Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

सरकारी आँकड़ों की हवाबाज़ी और अर्थव्यवस्था की ख़स्ताहाल असलियत

पिछले कुछ वर्षों के इतिहास को देखें तो बाजार में माँग के संकट की वजह से उद्योगों के स्थापित क्षमता से कम पर काम कर पाने से उनकी लाभप्रदता में गिरावट हुई है। इससे बहुत सारे उद्योग उत्पादन क्षमता के विस्तार हेतु निवेश की गयी स्थाई पूँजी की बड़ी मात्रा पर ऋणदाताओं की मूल देनदारी ही नहीं उस पर ब्याज तक चुकाने में असमर्थ हो गए हैं। इसका नतीजा बैंकों द्वारा दिए गए कर्जों की वसूली में संकट और कर्ज के डूब जाने में सामने आया। लगभग 12-14 लाख करोड़ रुपये के बैंक कर्ज इस तरह दबाव में आ गए। लगभग 9 लाख करोड़ अभी एनपीए हैं जबकि बीजेपी सरकार के पहले साढ़े तीन वर्षों में ही करीब पौने तीन लाख के कर्ज बैंकों को बट्टे खाते में (राइट ऑफ़) डालने पड़े। इस संख्या में भी इसका ब्याज शामिल नहीं है।

बैंक घोटाले, भ्रष्ट मोदी सरकार और पूँजीवाद

लेकिन सिर्फ़ इतना ही नहीं है। एक और क़िस्म का भी फ़्रॉड है जिसे ‘विलफ़ुल डिफ़ॉल्टर’ अर्थात इरादतन ग़बन कर्त्ता कहा जाता है। रिज़र्व बैंक ने क़र्ज़ न चुकाने वालों में भी यह एक ख़ास श्रेणी बनायी है जिसमें बैंक मज़बूरीवश तभी किसी को डालते हैं जब क़र्ज़ लेने वाला ख़ुद ही सुसाइडल क़दम उठाकर उनके सामने और कोई विकल्प न छोड़े। इसका मतलब यह प्रमाणित और जगज़ाहिर हो चुका है कि उसने लिए हुए क़र्ज़ का ग़बन कर लिया, चुकाने की हैसियत है, फिर भी  इरादतन नहीं चुकाता।

हथियारों का जनद्रोही कारोबार और राफ़ेल विमान घोटाला

लेकिन सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि राफ़ेल के बाद मचे इस शोर-शराबे के पीछे की कहानी क्या है? यूपीए सरकार के समय में फ़्रांसीसी कम्पनी दसाल्ट ने सबसे कम क़ीमत की बोली लगाकर यूरोफ़ाइटर को हराकर भारत को लड़ाकू विमान सप्लाई करने का अधिकार हासिल किया था। 2012 से ही विमान के ख़रीद की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गयी थी। उस दौरान भारत सरकार और दसाल्ट एविएशन के बीच यह समझौता हुआ था कि 530 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से भारत सरकार दसाल्ट से 18 लड़ाकू विमान ख़रीदेगी और 108 विमानों को भारत सरकार की कम्पनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड तकनीक प्राप्त करके बनायेगी। बाद

बढ़ते घपले-घोटाले और पूँजीवाद

लेकिन हम फिर ज़ोर देकर इस बात को कहना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार-मुक्त पूँजीवाद एक कपोल-कल्पना है। पूँजीवाद अपने आप में एक “मान्यता-प्राप्त” भ्रष्टाचार है। “हर सम्पत्ति-साम्राज्य अपराध की बुनियाद पर खड़ा होता है”(बाल्ज़ाक)। पूँजी श्रम-शक्ति की क़ानूनी लूट है। जहाँ क़ानूनी लूट होगी वहाँ अवैध लूट भी होगी। जहाँ “सफ़ेद पैसा” होगा, वहाँ काला पैसा भी होगा। दरअसल पूँजीवाद में सफ़ेद और काले धन का कोई अन्तर होता ही नहीं।

मोदी और पेट गैस की गोलियों में क्या संबंध है!

नवम्बर में औद्योगिक उत्पादन 8.4% बढ़ने के आंकड़े जारी करने के बाद मोदी सरकार और उसके भोंपू अर्थशास्त्री विशेषज्ञ अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी का राग अलाप रहे हैं! पर लिंक में दिए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े के पैराग्राफ 8 को पढ़ें तो कुल उत्पादन वृद्धि में से 2.5% वृद्धि तो सिर्फ पेट गैस की गोलियों और पाचन शक्ति बढ़ाने वाले टॉनिकों से हुई बताई गई है, जबकि कुल औद्योगिक उत्पादन में इनका कुल हिस्सा (weightage) चौथाई प्रतिशत से भी कम होता है – 0.22%! ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है – ये पेट गैस की गोलियों का चक्कर पिछले साल भी था! अब ये इतनी पेट गैस की गोलियां कौन खा रहा है?

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अदालत का फ़ैसला संसाधनों की बेहिसाब पूँजीवादी लूट पर पर्दा नहीं डाल सकता

मज़दूर वर्ग के दृष्टिकोण से देखा जाये तो जिसे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला कहा गया वो दरअसल इस मामले में हुई कुल लूट का एक बेहद छोटा-सा हिस्सा था। इस घोटाले पर मीडिया में ज़ोरशोर से लिखने वाले तमाम प्रगतिशील रुझान वाले पत्रकार और बुद्धिजीवी भी कभी यह सवाल नहीं उठाते कि आख़िर इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधन, जो जनता की सामूहिक सम्पदा है, को किसी भी क़ीमत पर पूँजीपतियों के हवाले क्यों किया जाना चाहिए!

वर्तमान आर्थिक संकट और मार्क्स की ‘पूँजी’

उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व और मुनाफ़े के लिए उत्पादन की पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था में इन समस्याओं का कोई समाधान सम्भव नहीं है। सिर्फ़ उत्पादन के साधनों पर निजी सम्पत्ति को समाप्त कर सामूहिक स्वामित्व में सबके द्वारा श्रम और सामूहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादन की समाजवादी व्यवस्था ही उत्पादन की शक्तियों के और ज़्यादा विकास का रास्ता खोल सकती है, क्योंकि तब सभी के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन, आदि हेतु उत्पादन को इतना बढ़ाने की आवश्यकता होगी कि समस्त वैज्ञानिक तकनीक के बाद भी सबके लिए काम न सिर्फ़ उपलब्ध हो बल्कि अनिवार्य भी। साथ ही सबके लिए काम के घण्टे कम भी किये जा सकेंगे जिससे संस्कृति, साहित्य, कला जैसी चीज़ें भी बस खाये-अघाये मालिक वर्ग की बपौती नहीं रहकर पूरे मानव समाज की सामूहिक उपलब्धि बन सकें। तभी समाज के प्रत्येक व्यक्ति की असली स्वतन्त्रता सम्भव होगी और उसका सम्पूर्ण विकास भी मुमकिन होगा।

40 प्रतिशत हैं बेरोज़गार, कौन है इसका जि़म्मेदार?

सरकारी व निजी क्षेत्र दोनों जगह हालत बहुत खराब है और बेरोज़गारी की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। निजी सम्पत्ति और मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में इस समस्या का कोई समाधान सम्भव नहीं है क्योंकि पूँजीवाद में पूँजीपति वर्ग जनता के लिए नहीं, अपनी तिजोरी भरने के लिए उत्पादन करता है। इसलिए पूँजीवाद में बेरोज़गारी बनी रहती है। बेरोज़गारों की फ़ौज हर समय बनाये रखना पूँजीवाद के हित में होता है क्योंकि इससे मालिकों को मनमानी मज़दूरी पर लोगों को रखने की छूट मिल जाती है। ये समस्या तभी ख़त्म की जा सकती है जब सामूहिक सम्पत्ति पर टिकी समाजवादी व्यवस्था का निर्माण किया जाये जहाँ उत्पादन निजी मुनाफ़े के लिए नहीं हो, बल्कि मानव समाज की ज़रूरतें पूरी करने के लिए हो। तभी रोज़गार-विहीन विकास के पूँजीवादी सिद्धान्त को धता बताकर हर हाथ को काम और हर व्यक्ति का सम्मानजनक जीवन का अधिकार सुनिश्चि‍त किया जा सकेगा।

जीडीपी की विकास दर में गिरावट और अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत

जीडीपी में माँग का एक और महत्त्वपूर्ण कारक विदेश व्यापार खाते का बैलेंस तो भारत में पहले ही नकारात्मक कारक है, क्योंकि भारत का विदेश व्यापार खाता सरप्लस नहीं बल्कि घाटे में चलता है। इस तिमाही में यह घाटा पिछले वर्ष की इसी तिमाही के मुकाबले 295% बढ़ा है यानी लगभग 4 गुना हो गया। निर्यात में मन्दी और आयात में 13% वृद्धि ने अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया है। आयात में यह भारी वृद्धि तब हुई है, जबकि पेट्रोलियम समेत अनेक जिंसों के दाम अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में काफ़ी कम हैं।

बुलेट ट्रेन के लिए क़र्ज़ देने वाले जापान के भारत प्रेम की हक़ीक़त क्या है?

चीन और जापान दोनों की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की भयंकर अतिरिक्त नक़दी तरलता है। इसकी वजह से जापान की बैंकिंग व्यवस्था को तबाह हुए 20 साल हो चुके। 1990 के दशक में दुनिया के 10 सबसे बड़े बैंकों में 6-7 जापानी होते थे, आज कोई इनका नाम तक नहीं सुनता। जापानी सेण्ट्रल बैंक कई साल से नकारात्मक ब्याज़ दर पर चल रहा है – जमाराशि पर ब्याज़ देता नहीं लेता है! लोग किसी तरह कुछ ख़र्च करें तो माँग बढे़, कहीं निवेश हो। जीडीपी में 20 साल में कोई वृद्धि नहीं, उसका शेयर बाज़ार का इण्डेक्स निक्केई 20 साल पहले के स्तर पर वापस जाने की ज़द्दोजहद में है।