ना पड़ा

दिहाड़ी मज़दूरों की जिन्दगी!

मैं एक भवन निर्माण मज़दूर हूँ। मैं बिहार प्रदेश से रोजी-रोटी के लिए दिल्ली आया हूँ। यहाँ मुश्किल से 30 दिनों में 20 दिन ही काम मिल पाता है। जिसमें भी काम करने के बाद पैसे मिलने की कोई गारण्टी नहीं होती है। कहीं मिल भी जाते हैं तो कहीं दिहाड़ी भी मार ली जाती है। कोई-कोई मालिक तो जबरन पूरा काम करवाकर (ज़मींदारी समय के समान) ही पैसे देते हैं और अधिक समय तक काम करने पर उसका अलग से मज़दूरी भी नहीं देते हैं। कई जगह मालिक पैसे के लिए इतना दौड़ाते हैं कि हमें लाचार होकर अपनी दिहाड़ी ही छोड़नी पड़ती है। यहाँ करावल नगर में लेबर चौक भी लगता है। जहाँ न बैठने की जगह है न पानी पीने की। चौक से जबरन कुछ मालिक काम पर ले जाते हैं नहीं जाने पर पिटाई भी कर देते हैं। दूसरी तरफ दिहाड़ी मज़दूरों की बदतर हालात सिर्फ काम की जगह नहीं बल्कि उनकी रहने की जगह पर भी है जहाँ हम तंग कमरे में रहते हैं।

माँगपत्रक शिक्षणमाला – 11 स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों से जुड़ी विशेष माँगें

अलग-अलग स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी तय की जाये जो ‘राष्ट्रीय तल-स्तरीय न्यूनतम मज़दूरी’ से ऊपर हो। इनके लिए भी आठ घण्टे के काम का दिन तय हो और उससे ऊपर काम कराने पर दुगनी दर से ओवरटाइम का भुगतान किया जाये। रिक्शेवालों, ठेलेवालों के लिए प्रति किलोमीटर न्यूनतम किराया भाड़ा व ढुलाई दरें तय की जायें तथा जीवन-निर्वाह सूचकांक के अनुसार इनकी प्रतिवर्ष समीक्षा की जाये व पुनर्निर्धारण किया जाये। इसके लिए राज्य सरकारों को आवश्यक श्रम क़ानून बनाने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से दिशा-निर्देश जारी किये जायें। दिहाड़ी मज़दूरों से सम्बन्धित नियमों-क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हर ज़िले में डी.एल.सी. कार्यालय में अलग से पर्याप्त संख्या में निरीक्षक होने चाहिए, जिनकी मदद के लिए निगरानी समितियाँ हों जिनमें दिहाड़ी मज़दूरों के प्रतिनिधि, मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधि तथा जनवादी अधिकारों एवं श्रम अधिकारों की हिफाज़त के लिए सक्रिय नागरिक एवं विधिवेत्ता शामिल किये जायें।