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केन्द्रीय बजट : पूँजीपरस्त नीतियों पर जनपक्षधरता का मुलम्मा चढ़ाने का प्रयास

गत एक फ़रवरी को केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा संसद में वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत करने के बाद शेयर बाज़ार में रिकॉर्डतोड़ उछाल देखने में आया। वजह साफ़ थी! यह बजट पूँजीपतियों के लिए मुँहमाँगे तोहफ़े से कम नहीं था।
टीवी चैनलों पर पूँजीपतियों के भाड़े पर काम करने वाले भाँति-भाँति के विशेषज्ञों ने इस बजट की तारीफ़ों के पुल बाँधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी ने बजट को ऐतिहासिक बताया तो किसी ने इसे अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी की संज्ञा दी। लेकिन सच्चाई तो यह थी कि यह बजट आर्थिक संकट के दौर में मुनाफ़े की गिरती दर के ख़तरे से बिलबिलाये पूँजीपति वर्ग के लिए संजीवनी के समान था।

कोरोना वैक्सीन के नाम पर जारी है बेशर्म राजनीति

मोदी सरकार देश में हर उपलब्धि का सेहरा ख़ुद के सिर बाँधने और हर विफलता का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोड़ने के लिए कुख्यात है। कोरोना महामारी के दौर में भी सरकार का ज़ोर इस महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ख़ुद के लिए वाहवाही लूटने पर रहा है। जिन लोगों की राजनीतिक याददाश्त कमज़ोर नहीं है उन्हें याद होगा कि किस प्रकार सरकार ने इण्डियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के ज़रिये वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों पर दबाव डाला था कि 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन तैयार हो जानी चाहिए ताकि प्रधान सेवक महोदय लाल किले से दहाड़कर वैक्सीन की घोषणा कर सकें और ख़ुद की पीठ थपथपा सकें।

महामारी के दौर में भी चन्द अरबपतियों की दौलत में भारी उछाल! या इलाही ये माज़रा क्या है?

इस साल कोरोना महामारी के बाद भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में लम्बे समय तक आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया जिसकी वजह से दुनिया भर में उत्पादन की मशीनरी ठप हो गयी और विश्व पूँजीवाद का संकट और गहरा गया। लेकिन हाल ही में कुछ संस्थाओं की ओर से जारी किये गये आँकड़े यह दिखा रहे हैं कि महामारी के दौर में भारत और दुनिया के कई अरबपतियों की सम्पत्ति में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है। ये आँकड़े यह साबित करते हैं कि इन अरबपतियों ने गिद्ध की भाँति आपदा में भी अवसर खोज लिया है जिसकी इजाज़त मौजूदा व्यवस्था ही देती है।