Category Archives: मज़दूर बस्तियों से

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : मज़दूरों के काम और जीवन पर एक आरम्भिक रिपोर्ट

चौड़ी-चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ मकानों की तरह बने कारख़ाने एक बार को देख कर लगता है कि कहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की जगह रिहायशी क्षेत्र तो नहीं। कई कारख़ाने तो हरे-हरे फूलदार गमलों से सज़े इतने ख़ूबसूरत मकान से दिखते हैं कि वहम होता है शायद यह किसी का घर तो नहीं। लेकिन नहीं ओखला फेज़ 1 और ओखला फेज़ 2 के मकान जैसे दिखने वाले कारख़ाने और कारख़ानों जैसे दिखने वाले कारख़ाने, सभी एक समान मज़दूरों का ख़ून निचोड़ते हैं…

लाखों दिहाड़ी व कैज़ुअल मज़दूरों के लिए अब भी हैं लॉकडाउन जैसे ही हालात

कोरोना नियंत्रण के नाम पर बिना किसी योजना के किये गये लॉकडाउन के बाद अनलॉक करने के भी कई दौर निकल चुके हैं और देश के अधिकांश हिस्सों में ऊपरी तौर पर लॉकडाउन जैसे हालात नज़र नहीं आ रहे हैं। बाज़ारों में भीड़ बढ़ रही है। आबोहवा में प्रदूषण और नदियों में गन्दगी फिर से लौट आयी है। धार्मिक स्थल भी खुल चुके हैं और सरकार की सरपरस्ती में त्योहारों के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने की परम्परा को भी धड़ल्ले से आगे बढ़ाया जा रहा है।

उच्‍चतम अन्‍यायालय के आदेश से 48,000 परिवारों को बेघर करने की बर्बर मुहिम शुरू

सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी में रेल पटरियों के पास बनी 48,000 झुग्गियों को अगले तीन महीने में हटा देने का आदेश जारी कर दिया है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसे मार्च और अप्रैल में सड़कों पर चल रहे करोड़ों मज़दूरों की हालत पर सुनवाई करने के लिए समय नहीं मिल रहा था। और अब हज़ारों मज़दूरों और उनके बच्‍चों को सड़क पर फेंक देने का आदेश जारी करने में उसे ज़रा भी समय नहीं लगा।

पटना में घरेलू कामगार यूनियन का गठन

केन्द्र सरकार द्वारा लॉकडाउन हटाने के बावजूद बिहार की नीतीश सरकार ने जनता के ऊपर एक के बाद एक लॉकडाउन लगाने का ही विकल्प चुना। स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के बजाय शुरुआत से नीतीश सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और सिर्फ़ लॉकडाउन कर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया!

कोरोना काल में केजरीवाल की व्यापारियों, मालिकों की सेवा और मज़दूरों को सहायता की नौटंकी!

जैसे देश स्तर पर मोदी सरकार कोरोना की शुरुआत से लेकर अब तक इस महामारी से लड़ने के लिए कोई ठोस कार्यक्रम न बनाकर गत्ते की तलवार भांजते हुए लोगों से कुछ नौटंकियों जैसे थाली-कटोरी बजाना, दीये जलाना करवाती रही वैसे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी राजधानी दिल्ली में कोरोना की रोकथाम के लिए बिना किसी ठोस योजना के हवा-हवाई दावे करते हुए कहते रहे कि ‘केजरीवाल सरकार कोरोना से चार क़दम आगे चल रही है’।

लॉकडाउन में दिल्ली के मज़दूर : नौकरी जा चुकी है, घर में राशन है नहीं, घर जा नहीं सकते

पिछले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को अचानक पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया। दिल्‍ली में बड़ी संख्या में मेहनतकश ग़रीब आबादी रहती है जिसकी रोज़ की कमाई तय करती है कि शाम को घर में चूल्हा जलेगा कि नहीं। फै़क्ट्री मज़दूर, रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले व निम्न मध्यवर्ग की आबादी जो कुल मिलाकर देश की 80 फीसदी आबादी है, उसपर लॉकडाउन क़हर बन कर टूटा है।

लॉकडाउन में गुड़गाँव के मज़दूरों की स्थिति

गुड़गाँव के सेक्टर 53 में, ऊँची-ऊँची इमारतों वाली हाउसिंग सोसायटियों के बीच मज़दूरों की चॉल है। छोटे से क्षेत्र में दो से तीन हज़ार मज़दूर छोटे-छोटे कमरों में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उसी चॉल में अपने परिवार को भूख, गर्मी, बीमारी से परेशानहाल देख मुकेश ने खु़दकुशी कर ली। तीस वर्षीय मुकेश बिहार के रहने वाले थे, और यहाँ पुताई का काम करते थे। लॉकडाउन का पहला चरण किसी तरह खींचने के बाद जब दूसरा चरण शुरू हुआ तो मुकेश की हिम्मत जवाब दे गयी।

‘मैं बड़े ब्रांडों के लिए बैग सिलता हूँ पर मुश्किल से पेट भरने लायक़ कमा पाता हूँ’ – अनाज मण्‍डी की जली फ़ैक्टरी में 10 साल तक काम करने वाले दर्ज़ी की दास्‍तान

दास ने कहा कि सुबह की धुँधली रोशनी में उसने अपनी खिड़की से देखकर गिना कि 56 मज़दूरों को उठाकर एम्‍बुलेंस में ले जाया गया था। इनमें से कई उसके दोस्‍त और ऐसे लोग थे जिनके साथ उसने काम किया था। फ़ैक्टरी के ताले खुलने के बाद कुछ लोग बाहर आये जो सिर्फ़ अन्‍दर के कपड़े पहने हुए थे। हमने उन्‍हें अपने कपड़े और जूते-चप्‍पल दिये।

शाहाबाद डेयरी में नारकीय हालत में रहते मज़दूर

शाहबाद डेयरी, मज़दूर-मेहनतकश बहुल झुग्गी इलाक़ा है। दिल्ली की तमाम कोठियों को चमकाने वाले घरेलू कामगार भी यहाँ रहते हैं। झुग्गियों में रहने वाली इस मेहनतकश आबादी के हालात पर ग़ौर करें तो यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ये लोग एक नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। आज केन्द्र में सत्तासीन मोदी सरकार हो या दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार, इन्होंने हमें ठगने के अलावा कुछ नहीं किया है।

नागरिकता संशोधन क़ानून का बवाना जे.जे. कॉलोनी के ग़रीब मेहनतकशों की ज़िन्दगी पर असर!

मोदी सरकार अपनी फ़ासीवादी नीति को विस्तारित करते हुए जो एनआरसी और सीएए क़ानून लेकर आयी है, उसके परिणाम मेहनतकश आबादी के लिए भयानक होंगे। इसी वजह से आज ख़ासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय में डर का माहौल है।