हिंसा-अहिंसा के मिथक-यथार्थ और संगठित हिंसा के विविध रूप – शशिप्रकाश
राज्य सत्ता की संगठित हिंसा की प्रतिरोधी प्रतिकारी शक्ति क्रांतिकारी संगठित हिंसा होती है। अतीत के दास विद्रोहों और किसान विद्रोहों पर भी यह बात किसी हद तक लागू होती है। अमेरिका और फ्रांस की महान बुर्जुआ जनवादी जनक्रांतियों ने अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए बड़े पैमाने पर संगठित क्रांतिकारी हिंसा का सहारा लिया था। बीसवीं शताब्दी के सभी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों में क्रांतिकारी हिंसा या बल-प्रयोग की प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका थी। बुर्जुआ राज्य सत्ता की संगठित हिंसा इतिहास में सर्वाधिक संगठित है और इसका प्रतिकार जनसमुदाय अपनी सारी शक्तियों को व्यापकतम स्तर पर, कुशलतम ढंग से और सूक्ष्मतम रूपों में संगठित करके ही कर सकता है। जनता द्वारा संगठित क्रांतिकारी, हिंसा या बल प्रयोग का सहारा लेना एक ऐतिहासिक अनिवार्यता होती है। जनता द्वारा बल-प्रयोग राज्य सत्ता द्वारा बल-प्रयोग का प्रतिकार होता है। बल द्वारा स्थापित एवं बल द्वारा संचालित सत्ता को बल द्वारा ही विस्थापित किया जा सकता है। यह गति का ऐतिहासिक नियम है, किसी व्यक्ति की इच्छा नहीं।