अपराध-सम्बन्धी क़ानूनों में बदलाव के पीछे मोदी सरकार की असल मंशा क्या है?
इन नये क़ानूनों के ज़रिये मोदी सरकार अपनी फ़ासीवादी तानाशाही को एक क़ानूनी जामा पहनाने का काम कर रही है। जन प्रतिरोध के सभी रूपों को कुचल देने की मंशा से ही ये नये जनविरोधी क़ानून तैयार किये गये हैं। साथ ही, इन नये क़ानूनी बदलावों के ज़रिये पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाले अन्य निकायों जैसे कि न्यायपालिका, नौकरशाही, पुलिस, फ़ौज इत्यादि की भी क़ानूनी रास्ते से नकेल कसने की तैयारी की जा रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय फ़ासीवादियों द्वारा लम्बे समय से इन सभी बुर्जुआ संस्थानों के भीतर घुसपैठ जारी थी और आज भी है, जिसके ज़रिये इनके द्वारा अपने लोग हर निकाय में व्यवस्थित तरीक़े से बैठाये भी गये हैं और इसलिए एक हद तक इन सभी निकायों का भीतर से फ़ासीवादीकरण करने में भारतीय फ़ासिस्ट सफल भी रहे हैं। हालाँकि अब क़ानूनी तौर पर भी इन संस्थानों का फ़ासीवादियों द्वारा अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किये जाने का रास्ते साफ़ किया जा रहा है। लेकिन इन नये बदलावों का सबसे गम्भीर और बुरा प्रभाव इस देश के मज़दूरों और आम मेहनतकाश आबादी पर पड़ने वाला है इसलिए मज़दूर वर्ग को इन बदलावों के निहितार्थ समझने होंगे और अपनी लामबन्दी इसके अनुसार करनी होगी।