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पंजाब में केजरीवाल और चन्नी में “आम आदमी” बनने की हास्यास्पद होड़

आगामी पंजाब विधानसभा चुनावों को समीप आते देख पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों के बीच हलचल शुरू हो गयी है। इन सभी पार्टियों के नेता-मंत्री पाँच साल की शीत निद्रा से बाहर निकल आये हैं और एक के बाद एक बड़े एलान कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही एलानों के बीच पंजाब के नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच ख़ुद को ‘आम आदमी’ साबित करने की होड़-सी मच गयी।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (पहली क़िस्त) – मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो?

हर वर्ग का राजनीतिक प्रतिनिधित्व उसकी राजनीतिक पार्टी या पार्टियाँ करती हैं। भारत में तमाम पार्टियाँ मौजूद हैं जो अलग-अलग वर्ग का समर्थन करती हैं या शासक वर्ग के किसी हिस्से के हितों की हिफ़ाज़त करती हैं। भाजपा और कांग्रेस मूलत: और मुख्यत: बड़े पूँजीपतियों के वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये दोनों पार्टियाँ भारत की बड़ी वित्तीय-औद्योगिक पूँजी के हितों को प्रमुखता से उठाती हैं।
वहीं तृणमूल कांग्रेस, राजद, जदयू, अन्नाद्रमुक और द्रमुक से लेकर तमाम पार्टियाँ मँझोले व क्षेत्रीय बुर्जुआ वर्ग और/या धनी किसानों-कुलकों की प्रतिनिधि हैं, जो कि बड़े पूँजीपति वर्ग से देशभर में विनियोजित हो रहे बेशी मूल्य में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जद्दोजहद करते रहते हैं।

धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नवीनतम दौर में कुछ ज़रूरी सवाल जिन्हें इस आन्दोलन के नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए

जब हमने धनी किसान-कुलक आन्दोलन के शुरू होते ही कहा था कि इस आन्दोलन का मूल और मुख्य लक्ष्य लाभकारी मूल्य (एमएसपी) को बचाना और बढ़ाना है, तो इस आन्दोलन के पीछे घिसट रहे कई कॉमरेडों ने कहा था कि इस आन्दोलन का लक्ष्य केवल लाभकारी मूल्य बचाना नहीं है, बल्कि यह फ़ासीवाद-विरोधी आन्दोलन है, यह खेतिहर मज़दूरों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा और यह ग़रीब किसानों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा, वग़ैरह। लेकिन अब जबकि मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश व पंजाब चुनावों के मद्देनज़र तीन खेती क़ानूनों को वापस ले लिया है, तो मौजूदा धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नेतृत्व ने स्वयं ही अपने चरित्र को साफ़ कर दिया है।

सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

नमाज़ को लेकर संघियों का उत्पात : फ़ासीवादी ताक़तों द्वारा जनता को बाँटने की नयी साज़िश!

बीते दिनों नोएडा के सेक्टर-65 के एक पार्क में कुछ लोगों के नमाज़ पढ़ने पर त्रिभुवन प्रताप नामक एक व्यक्ति ने आपत्ति जताते हुए इसकी फ़ोटो यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग कर ट्वीट कर दिया। इसके बाद पुलिस ने वहाँ पहुँचकर नमाज़ को बन्द करा दिया। ग़ौरतलब है कि यहाँ नमाज़ के लिए आने वाले लोग आस-पास के कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूर हैं। ज़ाहिर है, इन मज़दूरों के पास न तो इतने संसाधन है कि वे कहीं दूर मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ें, न ही कारख़ानों में उन्हें इतना वक़्त दिया जाता है कि वे इबादत के लिए मस्जिद तक जा सकें। इसलिए काम के दौरान कारख़ाने से थोड़ी देर छुट्टी लेकर ये लोग पास के पार्क में नमाज़ पढ़ लेते हैं।

महाराष्ट्र में परिवहन निगम कर्मचारियों का आन्दोलन : एक रिपोर्ट

महाराष्ट्र में चल रहा राजकीय परिवहन निगम (स्टेट ट्रांसपोर्ट – एसटी) कर्मचारियों का संघर्ष हाल के आन्दोलनों में उल्लेखनीय स्थान रखता है जिसने दलाल ट्रेड यूनियनों, एसटी महामण्डल, राज्य सरकार और कोर्ट के दबाव को पीछे छोड़कर आन्दोलन को अभी भी जारी रखा हुआ है। सरकार द्वारा दिये जा रहे आर्थिक वेतन वृद्धि के लालच को भी मज़दूरों ने ठेंगा दिखा दिया है और अभी भी राज्य सरकार से विलय की माँग पर डटे हुए हैं। अगर विलय की माँग पूरी हो जाये, तो मज़दूरों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलेगा और उसके तहत सातवाँ वेतन आयोग भी उसी शर्त के अनुसार लागू होगा।

बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी: संकटग्रस्त पूँजीवाद के भीतर लोभ-लालच, सट्टेबाज़ी और अपराध को बढ़ावा देने के नये औज़ार

हाल के वर्षों में भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में खाते-पीते लोगों के बीच बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके पैसे से पैसा बनाने की एक नयी सनक पैदा हुई है। इस सनक को बढ़ावा देने का काम इण्टरनेट, सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों ने किया है जिनमें लोगों को बिना मेहनत किये रातों-रात अमीर बन जाने के सब्ज़बाग़ दिखाये जाते हैं। इन विज्ञापनों में लोगों को बताया जाता है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके वे बैंक और शेयर बाज़ार में किये गये निवेश के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा पैसा बना सकते हैं।

प्रोजेक्ट पेगासस : पूँजीवादी सत्ता के जनविरोधी निगरानी तंत्र का नया औज़ार

पिछले महीने पूरी दुनिया के राजनीतिक हलक़ों में एक शब्द भ्रमण कर रहा था – पेगासस! ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ के खुलासे के बाद न केवल भारत की संसदीय राजनीति में उथल-पुथल पैदा हो गयी बल्कि विश्व के साम्राज्यवादी सरगनाओं तक इसकी आँच पहुँची। यूँ तो वर्ग समाज के अस्तित्व में आने, राजसत्ता के जन्म के साथ ही शोषक-शासक वर्ग द्वारा अपने हितों के मद्देनज़र विकसित किये गये जननिगरानी तंत्र का एक लम्बा इतिहास है। लेकिन वर्ग समाज की सबसे उन्नत अवस्था यानी पूँजीवाद के या वर्तमान ढाँचागत संकट से ग्रस्त पूँजीवाद के दौर में, सूचना तंत्र की स्थूल और सूक्ष्म स्तर पर विराट प्रगति ने राजसत्ता के हाथ में अभूतपूर्व औज़ार सौंप दिया है।

चीन का एवरग्रान्दे संकट : पूँजीवाद के मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की अभिव्यक्ति

चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में पैदा हुआ हालिया संकट पूँजीवाद की बुनियादी समस्या यानी लाभप्रभता के संकट का ही लक्षण है। इससे चीन की राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था को ‘कुछ विचलनों के साथ समाजवादी अर्थव्यवस्था’, या ‘किसी क़िस्म की संक्रमणशील अर्थव्यवस्था’ होने के चलते इसे आर्थिक संकटों से मुक्त मानने वाली धारणा निर्णायक तौर पर ध्वस्त हो गयी है। चीन की प्रमुख रियल एस्टेट कम्पनी एवरग्रान्दे के साथ अन्य रियल एस्टेट कम्पनियों का ब्याज़ भर सकने और लाभांश दे सकने की अक्षमता के चलते दिवालिया होने ने यह सिद्ध किया है कि चीन एक पूँजीवादी देश ही है, जिसकी संशोधनवादी सामाजिक फ़ासीवादी क़िस्म की पूँजीवादी राज्यसत्ता के कारण अपनी एक विशिष्टता है।

फ़रीदाबाद औद्योगिक क्षेत्र की एक आरम्भिक रिपोर्ट

आज़ादी के बाद 1949 से फ़रीदाबाद को एक औद्योगिक शहर की तरह विकसित करने का काम किया गया। भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय शरणाथिर्यों को यहाँ बसाया गया था। उस दौर से ही यहाँ छोटे उद्योग-धन्धे विकसित हो रहे थे। जल्द ही यहाँ बड़े उद्योगों की भी स्थापना हुई और 1950 के दशक से इसका औद्योगीकरण और तीव्र विकास आरम्भ हुआ। मुग़ल सल्तनत के काल से ही फ़रीदाबाद दिल्ली व आगरा के बीच एक छोटा शहर हुआ करता था। आज की बात की जाये तो फ़रीदाबाद देश के बड़े औद्योगिक शहरों में नौवें स्थान पर है। फ़रीदाबाद में 8000 के क़रीब छोटी-बड़ी पंजीकृत कम्पनियाँ हैं।