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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और मण्डल कमीशन की राजनीति

भारतीय बुर्जुआ राजनीति में दो शब्दों, मण्डल और कमण्डल को अक्सर एक दूसरे के विलोम के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है। लेकिन वास्तव में दोनों ही राजनीतिक धाराओं का यह अन्तर केवल सतही है, और वस्तुत: ये एक दूसरे के पूरक का काम करती हैं। पिछले 40 वर्षों के राजनीतिक इतिहास ने तो यही दर्शाया है कि दोनों ही धाराएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज भारत में कमण्डल की राजनीति के जरिये फ़ासीवाद की विषबेल भी मण्डल की राजनीति के कारण बनी ज़मीन पर ही पनपी है। कभी मण्डल की राजनीति के जरिये कमण्डल का जवाब देने की बात करने वाले नीतीश कुमार व शरद यादव भी सत्ता का सुख पाने के लिए भाजपा के साथ गलबहियाँ करने से नहीं हिचके। और यह अनायास नहीं था, बल्कि वर्गीय राजनीति में इसकी वजहें निहित थीं।

आरएसएस से जुड़ा डीआरडीओ का वैज्ञानिक गोपनीय सूचनाएँ बेचने के आरोप में गिरफ़्तार

यह कोई पहला मामला नहीं है जब आरएसएस या भाजपा से जुड़े किसी व्यक्ति का नाम देश की रक्षा से सम्बन्धित सूचनाओं को दूसरे देश की ख़ुफ़िया एजेंसी को लीक करने में आया है। इसके पहले आरएसएस से जुड़े ध्रुव सक्सेना को भी एटीएस ने आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। जब यह बात सामने आयी कि ध्रुव सक्सेना भाजपा के आईटी सेल का जिला कॉर्डिनेटर है, तो फिर भाजपा ने यह रोना रोया कि विदेशी ताकतें भाजपा में घुसपैठ कर रही है तथा ध्रुव सक्सेना से उसका कोई लेना देना नहीं है। पी. एम. कुरुलकर के मामले में भी आरएसएस व भाजपा ने चुप्पी साध रखी है।

ईरान में सत्ता-विरोधी जन आन्दोलन के तीन माह : संक्षिप्त रिपोर्ट

सितम्बर माह में ईरान के गश्त-ए-एरशाद द्वारा महसा अमीनी की बर्बर हत्या के बाद से पूरे देश में लोग सड़कों पर उतरकर हिजाब क़ानून व अन्य महिला-विरोधी क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं, तथा इनकी बर्ख़ास्तगी की माँग कर रहे हैं। 100 दिन से भी ज़्यादा का समय बीत जाने के बाद भी लोग लगातार इन प्रदर्शनों में भागीदारी कर रहे हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 1979 में कट्टरपन्थी इस्लामी शासन के सत्ता में क़ाबिज़ होने के उपरान्त से ईरान में महिलाओं (चाहे किसी भी धर्म से सम्बन्धित हों) के लिए हिजाब पहनना ज़रूरी है। इसका पालन हो, ऐसा पुख़्ता करने के लिए एक विशेष पुलिस बल भी तैनात है, जिसे गश्त-ए-एरशाद कहा जाता है।

फ़ॉक्सकॉन की फ़ैक्ट्री में मज़दूरों के आन्दोलन का दमन : संक्षिप्त रिपोर्ट

वर्तमान चीन जहाँ नाम के लिए समाजवादी व्यवस्था स्थापित है, या फिर मज़दूर वर्ग के ग़द्दार देङ शियाओ पिङ के शब्दों में ‘बाज़ार समाजवाद’ स्थापित है, वह चीन आज दुनियाभर में श्रम के पूँजी द्वारा शोषण की सबसे बड़ी मण्डी बन चुका है। इस माह के मध्य में अन्तर्रराष्ट्रीय समाचारपत्रों व अन्य माध्यमों से कुछ तस्वीरें सामने आयीं, जिसमे हैज़मेट सूट पहने और हाथों में बैट लिये सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों का दमन कर रहे हैं। ‘द गार्जियन’ में 23 नवम्बर को छपी ख़बर के अनुसार चीन के झेंगझू शहर में कुछ दिनों से फ़ॉक्सकॉन कम्पनी में काम करने वाले मज़दूर प्रदर्शनरत हैं।

गाम्बिया में कफ़ सिरप से 69 बच्चों की मौत

मरियम कुयतेह, मरियम सिसावो, इसातु चाम गाम्बिया में रहने वाले उन कुछ लोगों के नाम हैं, जिन्होंने अपने मासूम बच्चों को ख़राब गुणवत्ता की दवा के कारण खो दिया। बीते माह पश्चिमी अफ़्रीका के देश गाम्बिया में 69 मासूम बच्चों की मौत की ख़बर आयी, मरने वाले बच्चों में 70 फ़ीसदी बच्चे 2 साल से कम उम्र के थे। सर्दी-ज़ुकाम की शिकायत के उपरान्त इन तमाम अभिभावकों ने अपने बच्चों को वहाँ के बाज़ारों मे उपलब्ध भारत में निर्मित कफ़ सिरप दिये थे, जिसके सेवन के बाद बच्चों की तबीयत और भी बिगड़ने लग गयी व उनकी मौत हो गयी।

मज़दूरों के बीच सट्टेबाज़ी ऐप्स का बढ़ता ख़तरनाक चलन

पूँजीवादी कुसंस्कृति किस प्रकार से मज़दूरों के बीच अपनी पैठ बनाती है, इसका हालिया नमूना तमाम तरह-तरह के फ़ैण्टेसी टीम व सट्टेबाज़ी ऐप्स हैं। ये सारे ऐप आपको रातों-रात करोड़पति बनाने का वायदा करते हैं। इनके अनुसार, महज़ कुछ पैसा लगायें और अगर “क़िस्मत की देवी” मेहरबान हुई तो फिर आप मालामाल हो जायेंगे। शहरों में काम करने वाले मज़दूरों की आबादी के बीच इन सट्टेबाज़ी ऐप्स का चलन पिछले 3 से 4 वर्षों में काफ़ी बढ़ गया है। पूँजीवाद की शैशावस्था से यानी 19वीं शताब्दी के मध्य से पूँजीपतियों द्वारा जुए और सट्टेबाज़ी को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मण्डल-कमण्डल की राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू : त्रासदी से प्रहसन तक

90 के दशक के उपरान्त सामाजिक न्याय व हिन्दुत्व सम्भवतः भारतीय चुनावी राजनीति में दो अहम शब्द बन चुके हैं। हर चुनाव में इन्हें ज़रूर उछाला जाता है। यह दीगर बात है कि हाल के एक दशक के दौरान कमण्डल या यूँ कहें कि उग्र हिन्दुत्ववादी राजनीति का बोलबाला रहा है। मौजूदा यूपी चुनाव में एक चुनावी सभा में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह चुनाव 80 बनाम 20 की लड़ाई है, जिसका तात्पर्य बनता है यह बहुसंख्यक हिन्दू बनाम मुस्लिमों की लड़ाई है।