Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन द्वारा मालिकों से लड़ी जा रही क़ानूनी लड़ाई की पहली जीत!

अकसर क़ानूनी मामलों में मज़दूरों के बीच यह भ्रम पैदा किया जाता है कि वो मालिकों के पैसे की ताक़त के आगे नहीं जीत पाएंगे। मज़दूर द्वारा लेबर कोर्ट में केस दायर करने पर मालिक बिना किसी अपवाद के कोर्ट में उसे अपना मज़दूर मानने से साफ़ इनकार कर देता है और ऐसे हालात में अगर मज़दूर एकजुट न हो तो मालिकों के लिए उन्हें हराना और भी आसान हो जाता है। लेकिन राजनीतिक आंदोलनों के ज़रिये जो दबाव वज़ीरपुर के मजदूरों ने बनाया उसके चलते लेबर कोर्ट को भी मज़दूरों के पक्ष में फैसला देना पड़ा।

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के ठेका मज़दूरों के लम्बे संघर्ष की एक बड़ी जीत!

डीएमआरसी के ठेका मज़दूर लम्बे समय से स्थायी नौकरी, न्यूनतम मज़दूरी, ई.एस.आई., पी.एफ. आदि जैसे अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में ठेका कर्मियों ने कई जीतें भी हासिल की जैसे कि टॉम ऑपरेटरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी को लागू करवाना, तमाम रिकॉल मज़दूरों के मुकदमों को सफलतापूर्वक लेबर कोर्ट में लड़ना। इस संघर्ष के साथ ही यूनियन पंजीकरण के लिए भी मज़दूर लगातार प्रयास कर रहे थे।

विकलांगों के आये “अच्छे दिन”, “रामराज्य” में विकलांगों की पुलिस कर रही पिटाई!

राजस्थान के महिला एवं बाल विकास मंत्री ने तो आन्दोलनकारियों से मिलने तक से इंकार कर दिया। उनके इस असंवेदनशील व्यवहार का विरोध करने पर पुलिस ने एक विकलांग व्यक्ति को थप्‍पड़ जड़ दिया। इसके पहले आन्दोलन की शुरुआत में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया व एक महिला आन्देालनकारी की तिपहिया साइकिल तोड़ दी।

ग्रेटर नोएडा की यामाहा फैक्ट्री में वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर हड़ताल कर रहे मज़दूरों पर पुलिस और अर्द्धसैनिक बल ने बरसाई लाठियाँ!

कम्पनी के नियमित मज़दूरों और कान्‍ट्रैक्ट मज़दूरों के न तो काम में कोई अन्तर है और न ही काम के घंटों में कोई फर्क है, फिर भी एक ही फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों के वेतन में ज़मीन-आसमान का फर्क कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। पूँजीवाद में मज़दूरों की वर्ग एकता को तोड़ने के लिए पूँजीपति बहुत चालाकी से मज़दूरों के बीच भी एक सफ़ेद कालर मज़दूर वर्ग तैयार कर देता है जो अपने ही वर्ग हित के ख़िलाफ़ काम करते हैं।

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के ख़ि‍लाफ़ सरकार का आतंकी युद्ध एक नये आक्रामक चरण में

तमाम मुखर आवाज़ों के बर्बर दमन के अलावा राज्यसत्ता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबन्ध‍ित किये गये सलवा जुडूम को ही दूसरे नामों से फिर से शुरू करने की कोशिश में है। सलवा जुडूम की ही तर्ज़ पर वहाँ ‘बस्तर विकास संघर्ष समिति’, ‘महिला एकता मंच’ और ‘सामाजिक एकता मंच’ जैसे कई नये समूह उभर कर आ रहे हैं। देश की सबसे भ्रष्ट राज्‍य सरकारों में से एक, छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ”माओवाद” से लड़ने के नाम पर अपने तमाम कुकर्मों पर पर्दा डालने में लगी है।

कश्मीर : आओ देखो गलियों में बहता लहू

कश्मीर में सैन्य दलों द्वारा स्थानीय लोगों पर ढाए जाने वाले ज़ुल्मो–सितम की न तो यह पहली घटना है न ही आखिरी। उनके वहशियाना हरकतों की फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है। फरवरी 1991 में कुपवाड़ा जि़ले के ही कुनन-पोशपोरा गाँव में पहले गाँव के पुरुषों को हिरासत में लिया गया, यातनाएँ दी गयीं और बाद में राजपूताना राइफलस के सैन्यकर्मियों द्वारा गाँव की अनेक महिलाओं का उनके छोटे-छोटे बच्चों के सामने बलात्कार किया गया। (अनेक स्रोत इनकी संख्या 23 बताते हैं लेकिन प्रतिष्ठित अन्तरराष्ट्रीय संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ सहित कई मानवाधिकार संगठनों के अनुसार यह संख्या 100 तक हो सकती है।) वर्ष 2009 में सशस्त्र बल द्वारा शोपियां जि़ले में दो महिलाओं का बलात्कार करके उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया। बढ़ते जनदबाव के बाद कहीं जाकर राज्य पुलिस ने एफ़.आई.आर. दर्ज की।

‘आधार’ – जनता के दमन का औज़ार

मौजूदा फासीवादी उभार के समय में जब राज्यसत्ता की हिमायत प्राप्त हिन्दुत्ववादी अँधराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिकता का बोलबाला है, जब जनता के विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, अधिकारों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने के संविधानिक-जनवादी अधिकारों पर राज्यसत्ता द्वारा जोरदार हमले हो रहे हैं ऐसे फासीवादी उभार के समय में देश के पूँजीवादी हुक़्मरानों के हाथ में आधार जैसा दमन का औजार आना एक बेहद चिंताजनक बात है। जनता को हुक़्मरानों के इस हमले से परिचित कराना, इसके खिलाफ़ जगाना, संगठित करना बहुत ज़रूरी है।

छात्रों-युवाओं के दमन और विरोधी विचारों को कुचलने की हरकतों का कड़ा विरोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के दमन और मुम्बई में आर.एस.एस. विरोधी पर्चे बाँटने पर नौजवान भारत सभा कार्यालय पर आतंकवाद निरोधक दस्ते के छापे की देश भर के जनवादी व नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और विभिन्न जनसंगठनों की तरफ़ से की कड़ी निन्दा की गयी।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

”देशभक्ति” के गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश

इन फ़ासिस्टों के खिलाफ़ लड़ाई कुछ विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों से नहीं जीती जा सकती। इनके विरुद्ध लम्बी ज़मीनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। भारत में संसदीय वामपंथियों ने हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथ विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत का और कुछ रस्मी प्रतीकात्मक विरोध का मुद्दा बना दिया है।