Category Archives: मज़दूर आन्दोलन की समस्‍याएँ

क्या सारे किसानों के हित और माँगें एक हैं?

जब तक सामन्तवाद था और सामन्ती भूस्वामी वर्ग था, तब तक धनी किसान, उच्च मध्यम किसान, निम्न मध्यम किसान, ग़रीब किसान व खेतिहर मज़दूर का एक साझा दुश्मन था। आज निम्न मँझोले किसानों, ग़रीब किसानों व खेतिहर मज़दूरों के वर्ग का प्रमुख शोषक और उत्पीड़क कौन है? वे हैं गाँव के पूँजीवादी भूस्वामी, पूँजीवादी फ़ार्मर, सूदखोर और आढ़तियों-बिचौलियों का पूरा वर्ग। इस शोषक वर्ग की माँगें और हित बिल्कुल अलग हैं और गाँव के ग़रीबों की माँगें और हित बिल्कुल भिन्न हैं।

किसान आन्दोलन के सन्दर्भ में मेरे गाँव के कुछ अनुभव

अभी हाल ही में मेरा गाँव जाना हुआ (जो उत्तर प्रदेश के फै़ज़ाबाद ज़ि‍ले में है)। मुझे पहले थोड़ा आश्चर्य हुआ कि गाँव में या रास्ते में बस और टैक्सी में लोगों के बीच किसान आन्दोलन की कोई सुगबुगाहट या चर्चा तक नहीं सुनाई पड़ी। जबकि शहरों में “अन्नदाताओं के आन्दोलन” को लेकर मध्यम वर्ग में काफ़ी भावुकतापूर्ण उद्गार सुनने को मिल रहे थे। मेरे परिचितों में भी और सोशल मीडिया के ज़रिए भी।

मौजूदा किसान आन्दोलन और लाभकारी मूल्य का सवाल

किसान आन्दोलन को चलते हुए अब क़रीब डेढ़ महीना बीत चुका है। हज़ारों किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर इकट्ठा हैं। हम मज़दूरों और मेहनतकशों को जानना चाहिए कि इस आन्दोलन की माँगें क्या हैं। केवल तभी हम यह तय कर सकते हैं कि हमारा इसके प्रति क्या रवैया हो। हम मज़दूरों और मेहनतकशों के लिए सरकार के उन तीन कृषि क़ानूनों का क्या अर्थ है, जिनके ख़िलाफ़ यह आन्दोलन जारी है? हमारे लिए यह समझना भी ज़रूरी है, क्योंकि तभी हम इन तीन क़ानूनों को अलग-अलग समझ सकते हैं और आन्दोलन के प्रति अपना रुख़ तय कर सकते हैं।

भारत के नव-नरोदवादी “कम्युनिस्टों” और क़ौमवादी “मार्क्सवादियों” को फ़्रेडरिक एंगेल्स आज क्या बता सकते हैं?

28 नवम्बर 1820 को सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र फ़्रेडरिक एंगेल्स का जन्म हुआ था। द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्तों का कार्ल मार्क्स के साथ विकास करने वाले हमारे इस महान नेता ने पहले कार्ल मार्क्स के साथ और 1883 में मार्क्स की मृत्यु के बाद 1895 तक विश्व सर्वहारा आन्दोलन को नेतृत्व दिया। मार्क्सवाद के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को स्थापित करने के अलावा इन सिद्धान्तों की रोशनी में उन्होंने इतिहास, विचारधारा, एंथ्रोपॉलजी और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे शोध-कार्य किये, जिन्‍हें पढ़ना आज भी इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है।

नोएडा के शोषण-उत्पीड़न झेलते दसियों लाख मज़दूर, पर एकजुट संघर्ष और आन्दोलन का अभाव

उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास क़ानून नोएडा में 1976 में आपातकाल के दौर में से अस्तित्व में आया। नोएडा भारतीय पूँजीवादी व्यवस्था की महत्वाकांक्षी परियोजना दिल्ली-मुम्बई इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर का प्रमुख बिन्दु बनता है। आज नोएडा में भारत की सबसे उन्नत मैन्युफ़ैक्चरिंग इकाइयों के साथ ही सॉफ़्टवेयर उद्योग, प्राइवेट कॉलेज, यूनिवर्सिटी और हरे-भरे पार्कों के बीच बसी गगनचुम्बी ऑफ़िसों की इमारतें और अपार्टमेण्ट स्थित हैं। दूसरी तरफ़ दादरी, कुलेसरा, भंगेल सरीखे़ गाँवों में औद्योगिक क्षेत्र के बीचों-बीच और किनारे मज़दूर आबादी ठसाठस लॉजों और दड़बेनुमा मकानों में रहती है।

कृषि अध्‍यादेशों का विरोध मज़दूर वर्ग और ग़रीब किसान वर्ग किस ज़मीन से करेगा?

हमारे देश में क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन आज एक संकट का शिकार है। देश में फ़ासीवादी उभार और दुनिया भर में किसी समाजवादी शिविर की ग़ैर-मौजूदगी के कारण आज के दौर में उन क्रान्तिकारियों के पास उत्‍साह के स्रोतों का अभाव है, जो विज्ञान की समझ और उस पर भरोसे से अपने आशावाद को ग्रहण करते, बल्कि ठोस मिसालों, घटनाओं या नेताओं की मौजूदगी से अपने आशावाद को पालते-पोसते हैं। आज की दुनिया में उनके पास ऐसी कोई ठोस मिसाल नहीं है। नतीजतन, वे अपने आशावाद के लिए हर प्रकार के अवांछनीय स्रोतों पर जाते हैं। कुछ मिसालों से समझिए।

ਖੇਤੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤਿੰਨ ਆਰਡੀਨੈਂਸ, ਮੌਜੂਦਾ ਕਿਸਾਨ ਲਹਿਰ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਮਾਤ

ਮੌਜੂਦਾ ਲੇਖ ‘ਚ ਅਸੀਂ ਤਫ਼ਸੀਲ ਨਾਲ ਚਰਚਾ ਕਰਾਂਗੇ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤੀ ਆਰਡੀਨੈਂਸਾਂ ਨਾਲ ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਫਾਇਦਾ ਹੋਵੇਗਾ, ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਵੇਗਾ, ਮੌਜੂਦਾ ਕਿਸਾਨ ਲਹਿਰ ਦਾ ਜਮਾਤੀ ਖਾਸਾ ਕੀ ਹੈ, ਅਤੇ ਕੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਮਾਤ ਇਨ੍ਹਾਂ ਆਰਡੀਨੈਂਸਾਂ ਦੀਆਂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬ-ਵਿਰੋਧੀ ਸਥਾਪਨਾਵਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਪਿੰਡ ਦੀ ਸਰਮਾਏਦਾਰ ਜਮਾਤ, ਯਾਨੀ ਅਮੀਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਕੁਲਕਾਂ ਦੇ ਮੰਚ ਤੋਂ ਕਰ ਸਕਦੀ ਹੈ?

कृषि-सम्‍बन्‍धी तीन अध्‍यादेश, मौजूदा किसान आन्‍दोलन और मज़दूर वर्ग

मौजूदा लेख में हम विस्‍तार से चर्चा करेंगे कि इन कृषि-सम्‍बन्‍धी अध्‍यादेशों से किन्‍हें लाभ होगा, किन्‍हें नुक़सान होगा, मौजूदा किसान आन्‍दोलन का वर्ग चरित्र क्‍या है, और क्‍या मज़दूर वर्ग इन अध्‍यादेशों के मज़दूर व ग़रीब-विरोधी प्रावधानों का विरोध गाँव के पूँजीपति वर्ग, यानी धनी किसानों व कुलकों के मंच से कर सकता है?

मज़दूरों पर बढ़ते हमलों के इस समय में करोड़ों की सदस्यता वाली केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें कहाँ हैं?

पाँच करोड़ संगठित पब्लिक सेक्टर के मज़दूरों की सदस्यता वाली ट्रेड यूनियनें तब एकदम चुप मारकर बैठी हैं जब मज़दूर वर्ग पर चौतरफ़ा हमले हो रहे हैं और बेरोज़गारी का स्तर 45 सालों में सबसे ज्यादा है । उन्हें ठेके पर काम कर रहे या छोटे कारखानों में लगे करोड़ों असंगठित मज़दूरों के बिगड़ते हालात से कोई ़फ़र्क नहीं पड़ता । देश की 51 करोड़ खाँटी मज़दूर आबादी में 84 फ़ीसदी आबादी असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की हैं, परन्तु सीटू, एटक, एचएमएस जैसी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें न तो उनके मुद्दे उठाती हैं और न ही उनके बीच इनका कोई आधार है । कांग्रेसी यूनियन इंटक और संघी यूनियन बीएमएस से तो इसकी उम्मीद करना ही बेवकूफ़ी है।

Important

मन्दी के बीच मज़दूरों के जीवन के हालात और संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की दलाली

मन्दी के हालात पर बात करते हुए पहले स्टील फ़ैक्ट्री में काम करने वाले बिगुल संवाददाता विष्णु ने बताया कि जहाँ ठण्डा रोला की फ़ैक्ट्री में एक कारीगर को 8 घण्टे काम करने के लिए तनख़्वाह 9000 रुपए मिलता था तो अब ज़्यादातर फ़ैक्ट्री में मालिक दिहाड़ी पर 8 घण्टे के 250 रुपए दे रहा है। आम तौर पर दिहाड़ी में 50 रुपए तक की कमी हुई है। यह बात न सिर्फ ठण्डा रोला फ़ैक्ट्री के लिए सच है बल्कि आम तौर पर पूरे सेक्टर में मन्दी की वजह से वेतन कम हुआ है। वज़ीरपुर से लेकर सब जगह यही हाल है। फ़ैक्ट्री मालिक किसी भी बात के बहाने से मज़दूर को काम से निकाल देता है और काम की असुरक्षा बढ़ गयी है।