Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

कश्मीर में जारी दमन, फ़र्ज़ी मुक़दमे और भारतीय राजसत्ता द्वारा जनता पर कसता शिकंजा!

कश्मीर काग़ज़ पर बना कोई नक़्शा नहीं है, कश्मीर वहाँ की जनता से बनता है। मज़दूरों व मेहनतकशों की लड़ाई न्याय और समानता के लिए है। सिर्फ़ अपने लिए न्याय और समानता नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए न्याय और समानता। हम मज़दूर मेहनतकश साथियों को कभी भी किसी भी सामाजिक हिस्से या राष्ट्रीयता या जाति के शोषण, दमन और उत्पीड़न का समर्थन नहीं करना चाहिए। पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और इसी राष्ट्रवाद की लहर को सांस्कृतिक तौर पर फैलाकर पूँजीपति वर्ग अपने दमन और शोषण को जायज़ ठहराने का आधार तैयार करता है। वह अन्य राष्ट्रों के दमन और उत्पीड़न के लिए मज़दूर वर्ग में भी सहमति पैदा करने का प्रयास करता है। हमें पूँजीपति वर्ग, मालिकों व ठेकेदारों की इस साज़िश के प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें हर क़ीमत पर हर प्रकार के शोषण, दमन और उत्पीड़न का विरोध करना चाहिए, अन्यथा हम अनजाने ही ख़ुद अपने दमन और शोषण को सही ठहराने की ज़मीन पैदा करेंगे।

उत्‍तर प्रदेश में आतंक के राज्‍य को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए आया काला क़ानून

एक ऐसी संस्था की कल्पना करें जो जब चाहे शक के आधार पर किसी को भी गिरफ़्तार कर सकती है; जिसको गिरफ़्तारी के लिए किसी वारण्ट या मजिस्ट्रेट की अनुमति की ज़रूरत नहीं है; जिसका हर सदस्य हर समय ड्यूटी पर माना जाएगा; जिसका ‘कोई भी सदस्य’ किसी भी समय किसी को भी गिरफ़्तार कर सकता है; जिसके ख़िलाफ़ सरकार की इजाज़त के बिना अदालत भी किसी मामले को संज्ञान में नहीं ले सकती है; जिसकी सेवाएँ कोई निजी संस्था भी ले सकती है। ये बातें सुनकर आपको कुख़्यात फ़ासिस्ट संस्था गेस्टापो की याद आ सकती है, लेकिन हम गेस्टापो की बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं ‘उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल (यूपीएसएसएफ़)’ की, जिसका गठन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार करने जा रही है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर फ़ैसला, सभी दंगेबाज़ साम्प्रदायिक फ़ासीवादी हुए बरी

लखनऊ की सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने अपने फै़सले में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में नामज़द सभी जीवित 32 आरोपियों को दोषमुक्त करके मुक़दमे से बरी कर दिया है। कोर्ट के फ़ैसले के बाद न्यायपसन्द लोगों के ज़ेहन में नये सवाल ये उभर रहे हैं कि यदि यह कुकर्म पूर्वनिर्धारित-पूर्वनियोजित नहीं था तो फिर आडवाणी के नेतृत्व में संघी गिरोह की रथयात्राएँ किस चीज़ के लिए निकाली जा रही थी?

उच्‍चतम अन्‍यायालय के आदेश से 48,000 परिवारों को बेघर करने की बर्बर मुहिम शुरू

सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी में रेल पटरियों के पास बनी 48,000 झुग्गियों को अगले तीन महीने में हटा देने का आदेश जारी कर दिया है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसे मार्च और अप्रैल में सड़कों पर चल रहे करोड़ों मज़दूरों की हालत पर सुनवाई करने के लिए समय नहीं मिल रहा था। और अब हज़ारों मज़दूरों और उनके बच्‍चों को सड़क पर फेंक देने का आदेश जारी करने में उसे ज़रा भी समय नहीं लगा।

विश्‍वव्‍यापी कोरोना संकट के बीच कश्मीर में डोमिसाइल नियमों में बदलाव

इतिहास यह याद रखेगा कि जिस समय पूरी दुनिया और तमाम सरकारें कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ अपना दिमाग खपा रही थी ठीक उसी समय मोदी की फ़ासीवादी सरकार कश्मीरी जनता के साथ नये विश्वासघात का सूत्रपात कर रही थी। इस एहसास को बार-बार पुष्ट किया जा रहा है कि भारतीय राज्यसत्ता के लिए कश्मीरी जनता के सन्दर्भ में लोकतन्त्र के कोई मायने नहीं हैं।

देशव्यापी लॉक डाउन में दिल्ली पुलिस का राजकीय दमन

दंगे भड़काने में जिन लोगों की स्पष्ट भूमिका थी, जिनके भड़काऊ़ बयानों के दर्जनों वीडियो हैं, अख़बारों में छपी ख़बरें हैं, ख़ुद पुलिस के अफ़सरों सहित सैकड़ों चश्मदीद गवाह हैं, उनकी गिरफ़्तारी तो दूर, उनको पूछताछ के लिए बुलाने का नोटिस भी नहीं दिया गया है। कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा, रागिनी तिवारी जैसे लोगों की ओर पुलिस की नज़र भी नहीं गयी है। जिनकी छत से हथियार लहराते लोगों के वीडियो हैं उनसे पुलिस पूछने भी नहीं गयी है। जो लोग अनेक वीडियो में हिंसा करते नज़र आ रहे हैं उनकी पहचान करके पूछताछ करना पुलिस के “स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल” में नहीं आता है जिसकी दुहाई दिल्ली पुलिस के आला अफ़सर दे रहे हें।

सावधान! राज्यसत्ता आपके जीवन के हर पहलू पर नज़र रख रही है!

हाल के वर्षों में देश की सुरक्षा और आतंकवाद के बहाने भारत की राज्यसत्ता देश के हर नागरिक की निजता को तार-तार कर रही है। लोगों में आतंकवाद और आन्तरिक सुरक्षा पर ख़तरे का भय पैदा करके वास्तव में सरकार लोगों की निजता पर हमला बोल रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत निजता का अधिकार हमारा मूलभूत अधिकार है और उसकी रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। लेकिन हुक्मरानों को हमेशा से जनता का भय सताता रहा है।

कश्मीर में 7 महीने से जारी पाबन्दियों‍ से जनजीवन तबाह

कश्मीर घाटी में पूर्ण नाकेबन्दी के सात महीने पूरे हो गये हैं। 70 लाख की आबादी वाली कश्मीर घाटी में पिछले 7 महीनों में जो तबाही हुई है उसका अन्दाज़ा दूर से लगाना बहुत मुश्किल है। अभी भी वहाँ इण्‍टरनेट और मोबाइल सेवाएँ पूरी तरह बहाल नहीं हुई हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत अब दुनिया में सबसे ज्‍़यादा लम्बे समय तक इण्‍टरनेट पर पाबन्दी लगाने वाला लोकतंत्र बन चुका है।

संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ने के साथ-साथ संविधान के बारे में कुछ अहम सवाल

आज फ़ासिस्ट इस देश के संविधान को भी व्यवहारतः ताक पर रखकर हमारे अतिसीमित, रहे-सहे जनवादी अधिकारों पर भी डाका डाल रहे हैं और देश में लाखों-लाख लोग इन संवैधानिक अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए सड़कों पर उतर कर लड़ रहे हैं। ऐसे में तय ही है कि हम उन अधिकारों के लिए अवाम के साथ मिलकर लड़ेंगे और फ़ासिस्टों को बेनक़ाब करने के लिए संविधान का हवाला भी देंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में संविधान को जनवाद की “पवित्र पुस्तक” या “होली बाइबिल” कत्तई नहीं बनाया जाना चाहिए, इसका आदर्शीकरण या महिमामण्डन करना एक भयंकर अनैतिहासिक और आत्मघाती ग़लती होगी।

आज़ादी के बाद का सबसे बर्बर और साम्प्रदायिक देशव्यापी पुलिसिया दमन

आज़ादी के बाद इस देश के हुक्मरानों ने सैकड़ों बार अपनी अवाम का ख़ून बहाया है। साम्प्रदायिक पुलिसिया दमन की ख़ूनी कहानियाँ मेरठ-मलियाना-भागलपुर से लेकर ’84 के सिख दंगों तक अनगिनत हैं। लेकिन एक साथ देश के अनेक हिस्सों में जिस तरह से इस बार सत्ता ने दमन और नफ़रत का खेल खेला है, वह अभूतपूर्व है। ख़ुद पर लगे दंगा भड़काने के सारे आरोपों को मुख्यमंत्री बनते ही वापस ले लेने वाले आदित्यनाथ ने जैसे उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है।