Category Archives: युद्ध

हिटलर को हराकर दुनिया को फासीवाद के राक्षस से मजदूरों के राज ने ही बचाया था

सच तो यह है कि स्तालिन हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के समय से ही पश्चिमी देशों को लगातार फसीवाद के ख़तरे से आगाह कर रहे थे लेकिन उस वक्त तमाम पश्चिमी देश हिटलर के साथ न सिर्फ समझौते कर रहे थे बल्कि उसे बढ़ावा दे रहे थे। स्तालिन पहले दिन से जानते थे कि हिटलर समाजवाद की मातृभूमि को नष्ट करने के लिए उस पर हमला जरूर करेगा। उन्होंने आत्मरक्षार्थ युद्ध की तैयारी के लिए थोड़ा समय लेने के वास्ते ही हिटलर के साथ अनाक्रमण सन्धि की थी जबकि दोनों पक्ष जानते थे कि यह सन्धि कुछ ही समय की मेहमान है। यही वजह थी कि सन्धि के बावजूद सोवियत संघ में समस्त संसाधनों को युद्ध की तैयारियों में लगा दिया गया था। दूसरी ओर, हिटलर ने भी अपनी सबसे बड़ी और अच्छी फौजी डिवीजनों को सोवियत संघ पर धवा बोलने के लिए बचाकर रखा था। इस फौज की ताकत उस फौज से कई गुना थी जिसे लेकर हिटलर ने आधे यूरोप को रौंद डाला थां रूस पर हमले के बाद भी पश्चिमी देशों ने लम्बे समय तक पश्चिम का मोर्चा नहीं खोला क्योंकि वे इस इन्तजार में थे कि हिटलर सोवियत संघ को चकनाचूर कर डालेगा। जब सोवियत फौजों ने पूरी सोवियत जनता की जबर्दस्त मदद से जर्मन फौजों को खदेड़ना शुरू कर दिया तब कहीं जाकर पश्चिमी देशों ने मोर्चा खोला।

गाज़ा में इज़रायल की हार

गाजा में टनों गोला-बारूद, मिसाइलें और टैंकों की अपनी पूरी ताकत खर्च कर चुकने के बावजूद इजरायल अपने मकसद में नाकामयाब रहा। उसने जिस मकसद से हमले किये थे वह तो कत्तई हासिल हुआ नहीं उल्टे दुनिया-भर में थू-थू करवाने के बाद मुँह पिटा कर वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा। अन्तरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इन हमलों से इजरायल राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य तरीके से नुकसान ही हुआ है। एक जर्मन दैनिक “स्‍युड़यूश” ने शीर्षक दिया – ‘ओल्मर्ट की कथित जीत, हार है।’

गाज़ा पट्टी में बर्बर इज़रायली हमला

पूरा साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला “आत्मरक्षा” के लिए किया है। फ़िलिस्तीनी संगठन हमास द्वारा इज़रायल में दागे जाने वाले रॉकेटों से ख़ुद को बचाने के लिए ही उसे मजबूरन दुधमुँहे बच्चों, बूढ़ी औरतों और अस्पतालों में भरती मरीजों की जान लेनी पड़ रही है। हमारे देश का मीडिया भी इसी सुर में सुर मिला रहा है या फिर इस भयानक हत्याकाण्ड को मामूली-सी खबर के तौर पर पेश कर रहा है। आतंकवाद के नाम पर दिनों-रात युद्धोन्माद और अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में लगे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इज़रायल का यह सरकारी आतंकवाद नज़र नहीं आ रहा है।

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को दरअसल किसने हराया?

जब 1941 में नाजियों ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो पूँजीवादी जगत ने घोषणा कर दी कि साम्यवाद मर गया। लेकिन उन्होंने सोवियत समाजवाद की ताकत और अपने समाज की रक्षा करने वाले सोवियत जनगण की अकूत इच्छाशक्ति को कम करके आँका। स्तालिनग्राद के कंकड़-पत्थरों में आप इस सच्चाई का दर्शन कर सकते हैं कि जनगण हथियारों के जखीरे से लैस और तकनीकी रूप से उन्नत पूँजीवादी शत्रु को कैसे परास्त कर सकते हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को दरअसल किसने हराया? (तीसरी किस्‍त)

यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि युद्ध में महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं…। मोर्चे पर दौरा करने वाला कोई भी यह देख सकता था कि महिलाएं तोपरोधी इकाइयों में बन्दूकचियों का काम कर रही थीं, जर्मन हवाबाजों के विरुद्ध लड़ाई में विमानचालकों का काम कर रही थीं, हथियारबन्द नावों के कैप्टन के रूप में, वोल्गा जहाजी बेड़ों में काम करती हुईं, उदाहरण के तौर पर, नदी के बायें तट से दायें तट पर सामान नावों में लादकर आने-जाने को काम बेहद कठिन दशाओं में कर रहीं थीं।

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को दरअसल किसने हराया? (दूसरी किस्‍त)

लेकिन जब जान की बाजी लगाकर स्तालिनग्राद को बचाये रखने के लिए लड़ाई करने के आदेश आये, तब तो जनसमुदायों को तेजी से समझ में आने लगा कि उनके कन्धों पर एक ऐतिहासिक दायित्व आ पड़ा था। लोगों के दिलों में एक अटूट एकता और दृढ़निश्चय की भावना भर उठी। उनका गर्वीला नारा गूँज उठा: ‘‘स्तालिनग्राद हिटलर की कब्र बनेगा!’’

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को दरअसल किसने हराया? (पहली किस्‍त)

दुनिया का पूँजीवादी मीडिया एक ओर नये-नये मनगढ़न्त किस्सों का प्रचार कर मज़दूर वर्ग के महान नेताओं के चरित्र हनन में जुटा रहता है वहीं दूसरी ओर नये-नये झूठ गढ़कर उसके महान संघर्षों के इतिहास की सच्चाइयों को भी उसके नीचे दबा देने की कवायदें भी जारी रहती हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में भी तरह-तरह के झूठ का प्रचार लगातार जारी रहता है। इतिहास की किताबों में भी यह सच्चाई नहीं उभर पाती कि मानवता के दुश्मन, नाजीवादी जल्लाद हिटलर को दरअसल किसने हराया?

लेनिन – हथियार और पूँजीवाद

हथियारों को एक राष्ट्रीय मामला, देशभक्ति का मामला समझा जाता है; यह माना जाता है। कि हर कोई उनके बारे में अधिकतम गोपनीयता बनाये रखेगा। लेकिन जहाज निर्माण कारखाने, तोपें, डाइनेमाइट और लघु शस्त्र बनाने के कारखाने अन्तरराष्ट्रीय उद्यम हैं, जिनमें विभिन्न देशों के पूंजीपति विभिन्न देशों की जनता को धोखा देने और मुँडने के लिए और इटली के खिलाफ ब्रिटेन के लिए और ब्रिटेन के खिलाफ इटली के लिए समान रूप से जहाज और तोपें बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं।