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भारत जोड़ो न्याय यात्रा की असलियत

आज के दौर में किसी भी रूप में कांग्रेस या किसी पूँजीवादी पार्टियों के गठबन्धन नेतृत्व में फ़ासीवादी ताक़तों को निर्णायक रूप में परास्त नहीं किया जा सकता। हाँ, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद एक सम्भावना यह हो सकती है कि क्रान्तिकारी ताक़तों को कुछ मोहलत मिले। लेकिन यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। मज़दूर वर्ग को यह समझ लेना चाहिए कि फ़ासीवाद कभी भी चुनाव के रास्ते से नहीं हराया जा सका है। यह टुटपुँजिया वर्ग का एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है, जो बड़ी पूँजी की सेवा करता है। इसलिए चुनावी रास्ते से इसे किसी भी रूप में नही हराया जा सकता। इसके लिए मज़दूर वर्ग को स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पार्टी के निर्माण के साथ एक जुझारू क्रानितकारी जनआन्दोलन खड़ा करना होगा। तभी फ़ासीवाद को निर्णायक तौर पर शिकस्त दी जा सकती है। आज इसकी शुरुआत व्यापक मेहनतकश जनता को रोज़गार और महँगाई, शिक्षा और चिकित्सा के मसले पर अपने जुझारू जनान्दोलनों को खड़ा करने से करनी होगी।

कश्मीर के भारतीय औपनिवेशिक क़ब्ज़े पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

आरएसएस ने पिछले सौ वर्षों में तमाम संस्थानों में अपनी पैठ जमायी है जिसमें न्यायपालिका प्रमुख है। इसने न्यायाधीशों से लेकर तमाम पदों पर अपने लोगों की भर्ती की है जिसके नतीजे के तौर पर आज हमें न्यायपालिका का साम्प्रदायिक चेहरा नज़र आ रहा है। आज संघ ने न्यायपालिका को भी संघ के प्रचार और फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने का एक औजार बना दिया है। फ़ासीवाद की यह एक चारित्रिक अभिलाक्षणिकता होती है कि वह तमाम सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में अपनी पैठ जमाता है और इनके तहत अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को पूरा करता है।

‘द केरला स्टोरी’: संघी प्रचार तन्त्र की झूठ-फ़ैक्ट्री से निकली एक और फ़िल्म

जिस तरीक़े से जर्मनी में यहूदियों को बदनाम करने के लिए किताबों, अख़बारों और फ़िल्मों के ज़रिए तमाम अफ़वाहें फ़ैलायी जाती थीं, आज उससे भी दोगुनी रफ़्तार से हिन्दुत्व फ़ासीवाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहा है। ‘द केरला स्टोरी’ भारत के हिन्दुत्व फ़ासीवाद के प्रचार तन्त्र में से ही एक है।

ब्राज़ील में लूला के जीतने के निहितार्थ

इस वर्ष ब्राज़ील में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वाम पक्ष की ओर से लुइज़ इनेसियो लूला डा सिल्वा के जीतने के बाद ब्राज़ील समेत भारत की लिबरल जमात ब्राज़ील में फ़ासीवाद पर “मुक्कमल जीत” का जश्न मनाकर लहालोट हो रही है। ब्राज़ील के फ़ासीवादी नेता बोल्सोनारो की इस चुनाव में होने वाली हार के साथ ही इस बात का प्रचार पूरे ज़ोर-शोर से किया जा रहा है कि अब ब्राज़ील में आम मेहनतकश जनता के लिए बेहतर ज़िन्दगी का रास्ता खुल चुका है। लेकिन इन तमाम प्रचारों और शोर के बीच ब्राज़ील की जनता की स्मृति को थोड़ा पीछे ले जाकर देखें तो हम ब्राज़ील समेत भारत में लूला के समर्थन में उठ रहे खोखले नारों की असलियत जान पायेंगे।

जानलेवा शोषण के ख़िलाफ़ लड़ते बंगलादेश के चाय बाग़ान मज़दूर

“हमारे एक दिन की तनख़्वाह में एक लीटर खाने का तेल भी नहीं आ सकता, तो हम पौष्टिक खाना, दवाइयाँ और बच्चों की पढ़ाई के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं?” बंगलादेश के चाय के बाग़ान में काम करने वाले एक मज़दूर का यह कहना है जिसे एक दिन काम करने के महज़ 120 टका मिलते हैं। अगस्त महीने की शुरुआत से बंगलादेश के चाय बाग़ानों में काम करने वाले क़रीब डेढ़ लाख मज़दूर अपनी जायज़ माँगों को लेकर सड़कों पर हैं। इन मज़दूरों की माँग यह है कि उन्हें गुज़ारे के लिए कम से कम 300 टका दिन का भुगतान किया जाये, तभी वे चाय के बाग़ानों में काम करेंगे।

आटा-चावल, दाल-तेल-सब्ज़ियों की क़ीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ का जुमला उछालकर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार के आने के बाद जनता ने कभी महँगाई कम होती तो नहीं देखी, पर अपनी थाली में खाने की चीज़ें कम होती ज़रूर देखी हैं। 2014 के बाद पहले से जारी लूट को ही मोदी सरकार ने बढ़ाते हुए महँगाई की रफ़्तार को और भी तेज़ कर दिया। अब आलम यह आ गया है कि आटा, चावल, दाल, तेल पर भी जीएसटी लगाकर यह सरकार जनता की जेब पर डाका डालने की तैयारी में है।

दिल्ली में बुलडोज़र राज

पिछले दिनों दिल्ली के तमाम इलाक़ों में दिल्ली नगरपालिका द्वारा “अतिक्रमण” हटाने के नाम पर आम मेहनतकश आबादी की झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाकर उनके घरों को उजाड़ने का काम किया गया। अतिक्रमण हटाना तो बहाना था। असलियत यह थी कि इस पूरे प्रकरण में मुख्यतः मेहनतकश मुस्लिम आबादी को निशाना बनाया गया।

मई दिवस का नारा, सारा संसार हमारा

136वें मज़दूर दिवस के अवसर पर देश की तमाम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व संगठनों द्वारा मई दिवस की विरासत को याद करते हुए तथा बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, श्रम क़ानूनों पर हमले के ख़िलाफ़ अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार से लेकर देशभर के अन्य इलाक़ों की क्रान्तिकारी यूनियनों और संगठनों ने मिलकर मोदी सरकार द्वारा लगातार श्रम क़ानूनों पर किये जाने वाले हमलों समेत देशभर में बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन, गोष्ठी, सभा व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया।

हरिद्वार धर्म संसद में खुलेआम जनसंहार का आह्वान

पिछले 17 से 19 दिसम्बर तक हरिद्वार में आयोजित “धर्म संसद” के मंच से हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों द्वारा खुलेआम मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण दिये गये। इन भाषणों में सीधे-सीधे मुसलमानों का क़त्ल कर देने की बात कही गयी। इन भाषणों को देने वाले हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थी संगठन विश्व हिन्दू परिषद्, आरएसएस और भाजपा के नेताओं के साथ-साथ बड़े-बड़े धर्मगुरु थे, जिनके भक्तों की संख्या लाखों में है। भड़काऊ भाषण देने वालों में मुख्य रूप से हिन्दू महासभा की महामंत्री अन्नपूर्णा माँ, धर्मदास महराज आनन्द स्वरूप महराज, सागर सिन्धुराज महराज जैसे लोग थे।

नमाज़ को लेकर संघियों का उत्पात : फ़ासीवादी ताक़तों द्वारा जनता को बाँटने की नयी साज़िश!

बीते दिनों नोएडा के सेक्टर-65 के एक पार्क में कुछ लोगों के नमाज़ पढ़ने पर त्रिभुवन प्रताप नामक एक व्यक्ति ने आपत्ति जताते हुए इसकी फ़ोटो यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग कर ट्वीट कर दिया। इसके बाद पुलिस ने वहाँ पहुँचकर नमाज़ को बन्द करा दिया। ग़ौरतलब है कि यहाँ नमाज़ के लिए आने वाले लोग आस-पास के कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूर हैं। ज़ाहिर है, इन मज़दूरों के पास न तो इतने संसाधन है कि वे कहीं दूर मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ें, न ही कारख़ानों में उन्हें इतना वक़्त दिया जाता है कि वे इबादत के लिए मस्जिद तक जा सकें। इसलिए काम के दौरान कारख़ाने से थोड़ी देर छुट्टी लेकर ये लोग पास के पार्क में नमाज़ पढ़ लेते हैं।