Category Archives: ग़रीबी / कुपोषण

बदहाली के सागर में लुटेरों की ख़ुशहाली के जगमगाते टापू – यही है देश के विकास की असली तस्वीर

सरकार और उसके भाड़े के अर्थशास्त्रियों द्वारा पेश किये जा रहे आँकड़ों की ही नज़र से अगर कोई देश के विकास की तस्वीर देखने पर आमादा हो तो उसे तस्वीर का यह दूसरा स्याह पहलू नज़र नहीं आयेगा। उसे तो बस यही नज़र आयेगा कि नोएडा में सैमसंग की विशाल मोबाइल फ़ैक्टरी खुल गयी है। चौड़े एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं जिन पर महँगी कारें फ़र्राटा भर रही हैं। पिछले वर्ष के दौरान देश में 17 नये ”खरबपति” और पैदा हुए जिससे भारत में खरबपतियों की संख्या शतक पूरा कर 101 तक पहुँच गयी। देश की शासक पार्टी का 1100 करोड़ रुपये का हेडक्वाटर आनन-फ़ानन में बनकर तैयार हो गया है और देश की सबसे पुरानी शासक पार्टी का ऐसा ही भव्य  मुख़यालय तेज़ी से बनकर तैयार हो रहा है।

लगातार बढ़ती मज़ूदरों की असुरक्षा

भारत जैसे देश में जहाँ 90 प्रतिशत से ज़्यादा मज़दूर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं, मज़ूदरों का जीवन तमाम कि़स्मे की असुरक्षाओं से घिरा रहता है। वैकल्पिक रोज़गार की अनुपलब्धता, वेतन की कमी व अनियमितता, छँटनी का ख़तरा, कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरणों की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य   सुविधाएँ, आवास की तंगी और सामाजिक असुरक्षा उनके जीवन के जोखिम को लगातार बढ़ाती रहती हैं। कार्यस्थल पर बदसलूकी, भेदभाव और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ लगातार बढ़ती रही हैं।

असली मुद्दों को कस के पकड़ रहो और काल्पनिक मुद्दों के झूठ को समझो।

गुड़गाँव के एक औद्योगिक क्षेत्र के पास एक मज़दूर बस्ती में हज़ारों मज़दूर रहते हैं, जो मारुती और होण्डा जैसी बड़ी कम्पनियों और उनके लिए पुर्जे बनाने वाली अनेक छोटी-छोटी कम्पनियों में मज़दूरी करते हैं। इस बस्ती में अन्दर जाने पर हम देखेंगे कि यहाँ बनी लाॅजों के 10×10 फि़ट के गन्दे कमरों में एक साथ 4 से 6 मज़दूर रहते हैं जो कमरे पर सिर्फ़ खाने और सोने के लिए आते हैं। इसके सिवाय ज़्यादातर मज़दूर दो शिफ़्टों में काम करने के लिए सप्ताह के सातों दिन 12 से 16 घण्टे कम्पनी में बिताते हैं, जिसके बदले में उन्हें 6 से 14 हज़ार मज़दूरी मिलती है जो गुड़गाँव जैसे शहर में परिवार के साथ रहने के लिए बहुत कम है।

”रामराज्य” में गाय के लिए बढ़ि‍या एम्बुलेंस और जनता के लिए बुनियादी सुविधाओं तक का अकाल!

एक ओर लखनऊ में उपमुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य ने गाय ”माता” के लिए सचल एम्बुलेंस का उद्घाटन किया तो दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने अदालत में स्वीकार किया है कि साल 2017 में अक्टूबर तक 15 हज़ार से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। नवम्बर और दिसम्बर के आँकड़े इसमें शामिल नहीं हैं। उनको मिलाकर ये संख्या और बढ़ जायेगी। डेढ़ हज़ार से अधिक नवजात शिशु तो केवल अक्टूबर में मारे गये। सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार भारत में नवजात बच्चों के मरने का आँकड़ा बड़ा ही भयावह है और इसमें मध्य प्रदेश और यूपी सबसे टॉप पर हैं।

बेहिसाब बढ़ती आर्थिक और सामाजिक असमानता

भारत तो इनमें से भी सर्वाधिक ग़ैरबराबरी वाले चन्द देशों में से है। यहाँ तो शीर्ष पर के 10% अमीर लोग 2010 में 69% सम्पत्ति के मालिक थे और तब से सिर्फ़़ 6 वर्षों में ये बढ़कर 2016 में 81% दौलत पर क़ब्ज़ा जमा चुके हैं। वहीं तली के 50% पूरी तरह सम्पत्तिहीन ही नहीं, बल्कि क़र्ज़ में किसी तरह मालिकों के लिए श्रम करते हुए जीवन बिताने को विवश हैं।

वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के शीर्ष पर जिनकी दौलत लगातार बढ़ रही है वे कौन लोग

झारखण्ड में भूख से बच्ची की मौत – पूँजीवादी ढाँचे द्वारा की गयी एक और निर्मम हत्या

अक़सर यह बताया जाता है कि भुखमरी का कारण खाद्यान्न की कमी है, पर यह एक मिथक है। सच तो यह है कि विश्व में इतना भोजन का उत्पादन होता है कि सभी का पेट भरना सम्भव है। एक ओर सुपरमार्केट की अलमारियों में रंग’बिरंगे ि‍डब्बों में खान-पान की सामग्री स्टॉक करके रखी हुई है, वहीं दूसरी ओर विश्व-भर में रोज़ 1.6 करोड़ बच्चे और 3.3 करोड़ वयस्क भूखे सोते हैं। पूँजीवादी मुनाफ़े की होड़ के कारण भोजन की क़ीमतें मज़दूरों और मेहनतकशों की पहुँच से अधिक होती हैं और हमेशा बढ़ती जाती हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण दुनिया की काम करने वाली आबादी का एक छोटा हिस्सा भी अगर खेतों में काम करे तो दुनिया-भर की आबादी का पेट भरने में सक्षम है परन्तु आधुनिक खाद्य उत्पादन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मुनाफ़े के अधीन काम कर रहे हैं। इसका ही दूसरा पहलू यह है कि अरबों ग़रीब किसान पुराने तरीक़ों से काम करते हुए अपनी क्षमताओं को बर्बाद करते हैं।

70 साल की आज़ादी का हासिल : भूख और कुपोषण के क्षेत्र में महाशक्ति

भारत में दो वर्ष तक की उम्र के 10% से भी कम बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषक भोजन उपलब्ध होता है। माँ का दूध पीते बच्चों को जब साथ में दूसरे भोजन देने की उम्र होती है, उस वक़्त सिर्फ़ 42% बच्चों को ही ठोस भोजन उपलब्ध हो पाता है। 5 साल से कम उम्र के 35% बच्चे सामान्य से कम वज़न और 38% बच्चे सामान्य से कम क़द के हैं। 21% बच्चे तो अपने क़द के हिसाब से भी कम वज़न वाले अर्थात पूरी तरह कुपोषित हैं। कुपोषित बच्चों की संख्या 2005-06 के मुक़ाबले अब 1% बढ़ गयी है। ये सब निष्कर्ष थे 2015-16 के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के। दुनिया में मात्र तीन ही और देश – दक्षिणी सूडान, जिबूती और श्रीलंका – ऐसे हैं, जहाँ 20% से अधिक बच्चे पूरी तरह कुपोषित हैं।

‘भारत में आय असमानता, 1922-2014 : ब्रिटिश राज से खरबपति राज?’

पिछले दिनों ही भारत में सम्पत्ति के वितरण पर क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट भी आयी थी। इसमें बताया गया था कि 2016 में देश की कुल सम्पदा के 81% का मालिक सिर्फ़ 10% तबक़ा है। इसमें से भी अगर शीर्ष के 1% को लें तो उनके पास ही देश की कुल सम्पदा का 58% है। वहीं नीचे की आधी अर्थात 50% जनसंख्या को लें तो उनके पास कुल सम्पदा का मात्र 2% ही है अर्थात कुछ नहीं। इनमें से भी अगर सबसे नीचे के 10% को लें तो ये लोग तो सम्पदा के मामले में नकारात्मक हैं अर्थात सम्पत्ति कुछ नहीं क़र्ज़ का बोझा सिर पर है। इसी तरह बीच के 40% लोगों को देखें तो उनके पास कुल सम्पदा का मात्र 17% है।

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के बच्चों में बढ़ता कुपोषण

मुम्बई भी ऐसा ही एक ऊपरी तौर पर चमकदार शहर है जहाँ एक ओर अम्बानी, टाटा, बिड़ला, अडानी जैसे भारी दौलतमन्द लोग रहते हैं; वहीं यहाँ की अधिकांश मेहनतकश जनसंख्या भारी ग़रीबी और तंगहाली में गन्दगी से बजबजाती, दड़बों की तरह भरी झोपड़पट्टियों में रहने को मजबूर है। हालत यह है कि इस ‘मायानगरी’ के दो तिहाई निवासियों को इस शहर की सिर्फ़ 8% जगह ही रहने को मयस्सर है। शायद इनमें से भी बहुतों ने 2014 के चुनाव के पहले के भारी प्रचार से चकाचौंध होकर नरेन्द्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘अच्छे दिनों’ के वादों में भरोसा किया था, देश के चहुमुँखी विकास से अपनी जि़न्दगी में बेहतरी आने का सपना देखा था। पर नतीजा क्या हुआ?

मध्य प्रदेश में रोज़ाना 64 बच्चों की मौत

मध्य प्रदेश भारत में ग़रीबी रेखा के नीचे सबसे ज़्यादा आबादी वाले 14 राज्यों में शामिल है और सबसे अधिक मृत्यु दर वाले राज्यों में से एक है। यहाँ 1000 के पीछे 52 बच्चों की मौत एक वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है और नवजात बच्चों का वज़न ढाई किलोग्राम से भी कम होता है। भारत में 31 प्रतिशत बच्चों का क़द आयु के अनुसार कम है और 42 प्रतिशत बच्चों का वज़न भी उनकी आयु के मुताबिक़ कम है। भारत के कुल कुपोषित बच्चों में 60 प्रतिशत मध्यप्रदेश और झारखण्ड के हैं।