Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

पाँच राज्यों में सम्पन्न चुनावों के नतीजे और सर्वहारा वर्गीय नज़रिया

मार्च-अप्रैल 2021 में बंगाल सहित चार राज्यों असम, तमिलनाडु, केरल और पुद्दुचेरी केन्द्रशासित प्रदेश में सम्पन्न विधानसभा चुनावों के परिणाम हाल में सामने आये हैं। पश्चिम बंगाल में सत्ता फिर से तृणमूल कांग्रेस के हाथ में आयी है, जबकि यहाँ भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। असम में भी एक बार फिर से भाजपा गठबन्धन की सरकार बनने जा रही है। तमिलनाडु में कांग्रेस के साथ मिलकर द्रमुक गठबन्धन चुनाव में विजयी हुआ है और भाजपा के सहयोगी अन्नाद्रमुक गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा है।

इस देशव्यापी जनसंहार के लिए फ़ासिस्ट मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही ज़िम्मेदार है!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश में क़हर बरपा कर रही है। बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन जैसी बुनियादी ज़रूरत के अभाव, अस्पतालों में बेडों की कमी, जीवन रक्षक दवाओं की अनुपलब्धता व अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं। अस्पतालों के बाहर लोग रोते-बिलखते असहायता के साथ अपनों को मरता देख रहे हैं। कोरोना मामलों की प्रतिदिन संख्या इतनी अधिक है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कन्धे भी इसके बोझ तले दब गये हैं।

उत्तर प्रदेश में “विकास” और रोज़गार के योगी के दावे बनाम असलियत

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार केन्द्र की मोदी सरकार के नक़्शे क़दम पर चलती नज़र आ रही है। ‘चोर मचाये शोर’ की बात चरितार्थ होते दिख रही है। बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाकर, सारे प्रमुख अख़बारों में विज्ञापन देकर सरकार चार साल के कारनामों को हर जनता तक पहुँचा देना चाहती है। 2017 के चुनावी घोषणापत्र को देखने पर ऐसा लगता है कि अब विकास की गंगा यूपी में हिलोरे मारेगी। एक दरबारी ने तो योगी को भगवा समाजवादी तक घोषित कर दिया।

फ़ासीवादी सरकार द्वारा प्रायोजित दिल्ली दंगों का एक साल

पिछले साल देश की राजधानी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में 23 फ़रवरी से 25 फ़रवरी को जो हिंसा हुई, उसे मीडिया द्वारा ‘दिल्ली दंगा-2020’ का नाम दिया गया। इस हिंसा में तक़रीबन 55 लोगों की मौत हुई, 200 से अधिक लोग घायल हुए और अरबों की सम्पत्ति का नुक़सान हुआ। जिन दिल्ली दंगों को गोदी मीडिया द्वारा हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच हुई हिंसा व दंगा कहा जा रहा है, वे असल में दिल्ली में राज्य की शह पर संघ-भाजपा द्वारा प्रायोजित साम्प्रदायिक हिंसा थी।

मोदी सरकार की अय्याशी और भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान : सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

कोरोना महामारी के इस दौर में जब लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं हैं, स्वास्थ्य सेवाएँ लचर हैं, करोड़ों लोग रोज़गार खो चुके हैं और भारी आबादी दो वक़्त की रोटी के लिए मुहताज है, वहीं ख़ुद को देश का प्रधानसेवक कहने वाले प्रधानमंत्री ने 20 हजार करोड़ रूपये का एक ऐसा प्रोजेक्ट लाँच किया है जिससे जनता को कुछ नहीं मिलने वाला।

कोरोना वैक्सीन के नाम पर जारी है बेशर्म राजनीति

मोदी सरकार देश में हर उपलब्धि का सेहरा ख़ुद के सिर बाँधने और हर विफलता का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोड़ने के लिए कुख्यात है। कोरोना महामारी के दौर में भी सरकार का ज़ोर इस महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ख़ुद के लिए वाहवाही लूटने पर रहा है। जिन लोगों की राजनीतिक याददाश्त कमज़ोर नहीं है उन्हें याद होगा कि किस प्रकार सरकार ने इण्डियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के ज़रिये वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों पर दबाव डाला था कि 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन तैयार हो जानी चाहिए ताकि प्रधान सेवक महोदय लाल किले से दहाड़कर वैक्सीन की घोषणा कर सकें और ख़ुद की पीठ थपथपा सकें।

“लव जिहाद” का झूठ संघ परिवार के दुष्प्रचार का हथियार है!

देश के पाँच राज्यों में तथाकथित लव जिहाद के विरोध के नाम पर क़ानून बनाने के ऐलान हो चुके हैं। जिन पाँच राज्यों में “लव जिहाद” के नाम पर क़ानून बनाने को लेकर देश की सियासत गरमायी हुई है वे हैं: उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, असम और कर्नाटक। कहने की ज़रूरत नहीं है कि उपरोक्त पाँचों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की ख़ुद की या इसके गठबन्धन से बनी सरकारें क़ायम हैं। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार तो नया क़ानून ला भी चुकी है लेकिन इसने बड़े ही शातिराना ढंग से इसका नाम ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध क़ानून – 2020’ रखा है जिसमें लव जिहाद शब्द का कोई ज़िक्र तक नहीं है।

भारत-अमेरिका रक्षा समझौता देश की सम्प्रभुता और सामरिक आत्मनिर्णय से समझौता है!

निशाना लगाते समय हमें अमेरिकी उपग्रह और उसके सैन्य संचालकों का सहारा लेना होगा और उन्हीं के माध्यम से भारत को एन्क्रिप्टेड डेटा प्राप्त होगा। यानी अगर भारत को किसी पर निशाना लगाना है तो उसके लिए भी अमेरिका की सहमति आवश्यक होगी। कुल मिलाकर भारतीय सैन्य तंत्र का ढाँचा और युद्ध सामग्री अमेरिका की निगरानी में चली जायेगी। और ये बिल्कुल सम्भव है कि अमेरिका भारत के किसी सैन्य निर्णय को आसानी से प्रभावित कर सके। यह किसी भी सूरत में एक सम्प्रभु राष्ट्र के लिए और उसके सामरिक आत्मनिर्णय के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।

मज़दूर वर्गीय काडर-आधारित आन्दोलन के नेतृत्व में फ़ासीवाद का जनप्रतिरोध खड़ा करना होगा

ये समझना ज़रूरी है कि “फ़ासीवाद” महज़ दक्षिणपन्थी ताक़तों या अपने अन्य विरोधियों के लिए विशेषण या गाली के रूप में इस्तेमाल होने वाली भड़ास वाली चलताऊ शब्दावली नहीं है, बल्कि राजनीतिक अर्थशास्त्र में इस्तेमाल होने वाली एक क्लासिकीय शब्दावली है। “फ़ासीवाद” का अर्थ है वित्तीय पूँजी की निरंकुश तानाशाही, उसका काडर आधारित सामाजिक आन्दोलन, व जिसका आधार मुख्यतः टटपुँजिया वर्ग और मध्यवर्ग के बीच होता है, व इसके अलावा मज़दूर वर्ग के एक छोटे से हिस्से के बीच भी मौजूद होता है।

जनता की भुखमरी और बेरोज़गारी के बीच प्रधानमंत्री की अय्याशियाँ

आज देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट जारी है, वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत नेपाल, म्यामार और श्रीलंका जैसे देशों से भी पीछे जा चुका है, देश में बेरोज़गारी की हालत पिछले 46 सालों में सबसे बुरी है, लोगों के रहे-सहे रोज़गार भी छिन गये हैं, महँगाई आसमान छू रही है, मेहनत-मज़दूरी करने वाले लोग मुश्किल से गुज़ारा कर रहे हैं। मगर ख़ुद को प्रधानसेवक कहने वाले हमारे प्रधानमंत्री महोदय बड़ी ही बेशर्मी के साथ आये दिन ऐय्याशियों के नये-नये कीर्तिमान रच रहे हैं।