Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए पेंशन योजना की असलियत

अनौपचारिक और औपचारिक क्षेत्र के असंगठित मज़दूरों/कर्मचारियों/मेहनतकशों को सरकार द्वारा सुझाए गये पेंशन के टुकड़े की असलियत काे समझना होगा और पूरी सामाजिक सुरक्षा के लिए अपना एजेण्डा सेट करना होगा और अपना माँगपत्रक पेश करना होगा। सबको पक्‍का, सुरक्षित और मज़दूर पक्षीय श्रम-क़ानून सम्‍मत रोज़गार की गारण्‍टी के साथ-साथ सबको समान शिक्षा, इलाज, पेंशन योजना जैसी बुनियादी ज़रूरत मुहैया कराये, वरना गद्दी छोड़ दे।

फ़ासिस्ट झूठ-उत्पादन कारख़ाना और संघी साइबर गुण्डों के गाली-गलौज के बारे में कुछ बातें

फ़ासिस्ट सोचते हैं कि जब वे भद्दी-भद्दी गालियाँ सड़कों पर या सोशल मीडिया पर देंगे तो शरीफ़ नागरिक, और विशेषकर स्त्रियाँ, सकुचाकर, शरमाकर, हतोत्साहित होकर चुप लगा जायेंगी। इसका एकमात्र जवाब यह है कि उन्हें यह दो-टूक बता दिया जाये कि कुत्तों और मनोरोगियों से भला क्या शरमाना? कुकर्म करो तुम, मानसिक बीमार हो तुम, और शर्मायें हम? अगर वे बरखा दत्त, रवीश कुमार, स्वाति चतुर्वेदी, अभिसार आदि से लेकर साध्वी मीनू जैन और कविता कृष्णपल्लवी पर बेहद अश्लील टिप्पणियों और गालियों की बौछार करते हैं तो इन लोगों को नहीं, बल्कि शर्माना चाहिए सुषमा स्वराज,निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, हेमा मालिनी, वसुंधरा राजे आदि-आदि को, और ऐसी मनोरोगी औलादों के माँ-बाप को।

देशभक्ति के नाम पर युद्धपिपासु अन्‍धराष्‍ट्रवाद किसके हित में है? अन्धराष्ट्रवाद और नफ़रत की आँधी में बुनियादी  सवालों  को  खोने  नहीं  देना  है!

पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और देशभक्ति उसके लिए महज़ बाज़ार में बिकने वाला एक माल है। आक्रामक राष्ट्रवाद पूँजीपति वर्ग की राजनीति का एक लक्षण होता है और सभी देशों के पूँजीपति अपनी औकात के हिसाब से विस्तारवादी मंसूबे रखते हैं। अगर इस सरकार को सच्ची देशभक्ति दिखानी ही है तो उसे सभी लुटेरे साम्राज्यवादी देशों की पूँजी ज़ब्त कर लेनी चाहिए और सभी विदेशी क़र्ज़ों को मंसूख कर देना चाहिए जिसके बदले में कई-कई गुना ब्याज ये हमसे वसूल चुके हैं। लेकिन कोई भी पूँजीवादी सरकार भला ऐसा कैसे करेगी!

केवल सत्‍ता से ही नहीं, पूरे समाज से फ़ासीवादी दानव को खदेड़ने का संकल्‍प लो!

खस्ताहाल अर्थव्‍यवस्‍था का सीधा असर इस देश की मेहनतकश आबादी की ज़ि‍न्दगी पर पड़ रहा है जिसका नतीजा छँटनी, महँगाई, बेरोज़गारी और भुखमरी के रूप में सामने आ रहा है। हर साल की ही तरह पिछले साल भी मज़दूरों की ज़ि‍न्दगी की परेशानियाँ बढ़ती गयीं। पक्‍का काम मिलने की सम्‍भावना तो पहले ही ख़त्‍म होती जा रही थी, अब ठेके वाले काम मिलने भी मुश्किल होते जा रहे हैं जिसकी वजह से मज़दूरों की आय लगातार कम होती जा रही है। नरेन्द्र मोदी द्वारा नये रोज़गार पैदा करने का वायदा तो बहुत पहले ही जुमला साबित हो चुका था, लेकिन पिछले साल यह ख़ौफ़नाक सच्‍चाई सामने आयी कि रोज़गार के अवसर बढ़ना तो दूर कम हो रहे हैं।

विज्ञान कांग्रेस में संघी विज्ञान के नमूने

भारतीय विज्ञान कांग्रेस में जो हुआ वह अपने आपमें कोई अपवाद नहीं है। चारों ओर चाहे स्कूलों में पढ़ाये जाने वाली किताबों में इतिहास को बदलने की बात हो या विज्ञान के नाम पर संघी अविज्ञान और झूठों का प्रचार यह सब संघ के एक बड़े एजेण्डे के भीतर एकदम फिट बैठता है। आज का भारत भुखमरी, बेरोज़गारी, ग़रीबी और बीमारी को लेकर सवाल न करें और अपने आने वाले कल के बारे में न सोचे, इसीलिए उसे एक ऐसे सुनहरे अतीत की तस्वीर दिखायी जाती है, जो कभी थी ही नहीं। एक फन्तासी रची जाती है कि वैदिक काल में जब भारत एक महान हिन्दू राष्ट्र था तब यहाँ अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धियाँ थीं, जो आज इसीलिए नहीं हैं, क्योंकि भारत एक हिन्दुत्ववादी राष्ट्र नहीं है।

महेश्वर की कविता : वे

वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई

  कहते हैं – एकजुटता

  और गाँव के सीवान से

  मुल्क की सरहदों तक

  उग आते हैं काँटेदार बाड़े

बुलन्दशहर की हिंसा : किसकी साज़िश?

3 दिसम्बर को बुलन्दशहर के महाव गाँव के खेतों में गाय के मांस के टुकड़े मिले थे। ये टुकड़े बाक़ायदा गन्ने के खेत में इस तरह से लटकाये गये थे जिससे दूर से दिखायी दे जायें। बाद में यह भी पता चल गया कि जानवर को कम से कम 48 घण्टे पहले मारकर वहाँ लाया गया था। ग़ौरतलब है कि इसके 3 दिन बाद यानी 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी आने वाली थी और राम मन्दिर का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ था। इसी दिन घटनास्थल से 50 किलोमीटर दूर ही मुसलमानों का धार्मिक समागम इज़्तिमा हो रहा था जिसमें लाखों मुसलमान शिरक़त कर रहे थे। अफ़वाह यह भी फैलायी गयी थी कि गौहत्या की वारदात को इज़्तिमा में शामिल हुए लोगों ने अंजाम दिया है। सुदर्शन न्यूज़ नामक संघी न्यूज़ चैनल के मालिक सुरेश चह्वाणके ने तो बाक़ायदा इस बात की झूठी ख़बर भी फैलायी थी जिसका खण्डन यूपी पुलिस ने ट्वीट करके किया। यहाँ एक चीज़़ और देखने वाली थी कि महाव गाँव बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाइवे पर पड़ता है और इज़्तिमा के समापन के बाद इस मार्ग से लाखों मुसलमानों को गुज़रना था। ‘दैनिक जागरण’ की ख़बर के अनुसार महाव गाँव में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद संघ परिवार के हिन्दू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने चिरगाँवठी गाँव के पास बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाईवे पर मांस के टुकड़ों को ट्रैक्टर-ट्राली में रख कर जाम लगा दिया था।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शिकस्त : यह निश्चिंत होने का समय नहीं है बल्कि फासीवाद के विरुद्ध लड़ाई को और व्यापक और धारदार बनाने का समय है!

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका, आई.बी., सी.बी.आई., ई.डी. समूची नौकरशाही और मुख्य धारा की मीडिया के बड़े हिस्से का फासिस्टीकरण किया जा चुका है। शिक्षा-संस्कृति के संस्थानों में संघी विचारों वाले लोग भर गये हैं पाठ्यक्रमों में बदलाव करके बच्चों तक के दिमाग़ों में ज़हर भरा जा रहा है। सेना में भी शीर्ष पर फासिस्ट प्रतिबद्धता वाले लोगों को बैठाया जा रहा है। संघी फासिस्ट अगर चुनाव हार भी जायेंगे तो सड़कों पर अपना ख़ूनी खेल जारी रखेंगे और फिर से सरकार बनाने के लिए क्षेत्रीय बुर्जुआ वर्ग की चरम पतित और अवसरवादी पार्टियों के साथ गाँठ जोड़ने की कोशिश करते रहेंगे। वे अच्छी तरह समझते हैं कि कांग्रेस या बुर्जुआ पार्टियों का कोई भी गठबंधन अगर सत्तारूढ़ होगा तो उसके सामने भी एकमात्र विकल्प होगा नव-उदारवादी विनाशकारी नीतियों को लागू करना। इन नीतियों को एक निरंकुश बुर्जुआ सत्ता ही लागू कर सकती है

साढ़े चार साल के मोदी राज की कमाई!-ध्वस्त अर्थव्यवस्था, घपले-घोटाले, बेरोज़गारी- महँगाई!

हिटलर के प्रचार मन्त्री गोयबल्स ने एक बार कहा था कि यदि किसी झूठ को सौ बार दोहराओ तो वह सच बन जाता है। यही सारी दुनिया के फासिस्टों के प्रचार का मूलमंत्र है। आज मोदी की इस बात के लिए बड़ी तारीफ़ की जाती है कि वह मीडिया का कुशल इस्तेमाल करने में बहुत माहिर है। लेकिन यह तो तमाम फासिस्टों की ख़ूबी होती है। मोदी को ‘’विकास पुरुष’’ के बतौर पेश करने में लगे मीडिया को कभी यह नहीं दिखायी पड़ता कि गुजरात में मोदी के तीन बार के शासन में मज़दूरों और ग़रीबों की क्या हालत हुई। मेहनतकशों को ऐसे झूठे प्रचारों से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। उन्हें यह समझ लेना होगा कि तेज़ विकास की राह पर देश को सरपट दौड़ाने के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी। ऐसे ‘विकास’ के रथ के पहिए हमेशा ही मेहनतकशों और ग़रीबों के ख़ून से लथपथ होते हैं। लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि हर फासिस्ट तानाशाह को धूल में मिलाने का काम भी मज़दूर वर्ग की लौह मुट्ठी ने ही किया है!

सनातन संस्था की असली जन्म कुंडली : बम धमाकों से महाराष्ट्र को कौन दहलाना चाहता था?

इन चारों से पूछताछ में यह सामने आया कि ये लोग महाराष्ट्र के छह शहरों मुंबई, पुणे के सनबर्न फेस्टिवल, सतारा, सांगली, सोलापुर आदि जगहों पर बम विस्फोट करने वाले थे। इसका उद्देश्य यही था कि इसमें मुस्लिमों का नाम आये और उनके प्रति नफरत पैदा की जा सके। इन्होंने कुछ पत्रकारों और लेखकों पर हमले की भी योजना बनाई थी। साथ ही इन्होंने कहा कि पद्मावत फ़िल्म की रिलीज के समय इन्होंने मुम्बई के कुछ सिनेमाघरों के सामने पेट्रोल बम फेंका था।