Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

सुप्रीम कोर्ट का गुजरात दंगों पर निर्णय : फ़ासीवादी हुकूमत के दौर में पूँजीवादी न्यायपालिका की नियति का एक उदाहरण

तमाम हत्याओं, साज़िशों और एनकाउण्टर के बाद भी गुजरात दंगों का भूत बार-बार किसी-न-किसी गवाह या मामले के रूप में सामने आ ही जाता था। फ़ासीवाद की पैठ राज्यसत्ता में पहले भी थी लेकिन इस पैठ को अभी और गहरा होना था। 2014 में सत्ता में आने के बाद से यह काम फ़ासीवाद ने तेज़ी से किया है। लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर संघ के वफ़ादार लोगों को बैठाया गया है। कुछ अपवादों को छोड़कर क्लर्क की भर्ती से लेकर आला अफ़सरों तक की भर्ती सीधे संघ से जुड़े या संघ समर्थकों की होने लगी और हो रही है। मोदी-शाह को अब अपने राजनीतिक ख़तरों से निपटने के लिए पुराने तरीक़ों के मुक़ाबले अब नये तरीक़े ज़्यादा भा रहे हैं। अब सीधे राज्य मशीनरी का इस्तेमाल इनके हाथों में है। पिछले कुछ सालों में जितनी भी राजनीतिक गिरफ़्तारियाँ हुई हैं उनमें से किसी के भी ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत हासिल नहीं हुआ है लेकिन उनकी रिहाई भी नहीं हुई है।

भाजपा के “राष्ट्रवाद” और देशप्रेम की खुलती पोल : अब मज़दूरों-किसानों के बेटे-बेटियों को पूँजीपति वर्ग के “राष्ट्र” की “रक्षा” भी ठेके पर करनी होगी!

‘अग्निपथ’ वास्तव में सैनिक व अर्द्धसैनिक बलों में रोज़गार को ठेका प्रथा के मातहत ला रही है। यह एक प्रकार से ‘फ़िक्स्ड टर्म कॉण्ट्रैक्ट’ जैसी व्यवस्था है, जिससे हम मज़दूर पहले ही परिचित हो चुके हैं और जिसके मातहत एक निश्चित समय के लिए आपको काम पर रखा जाता है, और फिर आपको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। पहले मज़दूरों की बारी आयी थी, अब सैनिकों की बारी आयी है। जैसा कि एक कवि पास्टर निमोलर ने कहा था, फ़ासीवादी देशप्रेम और “राष्ट्रवाद” की ढपली बजाते हुए अन्तत: किसी को नहीं छोड़ते!

दिल्ली में बुलडोज़र राज

पिछले दिनों दिल्ली के तमाम इलाक़ों में दिल्ली नगरपालिका द्वारा “अतिक्रमण” हटाने के नाम पर आम मेहनतकश आबादी की झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाकर उनके घरों को उजाड़ने का काम किया गया। अतिक्रमण हटाना तो बहाना था। असलियत यह थी कि इस पूरे प्रकरण में मुख्यतः मेहनतकश मुस्लिम आबादी को निशाना बनाया गया।

भारतीय राज्यसत्ता द्वारा उत्तर-पूर्व में आफ़्स्पा वाले क्षेत्रों को कम करने के मायने

गुरुवार, 31 मार्च को, जैसे ही केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्विटर पर चमक-दमक और इवेण्ट बनाने की शैली में घोषणा की कि मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर में आफ़्स्पा (AFSPA) के तहत क्षेत्रों को कम करने का फ़ैसला किया है वैसे ही मीडिया द्वारा जनता में इसे सनसनीख़ेज़ ख़बर की तरह पेश करते हुए कहा गया कि “आज आधी रात से, असम के पूरे 23 ज़िलों, और आंशिक रूप से असम के एक ज़िले व नागालैण्ड में छह और मणिपुर में छह ज़िलों से आफ़्स्पा को अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जायेगा” मगर यह भाजपा सरकार का कोई दयालु या हमदर्दी-भरा चेहरा नहीं है, बल्कि इन इलाक़ों से हाल में घटी घटनाओं के बाद लगातार आ रहे जनदबाव की वजह से लिया गया फ़ैसला है जो भाजपा के गले में अटकी हुई हड्डी बन गया था। मगर इस फ़ैसले से भी वहाँ की ज़मीनी स्थिति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है।

दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।

प्रोजेक्ट पेगासस : पूँजीवादी सत्ता के जनविरोधी निगरानी तंत्र का नया औज़ार

पिछले महीने पूरी दुनिया के राजनीतिक हलक़ों में एक शब्द भ्रमण कर रहा था – पेगासस! ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ के खुलासे के बाद न केवल भारत की संसदीय राजनीति में उथल-पुथल पैदा हो गयी बल्कि विश्व के साम्राज्यवादी सरगनाओं तक इसकी आँच पहुँची। यूँ तो वर्ग समाज के अस्तित्व में आने, राजसत्ता के जन्म के साथ ही शोषक-शासक वर्ग द्वारा अपने हितों के मद्देनज़र विकसित किये गये जननिगरानी तंत्र का एक लम्बा इतिहास है। लेकिन वर्ग समाज की सबसे उन्नत अवस्था यानी पूँजीवाद के या वर्तमान ढाँचागत संकट से ग्रस्त पूँजीवाद के दौर में, सूचना तंत्र की स्थूल और सूक्ष्म स्तर पर विराट प्रगति ने राजसत्ता के हाथ में अभूतपूर्व औज़ार सौंप दिया है।

स्वतंत्र पत्रकारिता पर हो रहे फ़ासीवादी हमलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाओ!

बीते दिनों न्यूज़क्लिक व न्‍यूज़लॉण्‍ड्री के दफ़्तर पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई। कहने को तो आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों के यहाँ “सर्वे” के लिए पहुँचा था लेकिन यह कैसा सर्वे था जिसमें आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों की वित्तीय रिपोर्ट निकालने के बजाय वहाँ काम कर रहे लोगों के फ़ोन और लैपटॉप ज़ब्त कर रहा था? उनकी निजी जानकारियाँ इकट्ठा कर रहा था?

“माननीयों” के मुक़दमे साल-दर-साल लम्बित क्‍यों?

अभी हाल ही में विधायकों के लम्बित मामलों पर कुछ ख़बरें आयीं। सीबीआई ने विभिन्न लम्बित मामलों और जाँचों के तहत 19 अगस्त को एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिसमें ख़ास बातें इस प्रकार हैं :

पेगासस : जनान्दोलनों के दुर्ग में सेंधमारी के लिए पूँजीवादी सत्ताओं का नया हथियार

मोदी सरकार भी अपनी सुरक्षा और अपने आसपास से लेकर जनता को संगठित करने वाले सभी के बारे में सब कुछ जान लेना चाहती है। इसलिए पेगासस पर पानी की तरह पैसा बहा कर मोदी सरकार जनाक्रोश के आने वाले सैलाब पर नियंत्रण करना चाहती है ताकि उसकी सुरक्षा दुरुस्त हो जाये और डरी-डरी बेचैन नींद उड़ी रातों से थोड़ी राहत मिले। यहाँ के भारी भरकम ख़र्चीले ख़ुफ़िया तंत्र और गली-गली में बैठे इनके भक्त निश्चित ही पर्याप्त नहीं थे इसलिए अपने सबसे पक्के यार से मदद माँगी गई।

देश के सभी ‘अर्बन नक्सलों’ से एक ‘अर्बन नक्सल’ की कुछ बातें

अब इस बात में संशय का कोई कारण नहीं है कि यह फ़ासिस्ट सत्ता उन सभी आवाज़ों का किसी भी क़ीमत पर गला घोंट देना चाहती है जो नागरिक आज़ादी और जनवादी अधिकारों के पक्ष में मुखर हैं। भीमा कोरेगाँव षड्यंत्र मुक़दमा उसी साज़िश की अबतक की सबसे ख़तरनाक कड़ी है।