Category Archives: चुनाव

कर्नाटक चुनाव के नतीजे और मज़दूर-मेहनतकश वर्ग के लिए इसके मायने

भाजपा की चुनावी रैलियों से रोज़गार, शिक्षा, महँगाई, आवास और स्वास्थ्य नदारद थे और आते भी कैसे क्योंकि अभी सरकार में तो स्वयं भाजपा ही थी। भाजपा और संघ परिवार के लिए बिना कुछ किये वोट माँगने का सबसे सरल रास्ता होता है साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा देना। इसकी तैयारी इस वर्ष के अरम्भ से ही भाजपा ने नंगे तौर पर शुरू कर दी थी। जनवरी में कॉलेज में हिजाब पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। लोगों के बीच प्रतिरोध होने पर हिन्दुत्ववादी संगठनों को हिंसा की खुली छूट दे दी गयी।

चुनावी शिकस्त देकर फ़ासीवाद को हराने के मुंगेरी लालों के हसीन सपनों पर एक बार फिर पड़ा पानी!

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि जैसे-जैसे पूँजीवादी व्यवस्था का ढाँचागत आर्थिक संकट बढ़ता जाता है वैसे-वैसे फ़ासीवाद की ज़मीन भी उर्वर और विस्तारित होती जाती है। ऐसे संकट के समय बुर्जुआ वर्ग की सार्वत्रिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली फ़ासीवादी ताक़तों को बुर्जुआ जनवादी चुनाव में शिकस्त देकर फ़ासिज़्म को रोकने व परास्त करने का सपना देखने वाले भारत के तमाम मुंगेरी लालों (उदारवादियों, सुधारवादियों, वामपन्थी बुद्धिजीवियों और सामाजिक जनवादियों) को अपने हसीन सपने के बारे में एकबार फिर से सोचने की ज़रूरत है।

दिल्ली एमसीडी चुनाव में मेहनतकश जनता के समक्ष विकल्प क्या है?

4 दिसम्बर को दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने वाले हैं। मतलब यह कि फिर से सभी चुनावबाज़ पार्टियों द्वारा झूठे वादों के पुल बाँधे जायेंगे। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, सभी के द्वारा जुमले फेंके जायेंगे। ऐसे में मेहनतकश जनता के पास सिर्फ़ कम बुरा प्रतिनिधि चुनने का ही विकल्प होता है और आज के समय में तो कम बुरा तय करना भी मुश्किल होता जा रहा है। सच्चाई तो यही है कि इन सभी में से कोई भी मज़दूर-मेहनतकश जनता का विकल्प नहीं है।

बिहार में सियासी उलटफेर कोई आश्चर्य की बात नहीं – ‘तू नंगा तो तू नंगा, मौक़ा मिले तो सब चंगा’ – यही है पूँजीवादी लोकतंत्र की असली हक़ीक़त

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबन्धन तोड़कर जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के साथ तथा लालू की पार्टी ‘आरजेडी नीत महागठबन्धन’ (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआईएम और सीपीआई माले लिबरेशन) के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी है। नयी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद उदारपन्थी-वामपन्थी ख़ेमा अत्यधिक उत्साहित हो रहा है। कोई इस बदलाव को जनता के हित में एक ज़बर्दस्त बदलाव के रूप में व्याख्यायित कर रहा है तो कोई इसे फ़ासीवादी ताक़तों के ह्रास के रूप में! बिहार में भाजपा का सत्ता से बाहर हो जाना महज़ लुटेरों के बीच के आपसी समीकरणों का बदलाव ही है।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आम मेहनतकश आदिवासियों की जीवन स्थिति में कोई बदलाव आयेगा?

हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू जीत हासिल कर भारत की 15वीं राष्ट्रपति बन गयी हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा (जो पहले ख़ुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं) को भारी मतों से परास्त किया। इस तरह द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक ओहदे पर बैठने वाली दूसरी महिला और प्रथम आदिवासी बन गयीं। द्रौपदी मुर्मू ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले के रायरंगपुर शहर से आती हैं और सन्थाल जनजाति से ताल्लुक़ रखती हैं।

पंजाब में ‘‘आप’’ की सरकार बनने से क्या राज्य की जनता के जीवन में कोई वास्तविक बदलाव आयेगा?

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है। दिल्ली के बाद पंजाब में सत्ता पा जाने के बाद लोग-बाग़ आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का स्वाभाविक विकल्प और भाजपा का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बताने में लग गये हैं। क्या केजरीवाल की ‘आप’ के आने के बाद पंजाब का कुछ भला हो पायेगा? यह जानने के लिए हमें पाँच साल इन्तज़ार करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। बल्कि हम ‘आप’ के वर्ग चरित्र और केजरीवाल की नीतियों के पिछले इतिहास से ही यह जान सकते हैं कि इनकी नीयत और नियति क्या है, आइए देखते हैं।

विधानसभा चुनावों में भाजपा फिर क्यों जीती?

भाजपा को चार राज्यों में हालिया विधानसभा चुनावों में भारी जीत मिली है। यहाँ तक कि जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच काँटे के मुक़ाबले की बात की जा रही थी, उन राज्यों में भी भाजपा ने आराम से कांग्रेस को पीछे छोड़कर बहुमत हासिल किया। देशव्यापी पैमाने पर जिस राज्य के चुनावों का प्रभाव सबसे ज़्यादा पड़ना था वह था उत्तर प्रदेश। वहाँ भाजपा की सीटों में कमी आयी और प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी पार्टी समाजवादी पार्टी की सीटों में अच्छी-ख़ासी बढ़ोत्तरी के बावजूद भाजपा ने आराम से बहुमत हासिल किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश को फ़ासीवाद की प्रयोगशाला बनाने का सबसे बर्बर क़िस्म का प्रयोग भी अब आगे बढ़ेगा, जिसका सिरमौर योगी आदित्यनाथ है।

जनता का जीवन रसातल में तो चुनावबाज़ पार्टियों की सम्पत्तियाँ शिखरों पर क्यों?

हाल ही में एडीआर (असोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स) नामक संस्था ने विभिन्न पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों की सम्पत्तियों और उनकी देनदारियों का विवरण पेश किया है। चुनावी चन्दा लेने में सबसे आगे रहने वाली भाजपा सम्पत्ति के मामले में भी सबसे आगे है। भाजपा की कुल घोषित सम्पत्ति सात पार्टियों की कुल घोषित सम्पत्ति का क़रीब 70 प्रतिशत है। एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में सात राष्ट्रीय बुर्जुआ पार्टियों और 44 क्षेत्रीय बुर्जुआ पार्टियों की सम्पत्तियों की जानकारी दी है।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव : मज़दूर वर्ग और आम जनता के सामने विकल्प क्या है?

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव एकदम सिर पर हैं। इन पाँच राज्यों के सात चरणों में होने वाले चुनावों में वोट पड़ने की शुरुआत 10 फ़रवरी से हो जायेगी तथा चुनाव परिणाम 10 मार्च को घोषित कर दिये जायेंगे। पूँजीपति वर्ग की विभिन्न चुनावबाज़ पार्टियाँ जोश-ओ-ख़रोश के साथ चुनावी नूराकुश्ती के मैदान में डटी हुई हैं। जिस तरह से बारिश के मौसम में गन्दे नालों का पानी एक नाले से दूसरे नाले में आता-जाता रहता है ठीक वैसे ही चुनावबाज़ पार्टियों के नेता भी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में मिल रहे हैं।

पंजाब में केजरीवाल और चन्नी में “आम आदमी” बनने की हास्यास्पद होड़

आगामी पंजाब विधानसभा चुनावों को समीप आते देख पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों के बीच हलचल शुरू हो गयी है। इन सभी पार्टियों के नेता-मंत्री पाँच साल की शीत निद्रा से बाहर निकल आये हैं और एक के बाद एक बड़े एलान कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही एलानों के बीच पंजाब के नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच ख़ुद को ‘आम आदमी’ साबित करने की होड़-सी मच गयी।