Category Archives: महान जननायक

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : असेम्बली बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में भगतसिंह के बयान का अंश

यह भयानक असमानता और ज़बरदस्ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उथल-पुथल की ओर लिये जा रहा है। यह स्थिति अधिक दिनों तक क़ायम नहीं रह सकती। स्पष्ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल रहे हैं।

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : तीसरे इण्टरनेशनल, मास्को के अध्यक्ष को तार

“लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं। मज़दूर-राज की जीत हो। सरमायादारी का नाश हो।

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : ‘मॉडर्न रिव्यू’ पत्रिका के सम्पादक के नाम पत्र

लाहौर के स्पेशल मजिस्ट्रेट की अदालत में “इंक़लाब ज़िन्दाबाद” नारा लगाने के जुर्म में छात्रों की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ गुजराँवाला में नौजवान भारत सभा ने एक प्रस्ताव पारित किया। ‘मॉडर्न रिव्यू’ के सम्पादक रामानन्द चट्टोपाध्याय ने इस ख़बर के आधार पर “इंक़लाब ज़िन्दाबाद” के नारे की आलोचना की। भगतसिंह और बी.के. दत्त ने जेल से ‘मॉडर्न रिव्यू’ के सम्पादक को उनके उस सम्पादकीय का निम्नलिखित उत्तर दिया था। – स.

काकोरी के शहीदों को याद करो! लोगों को धर्म के नाम पर बाँटने की साज़ि‍शों को नाकाम करो!!

दोस्तो! आज हमारा समाज एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। यही वो हालात होते हैं जब समाज के अन्दर से बिस्मिल, अशफ़ाक, आज़ाद, सराभा और भगतसिंह जैसे नायक पैदा होते हैं। निश्चित तौर पर हमारे वो महान शहीद भी अवतार और मसीहा नहीं बल्कि परिस्थितयों की ही पैदावार थे। जैसा कि भगतसिंह ने कहा है ‘बम और पिस्तौल इन्क़लाब नहीं लाते बल्कि इन्क़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।’ आज जनता को जगाने का काम, जातिवाद-साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहे लोगों को असल समस्याओं के प्रति शिक्षित, जागरूक और संगठित करने का काम ही सबसे महत्त्वपूर्ण काम है। जान की बाजी लगाकर जनता के प्रति अपनी सच्ची मोहब्बत सिद्ध कर देने वाले हमारे महान शहीदों को आज की युवा पीढ़ी की यही असल सलामी हो सकती है।

पहला पार्टी स्कूल

लेनिन का स्कूल, जो लोंजूमो की सड़क के दूसरे छोर पर था, एक निराले तरह का स्कूल था, देखने में भी वह और स्कूलों की तरह नहीं था। पहले यहाँ एक सराय हुआ करती थी। पेरिस जाते हुए डाकगाड़ियाँ यहाँ रुका करती थीं। गाड़ीवान आराम करते थे, घोड़ों को दाना-पानी देते थे। मगर यह बहुत पहले की बात थी…

सेण्ट पीटर्सबर्ग का वह कार्यकाल जिसने लेनिन को मेहनतकश जनता के नेता के रूप में ढाला

व्लादीमिर इलिच को उस हर छोटी बात में दिलचस्पी थी, जो मज़दूरों की जि़न्दगी और उनके हालात की तस्वीर को उभारने में मदद कर सके और जिसके सहारे वे क्रान्तिकारी प्रचार कार्य के लिए मज़दूरों से सम्पर्क क़ायम कर सकें। उस ज़माने के अधिकांश बुद्धिजीवी मज़दूरों को अच्छी तरह नहीं जानते थे। वे किसी अध्ययन मण्डल में आते और मज़दूरों के सामने एक तरह का व्याख्यान पढ़ देते। एंगेल्स की पुस्तक ”परिवार व्यक्तिगत सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति” का हस्तलिखित अनुवाद बहुत दिनों तक गोष्ठियों में घूमता रहा। व्लादीमिर इलिच मज़दूरों को मार्क्स का ग्रन्थ पूँजी पढ़कर सुनाते और उसे समझाते। वे अपने पाठ का आधा समय मज़दूरों से उनके काम और मज़दूरी के हालात के विषय में पूछने पर लगाते। और इस प्रकार उन्हें दिखाते और बताते कि उनकी जि़न्दगी समाज के पूरे ढाँचे के लिए क्या महत्त्व रखती है तथा वर्तमान व्यवस्था को बदलने का उपाय क्या है? अध्ययन मण्डलों में सिद्धान्त को व्यवहार से इस प्रकार जोड़ना व्लादीमिर इलिच के कार्य की विशेषता थी। धीरे-धीरे हमारे अध्ययन मण्डलों के अन्य सदस्यों ने भी यह तरीक़ा अपना लिया।

ज्योतिराव फुले – स्त्री मुक्ति के पक्षधर व जाति उन्मूलन आन्दोलन के योद्धा

आज जब संघी फासीवादी जातिप्रथा व पितृसत्ता के आधार पर व साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से दलितों, स्त्रियों व अल्पसंख्यकों पर हमले तीव्र कर रहे हैं, खाने-पीने-जीवनसाथी चुनने व प्रेम के अधिकार को भी छीनने की कोशिश कर रहे हैं, तब फुले को याद करने का विशेष औचित्य है। ब्राह्मणवाद व पूँजीवाद विरोधी संघर्ष तेज़ करके ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है व उनके सपनों का समाज बनाया जा सकता है।

यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर शक्तिशाली व्यक्तियों का एकाधिकार रहेगा…

एच.एस.आर.ए. के क्रान्तिकारियों की इस बढ़ती समाजवादी चेतना के कारण वे विदेशी और देशी पूँजीवाद के रिश्तों को समझ सकते थे। वे विदेशी पूँजीपतियों के साथ भारतीय पूँजीपति वर्ग के समझौतावादी, दलाली के सम्बन्ध को साफ़ तौर पर देख रहे थे, जो दोनों मिलकर जनता से उसका हक़ छीन रहे थे। वे मानते थे कि हिन्दुस्तान को एक वर्ग ने गुलाम बनाया है – जिसमें भारतीय और विदेशी दोनों शोषक शामिल हैं। यह समझदारी अनेक नारों और पर्चों में झलकती है जिनमें कहा गया है कि आज़ादी और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के ख़ात्मे के बीच सीधा रिश्ता है। देशी शोषकों से भी उनका सामना हुआ और उन्होंने साफ़ कहा कि जनता के हितों के लिए वे भी उतने ही ख़तरनाक हैं जितने कि विदेशी पूँजीवादी शासक।

सोफ़ी शोल : फासीवाद के विरुद्ध लड़ने वाली एक बहादुर लड़की की गाथा

मेडिकल छात्र हान्स और दो अन्य दोस्तों ने सोवियत संघ में पूर्वी मोर्चे पर फ़ौजी अस्पताल में काम करते हुए युद्ध की असली विभीषिका को देखा था और उन्हें पोलैण्ड और सोवियत संघ आदि में किये गये यहूदियों तथा अन्यों के निर्मम जनसंहार की ख़बरें भी पता चली थीं। इस सबने उन्हें युद्ध और नाज़ीवाद के ि‍ख़लाफ़ जर्मन जनता में प्रचार करने और प्रतिरोध संगठित करने की प्रेरणा दी।

देश के मज़दूरों की दशा – गणेशशंकर विद्यार्थी

बम्बई और मद्रास के मज़दूरों ने तंगदस्ती से परेशान होकर हड़तालें कीं, और अपनी उजरतें कुछ-कुछ बढ़वा ली हैं। परन्तु अन्य स्थानों में मज़दूरों की उजरतें उतनी ही हैं जितनी कि युद्ध के पहले थीं। उनकी मानसिक और आर्थिक उन्नति के कोई साधन नहीं। बहुत से कारख़ानों में उनके साथ असभ्य व्यवहार होता है। छोटी-छोटी बातों पर उनका अपमान होता है। उन्हें ठोकरें लगाई जाती हैं। उन्हें मारा जाता है। कारख़ाने के मालिकों और बड़े नौकरों का यह क्रूर, शुष्क और हाकिमाना बर्ताव मज़दूरों की आत्माएँ दाब देता है, उनकी स्वाधीनता मार देता है, उनमें भय पैठ जाता है, और वे डरपोक, कायर, झूठे और आत्मसम्मान के भाव से शून्य हो जाते हैं।