क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 19 : पूँजी का संचय
श्रम की उत्पादकता बढ़ने के साथ पूँजीपति के लिए अपने उत्पादन के साधनों के हिस्सों को बदलना, उनकी मरम्मत करना, कच्चे माल व सहायक मालों की भरपाई करना भी सस्ता हो जाता है क्योंकि ये सारी चीज़ें सस्ती हो जाती हैं। न सिर्फ़ ये चीज़ें सस्ती हो जाती हैं, बल्कि इन चीज़ों की गुणवत्ता और प्रभाविता भी श्रम की उत्पादकता बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। इसलिए वे पलटकर श्रम की उत्पादकता को और भी ज़्यादा बढ़ाती हैं। इसलिए ख़र्च होने वाले उत्पादन के साधन पूर्ण रूप में या आंशिक रूप में पहले से कम ख़र्च पर बदले जा सकते हैं और साथ ही वे उत्पादकता को और भी बढ़ाते हैं, क्योंकि उनकी प्रभाविता भी पहले से बढ़ती जाती है। यह सच है कि इसी प्रक्रिया में पहले से उत्पादन में लगी पूँजी का अवमूल्यन होता है। लेकिन यह अवमूल्यन आम तौर पर पूँजीपति वर्ग के लिए प्रतिस्पर्द्धा की प्रक्रिया में होता है और इसलिए इसकी कीमत भी पूँजीपति श्रमशक्ति के शोषण की दर को बढ़ाकर मज़दूर वर्ग से ही वसूलता है।