Category Archives: स्‍वास्‍थ्‍य

पूँजीवाद और स्वास्थ्य सेवाओं की बीमारी

भारतीय संविधान के भाग 3, आर्टिकल 21 में एक मूलभूत अधिकार दिया गया है जिसको जीवन की रक्षा का अधिकार कहा जाता है, और साथ ही संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार करने को राज्य के कर्तव्य की बात कही गयी है। इस प्रकार हमारे देश के हर नागरिक के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा और देखभाल की ज़िम्मेदारी सीधे तौर पर सरकार की है। लेकिन असल में होता इसका उल्टा है।

बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ सरकार की मजबूरी या साज़िश?

किसी भी देश में सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह उस देश की जनता के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर का ख़याल रखे। सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सरकारें लोगों के स्वास्थ्य का ख़याल रखने का दिखावा करती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दिखावा भी बन्द होने लगा है। ख़ासतौर पर 1990 के दशक के बाद से सरकारें बेशर्मी के साथ जनता के हितों को रद्दी की टोकरी में फेंकती जा रही हैं। पिछले 20 साल में तो इस बेशर्मी में सुरसा के मुँह की तरह इज़ाफ़ा हुआ है और यह इज़ाफ़ा लगातार अधिक होता जा रहा है।

राजधानी दिल्ली की बेह‍तर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे और हक़ीक़त

कोरोना महामारी ने हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली की “विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं” के केजरीवाल सरकार के दावे की भी पोल खोल दी। हमारे देश में पिछले साल आयी कोरोना महामारी के समय भी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के इन्तज़ाम बेहतर नहीं थे, पर अब आयी कोरोना की दूसरी लहर ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के ख़स्ता हालात को और भी उजागर कर दिया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक (9 मई 2021) दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 19,071 लोगों की मौतें हो चुकी थीं, संक्रमित लोगों की संख्या 87,907 थी और प्रतिदिन औसतन 20,000 लोग संक्रमित दर्ज किये जा रहे थे।

क्रान्तिकारी समाजवाद ने किस प्रकार महामारियों पर क़ाबू पाया

पिछले डेढ़ वर्ष से जारी कोरोना वैश्विक महामारी ने न सिर्फ़ तमाम पूँजीवादी देशों की सरकारों के निकम्मेपन को उजागर किया है बल्कि पूँजीवादी चिकित्सा व्यवस्था के जनविरोधी चरित्र को भी पूरी तरह से बेनक़ाब कर दिया है और पूँजीवाद के सीमान्तों को उभारकर सामने ला दिया है। मुनाफ़े की अन्तहीन सनक पर टिके पूँजीवाद की क्रूर सच्चाई अब सबके सामने है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी की विलक्षण प्रगति का इस्तेमाल महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के नये अवसर तलाशने के लिए किया जा रहा है।

आज़ाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति: एक ऐतिहासिक रूपरेखा

आज़ाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति: एक ऐतिहासिक रूपरेखा – आनन्द सिंह भारत में आम लोग कोरोना महामारी के पहले से ही अपने अनुभव से भारत में स्वास्थ्य सेवाओं…

“महाशक्ति” बनते देश में ऑक्सीजन, दवा, बेड की कमी से दम तोड़ते लोग!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर भयावह रूप धारण कर चुकी है। इस दौरान विश्वगुरु भारत की चिकित्सा व्यवस्था के हालात भी खुलकर हमारे सामने आ गये हैं। देश में कोविड से होने वाली मौतों का आँकड़ा 2,38,270 पार कर चुका है। हर रोज़ 4.01 लाख से अधिक कोरोना पॉज़िटिव मामले दर्ज किये जा रहे हैं वहीं 4,187 मौतें आये दिन हो रही हैं। असल में संक्रमित लोगों और कोरोना से होने वाली मौतों के आँकड़े इससे कहीं अधिक हैं जिन्हें सरकार व मीडिया द्वारा लगातार दबाया जा रहा है।

इस देशव्यापी जनसंहार के लिए फ़ासिस्ट मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही ज़िम्मेदार है!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश में क़हर बरपा कर रही है। बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन जैसी बुनियादी ज़रूरत के अभाव, अस्पतालों में बेडों की कमी, जीवन रक्षक दवाओं की अनुपलब्धता व अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं। अस्पतालों के बाहर लोग रोते-बिलखते असहायता के साथ अपनों को मरता देख रहे हैं। कोरोना मामलों की प्रतिदिन संख्या इतनी अधिक है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कन्धे भी इसके बोझ तले दब गये हैं।

कोविड 19 वैक्सीन : एक पड़ताल

बीता साल पूरी तरह से कोरोना वायरस के नाम रहा। पूरे साल कोरोना वायरस (SARS CoV 2) ने पूरे विश्व में क़हर बरपा कर रखा हुआ था। नये साल में हालाँकि इसके केसों में काफ़ी हद तक कमी आई है और अब अलग-अलग वैक्सीन भी आ चुकी हैं लेकिन फिर भी यह बीमारी पूरी तरह से कब तक क़ाबू में आयेगी कुछ कहा नहीं जा सकता।

डॉक्टरों-नर्सों पर फूल बरसाने की सरकारी नौटंकी, मगर अपना हक़ माँगने पर सुनवाई तक नहीं

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्‍स) के नर्सिंग स्टाफ़ के लोग लम्‍बे समय से अपनी माँगों को अनसुना किये जाने से नाराज़ थे और बार-बार की उपेक्षा से तंग आकर बीते 14 दिसम्‍बर को एम्‍स में कार्यरत 5000 नर्सिंग स्टॉफ ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी थी। उनकी मुख्य मांगें थीं छठे केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करना और कॉन्ट्रैक्ट आधारित भर्ती ख़त्म करना। एम्‍स के कर्मचारियों का कहना है कि सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियाँ घोर मज़दूर विरोधी हैं।

कोरोना वैक्सीन के नाम पर जारी है बेशर्म राजनीति

मोदी सरकार देश में हर उपलब्धि का सेहरा ख़ुद के सिर बाँधने और हर विफलता का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोड़ने के लिए कुख्यात है। कोरोना महामारी के दौर में भी सरकार का ज़ोर इस महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ख़ुद के लिए वाहवाही लूटने पर रहा है। जिन लोगों की राजनीतिक याददाश्त कमज़ोर नहीं है उन्हें याद होगा कि किस प्रकार सरकार ने इण्डियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के ज़रिये वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों पर दबाव डाला था कि 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन तैयार हो जानी चाहिए ताकि प्रधान सेवक महोदय लाल किले से दहाड़कर वैक्सीन की घोषणा कर सकें और ख़ुद की पीठ थपथपा सकें।