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लखनऊ का तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र जहाँ कोई नहीं जानता कि श्रम क़ानून किस चिड़िया का नाम है

प्‍लाई, केमिकल, बैटरी, स्‍क्रैप आदि का काम करने वाले कारख़ानों में भयंकर गर्मी और प्रदूषण होता है जिससे मज़दूरों को कई तरह की बीमारियाँ होती रहती हैं। स्क्रैप फ़ैक्‍टरी के मज़दूरों की चमड़ी तो पूरी तरह काली हो चुकी है। अक्सर मज़दूरों को चमड़ी से सम्बन्धित बीमारियाँ होती रहती हैं। अधिकतर मज़दूरों को साँस की समस्या है। इलाज के लिए प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र है जहाँ कुछ बेसिक दवाएँ देकर मज़दूरों को टरका दिया जाता है। इसके अलावा कुछ प्राइवेट डॉक्‍टर हैं जिनके पास जाने का मतलब है अपना ख़ून चुसवाना। गम्‍भीर बीमारी होने की स्थिति में बड़े अस्पतालों जैसे केजीएमयू, लोहिया, बलरामपुर हास्पिटल जाना पड़ता है जिसका ख़र्च उठाना भी मज़दूरों के लिए भारी पड़ता है और इलाज के लिए छुट्टी नहीं मिलने के चलते दिहाड़ी का भी नुक़सान उठाना पड़ता है।

भगतसिंह के जन्मदिवस के दिन लखनऊ में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने दी पहली दस्तक

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बिगड़ती हालत पर सरकार का ध्यान खींचने के इरादे से प्रदेशभर के छात्रों-युवाओं और नागरिकों ने शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में सरकार के दरवाज़े पर दस्तक दी। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से चलाये जा रहे शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान के 10 सूत्री माँगपत्रक को प्रदेशभर से जुटाये गये हज़ारों हस्ताक्षरों के साथ उपज़ि‍लाधिकारी के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंपा गया। शिक्षा एवं रोज़गार से जुड़े सवालों पर प्रदेश में आन्दोलनरत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर प्रदर्शन में शामिल हुए और सरकार को चेतावनी दी कि बेरोज़गारी के प्रति सरकारी उपेक्षा एवं दमन का रवैया प्रदेश में एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकता है।

हादसों के नाम पर कब तक होती रहेंगी ऐसी हत्याएँ?

स्थानीय अख़बारों में इसे एक हादसा बताया गया है। परन्तु यदि हम इस घटना का तार्किक विश्लेषण करें तो यह बिल्कुल साफ हो जायेगा कि यह हादसा नहीं “हत्या” है। आज भारत के असंगठित क्षेत्र में लगभग 48 करोड़ मज़दूर हैं। इनमें करीब 3 करोड़ निर्माण मज़दूर हैं। देशभर में बड़े-बड़े अपार्टमेंट, होटल, एअरपोर्ट, एक्सप्रेसवे, ऑफिस बिल्डिंग आदि का निर्माण अन्धाधुन्ध जारी है। लेकिन इनमें काम करने वाले मज़दूरों की हालत बेहद बुरी है। तमाम सरकारी घोषणाएँ सिर्फ कागज़ पर रह जाती हैं। बड़ी-बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनियों से लेकर राजकीय निर्माण निगम जैसी सरकारी संस्थाओं तक हर जगह मज़दूरों के साथ एक ही जैसा सुलूक होता है। आये दिन मज़दूर मरते और घायल होते रहते हैं या फिर जानलेवा बीमारियों का शिकार होते रहते हैं। ऐसी घटनाओं पर न तो हमारी सरकार को कोई फ़र्क़ पड़ता है और न ही पूँजीपतियों को।

तृतीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी की रिपोर्ट

पिछली 22 से 24 जुलाई तक लखनऊ में भारत में जनवादी अधिकार आन्दोलन: दिशा, समस्याएँ और चुनौतियाँ विषय पर तीसरी अरविन्द स्मृति संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के हॉल में अरविन्द स्मृति न्यास द्वारा आयोजित संगोष्ठी में तीन दिनों तक हुई गहन चर्चा के दौरान देशभर से आये प्रमुख जनवादी अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों, कार्यकर्ताओं, न्यायविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के बीच इस बात पर आम सहमति बनी कि सत्ता के बढ़ते दमन-उत्पीड़न और जनता के मूलभूत अधिकारों के हनन की बढ़ती घटनाओं के विरुद्ध एक व्यापक तथा एकजुट जनवादी अधिकार आन्दोलन खड़ा करना आज समय की माँग है। आज देश में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के तहत हो रहे विकास का रथ आम जनता के मूलभूत अधिकारों को रौंदता हुआ बढ़ रहा है। आतंक के विरुद्ध युद्ध के नाम पर देश के कई क्षेत्रों में जनता के विरुद्ध सरकार का आतंकवादी युद्ध जारी है। सामाजिक-राजनीतिक जीवन में जनवाद का स्पेस कम होता जा रहा है। दूसरी ओर, जनवादी अधिकार संगठनों की संख्या बढ़ने के बावजूद इन हमलों का प्रभावी प्रतिरोध नहीं हो पा रहा है। ऐसे में, एक व्यापक आधार वाले तथा एकजुट जनवादी अधिकार आन्दोलन के लिए मिलकर प्रयास करने की ज़रूरत है।

इस व्यवस्था में मौत का खेल यूँ ही जारी रहेगा!

मुनाफे की अंधी हवस बार-बार मेहनतकशों को अपना शिकार बनाती रहती है। इसका एक ताज़ा उदाहरण है सण्डीला (हरदोई) औद्योगिक क्षेत्र में स्थित ‘अमित हाइड्रोकेम लैब्स इण्डिया प्रा. लिमिटेड’ में हुआ गैस रिसाव। इस फैक्ट्री से फास्जीन गैस का रिसाव हुआ जो कि एक प्रतिबन्धित गैस है। इस गैस का प्रभाव फैक्ट्री के आसपास 600 मीटर से अधिक क्षेत्र में फैल गया। प्रभाव इतना घातक था कि 5 व्यक्तियों और दर्जनों पशुओं की मृत्यु हो गयी और अनेक व्यक्ति अस्पताल में गम्भीर स्थिति में भरती हैं। इस घटना के अगले दिन इसी फैक्ट्री में रसायन से भरा एक जार फट गया जिससे गैस का रिसाव और तेज़ हो गया। किसी बड़ी घटना की आशंका को देखते हुए पूरे औद्योगिक क्षेत्र को ही ख़ाली करा दिया गया। इस फैक्ट्री में कैंसररोधी मैटीरियल बनाने के नाम पर मौत का खेल रचा जा रहा था। इस तरह के तमाम और उद्योग हैं जहाँ पर, अवैध रूप से ज़िन्दगी के लिए ख़तरनाक रसायनों को तैयार किया जाता है।

भगतसिंह के शहादत दिवस पर कार्यक्रम

भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस (23 मार्च) के अवसर पर राहुल फाउण्डेशन ने लखनऊ के हज़रतगंज में एक पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित की। पोस्टर में भगतसिंह के उद्धरण “अगर कोई सरकार जनता को उसके बुनियादी हक़ों से वंचित रखती है तो उस देश के नौजवानों का हक़ ही नहीं, आवश्यक कर्त्तव्य बन जाता है कि वह ऐसी सरकार को उखाड़ फेंके या तबाह कर दें।” को लेकर प्रदर्शनी स्थल पर नागरिकों व नौजवानों के बीच काफी बहस-मुबाहिसे का माहौल उपस्थित था। प्रदर्शनी आयोजक सदस्य लालचंद का कहना था कि इस जगह प्रदर्शनी लगाने का उद्देश्य भगतसिंह के विचारों को आम लोगों के बीच ले जाना है, उन्हें इन विचारों से परिचित करना और भगतसिंह के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए उनका आह्वान करना है। शालिनी का कहना था कि आज देश के वर्तमान हालत को बदलने के लिए भगतसिंह के विचारों के आधाशर पर एक क्रान्तिकारी संगठन बनाने के काम में हम लोग लगे हुए हैं और यह बताना चाहते हैं कि भगतसिंह के विचार जीवित हैं और उनके सपनों के हिन्दुस्तान को बनाने के लिए आज के युवा आगे आयेंगे।