Category Archives: लेखमाला

मज़दूर आन्दोलन में मज़दूर अख़बार की भूमिका की एक शानदार मिसाल (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-7)

प्राव्दा ने युद्ध से पहले क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और, इसकी स्थापना के साथ ही, यह हमारे पार्टी कार्य के संचालन का प्रमुख माध्यम था। छपाई तथा वितरण से सम्बन्धित सम्पादक व कार्यकर्ता जनता को संगठित करने के काम में सीधे तौर पर जुड़ चुके थे। चाहे जितनी भी मुश्किलें आ जायें, प्रत्येक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता उनका बोल्शेविक अख़बार हर रोज़ पाना और पढ़ना अपनी जि़म्मेदारी समझता था। प्रत्येक कॉपी हाथो-हाथ बाँटी जाती और तमाम मज़दूरों द्वारा पढ़ी जाती थी। इस अख़बार ने उनकी वर्ग-चेतना को अभिव्यक्ति प्रदान की, उन्हें शिक्षित और संगठित किया।

पुतीलोव कारख़ाने के मज़दूरों पर गोलीबारी और उसके विरुद्ध संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-6)

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में छठी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़ें सीखी जा सकती हैं।

टेक्सटाइल और तेल मज़दूरों का शानदार संघर्ष और बोल्शेविकों का काम (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-5)

प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में पाँचवी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं।

ज़हर का शिकार बनती स्त्री मज़दूरों के सवाल पर संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-4)

मज़दूरों का गुस्सा बढ़ गया और अगले दिन लगभग 120,000 मज़दूरों ने हड़ताल आन्दोलन में भाग लिया। पार्टी प्रकोष्ठ ने सभी फ़ैक्टरियों में शुरुआती आन्दोलन जारी रखे और पुलिस ने किसी भी तरह की कार्रवाई को रोकने के प्रयास किये। मज़दूरों के इलाक़ों में सघन तलाशियाँ ली गयीं और बहुत सारे मज़दूर गिरफ़्तार किये गये। गुप्त पुलिस ने मज़दूर संगठनों और बीमा समितियों के नेताओं पर विशेष ध्यान दिया, जिनमें से अधिकांश पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे। सभी नेताओं को ढूँढ़ निकालने की इस कोशिश के बावजूद आन्दोलन ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि पुलिस उसका मुक़ाबला करने में सक्षम नहीं रह गयी। 

गोदी मज़दूरों का संघर्ष और बोल्शेविकों का काम (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-3)

उनका उदारवाद एक ठकोसला था। उनका मक़सद महज़ बिल्कुल स्पष्ट प्रतिक्रियावादी क़दम उठाकर जनता को क्षुब्ध करने से बचना था। लेकिन असलियत में वे भी मैक्लाकोव, श्चेग्लोवितोव और दूसरे सामूहिक हत्यारों की ही तरह ब्लैक हण्ड्रेड्स की नीति पर अमल करते थे। ग्रिगोरोविच का “तर्कसंगत” रवैया बहुसंख्य अक्टूबरवादियों को इतना प्रिय था कि आगे चलकर जब अक्टूबरवादी विपक्ष में थे, रोड्ज़ियाँको ने ग्रिगोरोविच को ज़िम्मेदार मन्त्रीमण्डल का प्रधानमन्त्री बनाने की पेशकश की।

लेसनर कारख़ाने में हड़ताल और बोल्शेविकों का काम (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-2)

प्रथम विश्वयुद्ध के ठीक पहले के वर्षों में ऐसी अनेक घटनाएँ हुईं जब पीटर्सबर्ग शहर के मज़दूरों ने अपनी मज़बूत एकजुटता और संगठित ताक़त का परिचय दिया। लेकिन सघन और बहादुराना संघर्षों के इस दौर में लेसनर के कारख़ाने में हुई हड़ताल का ख़ास महत्व था। यह हड़ताल 1913 की पूरी गर्मियों के दौरान चली थी। इस हड़ताल के कारण, इसकी लम्बी अवधि और आम लोगों के बीच इसने जो व्यापक हमदर्दी हासिल की उसने इसे युद्ध से पहले के वर्षों में मज़दूर आन्दोलन की सबसे शानदार घटनाओं में से एक बना दिया।

टेक्स्टाइल उद्योग में हड़ताल और बोल्शेविकों का काम (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-1)

21 जनवरी को, कार्डिंग विभाग के तीस मज़दूरों को बिना कोई नोटिस दिये यह कह दिया गया कि आज से उनकी मज़दूरी 10 कोपेक प्रतिदिन कम कर दी गयी है। अगली सुबह इस विभाग के मज़दूरों ने मज़दूरी की पुरानी दर बहाल करने के लिए हड़ताल की घोषणा कर दी। मैनेजमेंट यही तो चाहता था। उस रात जब नयी शिफ़्ट के लोग काम पर आये, तो भाप की मशीनें रोक दी गयीं, बत्तियाँ बुझा दी गयीं, और आने वाले मज़दूरों से कह दिया गया कि फ़ैक्ट्री में अनिश्चित काल तक काम बन्द रहेगा और सभी मज़दूरों का हिसाब कर दिया जायेगा। ज़ाहिर था कि मालिकान भड़कावे की कार्रवाई कर रहे हैं। तीस मज़दूरों की माँगें पूरी करने में उन्हें सिर्फ़ 3 रूबल प्रतिदिन ख़र्च करना पड़ता, लेकिन इसकी वजह से 1200 मज़दूर, जो हड़ताल में शामिल भी नहीं थे, बेरोज़गारी और भुखमरी की ओर धकेले जा रहे थे।

स्त्री मज़दूरों और उनकी माँगों के प्रति पुरुष मज़दूरों का नज़रिया

समूचे मज़दूर वर्ग की मुक्ति के लिए, ज़रूरी है कि सामाजिक गतिविधियों और आर्थिक राजनीतिक संघर्षों में उस आधी आबादी की भागीदारी को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाया जाये जो घरेलू ग़ुलामी के बन्धनों में जकड़ी हुई है। पुरुष मज़दूरों की राजनीतिक शिक्षा का यह एक बुनियादी मुद्दा है कि शेष आधी आबादी को सच्चे मायने में बराबरी का दर्जा देकर पूँजी के विरुद्ध संघर्ष में भागीदार बनाये बिना मज़दूर मुक्ति का लक्ष्य कभी भी हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए सतत् राजनीतिक शिक्षा और प्रचार के साथ ही सभी पुरुष- स्वामित्ववादी मूल्यों-मान्यताओं- संस्कृति के विरुद्ध एक निरन्तर अभियान चलाना होगा। साथ ही स्त्री मज़दूरों को भी अपनी गुलाम मानसिकता, संस्कार और रूढ़ियों से छुटकारा पाना होगा। न सिर्फ सामाजिक उत्पादन के क्षेत्र में सर्वहारा घरों की स्त्रियों को ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करना होगा, बल्कि मज़दूरों के रोजमर्रा के संघर्षों और दूरगामी राजनीतिक संघर्ष की प्रक्रिया (पूँजी की सत्ता का ध्वंस करके मज़दूर सत्ता की स्थापना का संघर्ष) में भी उन्हें अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। स्त्री मज़दूर अपने अधिकारों के लिए भी सफलतापूर्वक तभी लड़ सकती हैं जब समूचे मज़दूर वर्ग के अधिकारों की लड़ाई में भी उसकी भागीदारी हो, यानी उसकी माँग समूचे मज़दूर वर्ग के माँगपत्रक का एक भाग हो।

माँगपत्रक शिक्षणमाला – 12 बाल मज़दूरी और जबरिया मज़दूरी के हर रूप का ख़ात्मा मज़दूर आन्दोलन की एक अहम माँग है

बाल मज़दूरी के मुद्दे को पूरी आबादी के रोज़गार और समान एवं सर्वसुलभ शिक्षा के मूलभूत अधिकार के लिए संघर्ष से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। जो व्यवस्था सभी हाथों को काम देने के बजाय करोड़ों बेरोज़गारों की विशाल फौज में हर रोज़ इज़ाफा कर रही है, जिस व्यवस्था में करोड़ों मेहनतकशों को दिनो-रात खटने के बावज़ूद न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती, उस व्यवस्था के भीतर से लगातार बाल-मज़दूरों की अन्तहीन क़तारें निकलती रहेंगी। उस व्यवस्था पर ही सवाल उठाये बिना बच्चों को बचाना सम्भव नहीं, बाल मज़दूरों की मुक्ति सम्भव नहीं।

माँगपत्रक शिक्षणमाला – 11 स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों से जुड़ी विशेष माँगें

अलग-अलग स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी तय की जाये जो ‘राष्ट्रीय तल-स्तरीय न्यूनतम मज़दूरी’ से ऊपर हो। इनके लिए भी आठ घण्टे के काम का दिन तय हो और उससे ऊपर काम कराने पर दुगनी दर से ओवरटाइम का भुगतान किया जाये। रिक्शेवालों, ठेलेवालों के लिए प्रति किलोमीटर न्यूनतम किराया भाड़ा व ढुलाई दरें तय की जायें तथा जीवन-निर्वाह सूचकांक के अनुसार इनकी प्रतिवर्ष समीक्षा की जाये व पुनर्निर्धारण किया जाये। इसके लिए राज्य सरकारों को आवश्यक श्रम क़ानून बनाने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से दिशा-निर्देश जारी किये जायें। दिहाड़ी मज़दूरों से सम्बन्धित नियमों-क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हर ज़िले में डी.एल.सी. कार्यालय में अलग से पर्याप्त संख्या में निरीक्षक होने चाहिए, जिनकी मदद के लिए निगरानी समितियाँ हों जिनमें दिहाड़ी मज़दूरों के प्रतिनिधि, मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधि तथा जनवादी अधिकारों एवं श्रम अधिकारों की हिफाज़त के लिए सक्रिय नागरिक एवं विधिवेत्ता शामिल किये जायें।