Category Archives: मज़दूर बस्तियों से

विकास के नाम पर मुम्बई में ग़रीबों की झोपड़ियाँ बनायी जा रही है निशाना

अमीरों के कारख़ानों के लिए कौड़ियों के दाम ज़मीन देने वाली सरकारें ग़रीबों से उनके रहने की कुछ गज ज़मीन छीनने के लिए जिस तरह के हथकण्डे अपनाती है वो अपने आप में इस मुनाफ़ाखोर व्यवस्था के बारे में बहुत कुछ बताता है। मुम्बई जैसे शहरों में रहने वाले ग़रीबों को अगर अपने लिए आत्मसम्मान की जि़न्दगी हासिल करनी है तो उन्हें सिर्फ़ अपनी झोपड़ी बचाने के लिए ही नहीं बल्कि इस पूरी व्यवस्था को बदलने के बारे में सोचना होगा।

मज़दूर इलाक़े में मज़दूर साथियों के साथ के कुछ अनुभव

गुडगाँव, शायद एशिया के सबसे बड़े मॉलों के लिए जाना जाता है, यहाँ पर आपको भारत की सबसे बड़ी मीनारें दिख जायेंगी लेकिन इसी शहर के निम्न-मध्यवर्गीय से लेकर मज़दूर इलाकों तक यह हालत एक सामान्य बात है। हम मेट्रो में जब लौट रहे थे, तो गुडगाँव के गुरुग्राम बनने की बात याद आ गयी। इस बार शायद ‘गऊ-ग्राम’ ठीक रहेगा। गाय जैसा सफ़ेद, उसके मूत्र जैसा स्वास्थ्य-वर्धक और गोबर जैसा पवित्र!!

‘मज़दूर बिगुल’ के बारे में मज़दूर परिवार की एक बच्ची के विचार

यह मज़दूरों का अखबार है। यह चन्दा इकठ्ठा करके छपता है। इस अखबार में कुछ भी छिपाया नहीं जाता। इसमें कोई भी बात छिपाई नहीं जाती। इसमें यह छपता है कि मज़दूर अपना घर कैसे चलाता है।

गुड़गाँव में मज़दूरों के एक रिहायशी लॉज की चिट्ठी, मज़दूर बिगुल के नाम!

मैं एक लॉज हूँ। आप भी सोच रहे होंगे की कोई लॉज कब से बात करने लगा, और आपके अख़बार में चिट्ठी भेजने लगा। अरे भाई मैंने भी पढ़ा है आपका यह अख़बार ‘मज़दूर  बिगुल’, मेरे कई कमरों में पढ़ा जाता है यह, तो भला में क्यों नहीं पढूँगा? इसीलिए मैंने सोचा कि क्यूँ न मैं भी अपनी कहानी लिख भेजूं।

वज़ीरपुर में जनता के माँगपत्रक अभियान की शुरुआत!

दिल्ली में वज़ीरपुर इलाक़े की झुग्गियों में लोगों समस्याओं को लेकर वज़ीरपुर जन अधिकार संघर्ष समिति की ओर से जन माँगपत्रक अभियान की शुरुआत की गयी है। वज़ीरपुर की झुग्गियों को बसे हुए करीब 30 साल से ऊपर होने जा रहे हैं पर झुग्गी में रहने वालों की बुनियादी समस्याएँ ज्यों की त्यों हैं। पानी की किल्लत, जाम नालियाँ, बीमारियों में डूबी बस्ती, स्टील फैक्टरियों में बहता ख़ून, खुले में शौच की मजबूरी आज भी वज़ीरपुर की जनता की आम समस्या है।

मुम्बई में लगातार ग़रीबों के बच्चों की गुमशुदगी के ख़ि‍लाफ़ मुहिम

वेश्यावृत्ति, अंगों के व्यापार, भीख मँगवाने आदि के लिए देशभर में बच्चे ग़ायब करने वाले गिरोह सक्रिय रहते हैं। पूरे देश में ग़ायब होने वाले बच्चों की संख्या के हिसाब से महाराष्ट्र टॉप पर है। मुम्बई में भी दक्षिण के पॉश वार्डों की अपेक्षा ईस्ट वार्ड से सबसे ज़्यादा बच्चे ग़ायब होते हैं। अमीरों का कुत्ता ग़ायब होने पर भी सक्रिय हो जाने वाली पुलिस ग़रीबों के बच्चों के ग़ायब होने पर भी अक्सर या तो रिपोर्ट ही नहीं लिखती है या फिर रिपोर्ट के बावजूद कार्रवाई नहीं करती है। ग़ायब बच्चों के मां-बाप को एक ओर अपने बच्चों के ग़ायब होने का दुख होता है तो दूसरी ओर पुलिस का संवेदनहीन रवैया उनके घावों पर मिर्च छिड़कने का काम करता है।

मज़दूरों की ज़ि‍न्दगी

मैं काम से नहीं घबराता, लेकिन इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी सुपरवाइजर मां-बहन की गाली देता रहता है, ज़रा सी गलती पर गाली-गलौज करने लगता है, और अक्सर हाथ भी उठा देता है। मज़दूर लोग दूर गांव से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए आए हैं, इसलिए नौकरी से निकाले जाने के डर से वे लोग कुछ नहीं बोलते। शुरू-शुरू में मैंने पलटकर जवाब दिया तो मुझे काम से निकाल दिया गया। यहां मेरा कोई जानने वाला नहीं है, इसलिए मेरे लिए काम करना बहुत ही ज़रूरी है। इसी बात पर मैं भी अब कुछ नहीं बोलता। लेकिन बुरा बहुत लगता है कि सुपरवाइजर ही नहीं, मैनेजर, चौकीदार और खुद मालिक लोग भी हमें जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझते। कारखाने में घुसने के समय और काम खत्म करने के बाद बाहर लौटते समय गेट पर बैठे चौकीदार हम लोगों की तलाशी ऐसे लेते हैं, जैसे हम चोर हों। बस लंच में ही समय मिलता है। उसके अलावा यदि जरूरत हो तो सुपरवाइजर की नाक रगड़नी पड़ती है। स्त्री मज़दूरों के साथ तो और भी बुरा बर्ताव होता है। गाली-गलौज, छेड़छाड़ तो आम बात है, जैसे वे औरत नहीं, उस फैक्ट्री का प्रोडक्ट हों। एक दो औरत मजदूरों ने विरोध किया और पलट कर गाली भी दी, तो उन्हें काम से निकाल दिया गया और खूब बेइज्जती की।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता शहनाज़ की पहली बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

शहनाज़ को 4 दिसम्बर को एक गुण्डा गिरोह ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगाकर जला दिया था। इससे पहले शहनाज़ को 25 अक्टूबर को अगवा करके दो दिन तक सामूहिक बलात्कार किया गया। राजनीतिक सरपरस्ती में पलने वाले इस गुण्डा गिरोह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में पुलिस ने बेहद ढिलाई बरती, पीड़ितों की ढंग से सुनवाई नहीं की गयी, रिपोर्ट लिखने और मेडिकल करवाने में देरी की गयी। बलात्कार व अगवा करने के दोषी 18 दिन बाद जमानत करवाने में कामयाब हो गये। गुण्डा गिरोह ने शहनाज़ और उसके परिवार को केस वापिस लेने के लिए डराया, जान से मारने की धमकियाँ दीं। 4 दिसम्बर को दिन-दिहाड़े सात गुण्डों ने उसे मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। 9 दिसम्बर को उसकी मौत हो गयी। गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ियों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की गयी है और उसे भी जेल पहुँचाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है।

क्या मेहनतकश के लिए “ख़ुशी” का मतलब यही है?

पूँजीवाद का यह निर्मम रूप है जहाँ एक तरफ ख़ुशी दिखाने के सर्वे किये जाते हैं और दूसरी तरफ मेहनतकश वर्ग के लोगों के सर से छत और उनके बच्चों के मुँह से निवाला छीन लिया जाता है। क्या इन लोगों से पूछा जाता है कि ये कितने ख़ुश हैं? मेहनतकश की यही आबादी हर तरह के उत्पादन के लिए दिन रात हाड़तोड़ मेहनत करती है। इसी आबादी के खून-पसीने से चंडीगढ़ जैसे शहरों की सुन्दरता बन पाती है और इन शहरों में रहने वाले खाये-पिये-अघाये वर्ग की ‘ख़ुशहाली’ होती है। लेकिन यही आबादी अपने बच्चों के लिए रोटी तक जुटा नहीं पाती और अब तो हालात ये हैं कि इस आबादी के सर पर कच्ची छत तक नहीं रहने दी जा रही। खाये- पिये वर्गों की ख़ुशी के लिए करोड़ों मेहनतकश पूँजीवाद का यह अभिशाप झेलने को मजबूर हैं।

हिन्दुत्ववादी फासिस्टों द्वारा दंगा कराने के हथकण्डों का भण्डाफोड़

15 अगस्त की घटना का माहौल संघ परिवार द्वारा काफी पहले से ही बनाया जा रहा था। उस दिन वहाँ भीड़ जुटाने के लिए शाहाबाद डेरी, बवाना, नरेला आदि निकटवर्ती क्षेत्रों के संघ कार्यकर्ताओं को पहले से ही मुस्तैद कर दिया गया था। संघ परिवार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से यह सबकुछ किये जाने के मुस्लिम समुदाय के आरोप के जवाब में संघ के प्रांत प्रचार-प्रमुख राजीव तुली ने मीडिया को बताया, ‘‘ये सभी आरोप आधारहीन हैं। स्थानीय मुस्लिम मस्जिद के सामने की जगह को क़ब्ज़ा करने की फ़ि‍राक में हैं। मस्जिद अनधिकृत है। दरअसल ये लोग हमारे राष्ट्रीय झण्डे का अनादर करते हैं।” बाहरी दिल्ली के डी.सी.पी. विक्रमजीत सिंह ने भी संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करके बना है। सच्चाई तो यह है कि होलम्बी कलां फ़ेज-2 में मौजूद कुल 28 मन्दिर भी सरकारी ज़मीन पर बिना किसी अलॉटमेण्ट या अनुमति के ही बने हुए हैं और तीन और ऐसे मन्दिर निर्माणाधीन हैं, फिर इस एक मस्जिद को ही मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है।