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सरकारों की बेरुखी का शिकार – ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना

केन्द्र की मोदी सरकार और राज्यों में भाजपा, कांग्रेस व अन्य पार्टियों की सरकारें उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को जोर-शोर से लागू कर रही हैं। लोगों को सरकार की और से दी जाने वाली सहूलतों पर कुल्हाड़ा चलाया जा रहा है। ऐसी हालत में सरकारों से ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के तहत लोगों को राहत पहुँचाने के लिए सुधारों की उम्मीद करना बेवकूफी होगी। लेकिन नरेगा मजदूरों द्वारा एकजुट होकर अगर आन्दोलन किया जाता है तो सुधार हो सकते हैं।

हरियाणा के मनरेगा मज़दूरों का संघर्ष जारी!

गत 5 फरवरी को हरियाणा के फतेहाबाद जिला में हुए मनरेगा मज़दूर के प्रदर्शन के बाद तमाम जनसंगठनों ने आगे के संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चे का निर्माण किया है जिसमें संघर्ष को चलाने के लिए एक माह की जनकार्रवाई की रूपरेखा तैयार की गई। तय किया गया की मनरेगा में काम के अधिकार के लिए फरवरी माह में फतेहाबाद के गांव-गांव में मोदी-खट्टर सरकार के पुतले दहन किये जाएँगे । साथ ही 27 फरवरी से 2 मार्च तक साझा मोर्चा के बैनर तले क्रमिक अनशन शुरू किया जाएगा।

फ़तेहाबाद, हरियाणा के मनरेगा मज़दूर संघर्ष की राह पर

हरियाणा की भाजपा सरकार ने ग्रामीण मज़दूरों को ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना’ के तहत काम देना बन्द कर दिया है। केन्द्र सरकार ने भी अपने अन्तरिम बजट में मनरेगा के तहत दी जाने वाली राशि में भारी कटौती की है। आने वाले समय में इसमें और कटौती की जानी है। मनरेगा के तहत होना तो यह चाहिए था कि रोज़गार गारण्टी को साल में 100 दिन से और ज़्यादा बढ़ाया जाता किन्तु केन्द्र सरकार ने इसे 34 दिन करने का प्रस्ताव रखा है।

नरेगा: सरकारी दावों की ज़मीनी हकीकत – एक रिपोर्ट

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक अतिपिछड़े इलाक़े मर्यादपुर में किये गये देहाती मज़दूर यूनियन और नौजवान भारत सभा द्वारा हाल ही में किये गये एक सर्वेक्षण से यह बात साबित होती है कि नरेगा के तहत कराये गये और दिखाये गये कामों में भ्रष्टाचार इतने नंगे तरीक़े से और इतने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है कि यह पूरी योजना गाँव के सम्पन्न और प्रभुत्वशाली तबक़ों की जेब गर्म करने का एक और ज़रियाभर बनकर रह गयी है। साथ ही यह बात भी ज्यादा साफ हो जाती है कि पूँजीवाद अपनी मजबूरियों से गाँव के गरीबों को भरमाने के लिए थोड़ी राहत देकर उनके गुस्से पर पानी के छींटे मारने की कोशिश जरूर करता है लेकिन आखिरकार उसकी इच्छा से परे यह कोशिश भी गरीबों को गोलबंद होने से रोक नहीं पाती है। बल्कि इस क्रम में आम लोग व्यवस्था के गरीब-विरोधी और अन्यायपूर्ण चेहरे को ज्यादा नजदीक से समझने लगते हैं और इन कल्याणकारी योजनाओं के अधिकारों को पाने की लड़ाई उनकी वर्गचेतना की पहली मंजिल बन जाती है।

नरेगा की अनियमितताओं के खिलाफ लड़ाई फैलती जा रही है

देहाती मजदूर यूनियन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में मर्यादपुर के नरेगा मजदूर और गरीबों द्वारा शुरु किया गया संघर्ष धीरे-धीरे क्षेत्र के दूसरे गाँव में फैलता जा रहा है। दरअसल दोनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को व्यापक बनाने के लिए जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं करनी शुरू कर दी है। इन सभाओं में आम मजदूरों की काफी भागीदारी दिखायी दे रही है। शेखपुर (अलीपुर), लखनौर, ताजपुर, जवाहरपुर गोठाबाड़ी, रामपुर, नेमडाड, कटघरा, लऊआ सात और अनेक दूसरे गाँवों में भी सभाओं में मजदूर भारी संख्या में पहुँचे। उन्होंने खुल कर अपनी समस्याएँ सामने रखी।